युवागृह ( youth home ) क्या है? युवागृह की उत्पत्ति और उद्देश्य
आधुनिककाल में सभ्य समाज की प्रवृत्तियों से प्रभावित होकर भारत के जनजातीय समुदाय में युवागृहों का पतन हो रहा है । आइये सर्वप्रथम हम युवागृहों की अवधारणा से परिचित हो लें जिससे उनके पतन के कारणों पर प्रकाश डाला जाय तथा जिससे परिणामों की विवेचना की जा सके । जनजातियों के सामाजिक संगठन और जीवन की एक महत्वपूर्ण संस्था युवा संगठन, युवागृह या कुमारगृह हैं ।
सभी बालक - बालिकाओं को उनके समाज की संस्कृति तथा अन्य बातों में दीक्षित करने के लिए यह संस्था संसार की सभी जनजातियों में पायी जाती है । भारत में भी प्रायः सभी जनजातियों में इस प्रकार के युवा संगठन पाये जाते हैं और विभिन्न नामों से प्रसिद्ध हैं । आसाम के मीनयाक नागा लोगों में विवाहित लड़कों का यह संगठन ' इलीइची ' कहलाता है ।
उत्तर भारत की जनजातियाँ इसे ' रंगबंग ' मध्य भारत की मुण्डा और हो जनजातियाँ इसे ' नीतिबोरा ' और गोंड जनजाति इसे ' गोटुल ' कहती हैं । युवागृहों में लड़के और लड़कियों का अलग - अलग निवास होता है या अनेक जनजातियों में एक ही साथ निवास करते हैं । युवागृहों के सदस्य भोजन अपने माँ - बाप के घर करते हैं किन्तु सोने के समय युवागृहों में चले आते हैं । प्रत्येक युवागृहों में बीच में आग जला दी जाती है । उसी के चारों ओर युवक - युवतियाँ बैठते हैं ।
आग के पास बैठकर वे अपने कबीले के परम्परात्मक बातों को दुहराते हैं या करते हैं , किस्से - कहानियाँ कहते हैं या अपने कबीले के धर्म को सीखते हैं । युवागृहों का एक प्रबन्धक या मेठ चुना जाता है , वह कोई अनुभवी पुरुष या विधवा स्त्री होती है । युवागृहों के सदस्य दो उपभागों में बँटे होते हैं कुछ कम उम्र वाले और कुछ अधिक उम्र वाले । कम उम्र वाले अधिक उम्र वालों की सहायता करते हैं तथा अधिक उम्र वाले अपने पूर्व अनुभवों को कम उम्र वालों को बतलाते हैं ।
इन युवागृहों को सभ्य समाज के लोग बुरा मानते हैं कि इनमें केवल यौन शिक्षा दी जाती है किन्तु ऐसा न होकर उनमें नृत्य , संगीत कला तथा व्यावहारिक जीवन की अनेकों शिक्षाएं प्रदान की जाती हैं । वास्तव में युवागृहों का उद्देश्य स्वच्छ वातावरण में खेलकूद और आमोद - प्रमोद के बीच सामूहिक जीवन के विषय में शिक्षा प्राप्त करने का होता है ।
इसी कारण युवागृहों का जीवन कुछ प्रथाओं और परम्पराओं पर आधारित होता है जिसका पालन एक अर्थ में अनिवार्य होता है । युवागृह के सदस्य अपने सामूहिक जीवन में भाग लेने की शिक्षा भी युवागृह से ही प्राप्त करते हैं ; जैसे - विवाह आदि के अवसरों पर या गृह निर्माण कार्य में या खेत फसल काटते समय अपने प्रौढ़ जनों को सहायता देते हैं ।
युवागृहों के चलाने का जो खर्च होता है वह भी गाँव के लोग मिलकर उसका वहन करते हैं । युवागृहों को विशेष है ढंग से सजाया या रंगा जाता है उसकी दीवारों पर बाहर और भीतर टोटेम के चिह्नों को चित्रित किया जाता है और उस गृह के चारों ओर काफी विस्तृत स्थान को घेरकर रखते हैं ।
युवागृह की उत्पत्ति
युवागृहों की उत्पत्ति कब और कैसे हुई , इस सम्बन्ध में कुछ भी निश्चित रूप से बतलाया नहीं जा सकता । श्री होडसन आदि कुछ विद्वानों का मत है कि युवागृह सामूहिक गृह होता था । मानव जीवन के प्रारम्भिक स्तर में लोग अलग - अलग परिवारों में नहीं रहते थे बल्कि समूह में रहना ही उनका जीवन था ।
इस कारण उस निवास के अवशेष की परम्परा को बनाये रखना होता है जिससे वे अपनी उस परम्परा का निर्वाह कर सकें । कुछ विद्वानों का मत है कि रात में अपनी बस्ती को हिंसक जानवरों तथा अन्य आक्रमणकारियों से रक्षा करने हेतु सभी युवक - युवतियों को एक स्थान पर एकत्रित किया जाता था । कुछ विद्वान यह मानते हैं कि विवाहित लोग रात में यौन सम्बन्ध स्थापित करते थे - वहीं युवक या युवती इसे देख न लें इस कारण उन्हें युवागृहों में शयन के लिए भेज दिया जाता था ।
आदिम जगत् के इन युवागृहों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि वास्तव में जनजातीय अनुशासन , सामाजिक व धार्मिक कार्य और कर्तव्य तथा पारस्परिक उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में समाज के युवक और युवतियों को शिक्षा देने के उद्देश्य से इन युवागृहों की स्थापना हुई होगी । आधुनिक समाजों की भाँति आदिम समाजों में बच्चों को शिक्षित करने की कोई अन्य संगठित संस्था का नितान्त अभाव था । ऐसी परिस्थिति में युवागृहों के माध्यम से इस उद्देश्य की पूर्ति करने के उद्देश्य से ही इनकी स्थापना की गयी थी ।
युवागृहों का उद्देश्य
कुछ विद्वान यह मानते हैं कि युवागृहों का उद्देश्य अपने सदस्यों के जीवन साथी चुनने की शिक्षा देना या यौन शिक्षा प्रदान करना था । श्री ऐलविन तथा ग्रियर्सन के द्वारा युवागृहों के सम्बन्ध में दिये गये विस्तृत विवरण से पता चलता है कि युवागृह में अधिक उम्र की लड़कियाँ अपने से कम उम्र के लड़कों को प्रायः यौन शिक्षा देती थीं तथा वहीं वे अपने जीवन साथी को भी चुनते थे ।
युवागृह की प्रत्येक बात को गुप्त रखना अपने सदस्य के लिए विशेषतः अनिवार्य इसलिए होता है कि युवागृह में प्रेम और यौन सम्बन्धी क्रिया - कलाप खूब होता है - यद्यपि वास्तविक संसर्ग करने की प्रायः मनाही होती है । एलविन के अनुसार मुड़िया , गोटुल में वयस्क लड़कियाँ अपने से छोटी उम्र के लड़कों को यौन - शिक्षा . प्रदान करती हैं और वहाँ संसर्ग के लिए मुखिया की आज्ञा की आवश्यकता नहीं हुआ करती ।
मुड़िया लोगों में विश्वास है कि गोटुल की रक्षा लिगो नामक देवता करते हैं और इनमें होने वाले संसर्ग के परिणामस्वरूप लड़कियों को गर्भ नहीं रहता क्योंकि गोटुल के अन्दर होने वाले संसर्ग से बच्चा उत्पन्न होना स्वयं उस देवता लिंगों के लिए असम्मानजनक होगा । श्री हट्टन , मजूमदार तथा राय आदि विद्वानों ने भी एलविन के विचारों को पूर्णरूप से स्वीकार नहीं किया है ।
इनका कहना है कि युवागृह जनजातियों में शिक्षा की एक महत्वपूर्ण संस्था है जहाँ पर सदस्यों को जनजातियों के आर्थिक , सामाजिक व धार्मिक जीवन से सम्बन्धित अनेक कार्यों को सिखलाया जाता है । जनजातीय अनुशासन , सामाजिक न्याय तथा पारस्परिक उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में भी यहाँ सदस्यों को शिक्षा दी जाती है । अपराध और दण्ड के विचार , बुरे कार्यों के परिणाम आदि के विषय कथाओं द्वारा सदस्यों को बतलाये जाते हैं । इसलिए इसे केवल प्रेम और यौन सम्बन्धी कार्य - कलापों को मानना उचित न होगा ।
श्रीशरतचन्द्र राय ने युवागृहों के तीन प्रमुख उद्देश्यों को बतलाया है -
( 1 ) युवागृह भोजन इकट्ठा करने के कार्य में एक महत्वपूर्ण आर्थिक संगठन के रूप में कार्य करता है ।
( 2 ) यह युवकों तथा युवतियों को सामाजिक तथा अन्य प्रकार के कर्तव्यों की शिक्षा देने का एक उपयोगी केन्द्र है ।
( 3 ) यह जादू और धर्म से सम्बन्धित संस्कारों को करने व सिखाने का स्थान है जिससे शिकार में सफलता प्राप्त होगी और युवकों के उत्पादन शक्ति में वृद्धि होगी ।
युवागृह आदिम सामाजिक जीवन की एक प्रमुख संस्था है और इसका जनजातीय समुदाय के विकास में अधिक महत्व था । परन्तु खेद का विषय है कि सभ्य समाजों के सम्पर्क में आने के कारण तथा कुछ अंग्रेजी शिक्षा के कुप्रभाव के कारण जनजातियों के मन में इस संस्था के प्रति उत्तरोत्तर उदासीनता यहाँ तक कि घृणा की भावना पनप रही है , जिसके कारण आज दिन - प्रतिदिन इस महत्वपूर्ण संस्था का पतन होता जा रहा है ।
वर्तमान जनजातीय शिक्षा का आधार
अनुसूचित जातियों और जन - जातियों को रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से परीक्षापूर्व प्रशिक्षण केन्द्र ( Pre - examination Training Centres ) और शिक्षण सहित पथ प्रदर्शन केन्द्र ( Coaching cum - guidence Centres ) नामक कार्यक्रम शुरू किये गये हैं । पहले कार्यक्रम के अन्तर्गत 7 केन्द्र इलाहाबाद , दिल्ली , जयपुर , चेन्नई , पटियाला , हैदराबाद और शिलांग हैं जो संघ लोकसेवा आयोग द्वारा चालित अखिल भारतीय सेवा परीक्षाओं के लिए शिक्षण देते हैं ।
उम्मीदवारों को राज्यों की सेवाओं के लिए परीक्षा सम्बन्धी प्रशिक्षण देने के लिए आन्ध्र प्रदेश , बिहार , गुजरात , हरियाणा , कर्नाटक , केरल , मध्य प्रदेश , उड़ीसा , उत्तर प्रदेश , पश्चिमी बंगाल और दिल्ली में प्रशिक्षण केन्द्र खोले गये हैं । इलाहाबाद और तिरुचिरापल्ली में इन्जीनियरिंग सेवाओं की परीक्षाओं के लिए दो अन्य केन्द्र भी खोले गये हैं । चार शिक्षण - सहित पथ - प्रदर्शन केन्द्र - दिल्ली, कानपुर, जबलपुर और चेन्नई के रोजगार कार्यालयों में स्थापित किये गये हैं सम्बन्ध रोजगार कार्यालय के रजिस्टर में दर्ज अनुसूचित जनजाति के आवेदकों के लिए आत्म - विश्वास पैदा करने और साक्षात्कार के तरीकों सम्बन्धी पाठ्यक्रम चलाते हैं ।
उपर्युक्त केन्द्रीय योजनाओं के अतिरिक्त राज्य स्तर पर भी जनजातीय शिक्षा की व्यवस्था की गयी है । राज्य द्वारा क्षेत्र के कार्यक्रमों को खण्ड अनुदान तथा ऋणों के रूप में सहायता दी जाती है । शिक्षा के क्षेत्र में निम्न कार्यक्रम निर्धारित हैं -
( 1 ) मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्तियाँ व वजीफे ,
( 2 ) ट्यूशन तथा परीक्षा शुल्क में छूट ,
( 3 ) शिक्षा सम्बन्धी उपकरणों की व्यवस्था ,
( 4 ) दोपहर के भोजन की व्यवस्था ,
( 5 ) आश्रय स्कूलों की स्थापना ,
( 6 ) स्कूल भवनों तथा छात्रावासों के निर्माण के लिए अनुदान
इस प्रकार भारतीय समाज कल्याण बोर्ड ( Indian Social Welfare Board ) के प्रयासों तथा राज्य सरकारों के प्रयास से जनजातीय शिक्षा केन्द्रों को उन्नत बनाने का प्रयास किया जा रहा है । वर्तमानकाल में उनके लिए आरक्षण की जो सुविधा प्रदान की गयी है इससे उनके विकास के मार्ग प्रशस्त हो रहे हैं ।
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