वर्धा शिक्षा योजना की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए तथा भारत में उसकी असफलता का कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा बेसिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं? बेसिक शिक्षा के उद्देश्य एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
अथवा बुनियादी शिक्षा के सिद्धान्तों तथा उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
अथवा वर्धा शिक्षा योजना की यथोचित समीक्षा कीजिए।
1935 ई 0 के भारत सरकार अधिनियम ' के आधार पर 1937 ई० से भारत में द्वैध शासन को समाप्त कर प्रान्तों में उत्तरदायी शासन की स्थापना की गयी । देश के 11 प्रान्तों में से 6 में कांग्रेस के मंत्रिमंडल बने , महात्मा गाँधी की ' वर्धा शिक्षा योजना ' सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना थी । गांधीजी के में सुधार नहीं होता। अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीय युवक अंग्रेजियत के नशे में ऐसे मस्त थे कि अनुसार तब तक भारत दासता की जंजीरों से मुक्त नहीं हो सकता जब तक देश की शिक्षा व्यवस्था जिन्हें अपनी संस्कृति और सभ्यता से घृणा हो चली थी।
वे भारतीय वेश-भूषा पर कड़ी आलोचना करते थे । गाँधीजी ने इस संक्रामक रोग को जड़ से नष्ट करने का निश्चय किया। उनके अनुसार भारतीय तथा कथित शिक्षित युवकों की यह दशा विदेशी शिक्षा के कारण है । हमें भारतीय ढंग पर मातृ - भाषा के माध्यम से ऐसे शिक्षित युवकों को तैयार करना है जो सदियों से बन्दिनी भारतमाता को दासता से मुक्त करा सकें। 1930 ई 0 के जुलाई के ' हरिजन ' में प्रकाशित लेख में गाँधीजी की प्रशंसा हुई । ' साक्षरता शिक्षा का उद्देश्य नहीं है और न प्रारम्भ की है ।
यह तो केवल ऐसा साधन है जिसके द्वारा पुरुष और स्त्री शिक्षित किये जा सकते हैं। साक्षरता स्वयं शिक्षा नहीं है । इसलिए मैं चालक की शिक्षा किसी लाभदायक हस्तकला से प्रारम्भ करना चाहता हूँ। मैं प्रत्येक स्कूल को आत्म - निर्भर बनाना चाहता हूँ । " वर्धा में 22, 23 अक्टूबर को एक शिक्षा सम्मेलन हुआ जो ' वर्धा शिक्षा सम्मेलन ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इसका सभापतित्व गाँधीजी ने ही किया था ।
सम्मेलन के संयोजक श्रीमन्नारायण अग्रवाल थे । गाँधीजी अपने सभापति आसन से विस्तृत - वक्तृता दी जिसमें उन्होंने अपनी योजना को स्पष्ट कर दिया । गाँधीजी के पश्चात् ' जामिया मिलिया के प्रिन्सिपल डॉ० जाकिर हुसैन तथा प्रो० के० टी० शाह आदि विद्वानों ने उनके भाषण की समालोचना की । आचार्य विनोबा भावे, काका कालेलकर, महादेव देसाई तथा रविशंकर शुक्ल आदि विद्वान् नेताओं ने भी गाँधीजी की इस योजना का समर्थन किया ।
सम्मेलन के प्रस्ताव
( क ) भारत के सभी 7 वर्ष तक आयु वाले बालकों तथा बालिकाओं के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त हो ।
( ख ) शिक्षा का माध्यम मातृ - भाषा हो ।
( ग ) शिक्षा किसी उत्पादक हस्तकार्य को केन्द्र मानकर दी जाय । हस्तकला कार्य का सम्बन्ध वातावरण से हो ।
( घ ) अध्यापकों का वेतन बालकों द्वारा बनाई गई वस्तुओं से निकल आयेगा ।
जाकिर हुसैन समिति -
डॉ ० जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गयी जो कि ' जाकिर हुसैन समिति ' भी कहलाती है । इसमें सभापति के अतिरिक्त नौ सदस्य थे। जाकिर हुसैन ने दिसम्बर, 1937 ई ० और अप्रैल, 1938 ई 0 में दो रिपोर्ट प्रस्तुत की । प्रथम रिपोर्ट के अन्तर्गत वर्धा योजना के मूलभूत सिद्धान्तों, उद्देश्यों, अध्यापकों व शिक्षण प्रशिक्षण , विद्यालयों के संगठन, प्रशासन निरीक्षण और प्रमुख हस्तकार्य व काष्ठ गल्प आदि बुनियादी हस्तकार्यों की विधि व पाठ्यक्रम पूर्ण विवरण देते हुए अन्य विषयों से सम्बन्ध स्थापित किया ।
समिति ने अपनी रिपोर्ट मार्च, 1938 ई ० में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में वाद - विवाद के लिए प्रस्तुत की । कांग्रेस ने निम्न प्रस्ताव पास किया— कांग्रेस का यह विचार है कि प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तरों पर बेसिक शिक्षा निम्न सिद्धान्तों के अनुसार हो—
1. सम्पूर्ण भारत में 7 वर्ष तक की आयु के बच्चों को अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाय ।
2. शिक्षा मातृ - भाषा के माध्यम से दी जाय ।
3. 7 वर्ष की अवधि में शिक्षा की व्यवस्था किसी उत्पादक हस्तकार्य के माध्यम से दी जाय ।
( क ) बेसिक शिक्षा का अर्थ
बेसिक शिक्षा का अर्थ - बेसिक का तात्पर्य है ' मूल सम्बन्धी ' या ' आधार सम्बन्धी ' । इस प्रकार बेसिक शिक्षा का अर्थ हुआ " वह शिक्षा जिससे बालक का शारीरिक , मानसिक , सामाजिक , नैतिक , आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विकास हो तथा जो उसे व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय जीवन में सुखी एवं समृद्ध बना सके । "
( ख ) बेसिक शिक्षा के प्रमुख तत्त्व
( i ) शिक्षा का माध्यम एक उत्पादन और जीवनोपयोगी हस्तकार्य ।
( ii ) राष्ट्रीय भावना और नागरिकता का आविर्भाव ।
( iii ) आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन की भावना की अनुभूति ।
( iv ) श्रम के प्रति सम्मान , श्रद्धा , उत्साह का उदय
( v ) बालक शिक्षा के केन्द्र । मनोवैज्ञानिक ढंग से शिक्षण ।
( vi ) बालक और शिक्षक को हर प्रकार की पूर्ण स्वतन्त्रता ।
( vii ) नया स्वरूप क्रान्ति का वाहक ।
( viii ) स्वतंत्र , क्रियाशील और सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास ।
( ix ) ज्ञान , क्रिया और अनुभूति में समरसता एवं एकता ।
( ग ) बेसिक शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त
( i ) जनशिक्षा का सिद्धान्त- इस सम्बन्ध में महात्मा गाँधी ने लिखा था कि " जन साधारण की अशिक्षा भारत के लिए पाप और कलंक है और उसका विनाश किया जाना जरूरी है। "
( ii ) अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा का सिद्धान्त- यह अन्य देशों की भांति गाँधीजी ने 6 से 14 वर्ष तक शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क देने पर जोर दिया। "
( iii ) अहिंसा का सिद्धान्त - यह शिक्षा पद्धति अहिंसा के सिद्धान्त पर चलायी गयी क्योंकि हस्तकार्य की शिक्षा आजीविका का साधन बनेगी और गरीबों तथा शोषण दूर होगा ।
( iv ) हस्तकार्य की शिक्षा का सिद्धान्त - गाँधीजी ने लिखा कि " मैं बच्चे की शिक्षा उसे एक उपयोगी हस्त - शिल्प सिखाकर और जिस समय से वह अपनी शिक्षा शुरू करता है उसी समय से उत्पादन करने के योग्य बना कर देना चाहता हूँ । '
( v ) समान शिक्षा का सिद्धान्त- ऊंच - नीच , अमीर - गरीब , शूद्र - ब्राह्मण का भेदभाव नहीं रखा गया और सबको समान शिक्षा दी गयी ।
( vi ) व्यावहारिकता का सिद्धान्त- गाँधीजी ने कहा, ' साक्षरता स्वयं शिक्षा नहीं है । ' शिक्षा व्यावहारिक होती है तभी जीवन में उससे लाभ होता है ।
( vii ) स्वावलम्बन का सिद्धान्त- गाँधीजी ने लिखा है कि " सभी शिक्षा को सच्ची शिक्षा होने के लिए स्वावलम्बी होनी चाहिए , अर्थात् अन्त में उसे अपना खर्च निकाल लेना चाहिए केवल उसमें लगी पूँजी छोड़ देना चाहिए । "
( viii ) श्रम का सिद्धान्त- आराम से नहीं बल्कि श्रम से, निष्क्रियता नहीं सक्रियता से शिक्षा लेना लाभप्रद होता है ।
( ix ) मातृभाषा का सिद्धान्त- शिक्षा विदेशी भाषा में नहीं अपनी मातृभाषा में दी जाय जिससे बड़ी आसानी से मनुष्य सीखता है और आगे बढ़ता है ।
( x ) स्वानुभव का सिद्धान्त- गाँधीजी ने क्रियात्मक शिक्षा पर बल देकर स्वानुभव व सहसम्बन्ध के सिद्धान्त पर जोर दिया ।
( xi ) परीक्षा दूर रखने का सिद्धान्त- गाँधीजी ने बताया था कि वर्तमान परीक्षा प्रणाली से अपव्यय, अभिमान, अनैतिकता आदि अवगुण बालक में आते हैं अतएव बेसिक शिक्षा में कोई परीक्षा न ली जाय ।
( xii ) सामाजिक जीवन के सम्बन्ध का सिद्धान्त- गाँधीजी का लक्ष्य था " प्रत्येक प्राणी में सहानुभूति एवं प्रेम उत्पन्न करना, धनी और निर्धन व्यक्तियों का भेद समाप्त करना और उच्च तथा निम्न वर्गों में समता लाना । "
( xiii ) भारत को स्वतन्त्र राष्ट्र बनाने का सिद्धान्त- हर राष्ट्र स्वतन्त्र है और अपनी शिक्षा , पद्धति चलाता है । इस विचार से गाँधीजी ने भी शिक्षा के द्वारा भारत को एक स्वतन्त्र राष्ट्र बनाने का प्रयत्न किया ।
( घ ) बेसिक शिक्षा के उद्देश्य
( i ) नागरिकता का विकास- लोगों को शासन के प्रति अपने कर्तव्य और अधिकार के लिए जागृत करना इस शिक्षा का उद्देश्य है ।
( ii ) नैतिकता का विकास- व्यक्ति में समाज के अन्य लोगों के लिए सहानुभूति , प्रेम , श्रद्धा , सहयोग की भावना का विकास इस शिक्षा का दूसरा उद्देश्य है ।
( iii ) संस्कृति का विकास - भारत की परिस्थिति के अनुकूल प्राचीन एवं नवीन संस्कृति को भारतीय बनाकर ग्रहण करना बेसिक शिक्षा का दूसरा उद्देश्य है ।
( iv ) शरीर, मन, आत्मा तीनों का विकास - गाँधीजी एकांगी विकास के पक्ष में न थे बल्कि वह व्यक्ति के शरीर , मन और आत्मा का एक साथ विकास करना चाहते थे ।
( v ) आर्थिक और व्यावसायिक विकास - ज्ञान और कौशल की प्राप्ति के साथ शिक्षा व्यक्ति को व्यवसाय में लगाये और शिक्षा लेते समय तथा उनके बाद उसे धनोपार्जन में समर्थ बनाये ।
( vi ) सर्वोदय समाज की स्थापना - भारतीय समाज को प्रगतिशील बनाने के विचार से गाँधीजी शिक्षा के द्वारा उसे सुधारना चाहते थे । शिक्षा से उन्होंने सर्वोदय समाज की रचना करने की सोची जिसमें सबका अभ्युदय हो । "
( vii ) चरित्र का विकास - गाँधीजी ने कहा, " यदि मुझसे कोई पूछे की शिक्षा का उद्देश्य क्या है तो मैं उत्तर दूँगा कि चरित्र का विकास । " इसीलिए उन्होंने इस उद्देश्य पर अधिक जोर दिया है ।
( viii ) आत्मबोध - गांधीजी ने शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य आत्मबोध माना है ।
( ix ) मानव स्वभाव की पूर्णता - गाँधीजी ने शिक्षा का सबसे महान् उद्देश्य मानव स्वभाव की पूर्णता कहा ।
( ङ ) बेसिक शिक्षा पद्धति का मूल्यांकन
बेसिक शिक्षा के गुण-
( i ) मनोवैज्ञानिक आधार होना - बालक को केन्द्र मानकर उसकी रुचि, योग्यता, आवश्यकता के अनुसार इस पद्धति से शिक्षा दी जाती है । सहिष्णु एवं कर्त्तव्यपरायण
( ii ) सामाजिक आधार होना- इस पद्धति से मनुष्य चरित्रवान, बनता जाता है । ऐसी शिक्षा योजना से सर्वोदय भावना का विकास किया जाता है ।
( iii ) जनतन्त्र का निर्माण करना- बेसिक शिक्षा से समानता की भावना की विवेचना करके सही अर्थ में जनतन्त्र का निर्माण किया जाना सम्भव होता है ।
( iv ) आर्थिक आधार होना- बेसिक शिक्षा की मूल भावना ' पढ़ो और कमाओ ' में पायी जाती है । ' गरीबी हटाओ ' के नारे का यह पूरक है ।
( v ) साहित्य की अपेक्षा श्रम को महत्त्व देना- यह शिक्षा साहित्यिक न होकर व्यावहारिक और श्रम निहित है । इसलिए लोग श्रम का सही मूल्य समझते हैं ।
( vi ) विद्यालय, गृह और समाज के बीच समन्वय होना - इस पद्धति से शिक्षा देने में विद्यालय घर और समाज का संयोजक बनता है और एक गृहपालक एवं समाजसेवी व्यक्ति का निर्माण करता है ।
( vii ) सहसम्बन्ध की नयी विधि से ज्ञान देना - शिल्प एवं उद्योग के माध्यम से सभी विषयों की शिक्षा इस पद्धति में देते हैं । इसलिए ज्ञान की एकता बनी रहती है और रोचक ढंग से सभी विषयों का ज्ञान का एक साथ मिलता है ।
( vii ) क्रिया प्रधान होना- बेसिक शिक्षा बालक प्रधान तो है ही , यह क्रिया विधान भी है ।
( ix ) स्वेच्छा एवं स्वतन्त्र होना बेसिक शिक्षा में हस्त कार्य का चुनाव छात्र स्वेच्छा से करता है और अपने आप सब कार्य करता है ।
( x ) परीक्षा का भय न होना - बेसिक शिक्षा पद्धति में कोई परीक्षा नहीं होती है अतएव पास होने का लालच एवं फेल होने का भर नहीं पाया जाता है ।
( xi ) शैक्षिक आधार होना- शिक्षा स्वप्रयत्न एवं स्वाध्ययन के आधार पर होने से इस पद्धति में यह गुण भी मिलता है ।
बेसिक शिक्षा के दोष
( i ) ग्रामीण जनता के लिए ही होना - बेसिक शिक्षा उद्योगों - कौशलों के माध्यम से दी वाली थी इसीलिए इसे केवल ग्रामीण जनता के लिए ही बताया गया न कि नगर निवासियों जाने के लिए ।
( ii ) बाल - केन्द्रित न होकर शिल्प - केन्द्रित होना - यह शिक्षा शिल्प पर अत्यधिक बल देती है जो अनावश्यक है । इससे मनोवैज्ञानिकता नहीं रहती है ।
( iii ) उत्पादन पर बल देने से धनलोलुपता का होना - यह शिक्षा छात्रों और अध्यापकों को धनलोलुप बनती है ।
( iv ) समयसारणी का असन्तुलित होना - कुल समय 5 घं. 30 मि. में 3 घं. 20 मि. केवल क्राफ्ट के लिए और केवल 10 मिनट का अवकाश रखना असन्तुलित वितरण बताता है । इससे अरुचि एवं थकान भी होती है ।
( v ) समयानुकूल न होना- उद्योग की प्रगति के विचार से कला - कौशल उद्योग केन्द्रित शिक्षा समयानुकूल नहीं है ।
( vi ) फिजूल खर्च होना - उत्पादित वस्तु बेकार खराब जाती है ।
( vii ) शिल्प विशेषज्ञ की शिक्षा छोटी उम्र में देना अनुपयुक्त - 6 से 14 वर्ष के बालकों के लिए शिल्प - विशेषज्ञ की शिक्षा देना अनुपयुक्त है ।
गाँधीजी का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
बेसिक शिक्षा प्रणाली महात्मा गाँधी के मस्तिष्क की उपज थी । गाँधीजी ने शिक्षा के क्षेत्र में यह अनुपम एवं मौलिक भेंट दी । इसमें एक ओर भारतीयता थी तो दूसरी ओर अर्वाचीन के उद्देश्यों और लक्ष्यों का आधार था । इसमें व्यावहारिकता थी , स्वावलम्बन था , सामाजिक सर्वोदय था , राष्ट्रीय एकता थी । बेसिक शिक्षा योजना वास्तव में एक नयी सूझ थी ।
विदेशों में कौशल के माध्यम से शिक्षा देने की पद्धति प्रचलित हो चुकी थी । अमरीका में जॉन डीवी ने बढ़ईगीरी के माध्यम से शिक्षा देने के लिए जोर दिया था । जापान में उत्पादन के साथ शिक्षा की क्रिया चलायी गयी थी । इसी के आधार पर गाँधीजी ने तकली और चर्खा के द्वारा कताई और बाद में बुनाई की ओर ध्यान दिया और भारतीय उद्योग को उठाने का प्रयत्न किया ।
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