Vocational Education - व्यावसायिक शिक्षा के उद्देश्य और लक्ष्य

व्यावसायिक शिक्षा के उद्देश्य और लक्ष्य - Objectives and goals of vocational education

व्यावसायिक शिक्षा - ' आयोग ' ने व्यावसायिक एवं प्राविधिक शिक्षा के विषय में जो विचार अंकित किये हैं, वे अग्रांकित हैं 

1. व्यावसायिक शिक्षा का प्रसार सुसंगठित योजना के अनुसार इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे 1985-86 ई ० में निम्न माध्यमिक स्तर पर 20 प्रतिशत छात्र, उच्चतर माध्यमिक स्तर पर 50 प्रतिशत छात्र, पूर्णकालीन एवं अंशकालीन व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हों । 


2 . विद्यालय स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा के पाठ्यक्रम अपने आप में सम्पूर्ण होने चाहिए ताकि छात्रों का उच्च शिक्षा की संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण करने में किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव न हो । 


3 . औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में सर्वेक्षण के आधार पर प्रशिक्षण की सुविधाओं का अधिक से अधिक विस्तार किया जाना चाहिए ।


व्यावसायिक प्रशिक्षण कालेज ( Vocational Training College )


विश्वविद्यालय आयोग ने व्यवसायों की प्रगति के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कालेज खोलने और उसकी व्यवस्था के विषय में निम्नलिखित संस्तुतियाँ प्रस्तुत की हैं 


( 1 ) इंजीनियरिंग और टेक्नालॉजी कालेज -


1 आधुनिक इंजीनियरिंग और टेक्नालॉजी की संस्थाओं को देश की राष्ट्रीय सम्पत्ति मानकर उनकी उपयोगिता में वृद्धि करने की ओर ध्यान देना चाहिए । 

2. इनके पाठ्यक्रम में सामान्य शिक्षण के साथ - साथ व्यावहारिक शिक्षण की भी व्यवस्था होनी चाहिए । 

3. व्यावहारिक शिक्षण के लिए छात्रों को अपने लम्बे अवकाश में कारखानों में कार्य करने की सुविधा दी जाय या फिर स्नातक होने के बाद वे एक वर्ष एप्रेन्टिस की हैसियत से कार्य करें । 

4. फोरमैन, ड्राफ्ट्समैन और ओवरसियरों को शिक्षा देने वाले इंजीनियरिंग स्कूलों की संख्या बढ़ायी जाय तथा देश में विभिन्न उद्योगों की माँग को देखते हुए इंजीनियरिंग और टेक्नालॉजी संस्थाओं के पाठ्यक्रम को भी विस्तृत किया जाय । 

5. विज्ञान सहित इण्टरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण छात्रों को टेक्नालॉजी विद्यालयों में चार वर्ष तक शिक्षा प्राप्त करनी होगी और व्यावहारिक शिक्षण संहित यह अवधि पाँच वर्ष होगी । 


( 2 ) विधि कालेज -


1 . चूँकि देश में विधि की शिक्षा में एकरूपता का अभाव है , अतः सभी विधि महाविद्यालयों का पूर्ण रूप से पुनर्गठन किया जाये ।

2. सम्पूर्ण देश में उच्च श्रेणी के विधि महाविद्यालय स्थापित होने चाहिए । 

3. विधि विभाग के अध्यापकों की नियुक्ति भी अन्य विभागों के अध्यापकों की भाँति विश्वविद्यालयों द्वारा की जाय । 

4. अध्यापक पूर्णकालीन और अंशकालीन दोनों ही प्रकार के होने चाहिए । 

5. छात्रों को विधि - शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति तभी मिलनी चाहिए जबकि वे तीन वर्ष का सामान्य स्नातक ( डिग्री ) पाठ्यक्रम उत्तीर्ण कर लें । 


( 3 ) चिकित्सा कालेज- 

1. प्रत्येक चिकित्सा महाविद्यालय में छात्र संख्या 100 से अधिक नहीं होनी चाहिए । 

2. महाविद्यालय के विभागों का सम्बन्ध अस्पताल से हो , वह सब एक स्थान पर हों । 

3. इन महाविद्यालयों में प्रवेश होने वाले प्रत्येक छात्र के लिए 10 रोगी हों । 

4. विद्यार्थियों को ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रशिक्षित किया जाय । 

5. सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सुश्रूषा को अधिक महत्त्व दिया जाय ।

6. स्नातकोत्तर शिक्षा उन्हीं महाविद्यालय में देनी चाहिए जहाँ पर सुयोग्य शिक्षण और उपर्युक्त साधन हो ।

7. स्नातकों के लिए शिक्षा चिकित्सा व्यवसाय में प्रवेश करने से पूर्व किसी अनुमोदित चिकित्सा में एक वर्ष या 15 मास व्यावहारिक कार्य अनिवार्य हो।


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