पश्चिमीकरण क्या है ? अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं - What is Westernization?

पश्चिमीकरण क्या है ? अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं

हम जब कभी भी सामाजिक - सांस्कृतिक परिवर्तन के स्रोत को ज्ञात करने का प्रयत्न करते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि किसी सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन के स्रोत आन्तरिक तथा बाह्य एक ऐसी अवधारणा है जो सामाजिक परिवर्तन के पक्ष स्पष्ट होती है जबकि पश्चिमीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो परिवर्तन उत्पन्न करने के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है ।


प्रो ० श्रीनिवास आधुनिक समाज में पश्चिमी संस्कृति तथा ब्रिटिश परिवर्तन का प्रमुख स्रोत मानते हैं । पश्चिमीकरण की अवधारणा यद्यपि संस्कृतिकरण की तुलना में कम जटिल है लेकिन फिर भी इस अवधारणा को लेकर अनेक बाह्य कारक एक बाह्य शासन व्यवस्था दोनों प्रकार के होते हैं ।


संस्कृतिकरण आन्तरिक स्रोत अथवा तत्व के रूप में के रूप में सामाजिक - सांस्कृतिक कारक के रूप में , को सामाजिक शंकाएँ उत्पन्न हो गई हैं । एक ओर कुछ विद्वान पश्चिमीकरण की प्रक्रिया को केवल नगरीय सामाजिक परिवर्तन को स्पष्ट करने में ही सहायक मानते हैं जबकि अनेक विद्वानों का विचार है कि यह प्रक्रिया ग्रामीण सामाजिक परिवर्तन को स्पष्ट करने के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है ।


पश्चिमीकरण का अर्थ


साधारण रूप से पश्चिमीकरण का तात्पर्य एक ऐसे प्रभाव से है जो पश्चिमी समाज में हो रहे विभिन्न आविष्कारों द्वारा गैर - पश्चिमी समाजों पर पड़ता है । प्रभाव की इसी प्रक्रिया को हम पश्चिमीकरण के रूप में स्पष्ट कर देते हैं । प्रो ० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में अंग्रेजी राज्य को मॉडल मानते हुए लिखा है , " भारतीय समाज एवं संस्कृति में 150 वर्षो के ब्रिटिश शासन के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तनों को ' पश्चिमीकरण ' के नाम से सम्बोधित किया जा सकता है ।


यह प्रौद्योगिकी संस्थाओं , विचारधाराओं तथा मूल्यों आदि के विभिन्न स्तरों पर होने वाले परिवर्तनों को भी आत्मसात करता है । " इस कथन से स्पष्ट होता है कि किसी पश्चिमी देश के साथ होने वाले सम्पर्क के फलस्वरूप किसी गैर - पश्चिमी देश में होने वाले परिवर्तन को हम पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत रख सकते हैं । पश्चिमीकरण की अवधारणा को किसी परिभाषा से सीमित न करके इसे हम निम्नांकित विशेषताओं के आधार पर सरलतापूर्वक स्पष्ट कर सकते हैं :


पश्चिमीकरण की विशेषताएँ


( क ) पश्चिमीकरण एक प्रक्रिया है -

एक प्रक्रिया के रूप में पश्चिमीकरण एक ऐसी स्थिति को स्पष्ट करती है जिसमें कुछ समूह पाश्चात्य रहन - सहन , विचारों और सांस्कृतिक विशेषताओं को अपनाने लगते हैं । इस दृष्टिकोण से पश्चिमीकरण के दो पक्ष हैं - चेतन एवं अचेतन ।


इसका तात्पर्य है कि कभी - कभी व्यक्ति चेतन रूप से अथवा अपनी इच्छानुसार पाश्चात्य विचारों और सांस्कृतिक विशेषताओं को अपनाता है, लेकिन अक्सर ऐसी परिस्थितियाँ भी उत्पन्न होती रहती हैं, जिनके कारण व्यक्ति अचेतन रूप से पाश्चात्य संस्कृति और विचारों को ग्रहण कर लेता है ।


इसके पश्चात् भी पश्चिमीकरण की प्रक्रिया चेतन अवस्था में किसी व्यक्ति अथवा समूह द्वारा पश्चिमी मूल्यों तथा सांस्कृतिक विशेषताओं को ग्रहण किये जाने का विरोध करती है ।


( ख ) एक जटिल अवधारणा –

पश्चिमीकरण की प्रक्रिया संस्कृतिकरण की तुलना में कम अटिल है लेकिन फिर भी इसमें अनेक जटिल तत्वों का समावेश है । इस प्रक्रिया के अन्तर्गत उन सभी परिवर्तनों को सम्मिलित किया जाता है जो पाश्चात्य प्रौद्योगिकी और आधुनिक विज्ञान के फलस्वरूप उत्पन्न हुए हैं ।


नवीन व्यवहार प्रतिमानों को कुछ व्यक्ति सरलता से अपना लेते हैं जबकि बहुत से व्यक्ति ऐसा करने में कठिनाई अनुभव करते हैं । इस कारण पश्चिमीकरण का प्रभाव सम्पूर्ण भारतीय समाज पर एकसमान नहीं पड़ा है ।


( ग ) एक तटस्थ अवधारणा –

पश्चिमीकरण की अवधारणा इस अर्थ में तटस्थ है कि यह पश्चिम के प्रभाव से उत्पन्न किसी अच्छे या बुरे परिवर्तन को स्पष्ट करने में अधिक रुचि नहीं लेती बल्कि इसका सम्बन्ध सभी प्रकार के परिवर्तनों को व्यक्त करने से है । डॉ ० श्रीनिवास के शब्दों में , “ पश्चिमीकरण शब्द नैतिक दृष्टि तटस्थ है ।


इसका प्रयोग किसी परिवर्तन के अच्छे या बुरे होने को सूचित नहीं करता बल्कि यह प्रत्येक ऐसे परिवर्तन से सम्बद्ध है जो पश्चिमी समाज के अनुकरण को अभिव्यक्त करता है । पश्चिमी संस्कृति के जिन तत्वों का हम अनुकरण करते हैं , यह सम्भव है कि उसका प्रभाव किसी समाज के लिए अच्छा हो जबकि दूसरे के लिए बुरा । इसी दृष्टिकोण से पश्चिमीकरण को तटस्थ अवधारणा माना जाता है । "


( घ ) किसी निश्चित प्रारूप का अभाव-

पश्चिमीकरण का तात्पर्य किसी भी पश्चिमी समाज के उस प्रभाव से है जो किसी गैर - पश्चिमी समाज पर पड़ता है । भारत में स्वतन्त्रता के कुछ वर्ष पश्चात् तक पश्चिमीकरण का तात्पर्य इंग्लैण्ड के प्रभाव से ही समझा जाता था । इसके पश्चात् जैसे - जैसे इंग्लैण्ड के प्रति भारतीयों का लगाव कम होता गया तथा अनुकरण के प्रतिमानों के रूप में अमरीका और रूस के महत्व में वृद्धि होती गई , पश्चिमीकरण के प्रारूप में भी परिवर्तन हो गया ।


इस प्रकार आज भारतीय समाज पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों में से यह बताना अत्यधिक कठिन है । कि यह प्रभाव पश्चिम के किस देश का है । इस कारण आज पश्चिमीकरण के अन्तर्गत किसी निश्चित प्रारूप का उल्लेख नहीं किया जा सकता ।


( च ) पश्चिमीकरण के अन्तर्गत सामान्य संस्कृति का अभाव -

पश्चिम के देशों की अपनी - अपनी पृथक् संस्कृतियाँ हैं । वहाँ कोई ऐसी सामान्य संस्कृति नहीं है जिसे सभी पश्चिमी देशों की सामान्य विशेषता मान लिया जाय । भारतीय समाज का जीवन आज पश्चिमी संस्कृति की जिन विशेषताओं से प्रभावित है , वे विशेषताएँ भी किसी एक विशेष देश से सम्बन्धित नहीं हैं ।


( छ ) अनेक अधिमान्य मूल्यों का समावेश -

वास्तविकता यह है कि पश्चिमीकरण अनेक ऐसे मूल्यों का समन्वय है जो परम्परागत भारतीय विशेषताओं से अत्यधिक भिन्न रहे हैं । इसका तात्पर्य है कि तार्किक ज्ञान की प्रधानता , व्यक्तिवादिता , नव जागरण , स्वतन्त्रता , समानता , उदारतावादी दृष्टिकोण , विचारों की स्वतन्त्रता तथा भौतिक आकर्षक पश्चिमीकरण के प्रमुख तत्व हैं ।


इन तत्वों से निर्मित नवीन मूल्य - व्यवस्था ही पश्चिमीकरण का आधार है । कोई भी समाज जब इन तत्वों पर आधारित वैयक्तिक तथा व्यावहारिक स्तर पर अपनी जीवन पद्धति में परिवर्तन करने लगता है तो इसे हम पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के नाम से सम्बोधित करते हैं।


यह भी पढ़ें- साम्राज्यवाद के विकास की सहायक दशाएँ ( कारक )

यह भी पढ़ें- ऐतिहासिक भौतिकतावाद

यह भी पढ़ें- अनुकरण क्या है? - समाजीकरण में इसकी भूमिका

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में कला की भूमिका

यह भी पढ़ें- फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत

यह भी पढ़ें- समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण के बीच सम्बन्ध

यह भी पढ़ें- प्राथमिक एवं द्वितीयक समाजीकरण

यह भी पढ़ें- मीड का समाजीकरण का सिद्धांत

यह भी पढ़ें- सामाजिक अनुकरण | अनुकरण के प्रकार

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में जनमत की भूमिका

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top