भारतीय शिक्षा आयोग ( 1964-66 ) द्वारा उच्च शिक्षा एवं प्रशिक्षण के बारे में की गयी सिफारिशें
( 1 ) विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सुधार
वरिष्ठ विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त देश के अन्य सभी विश्वविद्यालयों और उनसे सम्बद्ध कॉलेजों के सुधार के बारे में ' आयोग ' में निम्नांकित सुधार के सुझाव दिये हैं-
( अ ) वरिष्ठ विश्वविद्यालय अन्य विश्वविद्यालयों तथा उनसे सम्बद्ध कॉलेजों को उत्तम शिक्षण प्रदान करें ।
( ब ) वरिष्ठ विश्वविद्यालयों के प्रतिभाशाली छात्रों में ऐसी भावना उत्पन्न की जाय कि वे अध्ययन के पश्चात् शिक्षण व्यवस्था को अपनायें ।
( 2 ) शिक्षण में सुधार
' आयोग ' ने शिक्षण कार्य में सुधार करने के लिए अधोलिखिर सुझाव दिये हैं -
( अ ) औपचारिक कक्षा - कार्य एवं प्रयोगशाला कार्य के घण्टों में कमी की जाय और इस कमी जो समय बचे , उसका प्रयोग एक निर्देशक के पथ - प्रदर्शन के स्वाध्ययन , निर्धारित कार्य , लेखों को लिखने , समस्याओं के समाधान तथा अनुसन्धान कार्यों को पूर्ण करने के लिए किया जाय ।
( ब ) विश्वविद्यालय तथा कॉलेजों में पुस्तकालयों को उत्तम बनाया जाय ।
( स ) सभी विषयों में रटने की प्रवृत्ति को रोका जाय और मौलिक चिन्तन पर बल दिया जाय ।
प्रशिक्षण
' आयोग ' ने शिक्षण से सम्बन्धित विषयों के बारे में निम्नलिखित सुझाव दिये -
1. शिक्षण विधियों में सुधार
आयोग के अनुसार हमारे अधिकांश विद्यालयों में अभी तक परम्परागत विधियों का अनुसरण किया जा रहा है । उनमें सुधार करने के लिए ' आयोग ' ने नीचे लिखे सुझाव दिये :
( क ) शिक्षण विधियों में लचीलापन तथा गतिशीलता को स्थान प्रदान किया जाय ।
( ख ) शिक्षा में गतिशीलता लाने के लिए शिक्षकों में पहलकदमी , परीक्षण तथा सृजनात्मकता के गुणों का विकास किया जाय ।
( ग ) नवीन शिक्षण विधियों के प्रसार के लिए ' अभिनवन पाठ्यक्रमों , वर्कशापों , प्रदर्शनों परीक्षणों , विचार सम्मेलनों, सेमिनारों आदि का आयोजन किया जाय।
2. पाठ्य - पुस्तकों में सुधार
'आयोग' ने पाठ्य पुस्तकों की निम्न स्थिति में सुधार करने के लिए अधोलिखित सुझाव दिये हैं :
( क ) राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्य पुस्तकों के निर्माण के लिए एक विस्तृत कार्यक्रम तैयार किया जाय ।
( ख ) पाठ्य पुस्तकों को लिखने के लिए देश के प्रतिभाशाली व्यक्तियों को प्रोत्साहित किया जाना
( ग ) ' राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् ' द्वारा जिन सिद्धान्तों एवं रूपरेखाओं में अनुसार पाठ्य - पुस्तकों के निर्माण के लिए कार्य किया जा रहा है , उन्हीं सिद्धान्तों के अनुसार अन्य क्षेत्रों में भी कार्य किया जाय।
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