परिवर्तनशील संविधान किसे कहते हैं? उसके गुण दोषों की विधि विवेचना कीजिये ।
राजनीति विज्ञान के जनक अरस्तू ने संविधान को राज्य द्वारा अपने लिये अपनाई गई जीवन पद्धति कहा है । अरस्तू का यह कथन वास्तव में एक तथ्यपरक कथन है क्योंकि राज्य की जीवन पद्धति उसके संविधान में वर्णित नियमों के द्वारा ही निर्धारित होती है । इन नियमों के आधार पर ही राज्य का आधारभूत ढांचा खड़ा किया जाता है । आधुनिक काल में भी शासन का वैज्ञानिक गठन करके उसके अंगों के मध्य शक्तियों एवं कर्त्तव्यों का उचित एवं निश्चित विभाजन करने तथा राजनीतिक संगठन की व्यवस्था का स्थान निर्धारित करने के लिये संविधान की आवश्यकता होती है ।
संविधानों का वर्गीकरण ( Classification of Constitutions )
परम्परागत आधार पर संविधान के दो भेद किये जाते थे — लिखित एवं अलिखित लेकिन संविधानों में संशोधन को आधार मानकर एक और वर्गीकरण किया गया जो परिवर्तनशील तथा अपरिवर्तनशील या लचीला एवं कठोर वर्गीकरण का कहलाया । संविधान संशोधन की प्रणाली को आधार मानकर यह वर्गीकरण किया गया । है । लार्ड ब्राइस ने वर्गीकरण का नाम कठोर ( Rigid ) तथा लचीला ( Flexible ) रखा है । यह वर्गीकरण अधिक वैज्ञानिक तथा तर्कयुक्त प्रतीत होता है ।
परिवर्तनशील संविधान ( Changeable Constitution )
परिवर्तनशील संविधान वह संविधान है जिसमें संविधान में परिवर्तनशील या संशोधन की प्रक्रिया साधारण होती है । साधारण कानूनों की तरह की संवैधानिक कानूनों में परिवर्तन हो जाता है । राज्य की व्यवस्थापिका जिस प्रकार साधारण कानूनों में परिवर्तन करते हैं । उसी प्रकार से संवैधानिक कानूनों में भी ।
इंग्लैण्ड का संविधान इस प्रकार का उदाहरण है । वहाँ संसद किसी भी संवैधानिक कानून में साधारण कानून की तरह परिवर्तन या संशोधन कर सकती है । जिन देशों के संविधानों में परिवर्तन की साधारण सरल प्रणाली है वह परिवर्तनशील संविधान तथा जिनमें परिवर्तन की दुरूह या जटिल प्रणाली है । वह कठोर संविधान होते हैं ।
परिवर्तनशील संविधान के गुण ( Qualities of a Changeable Constitution )
( 1 ) परिस्थितियों के अनुकूल
परिवर्तनशील संविधान में संशोधन की विधि सरल होने के कारण इसे बदलती हुई हर परिस्थिति में बदला जा सकता है । राजनैतिक विकास के साथ - साथ संविधान भी विकसित होता जाता है । अतः इस प्रकार संविधान परिस्थितियों के अनुकूल होता है।
( 2 ) जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप
ऐसा संविधान समाज की आर्थिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है, अतः जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप होता है तथा जनता की इच्छानुसार इसमें संशोधन हो जाता है।
( 3 ) संकटकाल में उपयोगी
ऐसे संविधान संकटकाल में अधिक उपयोगी सिद्ध होता है । लार्ड ब्राइस ने लिखा है कि " लचीले संविधान संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए बिना उसके ढाँचे को तोड़े हुए आसानी से फैलाये अथवा मरोड़े जा सकते हैं तथा संकट समाप्ति पर फिर वे अपने पुराने रूप में उस पेड़ की भाँति वापस चले जाते हैं जिसकी बाहर की शाखाओं को गाड़ी निकालने के ले एक ओर खींच दिया गया हो ।
( 4 ) क्रान्ति की सम्भावना कम
इस प्रकार के संविधान लागू रहने से कान्ति की सम्भावना कम हो जाती है क्योंकि जनता में संविधान के प्रति असन्तोष नहीं रहता है । क्रान्ति सदैव ही असन्तोष से पैदा होती है । यही कारण है कि इंग्लैण्ड में कोई क्रान्ति नहीं हुई तथा फ्रांस में गत दो शताब्दियों में चार बार क्रान्ति हो चुकी है।
( 5 ) विकसित संविधान
परिवर्तनशील संविधान राजनैतिक विकास के साथ-साथ विकसित होते रहते हैं। कूले के शब्दों में “ लोकप्रशासन के लिए जितने भी संविधान बने हैं उनमें सबसे उत्तर वह है जो राष्ट्र के साथ-साथ विकसित होता है। "
परिवर्तनशील संविधान के दोष ( Faults of Changing Constitution )
परिवर्तनशील संविधान के निम्नलिखित दोष हैं -
( 1 ) अस्थायित्व
परिवर्तनशील संविधानों में स्थायित्व का अभाव होता ऐसा संविधान सदैव ही परिवर्तनशील की अवस्था में रहता है । इनके संविधानों में व्यवस्थापिका आये दिन मनमाने परिवर्तन करती रहती है तथा संविधान व्यवस्थापिका के हाथों का खिलौना रहता है । अस्तु नित्य प्रति के परिवर्तनों के कारण संवैधानिक कायों में अस्तव्यस्तता रहती है ।
( 2 ) सत्ता का दुरुपयोग
संविधान की प्रकृति परिवर्तनशील होने के कारण शासक दल अपनी सत्ता का नाजायज फायदा उठाकर संविधान में परिवर्तन करती रहती है तथा जनता के अधिकारों पर आघात होता रहात है । जब दो दल शासन में आया , उसने अपनी सुविधानुसार संविधान में परिवर्तन कर दिया । अतः इस बात की बराबर सम्भावना बनी रहती है कि कहीं शासक दल संविधान का दुरुपयोग अपने हितों की पूर्ति के लिए न करने लगे ।
( 3 ) अस्पष्टता
परिवर्तनशील संविधान अस्पष्ट होता है । हर व्यक्ति उसक मनमाना अर्थ लगाता है । अस्पष्टता होने के कारण यह अनिश्चित भी होता है अतः उपयोगी नहीं है । इसी कारण आज विश्व का प्रत्येक देश अपरिवर्तनशील संविधान के महत्व देता है ।
( 4 ) संघ के लिए अनुपयोगी
परिवर्तनशील संविधान संघीय व्यवस्था के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि संघीय व्यवस्था में केन्द्र तथा इकाई राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा होता है । जिसका संविधान इस प्रकार अनुपयोगी संघात्मक पद्धति वाले देशों में कहीं भी नहीं अपनाये गये ।
( 5 ) संवैधानिक पवित्रता का अभाव
संविधान एक पवित्र लेख है । इसमें आये दिन परिवर्तन होने से इसकी पवित्रता की गरिमा समाप्त हो जाती है ।
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