मध्यकालीन भारत के प्रमुख शिक्षण केन्द्र | Major Learning Centers of Medieval India in Hindi
मध्यकालीन भारत में मुसलमानों ने अपने आक्रमण अतुल धन सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए किये। परन्तु इसके पश्चात् उन्होंने अपनी शासन - व्यवस्था भी कायम कर ली। उनका शासनकाल हमारे देश में लगभग 700 वर्ष रहा । उस बीच उन्होंने हमारे यहाँ शासन - व्यवस्था के साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा शैक्षिक व्यवस्था को ठीक करने का भी प्रयास किया । इसी आधार पर उन्होंने अपने अनुरूप इन व्यवस्थाओं को बनाने के लिए धर्मप्रधान शिक्षा की व्यवस्था की ।
इस्लाम काल की इस्लाम-परस्त शिक्षा और शिक्षण संस्थाएँ जनसाधारण को न तो शिक्षित कर सकी और न ही यह उनके लिए उपयोगी ही सिद्ध हुईं। मुसलमानों के शासन स्थापित हो जाने पर यहाँ पर अनेक बस्तियाँ कायम हो गयीं । मुसलमान बालकों को शिक्षित करने के लिए मस्जिदों के साथ मकतबों और नगरों में मदरसों की व्यवस्था की गयी । फलतः विभिन्न शिक्षण केन्द्र बने। मकतबों की व्यवस्था तो प्रायः नगर, ग्राम व मुहल्लों में मस्जिदों के साथ हो जाया करती थी परन्तु उच्च शिक्षा के लिए मदरसों की स्थापना नगरों में ही होती थी।
प्रत्येक नगर में प्रायः एक ही पदरसा होता था। इनका स्वरूप और शिक्षण विधि विस्तृत होती थी। मुसलमानी काल में दिल्ली, आगरा, जौनपुर, लाहौर, सिलायकोट, अजमेर, बीदर, लखनऊ, जालन्धर, मुल्तान, गोलकुण्डा, फिरोजाबाद, हैदराबाद, बीजापुर और मालवा आदि ऐसे प्रमुख स्थान थे जो इस्लामी शिक्षा के केन्द्र थे। इन केन्द्रों में दिल्ली, आगरा, जौनपुर, बीदर, मालवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
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