श्रेणी समाजवाद क्या है? श्रेणी समाजवाद के सिद्धान्त

श्रेणी समाजवाद क्या है ?

श्रेणी समाजवाद: ब्रिटेन के लोगों को फ्रान्सीसी श्रम संघवाद में अत्यधिक क्रान्तिकारिता और अराजकता दिखायी पड़ी जिसके कारण वे उससे प्रभावित और सन्तुष्ट नहीं थे । फेबियनवाद भी उन्हें आकर्षित और सन्तुष्ट नहीं कर सका क्योंकि उन्होंने देखा कि वह पूँजीवादी नियन्त्रण के स्थान पर सरकारी अधिकारियों के नियन्त्रण में विश्वास करता है । दोनों ही सिद्धान्तों से अतृप्त ब्रिटिशवादी एक ऐसी व्यवस्था के पक्ष में थे जिसमें उद्योगों में मजदूरों का स्वशासन स्थापित हो । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नये सिद्धान्त का जन्म हुआ जिसे ' श्रेणी समाजवाद ' कहा जाता है । फ्रांसीसी श्रम संघवाद और फेबियनवाद के प्रतिक्रियास्वरूप जन्म लेने के कारण इन दोनों को बुद्धिजीवी शिशु कहा जाता है । सर्वप्रथम जाजक बेंटी ने श्रेणी समाज के मूल सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया ।

' द रिस्टोरेशन आन दी गिल्ड सिस्टम ' में इसके सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते हुए उसने मध्ययुग की तरफ लौटने का समर्थन किया । उसका सिद्धान्त भावुक और नैतिकता पर आधारित था । ' न्यू एज ' के सम्पादक ए . आर . ओरेन्ज ने उसके सिद्धान्त का समर्थन किया । हॉब्सन ने भी अपने विचारों में उनका समर्थन किया । ओरेन्ज और हॉब्सन से ब्रिटेन के अनेक समाजवादी बुद्धिजीवी प्रभावित हुए जिनमें जी . डी . एच . कोल का नाम उल्लेखनीय है ।
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फेबियनवादियों से मतवैभिन्य के कारण उनका श्रेणी समाजवाद की तरफ झुकाव हुआ तथा उन्होंने अपनी पुस्तक ' सोशल थ्योरी ' में इसकी व्याख्या प्रस्तुत की । यह सिद्धान्त पूँजीवादी व्यवस्था का कट्टर विरोधी तथा उद्योगों में श्रमिकों के स्वशासन का पक्षधर है । इसके अनुसार पूँजीपति राष्ट्रीय सम्पत्ति का बहुत बड़ा भाग हड़प जाते हैं तथा मजदूरों को उनका उचित हक नहीं प्राप्त होता है । इस स्थिति की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि उद्योगों में श्रमिकों का स्वशासन स्थापित हो ।

यह सिद्धान्त उत्पादन के साधनों के राष्ट्रीयकरण में विश्वास करता है , परन्तु इसके अनुसार उसका अर्थ राज्य का नियंत्रण नहीं है । यह उद्योगों पर श्रमिकों के नियन्त्रण का समर्थन करता है । इस सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप देने के लिए 1905 में नेशनल गिल्ड तथा 1920 में ' नेशनल बिल्डिंग गिल्ड ' की स्थापना हुई । पहले वाले की 1935 में समाप्ति हो गयी । दूसरा वाला भी सरकारी सहायता के अभाव में आगे चलकर समाप्त हो गया । 

श्रेणी समाजवाद के सिद्धान्त ( Theory of Guild Socialism )

श्रेणी समाजवाद के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं—

निजी स्वामित्व का अन्त

श्रेणी समाजवाद नैतिक और मनोवैज्ञानिक आधार पर पूँजीवादी व्यवस्था की आलोचना करते हुए उसका विरोध करता है । उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व का अन्त कर यह उन्हें पूरे समाज के नियन्त्रण में कर देने का समर्थन करता है ताकि कुछ थोड़े - से पूँजीपतियों के बजाय सम्पूर्ण समाज के हितों की पूर्ति हो । इसके अनुसार उत्पादन के साधनों के समाजीकरण से उद्योगों में श्रमिक आन्दोलन हो जायेंगे जिसके फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होगी । नैतिक दृष्टि से पूँजीवादी व्यवस्था गलत है क्योंकि उसका सामाजिक हित से कोई सम्बन्ध नहीं होता है । मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह मजदूरों में निराशा और असुरक्षा की भावना पैदा करती है । 

राज्य का नियन्त्रण नहीं —

एक तरफ तो यह सिद्धान्त उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व और दूसरी तरफ राज्य के नियन्त्रण का भी विरोध करता है । इसके अनुसार राज्य के नियन्त्रण से भी मजदूरों की स्थिति खराब रहेगी । उसमें पहले की तुलना में कोई विशेष सुधार नहीं होगा अतः उत्पादन के प्रबन्ध और नियन्त्रण में राज्य का कोई हाथ नहीं होना चाहिए । 

राजनीतिक लोकतंत्र निरर्थक -

आर्थिक समानता और उत्पादन साधनों पर श्रमिकों के नियंत्रण के अभाव में यह सिद्धान्त राजनीतिक लोकतंत्र को निरर्थक और एक घोखा मानता है । यह वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था के प्रतिनिधित्व प्रणाली को गलत मानता है तथा कहता है कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य की इच्छा का प्रतिनिधित्व कर सकता है । विशिष्ट और व्यापारिक प्रतिनिधित्व ही वास्तविक होता है । व्यक्ति विशेष का प्रतिनिधित्व गलत है । समूह विशेष के हितों का ही प्रतिनिधित्व किया जा सकता है । यह सिद्धान्त लोकतन्त्र के वर्तमान ढाँचे में विश्वास कर व्यावसायिक लोकतंत्र में विश्वास करता है । निजी सम्पत्ति के अन्त में विश्वास तथा राज्य के नियन्त्रण में विश्वास करने और लोकतंत्र के वर्तमान ढाँचे को निरर्थक समझने के कारण यह सिद्धान्त पूँजीवादी व्यवस्था का घोर विरोधी है । 

गिल्ड सामाजिक इकाई

श्रेणी समाजवाद गिल्ड को सामाजिक इकाई मानते है । आरेंज गिल्ड अर्थात् स्वशासी समुदाय की संज्ञा प्रदान की है । एक व्यवसाय वालों का एक गिल्ड अर्थात् स्वशासी समुदाय होना चाहिए । प्रत्येक गिल्ड का अपना स्वशासन होना चाहिए । इससे मजदूरों की सृजनात्मक शक्ति और भावना का विकास होगा । यह सिद्धान्त नीचे से ऊपर तक गिल्डों की एक श्रेणी में विश्वास करता है । इनके अनुसार स्थानीय गिल्ड उच्चतर राष्ट्रीय गिल्डों के नियंत्रण में होंगे ।

इसने कार्य की दृष्टि से गिल्डों को तीन भागों में विभाजन किया है - औद्योगिक , नागरिक और वितरणात्मक उद्योगों एवं कृषि से सम्बन्धित गिल्ड औद्योगिक अध्यापन एवं कानून आदि से सम्बन्धित वितरणात्मक होंगे । ये स्थानीय , प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर के होंगे । इसके अनुसार सभी व्यवसायों के अलग - अलग स्थानीय , प्रादेशिक और राष्ट्रीय गिल्ड होने चाहिए । राष्ट्रीय गिल्डों को मिलाकर एक राष्ट्रीय औद्योगिक गिल्ड होना चाहिए । यह व्यवस्थापिका की तरह अन्तिम रूप में नीति का निर्धारण तथा अपील के अन्तिम न्यायालय के रूप में कार्य करेगा ।

मजदूरी के स्थान पर प्रतिफल

श्रेणी समाजवादी मजदूरी की दासता तथा अपमानजनक बात मानते हैं । वे इसे समाप्त कर मजदूरों का प्रतिफल ( Payments ) देने का समर्थन करते हैं । वे प्रतिफल को सम्मानजनक मानते हैं । उनकी यह मान्यता भावुकता पर आधारित है । वे प्रतिफल का समर्थन तो करते हैं परन्तु इस प्रश्न पर उनमें मतभेद है कि यह किस आधार पर मिलना चाहिए योग्यता अथवा उत्पादन । कोल ने प्रतिफल की समानता को असम्भव बताया है । प्रतिफल की तरह ही कीमतों के निर्धारण में भी इनमें मतभेद है । किसी ने राष्ट्रीय गिल्ड , किसी ने उत्पादक समितियों तथा किसी ने उच्चतर समिति द्वारा इसके निर्धारण की बात की है । 

राज्य का नियंत्रण नहीं परन्तु राज्य अनिवार्य

श्रेणी समाजवादी उद्योगों पर राज्य के नियन्त्रण का विरोध करते हैं , परन्तु इसे समाज का एक अपरिहार्य संस्था मानते हैं । उसके अनुसार कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हें कोई गिल्ड नहीं कर सकता है , जैसे - बाहरी आक्रमण से रक्षा , करारोपण तथा शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखना । राज्य नागरिकों के सामान्य हितों का प्रतिनिधित्व करता है अतः यह अनिवार्य और अपरिहार्य है । इसकी अनिवार्यता और अपरिहार्यता मानते हुए भी इसके रूप के बारे में इनमें मतवैभिन्य है । हॉब्सन औद्योगिक संघटनों से भिन्न और विशिष्ट मानने के कारण इसे सर्वोच्चता और सम्प्रभुता प्रदान करता है । उसके अनुसार राज्य का सभी गिल्डों पर नियन्त्रण होगा । 

कोल , हॉब्सन से भिन्न धारणा रखता है । वह सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य की धारणा में विश्वास नहीं करता है । उसके अनुसार अन्य समुदायों की तरह राज्य भी एक समुदाय है । वर्तमान राज्यों के स्थान पर कम्यून प्रणाली स्थापित करने पर बल देता है । वह स्थानीय , प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर पर कम्यूनों करता है । इसमें उत्पादन और उपभोक्ताओं , दोनों का प्रतिनिधित्व होगा।  औद्योगिक एवं नागरिक गिल्डों के प्रतिनिधि स्थानीय कम्यून में होंगे । प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर के गिल्डों को मिलाकर प्रादेशिक और राष्ट्रीय कम्यून बनेंगे ।

फ्रांसीसी संघवाद तथा ब्रिटिश फेबियनवाद से असन्तुष्ट एवं अतृप्त

श्रेणी समाजवादी उद्योगों में मजदूरों का स्वशासन स्थापित करने में विश्वास करते हैं । वे पूँजीवादी व्यवस्था के कट्टर विरोधी हैं क्योंकि उनके अनुसार पूँजीपति राष्ट्रीय सम्पत्ति का बहुत बड़ा भाग हड़प जाते हैं तथा मजदूरों को उचित हक नहीं प्राप्त होता है । इस स्थिति की समाप्ति के लिए ही इस सिद्धान्त के प्रवर्तक और समर्थक उत्पादन के साधनों के राष्ट्रीयकरण तथा उद्योगों , मजदूरों का स्वशासन स्थापित करने में विश्वास करते हैं ।

प्रश्न उठता है कि वे इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये किस तरीके में विश्वास करते हैं ? श्रेणी समाजवादी न तो संवैधानिक और न ही हिंसात्मक तरीके में विश्वास करते हैं । लक्ष्य प्राप्ति के लिये वे ट्रेड यूनियन आन्दोलन में विश्वास करते हैं । उनका तरीका साम्यवादियों और समाजवादियों से भिन्न है । उनके अनुसार वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था तथा संसदीय पद्धति क्रान्ति अथवा अपेक्षित परिवर्तन लाने में सक्षम नहीं है । उनका मत है कि यदि संवैधानिक तरीके से अनुकूल शासन व्यवस्थापित भी हो जाये जो वह वर्तमान राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के कारण कोई क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं कर सकेगी । यदि सफलता मिली भी तो उसकी प्राप्ति में काफी समय लग सकता है । 

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