सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का कारण | Reasons for failure of community development program in Hindi
सामुदायिक विकास कार्यक्रम के सभी पक्षों को देखते हुए अक्सर एक यह प्रश्न भी उत्पन्न होता है कि क्या भारत में सामुदायिक विकास कार्यक्रम असफल रहा है और यदि हाँ, तो इसके प्रमुख कारण क्या हैं? इस प्रश्न की वास्तविकता को जानने के दृष्टिकोण से डॉ० दुबे ने सामुदायिक योजना का वैज्ञानिक मूल्यांकन करते हुए इनकी संरचना से सम्बद्ध चार मुख्य दोषों का उल्लेख किया है ।
( 1 ) ग्रामीण जनसंख्या के अधिकांश भाग की सामान्य उदासीनता ( apathy )।
( 2 ) योजना के क्रियान्वयन में अधिकारियों तथा बाहरी व्यक्तियों के प्रति सन्देह तथा अविश्वास
( 3 ) संचार साधनों की विफलता ।
( 4 ) परस्पराओं का प्रभाव तथा सांस्कृतिक कारक इस प्रकार भारत में सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता अथवा धीमी प्रगति के लिए जो विभिन्न कारण बताये गये हैं, उन्हें संक्षेप में निम्नांकित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है ।
( क ) जन - सहयोग का अभाव
सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का कारण, प्रत्येक स्तर पर जन सहयोग की सबसे अधिक आवश्यकता थी लेकिन व्यावहारिक रूप से प्रत्येक स्तर पर इसका नितान्त अभाव है । इस कार्यक्रम में श्रमदान आन्दोलन को अत्यधिक महत्व दिया गया है लेकिन आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से अनेक टुकड़ों में विभाजित ग्रामीण समुदाय से ऐसा कोई सहयोग नहीं मिल सका । विभिन्न विकास कार्यक्रमों द्वारा जब तक निम्न सामाजिक - आर्थिक स्थिति वाले वर्गों को वास्तविक लाभ नहीं पहुंचता यह योजना अधिक प्रभावपूर्ण नहीं हो सकती ।
( ख ) कार्यक्रम के क्रियान्वयन में अतिशीघ्रता
सामुदायिक विकास कार्यक्रम की सफलता बहुत बड़ी सीमा तक उसके संगठनात्मक पहलू से सम्बन्धित थी । देश में इस योजना के सम्पूर्ण जाल को फैलाने में इतनी अधिक शीघ्रता और उत्साह दिखाया गया कि योग्य तथा कुशल कार्यकर्ताओं के अभाव में सामान्य कार्यकर्ताओं के हाथों में ही योजना के क्रियान्वयन की बागडोर सौंप दी गयी ।
कार्यक्रम का प्रसार उच्च से निम्न अधिकारियों के लिए होता था , इसलिए उच्च स्तर के अधिकारी जनसामान्य की भावनाओं तथा आवश्यकताओं से अनभिज्ञ ही बने रहे । इसके फलस्वरूप नीतियों का निर्माण ही दोषपूर्ण हो गया । सम्पूर्ण योजना फाइलों और कागजों में सिमटकर रह गयी । जनसाधारण को इसका न कोई लाभ मिला और न ही उन्होंने इसमें कोई सहयोग देना श्रेयष्कर समझा ।
( ग ) कार्यक्रम में नौकरशाही का बोलबाला
सामुदायिक विकास योजना के प्रत्येक स्तर पर नौकरशाही प्रवृत्ति का बोलबाला है । योजना के उच्च सदस्य अधिकारी निम्न अधिकारियों को आदेश तो देते रहे लेकिन अपने से नीचे के ग्रामीण स्तर के अधिकारियों की अनुभवसिद्ध तथा विश्वस्त बात सुनने के लिए तैयार नहीं हो सके ।
इसके फलस्वरूप ग्राम सेवक, जिस पर इस योजना की सफलता आधारित थी, गाँव के प्रभावशाली व्यक्तियों की चाटुकारी करने में लग गया। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश प्रशासन के अभ्यस्त अधिकारी ग्रामीण समुदाय से किसी प्रकार का सम्पर्क रखना अथवा प्राथमिक रूप से उनकी समस्याओं को समझना अपनी प्रतिष्ठा के विरुद्ध समझते रहे ।
( घ ) प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं का अभाव
इस योजना के आरम्भिक काल से ही प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं का नितान्त अभाव रहा है । यद्यपि सरकार ने कुछ कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण केन्द्रों तथा विशेष शिविरों का आयोजन किया लेकिन यह व्यवस्था इतनी अपर्याप्त , थी कि जिस तेजी से विकास खण्डों की संख्या में वृद्धि हो रही थी, उतनी तेजी से कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित नहीं किया जा सका । इसके फलस्वरूप विभिन्न स्तरों पर नियुक्त अधिकारी , कार्यकर्ता तथा कर्मचारी अपने दायित्व का समुचित रूप से निर्वाह नहीं कर सके।
( च ) स्थानीय नेतृत्व का अभाव
कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य स्थानीय नेतृत्व का विकास करना था लेकिन आरम्भ से ही इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया । वास्तव में ग्रामीण समुदाय में व्याप्त अशिक्षा, अज्ञानता, सामाजिक-आर्थिक असमानता, भाषागत भिन्नताओं तथा उच्च जातियों के शोषण के कारण नियोजित प्रयास किये बिना स्वस्थ नेतृत्व को विकसित करना सम्भव नहीं था ।
जब ग्रामों में स्वस्थ नेतृत्व ही विकसित नहीं हुआ तो जन - सहभाग प्राप्त होने का कोई प्रश्न ही नहीं था । इस सहयोग की अनुपस्थिति में थोड़े - से प्रशिक्षित और कुशल कार्यकर्ता भी विभिन्न कार्यक्रमों को अधिक प्रभावपूर्ण नहीं बना सके ।
( छ ) सांस्कृतिक कारक
भारतीय ग्रामों में कुछ ऐसी सांस्कृतिक परिस्थितियाँ भी विद्यमान रही हैं जिसके कारण सामुदायिक विकास कार्यक्रम की प्रगति बहुत सीमित हो गयी । उदाहरण के लिए, उदासीन तथा भाग्य प्रधान स्वभाव , कार्य करने के परम्परागत तरीके, धार्मिक विश्वास, तरह तरह के कर्मकाण्ड और सरकारी अधिकारियों के प्रति अविश्वास आदि ऐसे कारक रहे हैं जो जन सहभाग को दुर्बल बनाते रहते हैं । डॉ० दुबे ने अपने अध्ययन के आधार पर इन कारकों के प्रभाव का व्यापक विश्लेषण करके सामुदायिक विकास योजना की धीमी प्रगति में इनके प्रभाव को स्पष्ट किया है ।
( ज ) प्रभावशाली संचार का अभाव
सामुदायिक विकास योजना के अन्तर्गत संचार के परम्परागत तथा आधुनिक दोनों तरीकों का साथ-साथ उपयोग किया गया लेकिन कार्यक्रम को सफल बनाने में ये अधिक प्रभावपूर्ण सिद्ध नहीं हो सके। इसका कारण संचार के तरीकों का दोषपूर्ण उपयोग था।
उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि आरम्भ से ही सामुदायिक विकास योजना की संरचना तथा इसके क्रियान्वयन में कुछ ऐसे आधारभूत दोष विद्यमान रहे हैं जिनके कारण इस योजना से आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हो सकी। इस असफलता के लिए किसी एक पक्ष को उत्तरदायी मान लेना भी उचित नहीं है। इसके पश्चात् भी भारतीय ग्रामीण समुदाय की विशेषताओं को देखते हुए योजना में प्रमुख उत्तरदायित्व उन अभिकर्ताओं का था जिनके ऊपर योजना के निर्देशन और क्रियान्वयन का भार था।
आधार रूप से इन्हीं व्यक्तियों की अदूरदर्शिता, संगठनात्मक कमजोरियों तथा नौकरशाही प्रवृत्तियों के कारण यह योजना भारतीय गाँवों का सर्वांगीण विकास करने में असफल रही । फिर भी हमें यह, स्वीकार करना पड़ेगा कि इस कार्यक्रम के फलस्वरूप ग्रामीण समुदाय में एक नयी चेतना उत्पन्न हुई है, जीवन-स्तर में सुधार हुआ है तथा काफी अंशों में ग्रामीण समुदाय की मनोवृत्तियों और दृष्टिकोण में परिवर्तन भी सामने आया है।
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