प्राथमिक एवं द्वितीयक समाजीकरण | Primary and Secondary Socialization in Hindi
समाजशास्त्रियों ने प्राथमिक व द्वितीयक समाजीकरण का विभेदीकरण भी किया है । प्राथमिक समाजीकरण के अन्तर्गत उन मौलिक प्रक्रियाओं का उल्लेख किया जाता है जिनके माध्यम से बालक समाज का सहभागी सदस्य बनता है । यह प्रक्रिया जीवन के प्रारंभिक काल से संबन्धित है जबकि बालक के मूलभूत व्यक्तित्व का निर्माण होता है एवं इस काल के बाद बालक के समाजीकरण की गहनता और व्यापकता में शैनः शैनः कमी हो जाती है।
द्वितीय समाजीकरण के अन्तर्गत हम बाद की उन प्रक्रियाओं का उल्लेख करते हैं जिनके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक विश्व के किसी विशिष्ट भाग का सदस्य बनता है । उदाहरण के तौर पर हर व्यावसायिक प्रशिक्षण द्वितीयक समाजीकरण के अन्तर्गत माना जाएगा। कुछ स्थितियों में ये प्रक्रियाएं व्यापक रूप से सतही होती हैं, उदाहरण के तौर पर एक लिपिक बनने के लिए व्यक्ति के अभिज्ञान में परिवर्तन की आवश्यकता नहीं रहती जबकि एक महन्त अथवा कान्तिकार बनने के लिए व्यक्ति के अभिज्ञान में परिवर्तन की आवश्यकता होती है ।
ऐसी स्थिति में व्यक्ति के आधारभूत व्यक्तित्व में परिवर्तन की आवश्यकता रहती है । महन्त अथवा क्रान्तिकारी बनने की प्रक्रिया में उसी प्रकार की गहनता का आभास होता है जोकि प्रारंभिक बाल्यावस्था में दृष्टिगोचर होता है। अनुभवों की विभिन्न श्रृंखलाएँ जिनके अन्तर्गत मित्रों का नया समूह, गृह परिवर्तन, लम्बी बीमारी की स्थिति से सामंजस्य द्वितीयक समाजीकरण के उदाहरण हैं ।
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