Political Party - अर्थ, परिभाषा, विभाजन और कार्य
राजनीतिक दल आधुनिक अर्थात् अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का अत्यधिक महत्व है । उसके तथा दलीय व्यवस्था के बीच अटूट सम्बन्ध है । उसकी सफलता के लिए राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है । इनकी अनिवार्यता को दृष्टिगत रखकर ही लार्ड ब्राइस ने कहा कि Political Party अनिवार्य हैं क्योंकि कोई भी बड़ा स्वतन्त्र देश इनके बिना नहीं रह सकता है ।इनके अभाव में अपेक्षाकृत अधिक अराजकता और अव्यवस्था पैदा हो जायेगी तथा जनता को सही और व्यावहारिक प्रतिनिधित्व सम्भव नहीं हो पायेगा । अपनी बुराइयों के बावजूद ये प्रतिनिध्यात्मक लोकतन्त्र को व्यावहारिक रूप प्रदान करते है । विभिन्न सिद्धान्तों और हितों पर आधारित होने के कारण इनके अनेक रूप होते हैं।
राजनीतिक दल का अर्थ एवं परिभाषा ( rajnitik dal ka arth avn paribhasha )
Political Party की परिभाषा या अवधारणा स्पष्ट करने के लिए हम विद्वानों की परिभाषाओं तथा इसके आवश्यक तत्वों पर विचार करेंगे ।गेटल ने कहा है कि राजनीतिक दल न्यूनाधिक रूप में संगठित उन नागरिकों का समूह है , जो राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते तथा मतदान के अधिकार का प्रयोग कर सरकार पर नियन्त्रण रखना और अपने सामान्य सिद्धान्त को कार्यान्वित करना , जिनका उद्देश्य होता है ।
गिलक्राइस्ट के अनुसार , राजनीतिक दल को उन नागरिकों के एक संगठित समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है , जिनकी राजनीतिक विचारधारा एक समान होती तथा जो राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हुए सरकार को नियन्त्रित करने का प्रयास करते हैं ।
मेकाइवर का कहना है कि राजनीतिक दल उन कतिपय सिद्धान्तों अथवा नीतियों के समर्थन में संगठित एक संघटन होता है , जो संवैधानिक तरीके से उन्हें सरकार का आधार बनाने का प्रयास करता है । राजनीतिक दल की और अधिक स्पष्ट परिभाषा के लिए हमें उसके आधारभूत अथवा आवश्यक तत्वों पर भी विचार करना होंगा । वे इस प्रकार है-
( 1 ) आधारभूत प्रश्नी पर समान विचारधारा के आधार पर संघटन ,
( 2 ) सामान्य सिद्धान्त एवं नीतियाँ
( 3 ) उद्देश्य की पूर्ति के लिए संवैधानिक उपायों में विश्वास
( 4 ) नीतियों के कार्यान्वयन के लिए संवैधानिक तरीके से शासन पर कब्जा करने का प्रयास विद्वानों की परिभाषाओं तथा आवश्यक तत्वां के विश्लेषण के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि राजनीतिक दल मूलभूत प्रश्नों पर समान विचारधारा के कारण संघटित कतिपय नागरिकों का एक संगठन होता है जिसके कुछ सामान्य सिद्धान्त एवं जिसकी कुछ सामान्य नीतियाँ होती है तथा जो अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संवैधानिक तरीके से शासन पर कब्जा करने का प्रयास करता है ।
राजनीतिक दल के आवश्यक तत्व कौन- कौन से हैं ?
किसी संघटित समूह को तभी राजनीतिक दल की संज्ञा प्रदान की जा सकती है , जब उसमें निम्नलिखित आधारभूत अथवा आवश्यक तत्वों का समावेश हो ।समान विचारधारा
के आधार पर संघटन किसी राजनीतिक दल का सबसे पहला आवश्यक तत्व यह है कि आधारभूत समस्याओं अथवा प्रश्नो के बारे में उसके सदस्यों की विचारधारा समान हो । समान विचारधारा ही उसके सदस्यों को संघटित कर उसे राजनीतिक दल का रूप प्रदान करती है । यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि सभी समस्याओं अथवा प्रश्नो पर समान विचारधारा का होना आवश्यक नहीं है । मूल समस्याओं अथवा प्रश्नों पर विचारधारा में समानता आवश्यक है ।सामान्य सिद्धान्त और नीतियाँ -
आधारभूत प्रश्नों पर विचारधारा की समानता के कारण सभी राजनीतिक दल कतिपय समान सिद्धान्तों , नीतियों एवं कार्यक्रमों में विश्वास करते है । वे ही उनके सदस्यों में एकता और सहयोग का भाव पैदा कर उन्हें संघटित करते हैं । जब सिद्धान्तों , नीतियों और कार्यक्रमों के प्रश्न पर मतभेद पैदा होता है , तो दल के टूटने की पूरी भूमिका तैयार हो जाती है ।राष्ट्रीय हित-
सिद्धान्तः उसी राजनीतिक संघटन को राजनीतिक दल कहा जा सकता , जो वर्गीय , क्षेत्रीय अथवा साम्प्रदायिक हितों के स्थान पर राष्ट्रीय हित को महत्व प्रदान करता है । यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्तर के साथ - साथ क्षेत्रीय स्तर के भी राजनीतिक दल होते , जो राष्ट्रीय नहीं , बल्कि क्षेत्रीय हितों को महत्व देते हैं तथा उन्हीं के आधार पर चुनाव लड़ते हैं । उन्हें भी वैधानिक दृष्टि से राजनीतिक दल की मान्यता प्राप्त होती है , परन्तु राजनीतिक दृष्टि से उन्हें राजनीतिक दल कहना उचित नहीं , क्योंकि वे राष्ट्रीय हित के स्थान पर क्षेत्रीय हितों को महत्व देते है ।संवैधानिक उपयों से शासन पर कब्जे का प्रयास -
सिद्धान्तों , कार्यक्रमों और नीतियों के कार्यान्वयन के लिए किसी भी राजनीतिक दल का शासन पर कब्जा होना आवश्यक है । ऐसा न होने पर वह उनके बारे में प्रचार तथा उनके कार्यान्वयन के लिए शान्तिमय आन्दोलन एवं प्रदर्शन आदि ही कर सकता है । सभी दल सत्ता प्राप्ति का प्रयास करते हैं , परन्तु उनका वह प्रयास संवैधानिक होना चाहिए , जो संघटन असंवैधानिक अर्थात् हिंसात्मक तरीके से सत्ता प्राप्ति का प्रयास करता है , उसे राजनीतिक दल की संज्ञा नहीं प्रदान की जा सकती है । उसे क्रान्तिकारी संघटन कहा जा सकता है , राजनीतिक दल नहीं ।राजनीतिक इकाई
किसी भी राजनीतिक दल के सदस्यों को एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करना चाहिए अर्थात् उनके मन में यह भाव होना चाहिए कि वे सामान्य सिद्धान्तों , कार्यक्रमों और नीतियों के लिए प्रसिद्ध है , जिनके कार्यान्वयन हेतु उन्हें संवैधानिक तरीके से शासन पर कब्जा करना है ।राजनीतिक दल को कितने भागों में विभाजित किया गया हैं ?
राजनीतिक दल विभिन्न रूपों में पाये जाते हैं । उनके विश्लेषण के आधार हम उन्हें मोटे तौर पर अग्र भागों में विभक्त कर सकते हैं-( 1 ) राष्ट्रीय स्तरीय दल-
राष्ट्रीय हितों के आधार पर गठित होने वाले दल राष्ट्रीय स्तरीय दल कहे जाते हैं । उनकी शाखाएँ कमोवेश पूरे देश में पायी जाती है । इसका यह अर्थ नहीं है कि सभी क्षेत्रों में उनको एक समान मुदद स्थति एवं उनका व्यापक कार्यक्षेत्र होता है , जैसे भारत में इस समय भाजपा की उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , राजस्थान , हिमांचल प्रदेश तथा बिहार आदि कतिपय राज्यों में तो सुदृढ़ स्थिति है परन्तु अन्य प्रदेशों में वह बहुत अच्छी नहीं है । बावजूद इस बात वह एक राष्ट्रीय स्तरीय पार्टी है । उसी की तरह कांग्रेस भी एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है ।स्वतंत्रता के बाद लगभग चार दशक तक केन्द्र में उसकी सरकार रही । इस समय केन्द्र तथा अनेक प्रमुख राज्यों में सरकार न रहने के बावजूद वह व्यापक स्तर की राष्ट्रीय पार्टी है । अनेक ऐस भी दल है , जो राष्ट्रीय पार्टी होने का दावा करते हैं , परन्तु किसी भी राज्य में उनकी अच्छी स्थिति नहीं है ।
अमेरिका में रिपब्लिकन तथा डेमोक्रेटिक आदि पार्टियाँ राष्ट्रीय स्तर की हैं क्योंकि इनके पूरे देश में शाखाएँ है तथा ये राष्ट्रीय हितों के आधार पर अपने सिद्धान्त एवं कार्यक्रम और अपनी नीतियों निर्धारित कर कार्य करती तथा चुनाव लड़ती है । ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी , लिबरल पार्टी तथा लेबर पार्टी आदि जैसी पार्टियाँ राष्ट्रीय स्तर की है ।
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि राष्ट्रीय हितों के आधार पर गठित सभी दल राष्ट्रीय दल है जिनकी करीब - करीब पूरे देश या उसके अधिकांश भागों में शाखाएं हो।
( 2 ) क्षेत्रीय दल
वैसे तो राजनीतिक दृष्टि से वे ही पार्टियों राजनीतिक दल की श्रेणी में आ सकती हैं , जो राष्ट्रीय हितों के आधार पर गठित हों , परन्तु व्यवहार में मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दलों का भी अस्तित्व पाया जाता है ; जैसे आन्ध्रप्रदेश , तमिलनाडु तथा पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के क्षेत्रीय दल है ।क्षेत्रीय दल उन राजनीतिक पार्टियों को कहा जाता है , जो क्षेत्रीय हितों के आधार पर गठित हो तथा उन्हीं के अनुरूप अपनी नीतियाँ और अपने कार्यक्रम आदि निर्धारित करती हो । भारत में अपने को राष्ट्रीय स्तरीय कहने वाले अनेक ऐसे भी दल है , जिनकी व्यावहारिक दृष्टि से क्षेत्रीय स्तरीय ही है , क्योंकि उनकी एकाधिक राज्यों में ही अच्छी हालत है । बावजूद इस बात के उन्हें क्षेत्रीय दल नहीं कहा जा सकता , क्योंकि वे राष्ट्रीय हितों के आधार पर अपने गठन का दावा करते हैं ।
( 3 ) सिद्धान्तों और विचारधाराओं पर आधारित दल
सामान्यतः राष्ट्रीय स्तर के सभी दल किसी - न - किसी सिद्धान्त अथवा विचारधारा के आधार पर गठित होते हैं । वे रूढ़िवादी एवं अनुदारवादी अथवा प्रगतिशील और समाजवादी सिद्धान्तों तथा विचारधाराओं के आधार पर गठित होते एवं अपने कार्यक्रम और अपनी नीतियाँ निर्धारित करते हैं । भारत में कांग्रेस , भाजपा , समाजवादी पार्टी , बसपा तथा साम्यवादी पार्टियों जैसी पार्टियां किसी - न - किसी विचारधारा अथवा वैचारिक सिद्धांत में विश्वास करती है, उन्हीं के आधार पर राष्ट्रीय हितों की पूर्ति हो सकती है । अमेरिका में रिपब्लिकन एवं डेमोक्रेटिक तथा ब्रिटेन में कंजवेंटिव , लिबर और लेबर पार्टियाँ भी किसी - न - किसी वैचारिक सिद्धान्त के गयी हैं । आधार पर गठित की गयी हैं।( 4 ) प्रच्छन्न साम्प्रदायिक एवं साम्प्रदायिक और जातिवादी विचारों पर जातिवादी पार्टियाँ
सिद्धान्ततः तो आधारित पार्टियों को राजनीतिक दलों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है , परन्तु दुर्भाग्यवश भारत में इस प्रकार के अनेक दल है , जो प्रन्छन रूप में साम्प्रदायिक एवं जातिवादी चरित्र के है । शिवसेना एवं अन्य हिन्दूवादी पार्टियों तथा मुस्लिम लीग और अन्य मुस्लिमवादी दल इसी श्रेणी में आते हैं , जो प्रत्यक्षतः तो अपने - अपने सम्प्रदायों के सामाजिक , आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि हितों की दुहाई देते हैं ,परन्तु व्यवहारतः विशुद्ध रूप में साम्प्रदायिक चरित्र के है , कहने का तात्पर्य यह है कि जो भी दल सम्प्रदायों एवं जातियों के हितों की दुहाई देते हैं ; वे प्रच्छन्न रूप में साम्प्रदायिक " एवं जातिवादी चरित्र के है । साम्प्रदायिक एवं जातिवादी कटुता और तनाव के आधार पर इनका अस्तित्व बना हुआ है । देश के लिए इससे बढ़कर दुर्भाग्य की कोई और बात नहीं हो सकती है कि ऐसे दलों को भी चुनाव आयोग ने मान्यता प्रदान कर रखी है ।
राजनीतिक दल का कार्य
आधुनिक अर्थात् अप्रत्यक्ष ' लोकतन्त्र की सफलता और कार्यकुशलता के लिए दलीय व्यवस्था केवल महत्वपूर्ण एवं सहायक अपितु आवश्यक एवं अपरिहार्य भी है । इसमें जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन चलाने में भाग लेती है । यह निम्नलिखित दृष्टियों से उपयोगी एवं महत्वपूर्ण हैजनमत निर्माण -
लोकतन्त्र की सफलता और कार्यकुशलता के लिए उपयुक्त जनमत आवश्यक है , क्योंकि यह जनता का जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है । राजनीतिक दल सार्वजनिक समस्याओं अथवा प्रश्नों के प्रति अपने दृष्टिकोण और अपनी विचारधारा प्रस्तुत एवं उनके बारे में प्रचार कर जनमत निर्माण का कार्य करते हैं । लार्ड ब्राइस के अनुसार जनमत के निर्माण , प्रशिक्षण और उसकी अभिव्यक्ति में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है । वे राष्ट्र के मस्तिष्क को ताजा और तरंगित रखते हैं । -सरकार का निर्माण-
सरकार का निर्माण सिद्धान्तों , कार्यक्रमों और नीतियों के कार्यान्वयन के लिए राजनीतिक दलों का सत्ता पर कब्जा होना आवश्यक है । संवैधानिक तरीके से अर्थात् चुनाव में भाग लेकर सभी दल सत्ता प्राप्ति का प्रयास करते है । उनमें विजयी होने के पश्चात् जो दल सत्ता प्राप्त करता है , उसी के सिद्धान्त और कार्यक्रम आदि सरकारी नीतियों के रूप में कार्यान्वित किये जाते हैं । संसदीय प्रणाली में जिस दल का विधायिका के निम्न सदन में बहुमत होता है , उसी को सरकार के निर्माण का अधिकार प्राप्त होता है । अध्यक्षात्मक प्रणाली में भी विजयी दल का प्रत्याशी ही शासनाध्यक्ष होता तथा वह अपने मन्त्रिमण्डल का गठन करता है ।चुनाव कार्य -
राजनीतिक दल चुनाव को सफल बनाकर लोकतन्त्र की सफलता में योगदान करते हैं । एक निर्धारित आयु और योग्यता के सभी नागरिकों को उसमें भाग लेने का अधिका प्राप्त होता है , परन्तु उसकी जटिलता , उसके संचालने की कठिनाइयों और उसमें होने वाले अत्यधिक व्यय के कारण समाज के कुछ थोड़े से व्यक्ति ही अपने सामर्थ्य के आधार पर चुनाव लड़ सकते हैं । गरीब और साधनहीन व्यक्ति अपनी समस्त योग्यताओं के बावजूद उसे नहीं लड़ सकते हैं । राजनीतिक दल गरीब एवं साधनहीन , परन्तु योग्य व्यक्तियों को भी अपने प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का अवसर प्रदान करते समें उनका केवल इतना ही योगदान नहीं होता है । वे सिद्धान्तों , कार्यक्रमों , और नीतियों के आधार पर उसका संचालन भी करते है ।शासन पर नियन्त्रण
लोकतान्त्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल शासन पर नियन्त्रण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण और अनिवार्य हैं । विरोधी दल अपने विचार , विरोध तथा आन्दोलन एवं प्रदर्शन आदि के माध्यम से सत्तारूढ़ दल और उसके शासन को नियन्त्रित करते हैं । वे उसे निरंकुश और स्वेच्छाचारी होने से रोकने तथा जनहित में कार्य करने के लिए बाध्य करते हैं ।विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य-
विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य मुख्यतः दो प्रकार की लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएं पायी जाती है — संसदीय और अध्यक्षात्मक । जो विशुद्ध रूप में संसदीय और अध्यक्षात्मक नहीं हैं , उनमें भी इन दोनों के लक्षणों का ही न्यूनाधिक रूप में मिश्रण मिलता है । इन दोनों ही प्रणालियों में विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य का प्रश्न महत्त्वपूर्ण है । यह कार्य राजनीतिक दल ही करते हैं ।संसदीय प्रणाली में विधायिका तथा मन्त्रिपरिषद के बीच सनारूढ़ दल का एक मेल बैठाने का कार्य करता है । अध्यक्षात्मक प्रणाली में ' शक्तिपृथक्करण के सिद्धान्त के कारण विधायिका और कार्यपालिका , दोनों एक दूसरे से अलग और स्वतन्त्र होती है । इस व्यवस्था में भी उनके बीच सामंजस्य स्थापित करने का कार्य राजनीतिक दल ही करते हैं । यदि विधायिका और कार्यपालिका पर एक ही दल का नियन्त्रण हो , तो सामंजस्य पूरी तरह होता है ।
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