आकलन एवं मूल्यांकन : अर्थ, परिभाषाएँ एवं स्वरूप

आकलन एवं मूल्यांकन : अर्थ, परिभाषाएँ एवं स्वरूप ASSESSMENT AND EVALUATION: MEANING, DEFINITIONS AND NATURE


विद्यार्थियों को निर्धारित शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कक्षा शिक्षण तथा अन्य गतिविधियों के माध्यम से अपेक्षित अधिगम अनुभव प्रदान करने का कार्य दिया जाता है और इस कार्य के लिए शिक्षकों द्वारा विविध प्रकार की विधियों तथा तकनीकों का उपयोग किया जाता है तथा विद्यार्थियों द्वारा इन्हें अर्जित करने हेतु अपनी ओर से विशेष प्रयास किये जाते हैं, उनका यह प्रयास कितना सार्थक रहा तथा उन्होंने किस प्रकार की शैक्षिक उपलब्धि या निष्पत्ति का प्रदर्शन किया, इसका उचित आंकलन करने हेतु विभिन्न प्रकार की परीक्षण, परीक्षा, मापन तथा मूल्यांकन तरीकों का उपयोग किया जाता है।

आकलन एवं मूल्यांकन : अर्थ, परिभाषाएँ एवं स्वरूप ASSESSMENT AND EVALUATION: MEANING, DEFINITIONS AND NATURE

इस तरह जब हम विद्यार्थियों की किसी भी प्रकार की उपलब्धि या निष्पत्ति स्तर की जाँच या आंकलन की बात करते हैं तो इस कार्य हेतु हमसे जो भी बन पड़ता है वह सभी कुछ करने का सभी ओर से प्रयत्न करते हैं ताकि जाँच या आंकलन में कोई कमी न रह जाये।



इस आंकलन से केवल विद्यार्थियों की अधिगम क्षमता या प्रयासों का ही पता नहीं चलता बल्कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से जुड़ी सभी बातों का आंकलन यहाँ संभव होता है कि शिक्षक ने पढ़ाने में कितनी समर्थता जताई, विषयवस्तु/अधिगम अनुभवों का चयन कैसा रहा तथा शिक्षण विधियों तकनीकों का चयन एवं प्रयोग कितना सार्थक रहा आदि। इस तरह अपनी सर्वांगता तथा व्यापकता में आंकलन और मूल्यांकन शब्दों का प्रयोग एक जैसे अर्थों की अभिव्यक्ति करता हुआ प्रतीत होता है।


आंकलन की अवधारणा (CONCEPT OF ASSESSMENT)


आंकलन की प्रकृति अनौपचारिक होती है। यह अभौतिक राशि को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है। इससे आशय विकास के किसी गुणधर्म या पहलू का आंकलन करने से है। यद्यपि मापन की तरह आंकलन में भी अंक प्रदान किये जाते हैं, लेकिन ये अंक ऐसी राशियों को प्रदान किए जाते हैं, जिनका भौतिक रूप में अस्तित्व नहीं होता है, अतः अंक प्रदान करने के पश्चात् भी उन अभौतिक राशियों के बारे में सम्पूर्ण सूचना प्राप्त नहीं होती है। जैसे-


(अ) रीना को गणित विषय में 65 अंक प्राप्त हुए हैं।

(ब) नीलम ने सामाजिक विज्ञान विषय में 78 अंक प्राप्त किए हैं।


विद्यार्थियों की उपलब्धि को ज्ञात करते समय अध्यापक द्वारा किसी मानक के विरुद्ध मूल्य निर्णय करना आकलन कहलाता है।


आंकलन का अर्थ एवं परिभाषाएँ (MEANING AND DEFINITIONS OF ASSESSMENT)


आंकलन का अर्थ है-सूचनाओं को एकत्रित करने की प्रक्रिया। विद्यार्थियों के संदर्भ में किसी विषय के बारे में निर्णय प्रदान करना आकलन कहलाता है। आंकलन की प्रक्रिया में प्रदत्त कार्य निष्पत्ती परीक्षण (Assignment Performance Test) का प्रयोग किया जा सकता है। आकलन में छात्रों को बिना अक अथवा ग्रेडिंग के फीडबैक दिया जाता है ताकि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में अंतिम मूल्यांकन के पूर्व सुधार सम्भव हो सके।


हुबा एवं फ्रीड के अनुसार, "आंकलन सूचना-संग्रहण तथा उस पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया है, जिन्हें हम विभिन्न माध्यमों से प्राप्त कर ये समझा सकते हैं कि विद्यार्थी क्या जानता है, समझता है, अपने शैक्षिक अनुभवों से प्राप्त ज्ञान को परिणाम के रूप में. व्यक्त कर सकता है जिसके द्वारा छात्र अधिगम में वृद्धि होती है।"


"Assessment is the process of gathering and discussing information from multiple and diverse sources in order to develop a deep understanding of what students know, understand, can do with their knowledge as a result of their educational experiences the process culminates when assessment results are used to improve subsequent learning." -Huba and Freed


इरविन के अनुसार, "आंकलन छात्रों के अधिगम एवं विकास के व्यवस्थित आधार का अनुमान है। यह किसी भी वस्तु को परिभाषित कर चयन, रचना, संग्रहण, विश्लेषण, व्याख्या तथा सूचनाओ का उपयुक्त प्रयोग कर छात्र विकास तथा अधिगम को बढ़ाने की प्रक्रिया है।"


"Assessment is the systematic basis for making inferences about the learning and development of students. It is the process of defining, selecting, designing, collecting, analyzing, interpreting and using information to increase students learning and development." -Erwin


आकलन का स्वरूप (NATURE OF ASSESSMENT)


आंकलन द्वारा यह ज्ञात किया जाता है कि बालक ने शिक्षण के अन्त में सही मायने में क्या-क्या सीखा है। एक अच्छे आंकलन में पाँच गुणों का होना आवश्यक है और शिक्षक को छात्रों का आंकलन करने से पूर्व यह ज्ञात कर लेना चाहिए कि आंकलन इन गुणों को पूरा कर रहे हों। आंकलन का यह स्वरूप निम्नांकित हैं-


1. विश्वसनीयता (Reliability)

किसी भी आंकलन का यह सबसे पहला एवं महत्वपूर्ण गुण है। आंकलन किसी भी समय या परिस्थिति में किया जाए, किन्तु उसका परिणाम सदैव समान होना चाहिए तभी वह विश्वसनीय कहलाएगा। विश्वसनीय सामग्री वही है जिसमें एक स्तर के विद्यार्थी पुनः पुनः परीक्षा में लगभग एक समान उत्तर देते हैं। शिक्षक किसी भी योग्यता का हो आंकलन प्रायः एक ही समान होना चाहिए, अगर शिक्षक द्वारा एक ही आंकलन हेतु अलग-अलग अंक प्रदान किया जा रहा है तो ऐसा आंकलन विश्वसनीय नहीं कहलाता है।


2. वैधता (Validity)

वैध आंकलन वही होता है जो वास्तव में उन्हीं उद्देश्यों का आंकलन करे जिस उद्देश्य से उसका निर्माण किया गया है, लेकिन प्रायः शिक्षक ऐसे प्रश्नों को बच्चों से पूछने लगते है जो प्रमाणिक नहीं होते हैं। उदाहरणार्थ-यदि छात्रों की कुछ विन्दुओं को याद करने की शक्ति को जाँचने हेतु प्रश्न बनाना है किन्तु ऐसे प्रश्न बना दिए जाएँ जो उनकी तर्क शक्ति को जाँचे।


3. मानकीकरण (Standardisation)

एक अच्छे आकलन की यह भी एक विशेषता होती है कि वह मानकीकृत होना चाहिए। विद्यालयों में प्रायः जो परीक्षण किए जाते हैं, वे राष्ट्र एवं राज्य के लिए किए जाते हैं, लेकिन मानकीकृत आंकलन वह होता है जो कक्षा स्तर को सम्मिलित करता है।


मानकीकरण किस सीमा तक आंकलन एवं मूल्यांकन प्रशासन प्रक्रियाओं में समान है, को निरूपित करता है और प्रत्येक विद्यार्थी का आंकलन का प्राप्तांक समान होना चाहिए। मानकीकृत आंकलन में कई गुण होते हैं, जो उसे अद्वितीय एवं मानक बनाते हैं। एक मानकीकृत आंकलन वही होता है जिसमें विद्यार्थियों को एक समय सीमा, समान प्रकार के प्रश्न, समान निर्देश दिए जाएँ, ताकि छात्र समान अंक अर्जित करे। मानकीकरण, प्राप्तांक में होने वाली त्रुटियों को समाप्त कर देता है।


4. व्यावहारिक (Practicality)

आंकलन लागत, समय और सरलता की दृष्टिं से वास्तविक, व्यावहारिक एवं कुशल होना चाहिए। ऐसा भी हो सकता है कि आंकलन का कोई तरीका आदर्श हो, किन्तु उसे व्यवहार में न लाया जा सके। ऐसे तरीकों को भी नहीं अपनाना चाहिए। उदाहणार्थ- विद्यार्थियों को अभ्यास की परीक्षा में सभी विद्यार्थियों को एक प्रयोग के स्थान पर अलग-अलग प्रयोग देना अधिक सुविधाजनक एवं व्यावहारिक है, क्योंकि सबसे एक प्रयोग करवाने हेतु एक प्रकार के अनेक यंत्र उपलब्ध करवाने होंगे, हो सकता है यह संभव न हो।


5. उपयोगिता (Utility)

आंकलन विद्यार्थियों के लिए उपयोगी भी होना चाहिए। आंकलन से प्राप्त परिणामों को छात्रों को बता देना चाहिए, जिससे वे उन कमियों को सुधार सकें। आंकलन द्वारा ही इसका पता लग सकता है कि किस दिशा में सुधार करना है। यह सुधार पठन सामग्री तथा अध्यापन विधि आदि में हो सकता है। इस प्रकार आंकलन विद्यार्थियों एवं अध्यापकों की कमियों को जानने एवं उन्हें दूर करने में बहुत लाभकारी होता है।


मूल्यांकन (EVALUATION)


शिक्षण प्रक्रिया का प्रारम्भिक बिंदु शिक्षण उद्देश्य होता है। जब तक शिक्षण के उद्देश्य निश्चित नहीं हो जायें, तब तक शिक्षण की दिशा भी अनिश्चित रहती है। शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु ही शिक्षक ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है, जिनसे बालक में वांछित व्यावहारिक परिवर्तन (Desirable Behavioural Change) आ सके। मूल्यांकन पृष्ठ पोषण देने का भी कार्य करता है जिससे शिक्षक अपनी शिक्षण प्रक्रिया, शिक्षण विधि एवं पाठ्यवस्तु के स्तर में सुधार लाने का भी प्रयास करता है।


दूसरे शब्दों में, मूल्यांकन व्यवहार परिवर्तनों को एकत्रित करने की प्रणाली है जिसके द्वारा इन परिवर्तनों की दिशाओं और सीमाओं का निर्णय लिया जाता है। यह शिक्षा जगत में शैक्षिक उपलब्धियों को जानने का अपेक्षाकृत नवीन प्रत्यय है।


मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definitions of Evaluation)


शिक्षा में मूल्यांकन वह स्थिति है जहाँ पर बालकों की निष्पत्ति उनके द्वारा अर्जित ज्ञान तथा कौशल की मात्रा का पता लगाया जाता है तथा उनको एक श्रेणी (Rank) प्रदान की जाती है।


मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षण तथा मूल्यांकन की विधियाँ विकसित की है। 'मूल्यांकन' अंग्रेजी भाषा के 'इवैलुएशन' (Evaluation) शब्द के स्थान पर हिन्दी भाषा में प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार Evaluation शब्द का अर्थ किसी तथ्य के सम्बन्ध में निर्णय लेने तथा निष्कर्ष निकालने से है। हिन्दी भाषा का मूल्यांकन शब्द इसकी व्याख्या स्पष्ट रूप से करता है। "मूल्यांकन" शब्द दो शब्दों मूल्य + अंकन से बना है जिसका अर्थ है-मूल्य आँकना अर्थात् एक तथ्य, घटना, विचार आदि के सन्दर्भ में स्थान नियत करना, निर्णय लेना, एक अनुभव के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकालना तथा एक स्थिति का सम्पूर्ण वातावरण के सन्दर्भ में ज्ञात करना।


शिक्षा का सम्बन्ध बालक के सर्वांगीण विकास से है। शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करके बालक का सर्वांगीण विकास भली-भाँति किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण से मूल्यांकन शिक्षा के उद्देश्यों पर आधारित रहता है। मापन द्वारा विभिन्न गुणोंः योग्यताओं या विशेषताओं की परिमाण के बारे में जानकारी प्राप्त होती है कि अमुक विद्यार्थी ने 100 में से 80 अंक प्राप्त किये हैं, परन्तु 100 में से 80 अंक प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं होता है।


शिक्षक को यह भी जानना होता है कि विद्यार्थी के प्राप्ताक कितने अच्छे (How good) है अर्थात् इन अंकों के आधार पर बालक की कक्षा में स्थिति (Position) का आंकलन किया जा सकता है। इस प्रकार मापन प्रक्रिया के अन्तर्गत जहाँ किसी वस्तु को आकिक स्वरूप (Quantitative form) प्रदान किया जाता है, वहीं मूल्यांकन में इसके विपरीत उस वस्तु का मूल्य (Value or qualitative form) निर्धारित किया जाता है अर्थात् मूल्यांकन में इस सत्य का निर्माण किया जाता है कि कौन-सी चीज अच्छी है और कौन-सी बुरी ?


इस प्रकार स्पष्ट है कि मूल्यांकन के अन्तर्गत किसी गुण, योग्यता या विशेषता का मूल्य निर्धारित किया जाता है अर्थात् मूल्यांकन द्वारा परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों ही प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त होती है, जिनके आधार पर बालक की योग्यता व उपलब्धियों का आंकलन किया जाता है। 


इस प्रकार मूल्यांकन का आशय मापन के साथ-साथ मूल्य निर्धारण से है अर्थात् अधिगम अनुभव द्वारा विद्यार्थी में आपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन किस सीमा तक हुए ? इसका मूल्य निर्धारण (मूल्यांकन निर्णय देना है। अतः मापन, मूल्यांकन का ही एक भाग है जो सदैव उसमें निहित रहता है।


टॉरगेर्सन तथा एडम्स के अनुसार, "मूल्यांकन का अर्थ है-किसी वस्तु या प्रक्रिया का मूल्य निर्धारित करना तथा शैक्षिक मूल्यांकन से आशय किसी शिक्षण प्रक्रिया या अधिगम अनुभवों की उपयोगिता के सम्बन्ध में मूल्य प्रदान करना होता है।"

"To evaluate is to ascertain the value of some process or thing. Thus educational evaluation is the passing of judgement on the degree of the worthwhileness of some teaching process or learning experience." -Torgerson, T. L. and Adams G. S.


डांडेकर के अनुसार, "शैक्षिक उद्देश्यों को बालक द्वारा किस सीमा तक प्राप्त किया गया है। यह जानने की व्यवस्थित प्रक्रिया को ही मूल्यांकन की संज्ञा दी जाती है।"

"Evaluation may be defined as a systematic process of determining the extent to which educational objectives are achieved by pupils." -Dandekar


क्विलेन व हन्ना के अनुसार, "विद्यालय द्वारा बालक के व्यवहार में लाये गये परिवर्तनों के सम्बन्ध में प्रमाणों के संकलन और उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया को मूल्यांकन कहते हैं।"

"Evaluation is the process of gathering and interpreting evidences on changes in the behaviour of pupils as they progress through school ng Quinn and changes


गुड्स के अनुसार, "मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे सही ढंग से किसी वस्तु का मापन किया जा सकता है।"

"Evaluation is a process of ascertaining or judging the value or amount of something by careful appraisal." -Goods


रेमर्स व गेज के अनुसार, "मूल्यांकन के अन्दर व्यक्ति या समाज अथवा दोनों में जो उत्तम या वांछनीय हो, उसको मानकर चला जाता है।"

"Evaluation assumes a purpose or an idea of what is good or desirable' from the standpoint of the individual or society or both." -H. H. Remmers and M. L. Gage


कोठारी कमीशन के अनुसार, "अब यह माना जाने लगा है कि मूल्याकन एक अनवरत् क्रिया है, यह सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग है और यह शिक्षण लक्ष्यो से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।"

"It is now agreed that evaluation is a continuous process, forms an integral part of the total system of education and is closely related to educational objectives. -Kothari Commission


क्लाजमेयर व गुडविन के अनुसार, "शिक्षा में मूल्यांकन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा यह निर्णय लिया जाता है कि किसी चीज की मापित सीमा और परिणाम किसी मापदण्ड में स्वीकार्य या वांछनीय है अथवा नहीं।"

"Evaluation in education is the process of judging whether the quantity or extent of something measured is acceptable or desirable in terms of some criterion." -Clausmeyr and Goodwin


उपरोक्त तीनों निष्कर्षों को सूत्र रूप में निम्न प्रकार अभिव्यक्त किया जा सकता है-

(i) मूल्यांकन = प्रगति का परिमाणात्मक विवरण (मापन) + मूल्य निर्धारण

(ii) मूल्यांकन = प्रगति का गुणात्मक विवरण (मापन विहीन) + मूल्य निर्धारण

(iii) मूल्यांकन = प्रगति का परिमाणात्मक एवं गुणात्मक विवरण + मूल्य निर्धारण


मूल्यांकन का स्वरूप (NATURE OF EVALUATION)


मूल्यांकन का स्वरूप निम्नलिखित रूप से है-


1. मूल्यांकन सतत् प्रक्रिया है।

2. मूल्यांकन शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न अंग है।

3. मूल्यांकन, मापन एवं परीक्षण की तुलना में काफी विषद और व्यापक संप्रत्यय है।

4. यह एक ऐसी सतत् प्रक्रिया है जिसमें विद्यार्थी की प्रगति के बारे में जानने हेतु सभी तरह के अथक प्रयास किए जाते हैं।


5. यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के परिणामों का परिमाणात्मक (Quantitative) एवं गुणात्मक (Qualitative) विवरण प्रस्तुत करता है।


6. यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के फलस्वरूप विद्यार्थी के व्यवहार के सभी पक्षों (Domains of behaviour) में आने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्रदान करने में मदद करता है।


7. मूल्याकन की विधियों एवं तकनीकों का क्षेत्र कुछ परीक्षणों या परंपरागत परीक्षाओं तक ही सीमित न होकर बहु-आयामी साधनों तथा तकनीकों के प्रयोग हेतु काफी लचीलापन तथा व्यापकता प्रदान करता है।


8. इसके द्वारा निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के संदर्भ में शिक्षक, शिक्षार्थी, शिक्षण विधियों तथा शैक्षिक व्यवस्था की गुणवत्ता कैसी रही इस सबकी व्यापकं जाँच और मापन पूरी तरह संभव है।


9. मूल्यांकन की प्रक्रिया अपने सर्वांग रूप में परीक्षण और मापन की तरह शैक्षिक उपलब्धि के मापन में ही सहायक नहीं होती, बल्कि यह शैक्षिक व्यवस्था के सभी प्रकार के अदा (Input) और प्रक्रिया (Process) पक्षों का सर्वोत्तम परिणाम (Output) के संदर्भ में मूल्यांकन करती हुई संपूर्ण शिक्षा-प्रणाली के सुधार एवं प्रगति में सहायक होती है।


10. मूल्यांकन द्वारा विद्यार्थियों के वांछित व्यवहारगत परिवर्तनों के सम्बन्ध में साक्षियों का संकलन किया जाता है।


11. छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नता एवं सामूहिक आवश्यकताओं को पूरा करता है।



मूल्यांकन की प्रक्रिया (EVALUATION PROCESS)


जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, मूल्यांकन प्रक्रिया में तीन मुख्य चरण सन्निहित है-उद्देश्य, अधिगम अनुभव तथा मूल्यांकन के उपकरण। कुछ लोग व्यवहार परिवर्तन को ही मूल्यांकन का तृतीय चरण मानते हैं। ये तीनों चरण एक-दूसरे पर पारस्परिक रूप से निर्भर करते हैं।


मूल्यांकन प्रक्रिया के चरण (Steps of Evaluation Process)


उपर्युक्त तीनों बिन्दु मूल्यांकन के अलग-अलग चरणों को इंगित करते हैं-


(i) उद्देश्यों का निर्धारण एवं परिमाषीकरण (Identifying and Defining Objectives)


बालक की सामाजिक स्थिति, विषय-वस्तु (Contents) की प्रकृति तथा शैक्षिक स्तर को ध्यान में रखकर उद्देश्य को निर्धारित करना चाहिये। व्यवहार परिवर्तन के रूप में उद्देश्य को सफल रूप से तभी निर्धारित किया जा सकता है जब उपर्युक्त तथ्यों को भली प्रकार समझ लिया जाये।


मूल्यांकनकर्त्ता को यह स्पष्ट रूप में ज्ञात होना चाहिये कि व्यवहार परिवर्तन किस रूप में और किस सीमा तक लाना है। इससे यह जानने में सरलता होगी कि व्यवहार में वांछित परिवर्तन आया है या नहीं। अतः उद्देश्यों को भली प्रकार पहचान लेने और निर्धारित कर लेने पर ही मूल्यांकन की ओर अग्रसर होना चाहिये। उद्देश्यों को परिभाषित करने में विषय-वस्तु और व्यवहार-परिवर्तन दोनों को ही समान रूप से महत्त्वपूर्ण मानना आवश्यक है।


(ii) अधिगम-अनुभव की योजना बनाना (Planning the Learning Experiences)

एक बार उद्देश्यों को पहचान लेने और उनका निर्धारण कर लेने के पश्चात् अधिगम-अनुभव की ओर ध्यान देना चाहिये। अधिगम अनुभव से तात्पर्य एक ऐसी परिस्थिति का निर्माण करना है जिसमें बालक वांछित क्रिया कर सके अर्थात् वह उद्देश्यों के अनुरूप प्रतिक्रियाएँ व्यक्त कर सके।


एक उद्देश्य की पूर्ति के लिये अनेक अनुभवों की योजना तैयार करनी पड़ती है। योजना निर्माण के समय बालक की आयु, लिंग, परिवेश, सामाजिक पृष्ठभूमि आदि प्रासंगिक चरों का ध्यान अवश्य रखना चाहिये। इन्हीं के आधार पर शिक्षण सामग्री, शिक्षण विधि, साधन व माध्यम की व्यवस्था की जानी चाहिये।


(iii) विभिन्न उपकरणों के माध्यम से साक्षियाँ प्रदान करना (Providing Evidence through Various Tools of Evaluation)

उद्देश्य एवं अधिगम अनुभव की योजना तैयार हो जाने पर मूल्यांकनकर्त्ता को उपयुक्त उपकरण के चयन अथवा विकास की ओर प्रयत्न करना चाहिये। इन उपकरणों का प्रयोग कर साक्षियाँ एकत्रित करें। इन साक्षियों के आधार पर व्यवहार परिवर्तन का मूल्यांकन करना चाहिये।


(iv) व्यवहार परिवर्तन के क्षेत्र (Areas of Change in Behaviour)

बालक के जीवन में आने वाले व्यवहार परिवर्तन, मूल्यांकन के फलस्वरूप ही होते हैं। मूल्यांकन इन व्यवहार परिवर्तनों के लिये एक माध्यम का कार्य करता है। व्यवहार परिवर्तन को मुख्यतः तीन पक्षों में विभाजित किया जाता है-


(a) संज्ञानात्मक पक्ष (Cognitive Aspect)

यह पक्ष ज्ञान के उद्देश्य पर महत्त्व देता है। Bloom ने संज्ञानात्मक पक्ष की विवेचना करते हुए निम्न प्रकार के ज्ञान को इस पक्ष में सन्निहित किया है-


(1) विशेष तथ्यों का ज्ञान,

(2) विशिष्ट तथ्यों को प्राप्त करने की विधियों का ज्ञान,

(3) मान्यताओं एवं परम्पराओं का ज्ञान,

(4) मापदण्डों का ज्ञान,

(5) सिद्धान्तों और सामान्यीकरण का ज्ञान,

6) घटनाओं का ज्ञान,

(7) विधियों और प्रणालियों का ज्ञान।


इस पक्ष के छः स्तर होते हैं- प्रत्याह्वान तथा अभिज्ञान, बोध, प्रयोग-विश्लेषण, संश्लेषण तथा मूल्याकन।


(b) भावात्मक पक्ष (Affective Aspect)-


(1) ग्रहण करना, (2) प्रतिक्रिया करना, (3) अनुमूल्यन, (4) विचारण, (5) व्यवस्थापन, (6) चरित्रीकरण।


(c) क्रियात्मक पक्ष (Creative Aspect)


यह पक्ष मुख्यतः माँसपेशियों एवं आंगिक गतियों की आवश्यकता से सम्बन्धित होता है। इसे शिक्षण प्रक्रिया की दृष्टि से छः स्तरों में बाँटा सकता है-

(1) उत्तेजना, (2) क्रियान्वयन, (3) नियन्त्रण, (4) समायोजन, (5) स्वभावीकरण, (6) कौशल।


व्यवहार के इन तीनों पक्षों में परस्पर समन्वय रहता है। बालक के व्यवहार का मूल्यांकन इन तीनों पक्षों के समन्वित रूप में या अलग-अलग किया जाता है।


अधिगम का आंकलन तथा अधिगम के लिए आंकलन में अन्तर (DIFFERENCE BETWEEN ASSESSMENT OF LEARNING AND ASSESSMENT FOR LEARNING)


अधिगम का आंकलन (Assessment of Learning)


विद्यार्थी क्या जानते है और क्या उन्होंने पाठ्यक्रम के परिणाम को पूरा कर लिया है या अपने व्यक्तिगत कार्यक्रमों के लक्ष्यों को या दक्षता को स्पष्ट करने के लिए और विद्यार्थियों के भावी कार्यक्रम की पुष्टि करने के लिये अभिकल्पित रणनीतियाँ (Strategies) प्राप्त कर ली हैं, को जानने के लिये अधिगम का आंकलन किया जाता है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों की उपलब्धि के साक्ष्य अभिभावकों, अन्य शिक्षा प्रदान करने वालों, स्वयं विद्यार्थियों और कभी-कभी बाह्य समूहों (जैसे, नियोक्ताओं, अन्य शैक्षिक संस्थाओं) को प्रदान करने के लिये अभिकल्पित करना है।


अधिगम का आंकलन वह आंकलन है जो सार्वजनिक हो जाता है और जिसका परिणाम कथन या प्रतीकों में विद्यार्थी कितनी भली प्रकार सीख रहा है के सम्बन्ध में होता है। यह प्रायः विद्यार्थियों के भविष्य के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण निर्णयों में योगदान प्रदान करता है। अतः यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके द्वारा अन्तर्निहित तर्क और अधिगम के आंकलन का माप विश्वसनीय और रक्षायुक्त (Defensible) होता है।


आंकलन का उद्देश्य विशेष रूप से शिक्षण अवधि के अन्त में यह निर्धारित करने के लिये किया जाता है कि शैक्षिक लक्ष्य किस सीमा तक प्राप्त कर लिये गये हैं तथा विद्यार्थी की उपलब्धि के लिये ग्रेड या प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिये किया जाता है। इस प्रकार के आंकलन का उद्देश्य प्रायः योगात्मक (Summative) है और इसका अधिकांशतः कार्य, पाठन की इकाई की अवधि के अन्त में किया जाता है।


इस प्रकार के आंकलन की विशेषतायें निम्नलिखित है-


1. यह किसी अधिगम प्रक्रिया के विशुद्ध परिणामों के रूप में जाना जा सकता है और यह इस तरह एक प्रकार से अधिगमकर्त्ता के अन्तिम अधिगम व्यवहार तथा प्रारम्भिक व्यवहार के बीच का विशुद्ध अन्तर होता है जिसे सूत्र के रूप में हम निम्न प्रकार व्यक्त सकते हैं-


अधिगम का आंकलन= अधिगम प्रक्रिया के अन्त में अधिगमकर्त्ता का अधिगम स्तर --- अधिगम प्रक्रिया के शुरू होने से पहले अधिगम स्तर


2. अधिगमकर्त्ता को अपने अधिगम प्रयासों के परिणाम से परिचित कराने के लिए यह अधिगम की समाप्ति पर किया जाता है इस प्रकार के आंकलन के द्वारा हम निम्न बातों की जाँच की कोशिश करते हैं-


(i) अधिगम प्रयत्नों के फलस्वरूप अधिगम अपने अच्छे या बुरे रूप में किस प्रकार सम्पन्न हुआ?

(ii) किसी विषय अथवा कार्य को करने के सम्बन्ध में अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति या उपलब्धि कहाँ तक सम्भव हो पाई?

(iii) अधिगम के परिणामस्वरूप अधिगमकर्त्ता के व्यवहार में किस प्रकार के परिवर्तन प्रकाश में आए।


4. अधिगमकर्त्ता के अधिगम परिणामों का आंकलन करने के लिए समय और निर्धारित कार्यक्रम के आधार पर रचनात्मक भी हो सकता है और संकलनात्मक भी। जब यह एक पाठ्यक्रम, सेमेस्टर या फिर एक निश्चित अवधि के बाद समुचित रूप से लिया जाता है तब यह संकलनात्मक आंकलन का स्वरूप ले लेता है परन्तु जब आंकलन या मूल्यांकन की प्रक्रिया एक सतत प्रक्रिया के रूप में चलती रहती है तो उस अवस्था में सम्पन्न आंकलन रचनात्मक आंकलन का स्वरूप ले लेता है। यहाँ हम अधिगकर्ता के अधिगम प्रतिफलों का आंकलन समय-समय पर बहुत अधिक बार करने की कोशिश करते हैं ताकि अधिगमकर्त्ता की अधिगम प्रक्रिया और परिणामों पर पूर्णरूप से नियंत्रण रखा जा सके।


अधिगम के लिए आंकलन (Assessment for Learning)


'अधिगम के लिए आंकलन या मूल्यांकन' पद आंकलन कार्य के उस रूप के लिए प्रयुक्त होता है जिसका प्रयोग एक विद्यार्थी या अधिगकर्त्ता में पहले से उपस्थित अधिगम क्षमता को जानने तथा यह निश्चित करने के लिए किया जाता है कि किसी दिए गए कार्य का अधिगम करने की उसमें कितनी क्षमता या योग्यता है।


इस प्रकार के आंकलन के परिणाम एक विद्यार्थी को किसी विषय विशेष के अश को सीखने और शिक्षक के लिए उस विषय विशेष का अंश पढ़ाने के कार्य को काफी आसान और ठीक ढंग से विधिपूर्वक पढ़ाने के योग्य बना देता है। इस प्रकार की जानकारी के आधार पर वे अपनी अधिगम या शिक्षण की यात्रा के लिए सही रूप में योजना बना सकते हैं। इस प्रकार के आंकलन की प्रकृति या विशेषताओं को निम्न रूप से स्पष्ट किया जा सकता है-


1. इस आंकलन के बारे में अधिगम कार्य शुरू करने या क्रियान्वित करने से पूर्व ही सम्पन्न किया जाता है।


2. इस प्रकार के आंकलन से जो परिणाम प्राप्त होते हैं उनके आधार पर ही अधिगम कार्य प्रारम्भ करने के बारे में निर्णय लिए जाते हैं।


3. इस प्रकार के आंकलन में एक अध्यापक उस समय संलग्न रहता हुआ दिखाई दे सकता है जब वह अपने विषय सम्बन्धी किसी प्रकरण को पढ़ाने से पूर्व विद्यार्थियों के पूर्वज्ञान का आंकलन कर रहा होता है। उस विषय से सम्बन्धित बालकों को जिस प्रकार की जानकारी और पूर्वज्ञान होता है उसी के परिप्रेक्ष्य में वह अपने पाठ पढ़ाने से सम्बन्धित विधियों और प्रस्तुतीकरण करने के ढंग की योजना बनाता है। इस तरह अध्यापकों के द्वारा अपना पाठ पढ़ाने के समय पूर्वज्ञान की जो परीक्षा ली जाती है वह अधिगम के लिए किया जाने वाला आंकलन ही है।


4. विभिन्न परीक्षणों और मापकों, जैसे-आईक्यू (IQ), ईक्यू (EQ) परीक्षण, अभिवृत्ति परीक्षण, रुचि अनुसूची, व्यक्तित्व अनुसूची, स्वभाव तथा मूड की पहचान आदि के द्वारा विद्यार्थियों के बारे में जो पृष्ठपोपण मिलता है वह अधिगम के लिए आंकलन के रूप में एक प्रभावशाली अदा (Input) का कार्य करता है। एक विशेष प्रकार के अधिगमकर्ता के लिए किस प्रकार का अधिगम उचित रहेगा इन बातों का निर्णय इस प्रकार के अधिगम के लिए आकलन से प्राप्त पृष्ठपोषण की सहायता से ठीक प्रकार से किया जा सकता है। इस प्रकार की प्रतिपुष्टि के प्रकाश में अधिगम प्रक्रिया के संचालन के लिए अपनाई जाने वाली विधियों, प्रयुक्त की जाने वाली सहायक सामग्री आदि के बारे में निर्णय लिए जा सकते हैं।


5. जिसे निदानात्मक आंकलन या परीक्षण कहा जाता है वह अपने आप में अधिगम के लिए प्रयुक्त आंकलन और मूल्यांकन ही है। इस प्रकार के आंकलन और परीक्षण के द्वारा हम अधिगमकर्ता की अधिगम कठिनाइ‌यों तथा अधिगम सम्बन्धी कमजोरियों अथवा अच्छाइयों का पता लगाने का प्रयत्न करते हैं जिनका सम्बन्ध किसी विषय विशेष के प्रकरण के अधिगम अथवा कार्य को सीखने से होता है।


इस प्रकार के निदान से हमें जो प्रतिपुष्टि प्राप्त होती है उसी की मदद से हमें उपचारात्मक कदम उठाने सम्बन्धी निर्णय लेने में आसानी रहती है ताकि अधिगमकर्त्ता की अधिगम कठिनाइ‌यो का निवारण किया जा सके। अधिगम मार्ग में आने वाली इन बाधाओं को पार करने से ही अधिगम का आगे का रास्ता आसान हो जाता है और इस प्रकार से निदानात्मक परीक्षण या आंकलन अधिगम के लिए आंकलन अथवा मूल्यांकन सम्बन्धी भूमिका का अच्छा निर्वहन करता हुआ प्रतीत होता है।


आंकलन एवं मूल्यांकन में अन्तर (DIFFERENCE BETWEEN ASSESSMENT AND EVALUATION)


आंकलन

  1. आकलन एक संवादात्मक तथा रचनात्मक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि विद्यार्थी का उचित अधिगम हो रहा है अथवा नहीं।
  2. इसका उद्देश्य निदानात्मक होता है। शैक्षिक संदर्भ में आंकलन का उद्देश्य शिक्षण अधिगम कार्यक्रम में सुधार करना, छात्रों व अध्यापक का पृष्ठपोषण पालन करना तथा छात्रों की अधिगम सम्बंधी कठिनाइयों को ज्ञात करना होता है।
  3. यह सम्पूर्ण अकादमिक अवधि के दौरान चलने वाली प्रक्रिया है।
  4. शिक्षणशास्त्र का हिस्सा है, जो पढ़ने-पढ़ाने के साथ चलता है।


मूल्यांकन

  1. मूल्यांकन एक योगात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी पूर्व निर्मित शैक्षिक पाठ्यक्रम पूर्ण करने के पश्चात् छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि ज्ञात की जाती है।
  2. इसका उद्देश्य मूल्य निर्णयन करना होता है। शैक्षिक संदर्भ में मूल्यांकन का उद्देश्य निर्धारित पाठ्यक्रम की समाप्ति पर छात्रों की उपलब्धि को ग्रेड अथवा अंक के माध्यम से प्रदर्शित करना है।
  3. यह पाठ्यक्रम की समाप्ति पर होने वाली प्रक्रिया है।
  4. शिक्षणशास्त्र का हिस्सा है, जो पढ़ने-पढ़ाने के अंत में उपलब्धियों के वर्गीकरण के लिए किया जाता रहा है।

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