धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन: Religion and Social Reform Movement

धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन | Religion and Social Reform Movement

नवजागरण के अग्रदूतों राजा राममोहन राय, दयानन्द सरस्वती, विवेकानन्द आदि ने भारतीय समाज व हिन्दू धर्म की कुरीतियों तथा अन्धविश्वासों को दूर करने के लिए आन्दोलन चलाए। भारतीय समाज और हिन्दू धर्म के दोष ( जाति प्रथा, छुआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा, अन्धविश्वास, मूर्तिपूजा, रूढ़िवादिता आदि ), ब्रिटिश शासन का प्रभाव ( लॉर्ड विलियम बेण्टिक द्वारा सती प्रथा का उन्मूलन ) अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति का प्रभाव, ईसाई धर्म के प्रचार का प्रभाव, वैज्ञानिक तथा परिवहन के साधनों के आविष्कारों ( रेल, तार, टेलीफोन , डाक आदि का प्रभाव ) तथा राष्ट्रीय चेतना के विकास ने देश में धर्म व सुधार आन्दोलनों का वातावरण तैयार कर दिया । इन आन्दोलनों का संक्षिप्त विवरण अग्रानुसार है-

Religion and Social Reform Movement

राजा राममोहन राय और ब्रह्म समाज


राजा राममोहन राय का जन्म सन् 1774 में बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उस समय देश में लोगों पर ईसाई धर्म तथा पाश्चात्य संस्कृति का इतना गहरा रंग चढ़ गया था कि वे अपनी प्राचीन गौरवपूर्ण संस्कृति और सभ्यता को भूलने लगे थे । ऐसे वातावरण में राजा राममोहन राय ने लोगों में अपने धर्म एवं राष्ट्र को स्वतन्त्रता के प्रति चेतना उत्पन्न की । इसके साथ ही उन्होंने अनेक सामाजिक और धार्मिक सुधार भी किए। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने राजा राममोहन राम के सम्बन्ध में लिखा है, " उन्होंने भारत में नए युग का सूत्रपात किया ।


वस्तुतः ये आधुनिक भारत के जनक थे । " राजा राममोहन राय एक ईश्वर की सत्ता में विश्वास करते थे । उन्होंने जनता को चित्र- राजा राममोहन राय । समझाया कि उनका हिन्दू धर्म वास्तव में सर्वोत्तम है, लेकिन उसमें कुछ दोष अवश्य उत्पन्न हो गए हैं, जिन्हें सरलता से दूर किया जा सकता है ।


अतः किसी दूसरे धर्म को अपनाने से अच्छा है कि अपने धर्म के दोषों को दूर कर उसे ही अपनाया जाए। उन्होंने समाज और धर्म सम्बन्धी दोषों को दूर करने के लिए बहुत ही व्यावहारिक कार्यक्रम अपनाए थे । राजा राममोहन राय पत्रकारिता के अग्रदूत थे। उन्होंने बंगाली पत्रिका ' संवाद कौमुदी ' ' मिरातुल अखबार ' नामक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया था। 


सामाजिक सुधार के कार्यक्रम

उन्होंने बहु-विवाह, बाल-विवाह, जाति प्रथा, पर्दा-प्रथा एवं निरर्थक कर्मकाण्डों आदि का डटकर विरोध किया। राजा राममोहन राय ने विधवा-विवाह निषेध प्रथा का भी घोर विरोध किया और सब क्षेत्रों में स्त्रियों की समानता का समर्थन किया ।


उन्होंने सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में अनेक सुधार किए, जिनके परिणामस्वरूप भारतीयों में राजनीतिक चेतना उत्पन्न हुई और उन्हें अपने देश और धर्म की स्वतन्त्रता का ध्यान आया। राजा राममोहन राय ने धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों के लिए 20 अगस्त, 1828 ई ० में ब्रह्म समाज नामक एक नवीन संस्था की स्थापना की, जिसके द्वार सभी वर्गों के लिए निष्पक्ष रूप से खुले हुए थे। 


ब्रह्म समाज के सिद्धान्त

ब्रह्म समाज के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं- 

( 1 ) ईश्वर एक है। 

( 2 ) जोवात्मा अमर है। 

( 3 ) ईश्वर की पूजा आत्मा की शुद्धता के साथ करनी चाहिए। 

( 4 ) सभी धर्मों के उपदेश सत्य है, उनसे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए । 

( 5 ) ईश्वर के प्रति पितृ-भावना, मनुष्य जाति के प्रति भ्रातृ-भावना तथा प्राणि-मात्र के प्रति दया भावना रखना ही परम धर्म है। 

( 6 ) ईश्वर की आराधना करने का सभी वर्णों एवं जातियों को समान अधिकार है। 

( 7 ) ईश्वर सबकी प्रार्थना सुनता है और पाप-पुण्य के अनुसार दण्ड अथवा पुरस्कार देता है।


ब्रह्म समाज के कार्य - ब्रह्म समाज ने मानव समाज की बहुत सेवा की । इस समाज ने सबसे पुनीत कार्य यह किया कि देश के लाखों लोगों को धर्म परिवर्तन करने से बचा लिया। कुमारी फोलेट ने राजा राममोहन राय के बारे में लिखा है, " राजा राममोहन राय एक महान् सेतु के समान हैं, जिससे होकर भारत अपने सुदूर अतीत से अदृश्य भविष्य की ओर बढ़ रहा है। "इस प्रकार राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के निर्माता और भारतीय राष्ट्रीयता के अग्रदूत थे ।


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