सम्राट कोई त्रुटि नहीं करता, इस कथन के प्रकाश में ब्रिटिश सम्राट की शक्तियों एवं स्थिति की समीक्षा कीजिए।
ब्रिटेन में संसदीय प्रणाली को लोकतांत्रिक व्यवस्था शुरू होने से पूर्व - अर्थात् निरंकुश राजतंत्र में सम्राट और क्राउन में कोई मूलभूत अन्तर नहीं था। राष्ट्राध्यक्ष के रूप में वह सम्राट तथा शासनाध्यक्ष, अर्थात् शासन-शक्तियों के केन्द्र बिन्दु के रूप में वह क्राउन कहा जाता था। लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना और विकास के बाद दोनों शब्दों में मूलभूत अन्तर हो गया है।
आज भी सम्राट संवैधानिक दृष्टि से राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष है । शासनिक शक्तियाँ उसमें निहित हैं परन्तु वह उनका वास्तविक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता नहीं है । उसकी कार्यपालिका शक्तियों का भूपयोग पार्लियामेंट करती है । इन तीनों संवैधानिक और वास्तविक अधिकार ही क्राउन के अधिकार हैं । उसकी शक्तियों को हम निम्नलिखित भागों में बांट सकते हैं
( 1 ) कार्यपालिका शक्तियाँ ( Executive powers )
इसके अन्तर्गत चार प्रकार की शक्तियाँ अथवा अधिकार आते हैं -
( 1 ) कानून तथा शान्ति एवं व्यवस्था की सुरक्षा
( 2 ) | प्रशासन का नियंत्रण एवं निर्देशन
( 3 ) वैदेशिक सम्बन्धों का संचालन
( 4 ) उपनिवेशों का शासन ।
संवैधानिक दृष्टि से ये समस्त कार्यपालिकीय शक्तियाँ सम्राट में निहित हैं । तथा अपनी मंत्रिपरिषद् के परामर्श से वह इनके उपयोग के लिए अधिकृत है । परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इनका उपयोग प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद् करती है । संवैधानिक दृष्टि से मंत्रिपरिषद् सम्राट को परामर्श देने के लिए हैं परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से वह उसके नाम पर इन शक्तियों का वास्तविक रूप से उपयोग करती है ।
लोकतंत्रीय व्यवस्था में महान समझौतों, परिनियमों तथा परम्पराओं के जरिये कार्यपालिकीय अधिकार सम्राट में निहित किये गये परन्तु मंत्रिपरिषद उनका वास्तविक उपयोगकर्ता हो गई है । संवैधानिक तथ्य और राजनीतिक सत्य के बीच इस अन्तर के कारण ही सम्राट के अधिकार क्राउन के अधिकार माने जाते हैं ।
( 2 ) विधायी शक्तियाँ
संवैधानिक दृष्टि से विधायी शक्तियों का स्रोत सम्राट सहित पार्लियामेंट द्वारा पारित किसी भी विधेयक पर लिखा रहता है कि यह परिनियम ' लार्ड सभा और हाउस ऑफ कामन्स ' के सदस्यों की अनुमति तथा उनके अधिकार से सम्राट द्वारा पारित किया गया है । उसके हस्ताक्षर के बाद ही कोई विधेयक कानून का रूप धारण कर सकता है । व्यावहारिक दृष्टि के विधेयक को पारित करने का अधिकार पार्लियामेंट को प्राप्त है तथा उसके द्वारा पारित विधेयक पर सम्राट को नियमित रूप से हस्ताक्षर करना पड़ता है ।
संवैधानिक दृष्टि से इसके अतिरिक्त सम्राट अनेक विधायी कार्य करता है परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से प्रधानमंत्र सहित मंत्रिपरिषद् उन्हें उसके नाम पर सम्पन्न करती है । संवैधानिक दृष्टि से पार्लियामेंट का अधिवेशन बुलाने, उसे स्थगित करने तथा उसका उद्घाटन करने का अधिका मंत्रिपरिषद् के परामर्श से करता है इस परामर्श शब्द का सीधा अर्थ यह है कि सम्र सम्राट में निहित है परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से वह इनका उपयोग प्रधानमंत्री सहित के इन अधिकारों का भी वास्तविक उपयोग प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद् ही करती है
( 3 ) न्यायिक अधिकार
सैद्धांतिक दृष्टि से सम्राट न्याय का भी स्रोत । तथा न्यायिक शक्तियाँ उसी में निहित है । निरंकुश राजतंत्र में उसका सद्विवेक अंतिम न्याय था। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी सिद्धान्ततः सभी न्यायाल सम्राट के हैं तथा न्यायाधीशों की नियुक्ति और उसकी पदच्युति भी वही करता है अपराधी व्यक्ति उसी के नाम पर दंडित होते हैं । उपनिवेशों और डोमिनियनों के मामलों की अन्तिम रूप से सुनवाई वही करता है उसे क्षमादान और प्राविलम्बन क भी अधिकार प्राप्त है। आज यह सब कुछ मात्र सैद्धांतिक रह गया है।
( 4 ) धार्मिक अधिकार
सम्राट ब्रिटेन के स्थापित चर्च का भी प्रधान होता है । अतः चर्चा के पादरियों तथा अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति करने और उनमें अनुशासन बनाये रखने का उसे अधिकार प्राप्त है । सम्राट के ये अधिकार मात्र सैद्धान्तिक हैं । व्यावहारिक दृष्टि से मंत्रिपरिषद् पार्लियामेंट की अनुमति से उसके नाम पर इन धार्मिक अधिकारों का प्रयोग करती है।
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