ब्रिटिश एवं अमेरिकी संविधान के बीच अन्तर - Questionpur

ब्रिटिश एवं अमेरिकी संविधान के बीच अन्तर | Difference between British and American Constitution

ऑग और जिंग का कहना है कि " सभी शासन में पर्याप्त सिद्धान्त एवं व्यवहार में भेद पाया जाता है , लेकिन जिस प्रकार यह भेद ब्रिटिश शासन व्यवस्था का ताना-बाना बन गया है। वैसे अन्यत्र कहीं नहीं है । " तात्पर्य यह है कि ब्रिटिश संविधान का एक प्रमुख लक्षण उसके अन्तर्गत सिद्धान्त और व्यवहार मे अन्तर है ।


इस अन्तर के दो कारण हैं - वैधानिक विकास की क्रमिकता और स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाने के बाद भी परम्परागत स्वरूप को बनाये रखने की प्रवृत्ति संविधान की इस विशेषता को एक आलोचना ने इन शब्दों में प्रकट किया है, " ब्रिटिश संविधान में कोई बात जैसी दिखाई देती है वैसी नहीं है और जैसी है वैसी दिखाई नहीं देती।

ब्रिटिश एवं अमेरिकी संविधान के बीच अन्तर | Difference between British and American Constitution

" वेबहाट संविधान ने इन दो रूपों को एक दूसरे के प्रतिकूल बतलाया है उसके लिखित रूप में सजीवता नहीं है जो उसके व्यावहारिक रूप में है । और उसके व्यावहारिक रूप में वह शालीनता नहीं है जो उसके लिखित सिद्धान्तों में हैं । संविधान की इस विशेषता को उदाहरण द्वारा समझना अधिक उचित होगा ।


सिद्धान्तः

इंग्लैण्ड का शासन सम्राट में निहित है मन्त्री उसके मंत्री होते हैं और वे उसे प्रसाद - पर्यन्त अपने पद पर आसीन रह सकते हैं । वह संसद को आहूत करता है । अथवा उसका विघटन और सत्रावसान करता है । संसद द्वारा निर्मित विधियाँ सम्राट की स्वीकृति के बिना प्रवर्तित नहीं की जा सकती । राज्य के सैनिक और असैनिक अधिकारियों को वही नियुक्त एवं अपदस्थ करता है । सम्राट की शांति युद्ध काल में इंग्लैण्ड की सारी सेनाओं का प्रधान सेनापति होता है । युद्ध की घोषणा , शांति एवं सन्धियाँ उसके नाम से होती है ।


इस प्रकार सम्राट की शक्ति सिद्धान्तः असीम, अबाध एवं निरंकुश है। लेकिन इसका व्यावहारिक रूप कुछ और ही है । सम्राट वस्तुतः इन शक्तियों का उपयोग नहीं करता है । 1688 ई ० को ' गौरवपूर्ण क्रान्ति ' ने यह निश्चय कर दिया कि अन्ततोगत्वा सम्राट को संसद के समक्ष झुकना चाहिए । संसद और मन्त्रियों द्वारा उसका प्रयोग होने लगा । सम्राट प्रतीकमात्र रह गया ।


निष्कर्षतः

सम्राट की निरंकुशता सिद्धान्त रूप में बनी रही, लेकिन व्यावहारिक रूप में वह संसद या मन्त्रिमण्डल के हाथ की कठपुतली है बेजहॉट, ठीक ही लिखता है कि " यदि संसद के दोनों सदन उसकी मृत्यु आदेश को पारित कर उसके पास प्रेषित करे तो उस पर भी हस्ताक्षर करना ही पड़ेगा। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि शक्ति के इस सैद्धान्तिक और व्यवहारिक अन्तर ने सरकार के रूप पर गहरा प्रभाव डाला ।


सम्राट की शक्ति मन्त्रिमण्डल के हाथ में चली गयी है लेकिन मन्त्रिमण्डल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी हैं और लोकसभा जनता की इच्छा पर आधारित है । अतः अन्तिम शक्ति जनता के हाथ में है , शासन स्पष्टतः जनता की सहमति का शासन है। आंग के शब्दों में " ग्रेट ब्रिटेन का सन सिद्धान्तः निरंकुश स्वरूप में सीमित राजतन्त्र और व्यवहार में लोकतन्त्रात्मक गणतन्त्र है ।


ब्रिटिश संविधान एक विकसित संविधान है। उसका निर्माण किसी निश्चित तिथि में, किसी निश्चित व्यक्ति समूह द्वारा नहीं हुआ, बल्कि वह क्रमिक विकास का परिणाम है । ब्रिटिश संविधान में विकसित स्वरूप की एक विशेषता यह है कि विकास का क्रम अविच्छिन्न पर अलक्षित रहा फ्रांस की तरह किसी भयंकर सामाजिक क्रान्ति अथवा रक्तपात के कारण सामाजिक परिवर्तन नहीं हुए हैं ।


समय तथा परिस्थितियों के अनुसार शनैः शनैः इसका रूप परिवर्तित होता रहा है । यद्यपि अनेक प्राचीन संस्थाएँ अभी भी विद्यमान हैं तथा उनका रूप आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहा है । आज भी ब्रिटेन में राजतन्त्र कायम है, परन्तु वह निरंकुश राजतन्त्र नहीं प्रत्युत लोकतन्त्र है। किसी आलोचक का कथन पूर्णतः यथार्थ है कि ब्रिटिश संविधान का अतीत वर्तमान में प्रवाहित हो रहा है और वर्तमान भविष्य में प्रवाहित होता।


" ऑग ने कहा है कि " ब्रिटिश संविधान एक सचेष्ट जीवधारी के समान है जिसमें निरंतर तथा स्थायी विकास की क्षमता है । " संविधान के दो वर्ग किये जाते हैं - लिखित और अलिखित संविधान। लिखित संविधान के अन्तर्गत राज्य - जीवन के मूल सिद्धान्त नियम, अधिकार तथा कर्तव्य, सरकार के संगठन, कार्य आदि लिपिबद्ध रहते हैं, जबकि अलिखित संविधान रीति - रिवाजों, जनश्रुतियों, परम्परागत व्यवहारों और पूर्व दृष्टांतों पर आधारित होता है ।


ब्रिटिश संविधान को बहुत से विद्वान अलिखित वर्ग में रहते हैं , क्योंकि वह किसी भी अभिलेख में पूर्णतः लिपिबद्ध नहीं है, वह क्रमिक विकास का परिणाम है । वह विवेक तथा संयोग की सन्तान है अधिकार - पथ, संविधियां , पूर्ण - दृष्टान्त तथा अभिसमय उसके स्रोत हैं । लेकिन ब्रिटिश संविधान की यह व्याख्या भ्रमपूर्ण तथा मिथ्या है। कोई भी संविधान पूर्णतः लिखित या पूर्णतः अलिखित नहीं होता ब्रिटिश संविधान के कुछ महत्वपूर्ण अंश लिखित रूप में हैं । परिवर्तनशीलता के आधार पर संविधान की दो श्रेणियाँ की गई हैं परिवर्तनशील संविधान और दुष्परिवर्तनशील संविधान ।


दुषरवर्तनशील संविधान के अन्तर्गत संविधान में संशोधन लाने के लिए विशेष प्रक्रिया को अपनाया जाता है । जबकि सुपरिवर्तनशील संविधान में साधारण प्रक्रिया से संशोधन लाया जाता है ; अर्थात् साधारण कानून और संवैधानिक कानून में कोई अन्तर नहीं किया जाता है । ब्रिटिश संविधान का सुपरिवर्तनशील संविधान की श्रेणी में रखा जाता है ।


इसके मुख्यतः दो कारण हैं। प्रथमतः साधारण विधि और संवैधानिक विधि का निर्माण और संशोधन एक ही प्रक्रिया से होता है । द्वितीयतः ब्रिटिश संविधान परम्पराओं पर आधारित होता है जो सदा गतिशील है । संघात्मक सरकार केन्द्र तथा इकाइयों के वापसी पारस्परिक समझौते के फलस्वरूप उत्पन्न एक ऐसी सरकार है जिसमें संविधान की सर्वोपरिता शक्तियों के विभाजन, स्वतन्त्र न्यायपालिका और संविधान का दुष्परिवर्तनशील होना आवश्यक माना जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में ये सभी गुण पाये जाते हैं ।


अतः संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान संघात्मक है । यहाँ का संविधान विश्व के लिखित और आधुनिक संविधानों में सबसे आगे है । यह संसार के उन माने हुए संविधानों में अपना प्रथम स्थान रखता है जिनका विकास कुछ महत्वपूर्ण मौलिक सिद्धान्तों के आधार पर हुआ है । इस संविधान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अपने संक्षिप्त हुए और संशोधनों को स्वीकार करते हुए वास्तविक स्वरूप में यह संविधान आज भी वही है जो कि उपबन्धों की शब्दावली में उपबन्धित है ।


यहां तक रूप की सीमा में फाइनर ने तो अमेरिका के संविधान की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “ संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान चेतनावस्था में और स्पष्ट रूप से शक्तियों के विभाजन के सिद्धान्त पर एक निबन्ध के रूप में लिखा गया था , परन्तु आज यह विश्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण राज्य व्यवस्था है जो कि उस सिद्धान्त का अनुसरण करती है ।


" सर्वप्रथम हम यह देखेंगे कि संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान संघात्मक संविधान होने की विशेषतायें कहाँ तक पाई जाती हैं संघात्मक व्यवस्था में संविधान की सर्वोपरिता का आशय ऐसी व्यवस्था से है जिसमें शासन के सभी अंग संविधान के नियंत्रण में रहकर कार्य करें । संविधान में जिन बातों का प्रावधान है , वे काम उसी प्रकार होंगे तथा जिनका प्रावधान नहीं है , वे नहीं होंगे । इस प्रकार संघात्मक व्यवस्था में सरकार की स्वेच्छाचारिता को संविधान द्वारा नियन्त्रित तथा सीमित कर दिया जाता है ।


अतः इस प्रकार की व्यवस्था में कार्यपालिका अथवा व्यवस्थापिका की प्रधानता न होकर संविधान की सर्वोच्चता होती है । जो केन्द्र तथा राज्यों के विधान - मण्डलों की शक्तियों पर नियन्त्रण रखता है । अमेरिका के संविधान की यह मुख्य विशेषता है कि यहाँ संविधान सर्वोच्च है । संविधान के छठे - अनुच्छेद में यह घोषित किया गया है कि यह संविधान संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च कानून होगा और प्रत्येक राज्य का न्यायाधीश इससे बाध्य होगा । संघीय सरकार , राज्यों के संविधान तथा उनकी सरकार और स्थानीय सरकार अर्थात् अमेरिकी प्रशासन प्रणाली की प्रत्येक संस्था में संविधान ही सर्वोपरि है ।


संघात्मक संविधान के प्रमुख गुणों में संघीय सरकार तथा संघ में सम्मिलित होने वाले राज्यों के मध्य अधिकार अथवा शक्तियों का विभाजन है । एकाएक शासन प्रणाली में केन्द्रीय सरकार सर्वशक्ति - सम्पन्न होती है । परन्तु संघात्मक व्यवस्था में राज्य या इकाइयाँ केन्द्र से एक समझौते के रूप में बंधी रहती है और एक निश्चित सीमा तक उनका स्वतन्त्र अस्तित्व भी बना रहता है । संघात्मक होने के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान केन्द्रीय सरकार तथा राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन करता है । दोनों एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकते ।


संक्षेप में अमेरिका में शक्ति - विभाजन निम्न प्रकार से किया गया है- 

( क ) संघ सरकार के अधिकार निश्चित कर दिये गये हैं । वे अवशिष्ट अधिकार जिसे राज्य वर्जित नहीं किये गये हैं , राज्यों को दिये गये हैं । 


( ख ) परराष्ट्र सम्बन्ध संचालन वैदेशिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का नियंत्रण राष्ट्रीय सुरक्षा नये राज्यों को संघ में सम्मिलित करना डाक मुद्रा इत्यादि कुछ ऐसे अधिकार है जो केन्द्र सरकार को सौंपे गये हैं । 


( ग ) कुछ अधिकार ऐसे हैं जो दोनों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं । उदाहरणार्थ निर्वाचन का अधिकार , कर लगाना , सार्वजनिक ऋण, नागरिकता तथा न्यायालयों की स्थापना आदि। इन अधिकारों को समवर्ती अधिकार कहते हैं।


( घ ) कुछ शक्तियाँ ऐसी हैं जो केवल राज्यों को दी गई हैं वे हैं - आन्तरिक । वाणिज्य को नियन्त्रित करना, जीवन एवं सम्पत्ति की रक्षा करना, निर्वाचनों की व्यवस्था एवं संचालन करना, राज्य के संविधान व प्रशासन में संशोधन करना आदि ।


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