संघवाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है? - Main features of Federalism

संघवाद की प्रमुख विशेषताएं | Main features of Federalism in Hindi

1. संघ के निर्माण के लिए राज्यों की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय एकता का सामंजस्य आवश्यक है । संघ सरकार की स्थापना से राज्य सरकारों का लोप नहीं होता वरन् सरकारों का सह - अस्तिव होता है। ये स्वतंत्र रूप से अपने - अपने शासन क्षेत्र में एक - दूसरे के न तो अधीन होती हैं और न ही उनमें कोई उच्च या निम्न होती है । दोनों ही सरकारों का वास्तविक उद्देश्य सम्पूर्ण राज्य के नागरिकों का हित साधन करना होता है । केन्द्र और राज्य सरकारों में प्रतिद्वंद्विता के स्थान पर सहयोग की भावना होती है । दोनों सरकारें एक - दूसरे पूरक होती है , प्रतियोगी नहीं । 


2. संघ - शासन -

संघ - शासन व्यवस्था में प्रत्येक नागरिक की भक्ति दोहरी होती है संघीय सरकार के प्रति और दूसरी राज्य सरकार के प्रति। अतः उसे दोनों ही स्थानों से नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं । चाहे दोहरी नागरिकता न हो , जैसे कि भारत में, पर व्यवहारतः नागरिकों की दो निष्ठाएं होती ही हैं — एक केन्द्रीय सरकार के प्रति और दूसरी राज्य सरकार के प्रति । जनता दो विधि - समूहों का निर्वाह करती है - एक राज्य सरकार के कानून और दूसरी संघीय सरकार के कानून ।


3. संघीय शासन -

संघीय शासन - व्यवस्था में संविधान की सर्वोपरिता स्थापित होती है । पृथक् पृथक् राज्यों का संतोषजनक ढंग से संघ में बना रहना तभी सम्भव है जब राज्य और संघ दोनों ही उस संविधान को सर्वोपरि मानें जिसके अन्तर्गत संघ की रचना हुई है । यह भी आवश्यक है कि संविधान अपेक्षाकृत अधिक अनम्य अथवा कठोर हो अर्थात् जिन शर्तों के अनुसार संघ का निर्माण हुआ है उनमें संशोधन सरलता से न हो ।


चूंकि समय की प्रगति के अनुरूप संविधान का विकास अवरुद्ध न हो , इसलिए संविधान निर्माता संविधान से अत्यावश्यक संशोधन करने के लिए एक प्रक्रिया को स्पष्टतः लेखबद्ध कर देते हैं जिसके अनुसार भविष्य में संविधान में संशोधन हो सके । संघात्मक संविधान अनम्य या कठोर होता है क्योंकि इसके स्थायित्व पर ही सदस्य राज्यों के शासन की सुरक्षा निर्भर रहती है । प्रायः संशोधन करने की प्रक्रिया साधारण विधि - निर्माण प्रक्रिया से भिन्न और विशेषतया कठिन रखी जाती है ।


उदाहणार्थ , संयुक्त राज्य अमेरिका का संघात्मक संविधान सबसे अधिक अनम्य है क्योंकि इसमें संशोधन करने की प्रक्रिया अति दुष्कर है । भारतीय गणराज्य के संघात्मक संविधान की संशोधन - प्रक्रिया साधारण विधि - निर्माण की प्रक्रिया से भिन्न तो है , लेकिन वह इतनी क्लिष्ट नहीं है कि जैसी अमेरिकी संविधान के संशोधन की प्रक्रिया है । 


4. संघ के निर्माण की एक मौलिक आवश्यकता स्वतंत्र एवं सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना है जिसके अभाव में संविधान का संरक्षण सम्भव नहीं हो सकता । संविधान के अन्तर्गत संघ और राज्य की सरकारों को शासन की जो शक्तियां प्रदान की जाती हैं । उनका उल्लंघन किसी भी सरकार द्वारा न हो और एक - दूसरे की शक्ति एवं कार्य - क्षेत्र का अतिक्रमण न हो सके , इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय का अस्तित्व अपरिहार्य है ।


सर्वोच्च न्यायालय ही संघ सरकार और राज्य सरकारों के बीच उठने वाले विवादों का निर्णय कर सकने में सक्षम हो सकता है । संघात्मक शासन में संघीय न्यायालय का अधिकार क्षेत्र सामान्यतया यह होता है - संविधान की सर्वोच्चता की करना , केन्द्र और सद राज्यों के कानून का पुनरावलोकन अर्थात् यह निश्चित करना कि वे कानून संविधान के अनुकूस हैं या नहीं , केन्द्र तथा एक अथवा एक से अधिक सदस्य राज्यों के बीच विवाद और संघर्ष को सुलझाना , विभिन्न सदस्य राज्यों के मध्य उठ खड़े होने वाले वैधानिक विरोधों का निबटारा करना , विदेशों से मान्य राजदूतों की योग्यता का निर्णय करना , विवाद उपस्थित होने पर संविधान के किसी खण्ड अथवा उपबंध की व्यवस्था या निर्वचन करना आदि । 


5. संघीय सत्ता और संघ -

निर्मात्री इकाइयों के बीच शासन की शक्तियों का विभाजन संघ - राज्य का आवश्यक गुण है । शक्तियों का विभाजन दो प्रकार से हो सकता है - या तो संविधान में संघीय सत्ता की शक्तियों का उल्लेख रहता है और शेष शक्तियां संघ - निर्मात्री इकाइयों के पास रह जाती है अथवा इसमें संघ - निर्मात्री इकाइयों की शक्तियों का उल्लेख किया जाता है , और शेष शक्तियां संघीय सत्ता के पास रह जाती है । ये अवशेष सामान्यतया ' रक्षित शक्तियां ' ( Reserved Powers ) कहलाती है ।


शक्तियों को स्पष्ट कने का उद्देश्य उनका निरूपण करना और इस भांति उन्हें परिसीमित करना है । जहां संघीय संविधान में संघ - निर्मात्री इकाइयों की शक्तियों का निरूपण होता है , जिसका उदाहरण कनाडा का डोमिनियन है , वहां लक्ष्य यह होता है कि संघ की इकाइयों को दबाकर संघीय सत्ता को बलशाली बनाया जाए । ऐसा राज्य स्वरूप में संघीय कम होता है । जहां संविधान संघीय सत्ता की शक्तियों को निरूपित करता है , जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया में है , वहां इसका लक्ष्य संघ - निर्मात्री इकाइयों के विरुद्ध संघीय सत्ता की शक्ति को मर्यादित करना होता है । 


6. संघात्मक राज्य का एक लक्षण यह है कि सम्बन्ध विच्छेदन के सिद्धांत को प्रायः मान्यता नहीं दी जाती । संघ एक स्थायी राज्य होता है जिसमें सम्मिलित राज्य सदैव के लिए अपनी शक्ति का कुछ भाग केन्द्रीय के सुपुर्द कर देता है ताकि सार्वजनिक हितों की समुचित रूप से रक्षा हो सके । इस संघ का विघंटन नहीं हो सकता । सदस्य - राज्यों को इससे अपना सम्बन्ध विच्छेद करने का अधिकार नहीं होता ।


यद्यपि सोवियत संघ में प्रत्येक गणतंत्र को संघ से स्वेच्छा से अलग होने का अधिकार दिया गया है और संविधान में यह भी उल्लेख है कि प्रत्येक गणतंत्र को विदेशों से सीधे सम्बन्ध स्थापित करने का अधिकार होगा , तथापि यह सब केवल कागजी है । सोवियत रूस की नीति कभी यह नहीं रही है कि गम्भीर सैद्धान्तिक मतभेदों की दशा में भी किसी गणतंत्र को अलग होने दिया जाए । 


7. अन्तिम लक्षण के रूप में, संघों के लिए व्यवस्थापिका में द्वितीय सदन चाहे अनिवार्य न हो , पर अतिशय लाभप्रद अवश्य है । द्वितीय सदन का वास्तविक उद्देश्य कुछ निश्चित प्रकार के विधायी कार्यों और सामाजिक परिवर्तनों को सरलता से प्रभावी होने से रोकना है । कौन से विधायन और परिवर्तन विलम्बित किए जाएं , यह बहुत कुछ द्वितीय सदन के गठन पर निर्भर करता है ।


एकात्मक राज्यों में द्वितीय सदनों की सामान्य प्रवृत्ति धनी वर्गों अथवा ग्रामीण समाज के हितों को सुरक्षित करना होता है । संघीय देशों में उनका उद्देश्य उन परिवर्तनों पर अंकुश रखना होता है जिनसे संघीय इकाइयों के अधिकारों पर आघात पहुंचता हो , संघीय इकाइयों में सभी वर्गों , व्यवसायों और विचारधाराओं के लोग होते हैं अतः संघीय सदन प्रायः किसी वर्ग - विशेष अथवा व्यावसायिक हित विशेष से सम्बन्धित नहीं होते हैं ।


चूंकि उनका सम्बन्ध इकाइयों के अधिकारों की रक्षा करने से होता है अतः उनका गठन प्रायः इस प्रकार होता है कि बड़ी इकाइयों के साथ ही छोटी इकाइयों को भी समानता मिले और उनकी आवाज की कीमत हो । संयुक्तराज्य अमेरिका और स्विट्जरलैण्ड के द्वितीय सदनों में प्रत्येक संघीय इकाई को समान संख्या में मत देने का अधिकार है ।

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