मीड का समाजीकरण का सिद्धांत | Mead's Socialization Theory

मीड का समाजीकरण का सिद्धांत | Mead's Socialization Theory in Hindi

मीड एक अमेरिकन समाजशास्त्री था उससे सिद्धान्त का प्रतिपादन अपनी रचना ( Mind self and Society ) में किया है । उसका कहना है कि समाजीकरण की प्रक्रिया में ' स्व-चेतना ' या ' आत्म-चेतना ' ( Self Consciousness ) का योगदान होता है। समाजीकरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा जैविक व्यक्ति सामाजिक प्राणी के रूप में रूपान्तरित होता है।


मीड ने जैविक व्यक्ति ( Biologic Individual ) से सामाजिक स्वचेतन व्यक्ति ( Social self conscious Individual ) को ही कहा है । मीड ने अपने सिद्धान्त को समझाने के लिए मैं ( I ) और मुझे ( Me ) शब्दों का प्रयोग किया है। उसने आत्मा को मैं ( I ) कहा है और सामाजिक विशेषताओं जैसे रीति - रिवाज, सामाजिक प्रतिमान एवं परम्परा को मुझे ( Me ) कहा है । व्यक्ति जब सामाजिक गुणों को सीख लेता है तो उसका समाजीकरण हो जाता है ।


संक्षेप में मोड के विचार को प्रस्तुत करते हुए कहा जा सकता है मैं ( I ) + मुझे ( Me ) समाजीकरण ( Socialization ) इस प्रकार मैं ( I ) और मुझे ( Me ) इन दोनों में ' आत्म ' का निर्माण होता है और समाजीकरण होता है । व्यक्ति के आत्म ( Self ) का विकास एक प्रक्रिया के रूप में होता है, जो तीन स्तरों क्रमशः पृथकत्व, तादात्म्य एवं सामान्यकृत व्यवहार में विकसित होती है ।


अन्तिम स्तर पर आकर बालक उन्हीं सामाजिक विशेषताओं को अपना लेता है जिनका अनुकरण अन्य व्यक्ति करते हैं । व्यक्ति दूसरों के दृष्टिकोण को भी अपनाता है । व्यक्ति में आत्म ( Self ) की उत्पत्ति सामाजिक अनुभव और क्रिया की प्रक्रिया द्वारा होती है।


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