उदारवाद की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं? What are the main features of liberalism?

उदारवाद की प्रमुख विशेषताएँ उदारवाद की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

( 1 )उदारवाद: अन्य चिन्तनधाराओं की तरह यह एक क्रमबद्ध , स्वतंत्र अस्तित्व वाले । तथा एक निश्चित काल में सम्बद्ध ' वाद ' अथवा चिन्तनधारा के रूप में नहीं है । इसे कतिपय दार्शनिकों अथवा चिन्तकों के चिन्तन तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है । 

16 वीं और 17 वीं शताब्दी में नवजागरण एवं धर्म सुधार आन्दोलनों और निरंकुश राजतन्त्रीय व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिक्रिया तथा 18 वीं शताब्दी के अन्त में औद्योगिक क्रान्ति की पृष्ठभूमि के साथ जिस व्यक्तिवाद का जन्म हुआ , उसमें समाहित उदारवादी राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक और नैतिक चिन्तन तत्वों को उदारवाद की संज्ञा प्रदान की गयी ।

कहने का तात्पर्य है कि इसने एक स्वतंत्र चिन्तनधारा के रूप में अपनी यात्रा नहीं आरम्भ की । उस समय इसमें और व्यक्तिवाद में कोई अन्तर नहीं माना जाता था । दोनों ही एक - दूसरे के पर्यायवाची समझे जाते थे तथा ऐसा मानना और सनझना गलत भी नहीं था , क्योंकि उस समय व्यक्तिवाद और इसके आधारभूत तत्व एक ही थे । 

दोनों में स्पष्ट अलगाव सम्भव नहीं था । दोनों की प्रकृति भी एक ही थी , दोनों राज्य को नकारात्मक भूमिका तथा व्यक्ति की निरंकुश आर्थिक स्वतन्त्रता में विश्वास करते थे । परिस्थितियों में परिवर्तन ने व्यक्तिवाद पर प्रहार का मार्ग प्रशस्त किया । नवव्यक्तिवाद की यात्रा शुरू हुई ।

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उदारवाद ने व्यक्तिवाद से अपने को अलग कर " नवव्यक्तिवाद से अपने को जोड़ लिया । उसकी यात्रा रुक जाने के बाद उसने अपने को उपयोगितावाद और तत्पश्चात् ग्रीन के आदर्शवाद से अपने को जोड़ा तथा उसने अपने को समाहित कर अपनी यात्रा जारी रखी । 

आज यह मार्क्सवाद ( साम्यवाद ) के प्रतिक्रियास्वरूप जन्म लेने वाला लोककल्याणकारी राज्यवाद तथा लोकतान्त्रिक समाजवाद में अपने को समाहित कर यात्रा कर रहा है । इसकी यात्रा का यह भी अन्त नहीं है ।आर्थिक क्षेत्र में पूँजीवादी व्यवस्था तथा राजनीतिक, सामाजिक एवं अन्य क्षेत्रों में पूँजीवादी लोकतंत्र के संरक्षण और पोषण से सम्बन्धित है। 

जो भी चिन्तनधारा सामने आयेगी उदारवाद अपने को उसी में समाहित कर लेगा । कहने का तात्पर्य है । कि यह किसी कालविशेष तक सीमित न होकर निरन्तर चलते रहने वाले चिन्तन तत्वों अथवा चिन्तनधारा के रूप में है । चिन्तनधारा के रूप में यह क्रमबद्ध नहीं परन्तु मूलभूत तत्वों की क्रमबद्धता की दृष्टि से यह क्रमबद्ध है । 

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( 2 ) यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था , पूँजीवादी लोकतंत्र , मानवीय विवेक , प्रगतिशीलता , व्यक्ति के महत्व , राज्य के उदारवादी चरित्र , धर्मनिरपेक्षता तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सद्भाव और अन्तर्राष्ट्रवाद में विश्वास करने वाली चिन्तनधारा के रूप में है । 

यह व्यक्ति को साध्य तथा राज्य को साधन मानते हुए राज्य को स्वेच्छाचारिता एवं निरंकुशता का कट्टर विरोधी है । अर्थात् इसके मूलभूत तत्व उसी चिन्तनधारा के साथ अपने को जोड़ते हैं अथवा उसी में समाहित होते हैं जो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था तथा पूँजीवादी लोकतंत्र की पक्षधर होती है । 

( 3 ) अनुदारवाद का विलोम होते हुए भी यह केवल उसके विरोध तक ही सीमित नहीं है । अनुपयोगी एवं निरर्थक रूढ़ियों और परम्पराओं का विरोध हो उदारवाद नहीं है । आर्थिक , राजनीतिक , सामाजिक और धार्मिक आदि क्षेत्रों में व्यक्ति स्वातन्त्र्य , उसके व्यक्तित्व का विकास , लोकतांत्रिक मूल्यों एवं तत्वों का रक्षण और पोषण तथा राज्य की निरंकुशता एवं स्वेच्छाचारिता पर रोक आदि इसके आधारभूत लक्ष्य के रूप में हैं ।
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( 4 ) जहाँ प्रारम्भ में इसका रूप नकारात्मक तथा लोककल्याणकारी राज्यवाद और लोकतांत्रिक समाजवाद से इसके जुड़ जाने के बाद वह सकारात्मक हो गया । 17 वीं और 18 वीं शताब्दी का उग्रवादी उदारवाद 19 वीं शताब्दी में शान्तिपूर्ण एवं सुधारवादी तरीके से तत्कालीन बुराइयाँ दूर कर सामाजिक परिवर्तन लाने का पक्षधर हो गया । 20 वीं शताब्दी में सामाजिक परिवर्तन की समस्या उदारवादी समाजशास्त्रियों के अध्ययन की मुख्य विषय - वस्तु है ।

वे सामाजिक व्यवस्था को एक कार्यशील सन्तुलन व्यवस्था मानते हुए सभी वर्गों , समूहों और संस्थाओं के बीच समन्वय तथा समस्याओं के समाधान के सुधारवादी तरीके पर बल देते हैं । सामाजिक विवादों को समाज के लिए घातक मानते हुए सामाजिक मतैक्य को महत्व देते हुए वे सामाजिक एकता , सन्तुलन और स्थायित्व बनाये रखने में राज्य की सकारात्मक भूमिका में विश्वास करते हैं । 

आधुनिक उदारवाद सामाजिक कानूनों और सुधारों के माध्यम से राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं का वर्तमान व्यवस्था के अन्तर्गत ही समाधान का पक्षधर है । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि यह सुधारवादी और क्रमिक सामाजिक परिवर्तन में विश्वास करने लगा है । 

उदारवाद की आलोचना ( Criticism )

16 वीं और 17 वीं शताब्दी के धर्म सुधार एवं नवजागरण आन्दोलनों तथा 18 वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रान्ति की पृष्ठभूमि के साथ जन्म लेने वाले व्यक्तिवाद में अन्तर्निहित उदारवादी चिन्तनधारा ( व्यक्ति स्वातन्त्र्य , मानविवेक , राज्य की धर्मनिरेपक्ष प्रकृति, लोकतंत्र के आधारभूत तत्त्वों, मान्यताओं एवं मूल्यों, राज्य की निरंकुशता और
What are the main features of liberalism

स्वेच्छाचारिता पर रोक में विश्वास करने तथा व्यक्ति को साध्य और राज्य को साधन एवं कृत्रिम संस्था मानने वाली चिन्तनधारा ) का 19 वीं सदी में चरम विकास हुआ ।


जहाँ प्रारम्भिक उदारवाद व्यक्तिवाद में अन्तर्निहित होकर आर्थिक क्षेत्र में यथेच्छारिता तथा राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में निर्बाध व्यक्ति स्वातन्त्र्य का प्रबल समर्थक था , वहीं आगे चलकर परिस्थितियों के सन्दर्भ में यह अपना रूप बदलता गया । 

इसने हीगेल सदृश आदर्शवादियों के उग्र राष्ट्रवाद तथा आगे चलकर समाजवादी विचारधारा की चुनौतियाँ स्वीकार कर अपने को जीवित रखा । उम्र आदर्शवादियों का सामना कर इसने ग्रीन के आदर्शवादी चिन्तन में अपने को समाहित कर लिया ।

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