सामाजिक उद्विकास: सामाजिक उद्विकास एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर
आरम्भ में कई समाजशास्त्रियों ने सामाजिक उद्विकास एवं सामाजिक प्रगति में कोई भेद नहीं किया और दोनों को एक ही समझने की भूल की । इन दोनों के अन्तर को संक्षेप में दर्शाते हुए कहा जा सकता है-
( 1 ) उद्विकास एक जीवनशास्त्रीय अवधारणा है जबकि सामाजिक प्रगति एक सामाजिक अवधारणा है।
( 2 ) सामाजिक उद्विकास का क्षेत्र विस्तृत है, इसके विपरीत प्रगति का क्षेत्र संकुचित है।
( 3 ) उद्विकास की अवधारणा सार्वभौमिक है, जबकि सामाजिक प्रगति समय एवं स्थान के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
( 4 ) उद्विकास की प्रक्रिया की गति धीमी होती है, इसके विपरीत सामाजिक प्रगति की प्रक्रिया की गति तेज होती है।
( 5 ) उद्विकास एक स्वतः चलने वाली प्रक्रिया है, जबकि सामाजिक प्रगति एवं सचेष्ट परिवर्तन है ।
( 6 ) उद्विकास का सम्बन्ध चेतन से है , जबकि प्रगति का सम्बन्ध अचेतन से है ।
( 7 ) उद्विकास का मापन कठिन होता है, जबकि प्रगति को सरलता से मापा जा सकता है ।
( 8 ) मैकाइवर एवं पेज का कहना है- 'उद्विकास एक वैज्ञानिक अवधारणा है , और प्रगति एक नैतिक अवधारणा है ।
( 9 ) उद्विकास से विकसित परिवर्तन में समाज कल्याण का विकास नहीं होता, जबकि प्रगति से उत्पन्न परिवर्तन सदैव समाज कल्याण के लिये होता है ।
( 10 ) उद्विकास का अध्ययन करना सरल है, क्योंकि यह वस्तुपरक प्रक्रिया है लेकिन प्रगति का अध्ययन करना कठिन है , क्योंकि इसका सम्बन्ध सामाजिक मूल्यों से है।
सामाजिक प्रगति एवं उद्विकास के अन्तर को संक्षेप में निम्नवत भी दर्शाया जा सकता है -
सामाजिक उद्विकास
( 1 ) उद्विकास एक जीवशास्त्रीय अवधारणा है।
( 2 ) उद्विकास का क्षेत्र विस्तृत है।
( 3 ) उद्विकास की अवधारणा सार्वभौमिक है।
( 4 ) उद्विकास की प्रक्रिया धीमा गति से चलती है।
( 5 ) यह स्वतः चलने वाली प्रक्रिया है।
( 6 ) उद्विकास का सम्बन्ध चेतन से है।
( 7 ) उद्विकास का मापन कठिन होता है।
( 8 ) उद्विकास एक वैज्ञानिक अवधारणा है।
( 9 ) उद्विकास में समाज कल्याण का विचार नहीं होता।
( 10 ) उद्विकास का अध्ययन करना सरल है।
सामाजिक प्रगति
( 1 ) सामाजिक प्रगति एक सामाजिक अवधारणा है।
( 2 ) प्रगति का क्षेत्र संकुचित है।
( 3 ) प्रगति की अवधारणा परिवर्तनशील है।
( 4 ) प्रगति की प्रक्रिया तेज गति से चलती है।
( 5 ) प्रगति का सचेष्ट परिवर्तन है।
( 6 ) प्रगति का सम्बन्ध अचेतन वस्तुओं है।
( 7 ) प्रगति को सरलता से मापा जा सकता है।
( 8 ) प्रगति एक नैतिक अवधारणा है।
( 9 ) प्रगति से विकसित परिवर्तन सदैव समाज के कल्याण के लिये होता है।
( 10 ) सामाजिक प्रगति का अध्ययन करना कठिन है।
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