राजनीतिक संस्कृति और संस्कृति का सम्बंध एवं परिभाषा

राजनीतिक संस्कृति और संस्कृति का सम्बंध

टेलर के अनुसार ' संस्कृति ' ( culture ) में समाज के एक सदस्य होने के नाते मनुष्य द्वारा अर्जित ज्ञान , विश्वास , कला , आचार , कानून , प्रथाएँ तथा दूसरी क्षमताए शामिल होती हैं । "
वाइसमैन के अनुसार, " संस्कृति दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच समान अभिमुखन ( orientation ) का भाग होती है । यह एक व्यापक शब्द है । उसमें व्यक्ति या व्यक्ति समूह के व्यवहार का तरीका , उसकी मान्यता , सम्मान , " विश्वास , घृणा , भौतिक उन्नति आदि सभी शामिल हो जाते हैं ।

इसकी जड़ें हमारे जीवन में अत्यन्त गहरी होती हैं । उसका प्रवेश हमारे मन , मस्तिष्क , चिन्तन , भावनाओं और व्यवहार में होता है । उसका प्रभाव हमारे सचेतन एवं अवचेतन पर भी पड़ता है । "राजनीतिक संस्कृति या राजसंस्कृति ( Political culture ) सामान्य संस्कृति अभिन्न अंग है - संस्कृति को स्थायी बनने , प्रसारित और उत्तरजीवित रहने के लिए राजनैतिक एवं प्रशासनिक संरचनाओं का सहारा लेना पड़ता है । इन संरचनाओं एवं प्रक्रियाओं की पुनः अन्तःक्रिया भौतिक वातावरण पर होती है । उसमें धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगता है ।

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सामान्य संस्कृति की अपेक्षा राजसंस्कृति प्रगतिशील अथवा रूढ़िवादी हो सकती है । उदाहरण के लिए भारत की वर्तमान राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति की अपेक्षा अधिक गत्यात्मक एवं प्रगतिशील मानी जा सकती है । बर्मा , नेपाल , इण्डोनेशिया आदि इसके विलोम दृष्टान्त कहे जा सकते हैं । 

संस्कृति और राजसंस्कृति में क्षैतिज ( horizontal ) एवं उदम ( vertical ) स्तरों पर , जैसे क्षेत्रीय , केन्द्रीय तथा शासन एवं शासितों में अन्तर हो सकता है। राजसंस्कृति के विश्लेषण में विभिन्न वर्गों , दबावों , समूहों , संघों , साम्प्रदायिक दलों आदि से सम्बन्धित ( non - political culture ) अराजसंस्कृति की अवहेलना नहीं की जा सकती ।

पाई के अनुसार , " प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वयं के ऐतिहासिक प्रसंग में अपने समाज और उसके लोगों की राजनीति के बारे में ज्ञान तथा भावनाओं को जानना एवं अपने व्यक्तित्व में संयुक्त करना चाहिए । " प्रत्येक पीढ़ी उसमें संशोधन , परिवर्तन आदि करती है । इस प्रकार नये - पुरानों का , परम्परा एवं आधुनिकता का संघर्ष चलता रहता है । यह द्वन्द्व विकासशील देशों को अत्यधिक प्रभावित करता है । 
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राजव्यवस्था राजसंस्कृति से व्याप्त एवं प्रभावित रहती है। वह उससे मार्ग - निर्देशित , प्रतिबन्धित एवं गत्यात्मक या स्थैतिक बनती है। राजविश्लेषक को राजसंस्कृति की प्रकृति एवं उसके राजव्यवस्था तथा राजनेताओं पर प्रभाव की मात्रा , दिशा आदि का पूरा ध्यान रखना पड़ता है । 

वह प्रायः सार्वजनिक घटनाओं एवं व्यक्तिगत कार्यों का आधार होती है । उससे राजव्यवस्था के व्यवहार को समझने में सहायता मिलती है। उदाहरण के लिए , विधि का प्रशासन , प्रजातन्त्र का स्वरूप , औचित्यपूर्णता के आधार , विचारवाद , राष्ट्रवाद आदि की प्रकृति उसी के प्रकाश में स्पष्ट हो सकती है ।

उसका व्यवस्था के मूल्यों एवं लक्ष्यों , नागरिक प्रशिक्षण तथा जनमत के तरीकों , राजनीति के कर्ताओं को सम्भावित प्रतिक्रियाओं आदि पर प्रभाव पड़ता है । समान राजव्यवस्थाओं में समान संरचनाओं का भिन्न - भिन्न विधियों कार्य करने का स्पष्टीकरण उसी की सहायता से किया जा सकता है । 

राजसंस्कृति का बोध एक प्रकार से सम्बद्ध समूह के समाज मनोविज्ञान क ज्ञान है वही व्यक्ति और समूह को आवृत्त करने वाली अमूर्त , किन्तु प्रभावशाली पृष्ठभूमि है । राजव्यवस्था के विभिन्न सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक पक्षों को समाहित करने वाला तत्व होने के कारण , उसके समस्त क्रियाकलापों को उसी को समग्रता में देखा जा सकता है । 
राजनीतिक संस्कृति और संस्कृति का सम्बंध एवं परिभाषा

उससे राजनीतिक एवं अराजनीतिक तत्वों को प्रक्रियाओं के तारतम्य का पता चल जाता है । राजनीतिक विकास का मार्ग भी राजसंस्कृति को ही बदलने का प्रयत्न करता है । वर्तमान समय में ईरान की स्थिति । इस बात का ज्वलन्त उदाहरण है ।

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