फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत - Freud's theory of socialization in Hindi

फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत | Freud's theory of socialization in Hindi

फ्रायड नामक मनोवैज्ञानिक ने समाजीकरण के अपने सिद्धान्त को मानसिक क्रियाओं के आधार पर समझाया है । वे यह मानते हैं कि मानव का समस्त व्यवहार लिबिडो अर्थात् काम - प्रवृत्तियों से तय होता है । फ्रायड ने ' समाजीकृत आत्म ' ( Socialized Self ) की समाजशास्त्रियों की आवधारणा को चुनौती दी और कहा कि ' स्व ' एवं समाज में कोई तालमेल नहीं होता है ।


वह यह मानते हैं कि मानव व्यवहार का तार्किक पक्ष उसी प्रकार पर है जिस प्रकार किसी समुद्र में हिमखण्ड ( Ice berg ) का बाहरी भाग होता है, जिस प्रकार हिमखण्ड का अधिकांश भाग पानी में रहता है, उसी प्रकार मानव व्यवहार का अधिकांश भाग भी अनदेखा व अचेतन शक्तियों द्वारा संचालित होता है । फ्रायड ने 'स्व' को ' इडोट ( Id ) ' अहम् ' ( Egoa ) और ‘ पराअहम् ’ ( Super ego ) इन तीन भागों में बाँटा । ' इडोट ( Id ) अरहम् की मूल प्रवृत्तियों , प्रेरणाओं , असमाजीकृत इच्छाओं एवं स्वार्थों का योग है ।


इड के सामने नैतिक - अनैतिक , अच्छे - बुरे का कोई प्रश्न नहीं होता है । यह पाशविक प्रवृत्ति के निकट है जो किसी न किसी प्रकार सन्तुष्टि चाहता है । 'अहम्' ( ego ) स्व का चेतन एवं तार्किक पक्ष है जो व्यक्ति को सामाजिक परिस्थितियों के अनुकूल व्यवहार करने का निर्देश देता है और 'इड' पर नियन्त्रण रखता है । 'अहम्' भी ' इड ' के समान नैतिक-अनैतिक, प्रेम व घृणा को अधिक महत्त्व तो नहीं देता फिर भी वह अधिक व्यावहारिक है क्योंकि वह ‘ इड ' को परिस्थितियों के अनुकूल होने पर ही अपनी इच्छा की पूर्ति की स्वीकृति देता है।


' पराअहम् ' ( Super ego ) सामाजिक मूल्यों एवं आदर्शों पर संयोग है जिसे व्यक्ति ने आत्मसात् कर रखा है और जो उसकी अन्तरात्मा का निर्माण करते हैं । एक उदाहरण द्वारा हम फ्रायड की ' इड , ' अहम् ' एवं ' पराअहम् ' की अवधारणा को स्पष्ट करेंगे । 


मान लीजिए कि एक व्यक्ति बहुत भूखा है और उसे मिठाई खाने की इच्छा है । वह भूख ' इड ' कहलाती है । ' अहम् ' कहेगा कि खानी है तो भूख शान्त करनी है तो मेहनत करो, यदि मिठाई पैसा कमाओ या अगर परिस्थिति अनुकूल हो तो चोरी कर लो, चुपके से उठा कर खा लो। इस प्रकार' अहम् 'व' इड ' सामाजिक परिस्थितियों में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं किन्तु 'पराअहम्' व्यक्ति कहेगा चोरी करना पाप है, अनैतिक है, सामाजिक मूल्यों के विपरीत है।


अतः ऐसा मत करो । इस प्रकार ‘ पराअहम् ' विवेक और सामाजिक मूल्यों को प्रकट करता है । वह व्यक्ति के समाजीकरण का प्रमुख आधार इड , अहम् और पराअहम् को हम एक अन्य उदाहरण द्वारा भी समझ सकते हैं , ‘ इड ' एक घोड़े के समान है जो किसी भी दिशा में भागना चाहता है । ‘ अहम् ' घोड़े पर बैठे सवार की तरह है जो उसे दिशा बताता है । ' पराअहम् ' सड़क पर खड़े ट्राफिक इन्सपेक्टर की तरह है जो सवार के त्रुटि करने पर उसे भी सही दिशा बताता है ।


इस प्रकार पराअहम् ' इड ' तथा ' अहम् ' दोनों का नियन्त्रण रखता है और उन्हें समाज के मूल्यों के अनुरूप आचरण करने का निर्देश देता है । फ्रायड का मत है कि इड और पराअहम् में सदैव संघर्ष पाया जाता है , क्योंकि समाज यौन इच्छाओं और आक्रामक भावनाओं पर प्रतिबन्ध लगाता है । सामान्यतः इड उस संघर्ष में हार जाता है , किन्तु कभी - कभी वह पराअहम् की अवहेलना भी कर देता है और व्यक्ति समाज - विरोधी कार्य कर बैठता है ।


इस प्रकार फ्रायड स्व और समाज को एक - दूसरे के पूरक न मानकर सरस्पर विरोधी मानता पारस्परिक संघर्ष की प्रक्रिया से ही व्यक्ति का समाजीकरण होता है । बचपन में व्यक्ति फ्रायड के अनुसार ' इड ' व ' पराअहम् ' के जब सामाजिक व्यवहार से परिचित नहीं होता है तो ' इड ' से प्रभावित होकर व्यवहार करता है । दूसरे लोगों के सम्पर्क में आने पर उसे इस बात का ज्ञान होता है कि अपनी आवश्यकता किस प्रकार पूरी की जानी चाहिए, यही अहम् के विकास की स्थिति है ।


अन्य व्यक्ति के सम्पर्क से ही वह सामाजिक मूल्यों एवं आदर्शों से परिचित होता है, वह यह जानने लगता है कि समाज किस प्रकार के व्यवहार को स्वीकार व अस्वीकार करता है , नैति व अनैतिक समझता है । वह ' इड ' और ' अहम् ' की बात को ठुकरा कर जितना पराअहम् के अनुसार आचरण करता है, उतना ही उसका समाजीकरण सफल माना जाता है ।


जहाँ कूले व मीड के सिद्धान्त परस्पर पूरक है, वहीं फ्रायड का सिद्धान्त उन दोनों का विरोधी है । वे दोनों ' आत्म ' को सामाजिक अन्तः क्रिया का परिणाम मानते हैं, किन्तु फ्रायड इसे मानसिक क्रियाओं का परिणाम मानते हैं । फ्रायड ने मानव व्यक्तित्व को ' इड ', ' अहम् ' और 'पराअहम्' में जिस प्रकार विभाजित किया है, उसे हम आनुभाविक प्रयोग ( Empirical Test ) के आधार पर सिद्ध नहीं कर सकते ।


अतः यह सत्यता से परे एवं काल्पनिक अधिक लगता है । फिर भी समाज वैज्ञानिक, फ्रायड की इस बात को स्वीकार करते हैं कि मानव की प्रेरणाएँ ( Human Motives ) अचेतन और मानव के तार्किक नियन्त्रण से बाहर होती है तथा सदैव ही व्यवस्थित समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होती। फ्रायड समाजीकरण में मानसिक तत्वों पर अधिक जोर देकर अतिवादी ( Extremist ) हो गये हैं।


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