समूह के सपने, समस्याएँ एवं आकांक्षाएँ DREAMS, PROBLEMS AND ASPIRATIONS OF A GROUP
समूह का स्वरूप ( NATURE OF GROUP )
जब दो या अधिक लोग आपस में अन्तक्रिया करते हैं तो हम कहते हैं कि समूह अस्तित्व में आ गया है। परस्पर अन्त क्रिया करने और सामाजिक सम्बन्ध बनाने के बहुत से कारण है। उदाहरण के लिए, विद्यार्थी कक्षा के बाहर अध्ययन में एक - दूसरे के सहयोग हेतु परस्पर अन्तकिया करते है ।
दूसरे परस्पर अन्तक्रिया कर सकते हैं , क्योंकि ये एक स्थान पर रहते हैं और उनका समान लक्ष्य होता है । वे साथ - साथ खेलना चाह सकते है और अपनी मंत्री की आवश्यकता पूरी कर सकती है । कुछ लोग अचानक मिलते हैं, किन्तु परस्पर अन्त किया करते रहते हैं , क्योंकि उनको एक - दूसरे का साथ संतोषजनक लगता है ।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्रत्येक समूह एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करता है । लक्ष्य जितना अधिक स्पष्ट होता है , समूह के सदस्यों में परस्पर अन्तक्रिया और सहयोग उतना ही अधिक होता है । समूह के सदस्यों के मध्य सम्बन्ध कुछ समय ( मास या वर्ष ) के लिए स्थायी रहते हैं ।
समूह की एक रचना होती है और लोग सोचते हैं कि ये समूह का एक अंग है या उनमें अपनेपन की अनुभूति होती है । भौतिक स्तर पर किसी उद्देश्य के लिए सामूहिकता को समूह कह सकते हैं ।
पाँचवी कक्षा के बच्चों का एक समूह होता है, बैंक अधिकारियों की एक समिति एक समूह है, एक ओर से बड़े लट्ठे को काटने वाले दो बढ़ई एक समूह का निर्माण करते हैं, फुटबाल खेलने वाली एक टीम भी समूह है आदि-आदि। इन सारे समूहों का अस्तित्व केवल भौतिक स्तर पर होता है और ये सीधा आमने - सामने की परस्पर अन्त क्रिया करते हैं ।
इन समूहों में समूह के सदस्यों के मध्य सीधी और तुरन्त बातचीत सम्भव होती है और ऐसा सामान्यतः होता रहता है । वे लोग जिनमें कतिपय समान विशेषताएँ होती हैं , वे सभी समूह बनाते हैं । एक समूह की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता परस्पर निर्भरता है । यह व्यवहार परिणामों और कार्यों से सम्बन्धित हो सकती है । आइए हम परस्पर निर्भरता के तीन प्रकारों की जाँच करें :
1. व्यवहार की परस्पर निर्भरता का संकेत इस तथ्य की ओर है कि एक सदस्य का व्यवहार दूसरे सदस्य के व्यवहार को उभारता है जो परिणामस्वरूप सम्पूर्ण समूह के कार्य करने को प्रभावित करता है ।
2. परिणाम की परस्पर निर्भरता का संकेत इस तथ्य की ओर है कि प्रत्येक व्यक्ति की उपलब्धि ( पुरस्कार की प्राप्ति ) केवल उसी के व्यवहार का परिणाम नहीं है , अपितु समूह के दूसरे सदस्यों के व्यवहार पर भी निर्भर करता है । उदाहरण के लिए , आप सड़क पर चल रहे हैं , आप तब तक सुरक्षित है जब तक कोई दूसरा व्यक्ति सामने या पीछे से नहीं टकरा जाता । इसका दूसरा अर्थ भाग्य की सहभागिता है , तात्पर्य किसी घटना का परिणाम समूह के प्रत्येक सदस्य को कम या अधि क प्रभावित करता है ।
3. कार्य परस्पर निर्भरता का संकेत इस तथ्य की ओर है कि किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समूह के सदस्यों को अपनी क्रियायों में सामंजस्य लाने की आवश्यकता होती है । उदाहरण के लिए , फुटबाल या क्रिकेट खेलने के लिए खेल में जीत के लिए विभिन्न खिलाड़ियों की क्रियाओं में सामंजस्य नितांत आवश्यक है । वे आज्ञा - पालन के सिद्धान्त के आधार पर कार्य करते हैं ।
समूह कैसे कार्य करता है? ( HOW TO WORKS GROUP )
जब भी एक समूह बनता है या संगठित होता है । वह कतिपय मानदण्डों के आधार पर कार्य करता है । समूह के सदस्य भी विभिन्न भूमिकाएँ अदा करते हैं । वे परिस्थिति में भी भिन्न होते हैं । अंततः एक समूह उच्च कोटि से समन्वित हो सकता है और सदस्य गण संशक्ति में सहमाग के सकते हैं या नहीं । अच्छा होगा यदि हम समूह के कार्यों के विभिन्न आयामों के बारे में स्पष्ट हो ।
1. भूमिकाएँ ( Role )– एक समूह में विभिन्न सदस्यों से विभिन्न भूमिकाएँ अदा करने की अपेक्षा होती है । आप को याद होगा कि अनेक समितियों में हम देखते हैं कि लोग अध्यक्ष , मंत्री कोषाध्यक्ष आदि की भूमिका में रहते हैं । ये सभी विभिन्न भूमिकाएँ अदा करते हैं जो समूह के लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
2. मानदण्ड ( Criteria )- प्रत्येक समूह कतिपय नियमों के अनुसार कार्य करता है । ये नियम ही मानदण्ड बनाते हैं । वे सुस्पष्ट या अव्यक्त हो सकते हैं और समूह के सदस्यों के व्यवहार को चालित करते हैं । यह अपेक्षा की जाती है कि सदस्य मानदण्डों को स्वीकार करे।
3. प्रस्थिति ( Situation )- विभिन्न भूमिकाओं के साथ विशेष प्रकार का दर्जा या समूह में स्थिति होती है । यह स्थिति दिए गए कार्य की प्रकृति और निर्णय लेने को प्रभावित करने वाली शक्ति से सम्बन्धित होती है । इस प्रकार समूह में स्थिति भिन्नता दृष्टिगोचर होती है।
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