सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमान | Paradigm of Social Change in Hindi
सामाजिक संरचना, प्रकार्य और सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तन अर्थात् अन्तर अथवा रूपान्तर सामाजिक परिवर्तन है। यह एक अनिवार्य, सर्वव्यापी एवं सार्वजनिक नियम तथा जटिल तथ्य है। अनिवार्य और सर्वव्यापी एवं सार्वजनिक नियम तथा जटिल तथ्य है। अनिवार्य और सर्वव्यापी होते हुए भी इसकी गति असमान होती हैं अर्थात् सभी समाजों में इसकी गति एक-सी होकर कहीं तीव्र और कहीं धीमी होती है ।
असमान गति के बावजूद यह एक तथ्य है कि इसकी गति निरन्तर चलती रहती है । उस गति की एक नहीं अनेक प्रक्रियाएँ हैं - चक्रवात प्रक्रिया, विकासवादी प्रक्रिया, प्रगति के रूप में, क्रान्ति के रूप में तथा अनुकूलन की प्रक्रिया असमान गति और विभिन्न प्रक्रियाओं की तरह ही इसके प्रकार भी अनेक हैं । विभिन्न प्रक्रियाओं एवं प्रकारों के कारण भिन्न - भिन्न समाजों में और क्षेत्रों में भिन्न - भिन्न और विशेष प्रकार के परिवर्तन देखने को मिलते हैं । यही कारण है कि मैकाइवर और पेज ने सामाजिक परिवर्तन के तीन प्रमुख प्रतिमानों का उल्लेख किया है ।
सामाजिक परिवर्तन का प्रथम प्रतिमान
एकाएक अर्थात् पहले से जिसका अनुमान अथवा जिसकी सम्भावना नहीं होती है होने वाला परिवर्तन इनके अन्तर्गत आता है । नये आविष्कारों को हम इसके अन्तर्गत ले सकते हैं । इस प्रकार के परिवर्तन के पूर्व पहले से इस बात का अनुमान नहीं होता है कि अमुक प्रकार की नयी वस्तु सामने आयेगी ।
एक बार सामने आ जाने के बाद वह निरन्तर चलता रहता है, जो कि उसमें सुधार होते रहते हैं । वह समाज में नये परिवर्तनों को जन्म देता है । इस प्रकार परिवर्तन के पूर्व पहले से एक बात का अनुमान नहीं होता है कि अमुक प्रकार की नयी वस्तु सामने आयेगी । एक बार सामने आजाने के बात वह निरन्तर चलता रहता है । जो कि उसमें सुधार होते रहते हैं । वह समाज में नये परिवर्तनों को जन्म देता है ।
इस प्रकार का परिवर्तन रेखीय परिवर्तन ( Linear Change ) कहा जाता है । क्योंकि आगे चलकर इसमें होने वाले सुधारों के बावजूद इसकी निरन्तरता बनी रहती है तथा यह एक ही दिशा में अग्रसर होता है । यह आकस्मिक भी होता है। औद्योगिक और ज्ञान के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन प्रथम प्रतिमान के अन्तर्गत आते हैं ।
सामाजिक परिवर्तन का दूसरा प्रतिमान
जहाँ प्रथम प्रतिमान के अन्तर्गत आने वाले परिवर्तन की गति रखीय और ऊपर की तरफ होती है , वहीं दूसरे प्रतिमान के अन्तर्गत वे परिवर्तन आते हैं जिनकी गति उतार - चढ़ाव की होती है । कुछ समय तक तो यह गति ऊपर की तरफ होती है और कुछ समय के बाद ह्रासोन्मुख हो जाती है । आगे चलकर वह फिर ऊपर की तरफ होती है और बाद में पुनः नीचे की तरफ हो जाती हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रतिमान के अन्तर्गत आने वाले परिवर्तन की गति उतार - चढ़ाव की होती है । आर्थिक और जनसंख्या के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन इसके अन्तर्गत आते हैं । अन्त में हम यही कह सकते हैं कि प्रथम प्रतिमान के अन्तर्गत आने वाले परिवर्तन की दिशा के बारे में निश्चितता होती है अर्थात् वह निश्चित होती है कि वह ऊपर की तरफ एक ही दिशा में अग्रसर होगा दूसरे के अन्तर्गत आने वाले परिवर्तन की गति रेखीय न होकर उतार - चढ़ाव की होती है ।
सामाजिक परिवर्तन का तृतीय प्रतिमान
इसके अन्तर्गत होने वाले परिवर्तन की गति न तो रेखीय और न उतार-चढ़ाव की होती है। वह रंग की तरह होती है । इसकी गति अथवा इसके ह्रास के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। सामान्यतः इसका सम्बन्ध मनोवृत्तियों और विचारों से होता है । मानवीय कार्यों, व्यवहारों, विचारों, फैशन और सभ्यता के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन इसके अन्तर्गत आते हैं।
इस प्रकार के परिवर्तन भी ऊपर नीचे होते हुए निरन्तर चलते रहते हैं परन्तु इनके उतार - चढ़ाव की गति तरंगीय अर्थात् लहरों की तरह होती है। जिस प्रकार लहरों के आरम्भ और अन्त का पता नहीं चलता है, उसी प्रकार ऐसे परिवर्तन के उतार - चढ़ाव का निश्चित आंकलन नहीं हो पाता है।
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