सामाजिक नियंत्रण में कला की भूमिका | The Role of Art in Social Control in Hindi
सामाजिक नियंत्रण का प्रमुख साधन है, कला कला मानव संस्कृति का अंग है। यह व्यक्ति के व्यवहारों को सदैव नियंत्रित करती है इसके द्वारा मानवीय संवेगों को सुव्यवस्थित किया जाता है एवं कुशल कलाकार अपनी कला के माध्यम से व्यक्ति के आचरणों को संशोधित कर सकता है और सामाजिक प्रतिमानों के अनुसार व्यवहार करने के लिये समाज को प्रेरित कर करता है।
कलाकार समाज का जननायक होता है। वह सामाजिक शोषण एवं उत्पीड़न का विरोध करता है जिससे सामाजिक नियंत्रण की स्थापना में सहयोग मिलता है । कला सामाजिक नियंत्रण का एक प्रभावशाली साधन है । यह सामाजिक एकता को प्रोत्साहन देकर सामाजिक नियंत्रण के कार्य में निरन्तर सहयोग देती है ।
( 1 ) सामाजिक आदर्शों एवं मूल्यों का प्रसारण
सामाजिक नियंत्रण की स्थापना में सामाजिक आदर्शों एवं मूल्यों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । इसके कारण सामाजिक व्यवस्था सुदृढ़ बनी रहती है ।
( 2 ) सामूहिकता को प्रोत्साहन
कला के द्वारा सामूहिकता एवं सामाजिक एकता को भी प्रोत्साहन मिलता है जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक नियंत्रण का कार्य अत्यन्त सरल हो जाता है । प्राथमिक समाजों में लोकगीत एवं लोकनृत्य सामूहिक समाजों का कार्य अत्यन्त सरल हो जाता है ।
प्राथमिक समाजों में लोकगीत एवं लोकनृत्य सामूहिक समाजों को प्रोत्साहन देते हैं । कला के अन्य स्वरूप काव्य , नाटक एवं संगीत के कारण सामाजिक एकता की भावनाओं का विकास होता है । कला के यह रूप सामाजिक विश्वासों एवं आदर्शों की एकता प्रदान करते हैं ।
( 3 ) व्यक्तिगत व्यवहारों पर नियंत्रण
कला व्यक्तिगत व्यवहारों को भी नियंत्रित करती है जिससे सामाजिक नियंत्रण की स्थापना में सहयोग मिलता है ।
( 4 ) सामाजिक व्यवहारों एवं मनोवृत्तियों की स्थापना कला सामाजिक व्यवहारों एवं मनोवृत्तियों को समाज में स्थापित करने का कार्य भी करती है । कला के विभिन्न स्वरूपों के द्वारा सामाजिक व्यवहारों एवं मनोवृत्तियों को समाज में इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है कि व्यक्ति उन्हें सरलता से ग्रहण कर लेता है । संगीत , नृत्य एवं काव्य कला द्वारा सामाजिक आदर्शों एवं प्रतिमानों का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन किया जाता है, जिससे सामाजिक नियंत्रण को शक्ति मिलती है ।
( 5 ) राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन
कला राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता को भी प्रोत्साहन देती है । कला का यह कार्य भी सामाजिक नियंत्रण की स्थापना में सहयोग करता है । राष्ट्रीयता या राष्ट्र प्रेम एक भावना है । कला उन भावनाओं को विकसित करती है। काव्य, नाटक, उपन्यास एवं चलचित्रों के माध्यम से कला व्यक्ति के हृदय में प्रेम की भावनाओं को विकसित करती है । कला एक ऐसा माध्यम है , जिसके द्वारा राष्ट्र परस्पर स्वार्थो एवं भेद - भावों को समाप्त किया जा सकता है। यह राष्ट्रवादियों के समक्ष राष्ट्र के स्थायित्व का रूप रखती है। स्थापत्य कला राष्ट्र की अमरता का रूप रखती है।
( 6 ) नैतिक गुणों का सृजन
कला व्यक्ति के अनेक मानवीय एवं नैतिक गुणों को विकसित करती है , जिससे सामाजिक आदर्शों एवं परम्पराओं का सम्मान व्यक्ति करता है ।
( 7 ) शाश्वत मूल्यों एवं विचारों का विकास
कला सदेव शाश्वत मूल्यों एवं विचारों को विकसित करती है । ' सत्यम् शिवं एवं सुन्दरम – यह सार्वभौमिक शाश्व मूल्य एवं विचार भी सामाजिक संगठन को सहयोग देकर सामाजिक नियंत्रण का कार्य करते हैं।
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