वर्धा शिक्षा योजना | Wardha Education Scheme in Hindi
सन् 1937 को मारवाड़ी हाई स्कूल वर्धा में एक अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन हुआ था। इसे ' वर्धा शिक्षा सम्मेलन ' भी कहा गया है । इस सम्मेलन में शिक्षाशास्त्रियों , समाज सुधारकों, राष्ट्रीय नेताओं और कांग्रेस मन्त्रिमण्डलों के शिक्षा मन्त्रियों ने भाग लिया था । सम्मेलन की अध्यक्षता गाँधी जी ने स्वयं की थी ।
इस सम्मेलन के पश्चात् डॉ ० जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी । इस समिति का कार्य बेसिक शिक्षा की पूर्व योजना तैयार करना था । इस समिति ने सन् 1936 और 1938 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की । इस शिक्षा योजना को ' वर्धा शिक्षा योजना ' , शिक्षा ' या ' बुनियादी शिक्षा ' और ' नयी तालीम ' के नाम से पुकारते हैं।
वर्धा शिक्षा योजना (WARDHA SCHEME)
सन् 1935 के भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act-1935) के द्वारा भारत ॥ द्वैध शासन का अन्त कर दिया गया तथा प्रान्तों में स्वशासन लागू हो गया, इसके द्वारा प्रान्तों को प्रशन्तीय स्वायत्तता दे दी गई तथा लोकप्रिय मंत्रिमण्डल सन् 1937 से कार्य करने लगे, इस समय राष्ट्र का नेतृत्व गाँधीजी के हाथों में था, उन्होंने सन् 1937 में अपने पत्र The Harijan में लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित की और एक शिक्षा योजना का प्रस्ताव किया, जिसे मौलिक अथवा आधार शिक्षण (Basic Education) अथवा वर्धा योजना की संज्ञा दी गई है।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन/वर्धा सम्मेलन (ALL INDIA NATIONAL EDUCATION CONFERENCE OR WARDHA CONFERENCE)
महात्मा गाँधी का नाम भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में युग प्रवर्तक के रूप में लिया जाता है, कि उन्होंने देश को स्वाधीनता व स्वतन्त्रता दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, वे एक महान् सन्त, राशनिक, राष्ट्रीय नेता व शिश्वाबिद भी थे। गाँधीजी अपने विचार, लेखों के रूप में पत्र-पत्रिकाओं में उस्तुत करते थे, इसी प्रकार 31 जुलाई, सन् 1937 को गाँधीजी की विश्व प्रसिद्ध शिक्षा का प्रकाशन हजार प्रत्रिका में हुआ था।
प्रान्तीय सरकारों ने शैक्षिक समस्याओं का समाधान खोजने हेतु दिनांक 1221 अक्टूबर, सन् 1937 को वर्धा में एक शिक्षा सम्मेलन आयोजित किया तथा इस सम्मेलन की तारवयं महात्मा गाँधी ने ही की। यद्यपि 22-23 अक्टूबर, सन् 1937 को वर्धा में 'मारवाड़ी हिसा मण्डल' की रजत जयन्ती मनाई जाने वाली थी।
श्री मन्नारायण अग्रवाल इस सम्मेलन के कथे, किन्तु गाँधीजी ने उन्हें इस अवसर पर एक शिक्षा सम्मेलन आयोजित करने का सुझाव दिया। इस अवसर पर भारत के सातों कांग्रेस मंत्रिमण्डलों के शिक्षा मंत्रियों व चोटी के शिक्षाश विचारकों व राष्ट्रीय नेताओं को आमंत्रित किया और 'अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्य आयोजन किया। इसे ही वर्धा शिक्षा सम्मेलन कहा जाता है, इस सम्मेलन के सभापति महात्मा गाँ इस सम्मेलन में गाँधीजी ने खुलकर अपने विचार प्रस्तुत किये व काफी समय तक चर्चा हुई. निम्नलिखित प्रस्ताव पारित हुए-
(i) 7 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिये अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्
(ii) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो।
(iii) शिक्षा प्रक्रिया में हस्त-कौशलों एवं उत्पादक कार्यों को प्रोत्साहित किया जाए।
(iv) पाठ्यक्रम का निर्माण बच्चों की आवश्यकताओं के अनुरूप ही किया जाए।
शिक्षा में हस्तशिल्प व उत्पादक कार्यों को सम्मलित किया जाएगा। अतः शिक्षा स्वावलम्बी हो जाए तथा स्कूलों में होने वाले उत्पादन से शिक्षकों के वेतन का भुगतान किया जा सके। उक्त चारों प्रस्ताव गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा के आधार स्तम्भ थे, आगे चलकर 1939 में हिन्दुस्तानी तालीम संघ (All India National Education Board) ने बुनियादी शिक्ष ' नई तालीम' के नाम से सम्बोधित किया।
गाँधीजी के अनुसार उस समय वास्तव में भारत देश शैक्षिक दृष्टि से अत्यन्त पिछड़ा हुआ तथा आर्थिक स्थिति भी अत्यन्त दुर्बल थी। गाँधीजी ने शिक्षा के सम्बन्ध में निम्नलिखित विचार किये-
"शिक्षा से मेरा अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जो बालक और मानव के सर्वोत्कृ शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक गुणों को बाहर ला सके।" "By Education I mean an all round drawing out of the best the child and body, mind and spirit."
गाँधीजी वास्तव में विदेशी संस्कृति के विरुद्ध थे। उन्होंने यंग इण्डिया (Young Ind नामक पत्रिका में लिखा था, "यह शिक्षा विदेशी संस्कृति पर आधारित है, जो भारतीय संस्त्रां को पूर्ण रूप से बहिष्कृत कर देती है। इसका हृदय से कोई सम्बन्ध नहीं है, यह मनुष्य का के मानसिक विकास करती है। इसमें हस्तकला को कोई महत्व नहीं दिया गया है। इसमें हि अंग्रेजी माध्यम से दी जाती है, जबकि सच्ची शिक्षा विदेशी माध्यम से सम्भव नहीं है।"
गाँधीजी बालकों को व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से पर्याप्त ज्ञान एवं कौशल प्रदान क के समर्थक थे, जिससे वे आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बन सकें ताकि वे विद्यालय के शिक्षकों वेतन व अन्य खच्चों को वहन कर सकें तथा समाज को भी लाभान्वित कर सकें। उनके अनुभ राक्षरता उन साधनों में से एक है, जिसके द्वारा स्त्री-पुरुष शिक्षित किये जा सकें। उनके अनुना प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क व अनिवार्य होनी चाहिये तथा इसकी अवधि 7 वर्ष होनी चाहिए। मिल का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए।
इस प्रकार इस शिक्षा व्यवस्था द्वारा भारतीय परिस्थितियों व समस्याओं पर विशेष ध्यान देका साक्षरता के उपायों की संस्तुति की गई थी।
जाकिर हुसैन समिति-1937 (JAKIR HUSSAIN COMMITTEE-1937)
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन, वर्धा में प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा योजना को अन्तिम रूप देने के लिये जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया, इसे जाकिर हुसैन समिति- 1937 कहते हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट दो भागों में प्रस्तुत की। पहला भाग दिसम्बर, 1937 में तथा दूसरा भाग अप्रैल, 1938 में प्रस्तुत किया गया।
ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के दोषों की विवेचना।
1. डॉ. जाकिर हुसैन समिति - 1937
2. वर्धा शिक्षा के उद्देश्य, सिद्धान्त, विद्यालय संगठन प्रशासन, शिक्षक, परीक्षा व शिक्षक प्रशिक्षण इत्यादि का वर्णन।
3. विषयों को परस्पर सह-सम्बन्धित (Co-related) किया गया।
4. हस्तकला का प्रशिक्षण देना।
5. कताई, बुनाई (कला) को प्रमुख स्थान।
6. हस्तकला (कृषि, लकड़ी का काम, मिट्टी का काम) को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना।
7. समिति ने इस योजना को बुनियादी तालीम (Basic Education) कहा।
2. हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन - 1938 फरवरी सन् 1938 को हरिपुरा में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में डॉ. जाकिर हुसैन समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। काँग्रेस ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया तथा इसे सभी कांग्रेस शासित प्रदेशों में लागू करने का निर्णय लिया गया।
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