जनजातीय समाज में न्याय - विधि | Justice in Tribal Society

आदिम समाज में विधि - न्याय की विवेचना कीजिए ।

आदिकालीन समाज में न्याय समाज व्यवस्था को बनाये रखने के लिए न्यायालयों का स्थान महत्त्वपूर्ण है । मनुष्य जो भी नियम - विरोधी कार्य करता है, न्यायालय उसके अपराध का मूल्यांकन कर उसके लिए दण्ड का निश्चय करता है । लेकिन आदिकालीन समाज में आज की भाँति न्यायालयों का अभाव रहा है । अतः न्यायालयों के कार्य को जन - जातीय समितियाँ करती आई हैं । आदिकालीन न्याय को समझने के लिए न्याय के निम्नलिखित स्तरों का विवरण आवश्यक है -

जनजातीय समाज में न्याय - विधि | Justice in Tribal Society


( 1 ) साक्ष्य ( Evidence ) -

साक्ष्य न्याय का सर्वप्रमुख आधार है । इसके माध्यम से अपराध का स्पष्टीकरण किया जाता है । यदि साक्षी द्वारा अपराध साबित होता है तो अपराधी के दण्ड दिया जाता है । साक्ष्य को दो भागों में विभक्त किया गया है- 

( क ) शपथ ( Oath ) , 

( ख ) परीक्षा( Ordeal ) ।


प्रथम प्रकार के साक्ष्य में अपराधी व्यक्ति शपथ लेकर अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए कहा जाता है । शपथ की विधियाँ उन - जाति में भिन्न - भिन्न हैं । साक्ष्य में कठोर कार्य द्वारा परीक्षा ली जाती है । जगा ( Jagga ) जन - जाति में अपराधी को खौलते हुए पानी में हात डालने को कहा जाता है , यदि उसका हाथ जल जाता है तो यह समझा जाता है , कि उसने वस्तुतः अपराध किया है यदि उसका हाथ नहीं जलता तो उसे निर्दोष समझा जाता है । सामोयडे ( Samoyed ) जन - जाति में सुअर की नाक पर हाथ रखकर द्वितीय प्रकार के कसम खाने की प्रथा है । 


( 2 ) उद्देश्य ( Motive ) -

न्याय का द्वितीय आवश्यक आधार अपराधी के उद्देश्य की जाँच करना होता है । ऐसे अनेक अवसर होते हैं जब मनुष्य न चाहने पर भी उत्तेजनावश अपराध करने को विवश हो जाता है । इसके विपरीत अनेक अवसरों पर मनुष्य जान - बूझकर अपराध करता है ।


परन्तु आदिकालीन न्याय व्यवस्था में अपराधी के उद्देश्य को महत्त्व नहीं दिया जाता । आदिवासियों का यह विश्वास है कि मनुष्य केवल समाज की दृष्टि में ही अपराध नहीं करता बल्कि उस अलौकिक शक्ति की दृष्टि में अपराध करता है जी समाज पर शासन करते हैं । इसीलिए यदि अपराधी को दण्ड नहीं दिया गया , तो सारे समूह पर विपत्ति आती है । 


( 3 ) दण्ड ( Punishment ) -

जब अपराधी के ऊपर अपराध सिद्ध हो जाता है तो उसे दण्ड दिया जाता है । अनेक जनजातियों में यदि कोई व्यक्ति किसी की हत्या करता है , तो उसकी भी हत्या कर दी जाती है । दण्ड की विधियाँ विभिन्न जनजातियों में अलग - अलग है । एस्किमाए, जनजाति में यदि कोई व्यक्ति हत्या करता है , तो उसे न्याय की पूर्ति के लिए मार दिया जाता है । इसी प्रकार न्याय प्रथा पोलिनेशिया की जनजातियों में भी प्रचलित है । यहाँ की अनेक जनजातियों में एक संसद होती है , जो न्याय के सभी कार्यों को करती है । 


( 4 ) क्षतिपूर्ति ( Compensation )

आदिकालीन समाज में क्षतिपूर्ति का भी प्रचलन रहा । है । अपराधी द्वारा उस व्यक्ति को मुआवजा दिया जाता है , जिसका कि नुकसान हुआ है । इस क्षति निश्चय जातीय समिति द्वारा होता है । जिन जातियों का अर्थ - तंत्र विकसित हो गया है , यहाँ रुपया देकर क्षतिपूर्ति दी जाती है । इफगाओ जन - जाति में अधिकांश झगड़ों का निपटारा क्षतिपूर्ति से हो जाता है , लेकिन हत्या के बदले में प्राणदण्ड दिया जाता है । समोआ जन - जाति में चटाई , जलाई की लकड़ी , पत्थर आदि वस्तुयें देकर क्षतिपूर्ति की जाती है । 


( 5 ) जाँच ( Trial ) -

आदिवासी समाज में अदालती कार्यवाही का भी प्रचलन रहा है । इसमें अपराधी जातीय समिति के समक्ष अपने को निर्दोष साबित करने का प्रयास करता है । निष्कर्ष - इस प्रकार जन - जातियों में विभिन्न प्रकार की न्याय व्यवस्था है । सामाजिक प्रथाओं द्वारा न्याय व्यवस्था के स्वरूप का निश्चय होता है।


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