लोकतांत्रिक जीवन के लिए शिक्षा के उद्देश्य ( AIMS OF EDUCATION FOR DEMOCRATIC LIFE )
लोकतन्त्र की अवधारणा (CONCEPT OF DEMOCRACY)
लोकतन्त्र, जनतन्त्र अथवा प्रजातन्त्र का अर्थ जनता का शासन है। लोकतन्त्र या जनतन्त्र या प्रजातन्त्र अंग्रेजी शब्द 'डेमोक्रेसी' (Democracy) का हिन्दी अनुवाद है। 'डेमोक्रेसी' शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों 'डेमोस' (Demos) तथा 'क्रेटोस' या 'क्रेशिया' (Kratos or Kratia) से बना है। 'डेमोस' का अर्थ है- जनता (People) और 'क्रेटोस' या 'क्रेशिया' का अर्थ है- शक्ति (Power)। इस प्रकार 'डेमोक्रेसी' का अर्थ है- जनता की शक्ति।
अत: लोकतन्त्र से तात्पर्य उस शासन प्रणाली से है जिसमें शासन-शक्ति एक व्यक्ति या वर्ग विशेष में निहित न रहकर जनसाधारण में निहित होती है। वर्तमान में लोकतन्त्र को मात्र शासन-तन्त्र के रूप में नहीं देखा जाता है वरन् इसको विभिन्न रूपों- शासन व्यवस्था, समाज व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था, जीवन दर्शन आदि में देखा जाता है।
1. लोकतन्त्र शासन व्यवस्था के रूप में (Democracy as a form of Government) -
1. लोकतन्त्रीय शासन में जनता का प्रतिनिधित्व होता है। इसका आधार दैवी न होकर लोकिक होता है।
2. लोकतन्त्र जनता के सार्वजनिक हितों का संरक्षण करता है।
3. लोकतन्त्र में सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था को और अधिक स्पष्ट करने के लिए नीचे कुछ परिभाषाएँ दी जा रही हैं-
अब्राहम लिंकन (Abraham Lincoln)-"लोकतन्त्र शासन का वह रूप है जिसमें शासन जनता का, जनता के लिए तथा जनता के द्वारा हो।"
सीले (Seeley)- "लोकतन्त्रीय शासन वह है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का भाग होता है।"
ब्राइस (Lord Bryce)- "लोकतन्त्र शासन का वह रूप है जिसमें राज्य की शासन-शक्ति किसी वर्ग विशेष अथवा वर्गों में निहित न होकर सम्पूर्ण समाज के सदस्यों में निहित होती है।”
डायसी -" लोकतन्त्र शासन का वह रूप है जिसमें शासक समुदाय सम्पूर्ण राष्ट्र का अपेक्षाकृत एक बड़ा भाग हो।"
"Democracy is a form of government in which governing body is comparatively a large fraction of the entire nation." -Dicey
2. लोकतंत्र एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में (Democracy as a Social Order)-
इस दृष्टि से लोकतन्त्र एक समाज है। ऐसे लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के भेदभाव बिना सामाजिक जीवन में समानता की स्थिति प्राप्त होती है।
हर्नशा (Hearnshaw)-"लोकतन्त्रीय समाज वह है जिसमें समानता के विचार की प्रबलता हो तथा उसमें समानता का सिद्धान्त प्रचलित हो।"
डायसी (Dicey)-" लोकतन्त्र वह समाज है जिसमें अधिकारों की साधारण समानता तथा स्थिति की, विचारों की, भावनाओं की तथा आदर्शों की समानता पायी जाती हो।"
वुल्फ-" एक लोकतन्त्रीय समाज स्वतन्त्र, समान, सक्रिय तथा बुद्धिमान नागरिकों का वह समाज है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का मार्ग स्वयं निर्धारित करता है और चाहता है कि दूसरे व्यक्ति भी अपने जीवन का मार्ग स्वयं निर्धारित करें।"
"A democratic society is a society of free, equal, active and intelligent citizens, each man choosing his way of life for himself and willing that others should choose theirs." -Wolff
3. लोकतन्त्र आर्थिक व्यवस्था के रूप में (Democracy as Economic Order) -
आर्थिक लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को जीवनयापन के लिए न्यूनतम आर्थिक उपलब्धियों पर बल दिया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें बेरोजगारी के उन्मूलन, उचित वेतन, कार्य एवं अवकाश के अधिकार पर बल दिया जाता है। साथ ही इसमें राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए आर्थिक विषमता को दूर करने पर बल दिया जाता है। आर्थिक लोकतन्त्र इस विश्वास पर आधारित होता है कि आर्थिक समानता या न्याय के अभाव में राजनीतिक लोकतन्त्र कोरी कल्पना है।
4. लोकतन्त्र जीवन दर्शन के रूप में (Democracy as a Philosophy of Life) -
लोकतन्त्र जीवन का एक दृष्टिकोण है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने ढंग से रहने, सोचने आदि की स्वतन्त्रता रहती है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को संस्कृति की छूट के साथ मूल अधिकार भी प्राप्त होते हैं। राधाकृष्णन आयोग के प्रतिवेदन के अनुसार, "लोकतन्त्र जीवन का एक ढंग है, न कि मात्र राजनीतिक व्यवस्था। वह प्रजाति, धर्म, लिंग, व्यवसाय या आर्थिक स्थिति के भेदभाव के बिना समाज के सभी नागरिकों को समान स्वतन्त्रता तथा अधिकार प्रदान करने के सिद्धान्त पर आधारित है।"
लोकतंत्र के मूल सिद्धान्त (BASIC PRINCIPLES OF DEMOCRACY)
लोकतन्त्र एक 'जीवन-प्रयोग' है। इसको तभी सफल बनाया जा सकता है जब इसके मूल सिद्धान्तों को व्यवहार में लाया जाये। स्वत: प्रश्न उठता है कि लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्त क्या हैं ? इसके उत्तर में हम निम्नांकित सिद्धान्तों को प्रस्तुत कर रहे हैं-
1. स्वतन्त्रता (Freedom) -
स्वतन्त्रता लोकतन्त्र की आधारशिला है। इसके अभाव में मानव अपनी शक्तियों का विकास नहीं कर सकता है। लोकतन्त्र में इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्रदान की जाती हैं- विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता सोचने, लिखने, वाद- विवाद करने, समालोचना करने आदि की स्वतन्त्रता।
भारतीय लोकतन्त्र में भी नागरिकों को विभिन्न स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गई हैं, उदाहरणार्थ- वाक् स्वतन्त्रता, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, शान्तिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता या संघ बनाने की स्वतन्त्रता, भारत राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतन्त्रता, भारत राज्य क्षेत्र के किसी भाग में निवास करने तथा बसने की स्वतन्त्रता, कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने की स्वतन्त्रता। व्यक्ति इन स्वतन्त्रताओं का उपयोग तभी सफलतापूर्वक कर सकता है जब वह दूसरे व्यक्तियों के अधिकारों को अपने ही अधिकारों के सामान मानेगा।
2. समानता (Equality) -
समानता लोकतन्त्र का दूसरा मूल सिद्धान्त है। लोकतन्त्र में किसी प्रकार के भेदभाव के लिये व्यवस्था नहीं होती। इसमें सभी व्यक्ति समान होते हैं। चाहे वे किसी जाति, प्रजाति, लिंग, धर्म तथा वर्ग के क्यों न हों। इसमें वैयक्तिक विकास के लिये समान अवसर प्रदान करने पर बल दिया जाता है। समान अवसर का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी रुच्चियों, योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुकूल विकास की पूर्ण सुविधाएँ प्राप्त हों।
भारतीय लोकतन्त्र में समता के अधिकार का स्वरूप निषेधात्मक है। यह अधिकार उन सामाजिक तथा नागरिक निर्योग्यताओं को दूर करना चाहता है जिनसे भारतीय सर्वसाधारण बहुत दिनों से अपार कष्ट सह रहे हैं। भारतीय लोकतन्त्र की मान्यता है कि समान स्थिति वाले लोगों के समाज में ही लोकतन्त्र सफल हो सकता है। अतः भारतीय संविधान में निम्नांकित प्रावधान किये गये हैं-
1. विधि के समक्ष सभी समान
2. किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं किया जायेगा।
3. राज्याधीन नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में समस्त नागरिकों के लिये अवसर की समानता होगी।
3. भ्रातृत्व (Fraternity) -
लोकतन्त्र सामाजिक सम्बन्धों की एक व्यवस्था है जो व्यक्ति तथा सामूहिक हित की उन्नति के लिये कार्य करती है। व्यक्ति तथा समूह दोनों का हित पारस्परिकता पर निर्भर करता है। उपयुक्त सामाजिक सम्बन्धों के लिये भ्रातृत्व भाव अत्यन्त आवश्यक है। यही भाव लोकतन्त्रीय समाज की रचना करता है। लोकतन्त्र वह समाज है जिसमें सामान्य नारी तथा पुरुष अपनी पूर्णता की प्राप्ति के लिये मिल-जुलकर कार्य करते हैं। साथ ही वे एक-दूसरे को सहयोग प्रदान करते हैं।
4. न्याय (Justice) -
लोकतन्त्र में न्याय की दृष्टि से अमीर व गरीब, निर्बल व शक्तिशाली आदि सभी समान हैं। उनके साथ किसी प्रकार का कानूनी भेदभाव नहीं किया जायेगा। भारतीय लोकतन्त्र में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक न्याय की स्थापना पर बल दिया गया है। इसके लिये संविधान के चौथे भाग में अर्थात् नीति निदेशक सिद्धान्तों में प्रावधान किये गये हैं। अनुबन्ध 38 उपबन्धित करता है कि "राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक कार्यसाधक रूप में स्थापना तथा संरक्षण करके लोककल्याण की उन्नति का प्रयास करेगा।”
लोकतन्त्र के मूल्य (VALUES OF DEMOCRACY)
लोकतन्त्रीय पद्धति को अपनाने वाले व्यक्तियों के जीवन-दर्शन के कुछ मूल्य होते हैं जिनक पालन करना लोकतन्त्र की सफलता के लिये आवश्यक है। ये मूल्य अग्रलिखित हैं-
1. सहनशीलता (Tolerance) -
लोकतन्त्र का मूल मंत्र है-'जियो और जीने दो' (Live and le live)। इस मंत्र के पालन के लिये यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति को सहनशील होना चाहिये। यह तभी सम्भव है कि जब हम दूसरे व्यक्तियों के उचित विचारों को स्वीकार करना सीखें। हमें अपने विचारों को दूसरे पर थोपना नहीं चाहिये। व्यक्ति को कभी भी यह नहीं सोचना चाहिये कि मेरा विचार या कार्य सही है और दूसरों के विचार या कार्य गलत हैं।
2. व्यक्ति का आदर (Respect of Individual) -
लोकतन्त्र इस आस्था पर आधारित है कि मानव व्यक्तित्व अनन्त मूल्य का है। लोकतन्त्र में व्यक्ति की गरिमा को महत्ता प्रदान की गई है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्तियों को सम्मान एवं आदर प्रदान करना चाहिये। साथ ही उसे दूसो व्यक्तियों के विकास में बाधा नहीं डालनी चाहिये वरन् उनके विकास में सहयोग प्रदान करना चाहिये।
3. परिवर्तन में आस्था (Faith in Change) -
परिवर्तन लोकतन्त्र का आवश्यक गुण है। अतः लोकतन्त्र में आस्था रखने वाला व्यक्ति परिवर्तन में विश्वास करता है। वह परिवर्तनों के साथ अनुकूलन भी करता है। वह परिवर्तन का अन्धानुकरण भी नहीं करता है वरन् वह अपनी जाँच-पड़ताल करके उन्हें स्वीकार करता है।
4. समझाने-बुझाने से परिवर्तन (Change through Persuation) -
लोकतन्त्र में परिवर्तन या कोई विचार दूसरों पर बलपूर्वक नहीं लादे जाते वरन् विचार-विमर्श या समझा-बुझाकर उन्हें स्वीकार करने के लिये तैयार किया जाता है। लोकतन्त्र में परिवर्तन को संवैधानिक एवं शान्तिपूर्ण उपायों के माध्यम से लाने पर बल दिया जाता है।
5. सेवा (Service)-
लोकतन्त्र का आधार सेवा है। लोकतन्त्रीय समाज में प्रत्येक व्यक्ति को स्वेच्छा से जनता की सेवा के लिये अर्पित करना चाहिये। रायबर्न (Ryburn) का मत है, "लोकतन्त्र ऐसी व्यवस्था है जिसमें समाज के समस्त व्यक्ति साथ-साथ रहते हैं। इसमें प्रत्येक व्यक्ति समाज की तथा समाज प्रत्येक व्यक्ति की अधिक सेवा करता है।" अन्त में हम जार्ज काउण्ट्स (George Counts) के शब्दों में कह सकते हैं-"लोकतन्त्र सामाजिक सम्बन्धों की एक व्यवस्था है जो व्यक्ति तथा सामूहिक हित की उन्नति के लिये कार्य करती है। एक शब्द में लोकतन्त्र वह समाज है जिसमें सामान्य नारी एवं पुरुष अपनी पूर्णता प्राप्त करने के लिये अभिवृद्धित होते हैं। अत: लोकतन्त्र जनता का, जनता द्वारा तथा जनता के लिये एक समाज है।" इस प्रकार लोकतन्त्र सहयोग, सहकारिता, सहिष्ण गुता एवं त्याग पर आधारित जनता का एक समाज है।
लोकतंत्र की मान्यताएँ (ASSUMPTIONS OF DEMOCRACY)
हॉपकिन्स (Hopkins) ने लोकतन्त्रीय जीवन-शैली की निम्नलिखित मान्यताएँ बतायी हैं-
1. प्रत्येक व्यक्ति मानव प्राणी के रूप में अपना महत्त्व रखता है। दूसरे शब्दों में, मनुष्य की महत्ता तथा क्षमताओं में आस्था।
2. प्रत्येक मानव प्राणी सीखने की क्षमता रखता है।
3. प्रत्येक मानव स्वयं में साध्य है, वह साधन नहीं है।
4. लोकतन्त्र वैयक्तिक अवसर पर आधारित है। साथ ही वह वैयक्तिक दायित्व पर आधारित है।
5. लोकतन्त्र मौलिक नैतिकता पर आधारित है।
6. लोकतन्त्र जीवित व्यक्ति की सम्प्रभुता में आस्था रखता है।
7. लोकतन्त्र इस तथ्य पर आधारित है कि जीवनयापन की प्रक्रिया अन्त: पारस्परिक है। इस कारण प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर कार्य करता है।
8. लोकतन्त्र न्याय, स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व पर आधारित है।
9. लोकतन्त्र वैयक्तिकता को आदर एवं महत्त्व प्रदान करता है।
10. लोकतन्त्र सहिष्णुता तथा सहयोगी या सहकारी जीवनयापन पर बल देता है।
उपर्युक्त को देखने से स्पष्ट है कि लोकतन्त्र व्यक्तियों की गरिमा को आदर, स्वतन्त्रता, अनुशासन, समानता, न्याय, सहयोगी तथा उत्तरदायित्वपूर्ण जीवन पर बल देता है। वस्तुतः लोकतन्त्र 'जीवनयापन में प्रयोग' है।
लोकतंत्र और शिक्षा (DEMOCRACY AND EDUCATION)
लोकतंत्र में व्यक्ति की गरिमा होती है। प्रत्येक का समान महत्त्व होता है। हर एक व्यक्ति अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार अग्रसर हो सकता है। उसके व्यक्तित्व का विकास केवल उसी के लिए नहीं वरन् पूरे राष्ट्र के लिए एक अर्थ रखता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को विकास के लिए पूरा अवसर मिलना चाहिए। इसलिए आज लोकतंत्र में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मौलिक अधिकार का रूप ग्रहण करता जा रहा है।
लोकतंत्र में शिक्षा इस कारण भी प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक अनिवार्य शर्त है कि वह इसको प्राप्त करके एक नागरिक के रूप में मतदाता तथा विधायक के रूप में सफलतापूर्वक कार्य कर सके। साथ ही नागरिक के रूप में व्यक्ति को राजनैतिक दल के कार्यक्रमों को बुद्धिमता के साथ संचालित करने के लिए तैयार करना चाहिए। लोकतंत्र में शिक्षा को नागरिकों को अपनी जीविका कमाने के लिए तैयार करना आवश्यक है। साथ ही वह नागरिकों को सामाजिक तथा अन्य प्रक्रियाओं में भाग लेने के लिए तैयार करे। इसके लिए शिक्षा उनमें विभिन्न अभिवृत्तियों, कौशलों तथा संवेगात्मक स्थिरता का विकास करे।
लोकतंत्रीय शिक्षा के उद्देश्य (AIMS OF DEMOCRATIC EDUCATION)
इयूवी ने लिखा है-" लोकतंत्र केवल सरकार का रूप न होकर, उससे भी कुछ अधिक है। यह मुख्यतः सहयोगी जीवन और सम्मिलित रूप से किये गये अनुभव की विधि है।"
"A democracy is more than a form of government, it is primarily a mode of associated living of conjoint communicated experience." -John Dewey
ड्यूवी ने जिस विधि के बारे में लिखा है, उसके अनुसार लोगों को तैयार करना शिक्षा का कार्य है। अत: यह प्रश्न उठता है कि 'लोकतंत्र में लोगों को किस प्रकार की शिक्षा दी जाये ?' इसका उत्तर यह है कि यदि इस शिक्षा में हमारे प्रयास सफल हैं, तो बालक योग्य नागरिक बनेगा।
वह अपने कार्यों को इस प्रकार करेगा, जिससे उसका और दूसरों का हित होगा। वह ऐसे कार्यों को करने पर बल देगा, जिनसे विश्व-कल्याण को योग मिलेगा। उसमें 'सहजीवन और सह-अस्तित्व' की भावना का विका होगा। इस प्रकार के व्यक्ति का निर्माण करने के लिए लोकतंत्रीय शिक्षा के कुछ उद्देश्य होने आवश्यक है। लोकतन्त्रीय शिक्षा में निम्नलिखित उद्देश्यों पर बल दिया जाता है-
1. समविकसित व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों का विकास (Development of Individuals with Harmonious Personality)-
आज का संसार संघर्षों और कटुताओं से भरा हुआ है। ये दोह लोकतंत्र और मानव के लिए संकट का कारण बन गये हैं। अत: शिक्षा को सामंजस्यपूर्ण व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों का विकास करना चाहिए। हुमायूँ कबीर (Humayun Kabir) के अनुसार "शिक्षा को मानव प्रकृति के सब पहलुओं के लिए सामग्री जुटानी चाहिए और मानवशास्त्र, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समान महत्त्व देना चाहिए, जिससे कि वह मनुष्य को सब कार्यों को निष्पक्षता, कुशलता और उदारता से करने के योग्य बना सके।"
2. व्यक्ति की आर्थिक सम्पन्नता (Economic Well-being of the Individual) -
लोकतन्त्र की सफलता, व्यक्तियों की आर्थिक सम्पन्नता पर निर्भर हैं इसका कारण यह है कि आर्थिक सम्पन्नता न होने पर वे अपने कर्तव्य से विमुख हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, वे धन-सम्पन्न व्यक्तियों के इशारे पर अपने वोट किसी को भी दे सकते हैं। अत: लोकतन्त्र में शिक्षा का यह उद्देश्य होना चाहिए कि वह लोगों को किसी व्यवसाय के लिए तैयार करके उनको धन-सम्पन्न बनाये। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने भारतीय लोकतंत्र में व्यावसायिक दक्षता के विकास को शिक्षा का एक उद्देश्य निर्धारित किया है।
3. व्यक्ति की रुचियों का विकास (Development of Individual's Intersts) -
लोकतन्त्र में शिक्षा को व्यक्ति की रुचियों के विकास के लिए कार्य करना चाहिए। हरबार्ट (Herbart) ने बहुमुखी रुचियों के विकास पर बल दिया है। बालक में जितनी ही अधिक उपयुक्त और श्रेष्ठ रुचियों, उसे उतने ही अधिक अवसर शिक्षाकाल में और उसके बाद सुखी, कुशल और सन्तुलित जीवन व्यतीत करने के लिए मिलेंगे।
4. अच्छी आदतों का निर्माण (Formation of Good Habits) -
लोकतंत्रीय समाज के नागरिक में अच्छी आदतों का निर्माण किया जाना आवश्यक है, क्योंकि आदतें ही गरीबी या अमीरी, परिश्रम या आलस्य, अच्छे या बुरे कार्यों की नींव डालती हैं। अतः बालकों को आरम्भ से अच्छी बातें ही सिखाई जानी चाहिए, जिससे कि उनका और उनके समाज का भावी जीवन सुखी हो सके।
5. सामाजिक दृष्टिकोण का विकास (Development of Social Outlook)
लोकतंत्र में शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है- व्यक्ति में सामाजिक दृष्टिकोण का विकास करना। इस उद्देश्य में सामाजिक समझदारी, सामाजिक रुचियाँ, सामाजिक प्राणी बनने की भावना, सहयोग और सामाजिक तथा आर्थिक प्रश्नों का निर्णय करने की योग्यता आती है। इस प्रकार इस उद्देश्य में सामाजिक भावना और सामाजिक क्षमता की भावना सम्मिलित है।
6. कुशलता की प्राप्ति (Achievement of Efficiency)
लोकतांत्रिक शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य बालकों में लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास करना होना चाहिये। भारतीय लोकतंत्र को सुदृढ़ तथा सबल बनाने के लिये शिक्षा द्वारा निम्नलिखित लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास पर बल दिया जाना चाहिये-
1. व्यक्तित्व की गरिमा का आदर
2. सहनशीलता
3. पारस्परिक सद्भाव
4. सेवा
5. विचार-विमर्श द्वारा परिवर्तन
6. व्यक्तिगत तथा सामाजिक उन्नति में समन्वय
7. त्यागपूर्ण नेतृत्व
8 आत्मनियंत्रण ।
7. राष्ट्रीय चेतना का विकास (Development of National Consciousness)
भारत जैसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय चेतना का विकास होना चाहिये। शिक्षा द्वारा बालकों में राष्ट्र प्रेम की भावना का विकास करना चाहिये। साथ ही उन्हें अपनी राष्ट्रीय धरोहर का ज्ञान कराया जाये जिससे वे उस पर गौरवान्वित हो सकें।
8. नेतृत्व के गुणों का विकास (Development of the Qualities of Leadership) -
लोकतन्त्र का अर्थ है-"सबसे बुद्धिमान निर्वाचित नागरिकों के नेतृत्व में सबकी प्रगति।" अतः शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्तियों में नेतृत्व के गुणों का विकास करना है। क्योंकि आज के युवक भावी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व करेंगे, इसलिये शिक्षा का विशेष उद्देश्य उनको सामाजिक, राजनीतिक, औद्योगिक या सांस्कृतिक क्षेत्रों में नेतृत्व के लिये प्रशिक्षित करना होना चाहिये। 'माध्यमिक शिक्षा आयोग' ने लिखा है-"जनतन्त्रीय भारत में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्तियों में नेतृत्व के गुणों का विकास करना है।"
9. लोकतन्त्रीय नागरिकता का विकास (Development of Democratic Citizen- ship) -
लोकतन्त्र में नागरिकता का बहुत कठिन दायित्व है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को उसके लिये प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक है। नागरिकता में बहुत-से मानसिक, सामाजिक और नैतिक गुणों की आवश्यकता होती है। ये गुण अपने आप विकसित नहीं होते हैं। इनका विकास तभी होता है जब व्यक्ति सब प्रकार के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रश्नों का स्वतन्त्रतापूर्वक निर्णय करे और अपने कार्य की विधि को निश्चित करे। इन बातों के लिये शिक्षा द्वारा प्रशिक्षण दिया जाना आवश्यक है।
इस सम्बन्ध में सबसे पहली आवश्यकता यह है कि नागरिक में स्पष्ट विचार करने की शक्ति हो। इसका अर्थ यह है कि उसमें मानसिक शुद्धता हो, जिससे वह सत्य और असत्य में अन्तर कर सके, & मांन्धता और पक्षपातपूर्ण बातों को अस्वीकार कर सके, अपने निष्कर्षों को ठोस प्रमाणों पर आधारित करने के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रयोग कर सके एवं प्राचीन और निरर्थक रीति-रिवाजों, परम्पराओं और विश्वासों को त्यागकर उदार मस्तिष्क से लाभप्रद विचारों को ग्रहण कर सके। नागरिक में इस प्रकार के मानसिक गुणों का विकास करना-शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
विचार की स्पष्टता से भाषण और लेखन की स्पष्टता का घनिष्ठ सम्बन्ध है। लोकतन्त्र की सफलता के लिये ये तीनों बातें आवश्यक हैं। कारण यह है कि स्वतन्त्र वाद-विवाद और शान्तिपूर्ण विचार-विनिमय प्रजातन्त्र के आधार हैं। अतः दूसरों को प्रभावित और स्वस्थ जनमत का निर्माण करने के लिये यह आवश्यक है कि प्रजातन्त्र का नागरिक भाषण और लेखन-दोनों में अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करे।
10. अन्तर-सांस्कृतिक भावना का विकास (Development of Inter-Cultural Under- standing) -
भारत में अति प्राचीनकाल से विभिन्न सांस्कृतिक धारायें बहती रही है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति विश्व के अन्य देशों की संस्कृतियों के समान नहीं है। ऐसी परिस्थिति में भारत में विभिन्न भागों और विश्व की संस्कृतियों को समझना और उनका आदर करना सरल कार्य नहीं है। अत: यह आवश्यक है कि हमारी लोकतन्त्रीय शिक्षा इस ओर विशेष ध्यान दे। इसके लिये निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-
1. उच्च शिक्षा को संस्थायें ऐसे पाठ्यक्रम बनायें, जिनके द्वारा मनुष्यों और स्त्रियों को इस देश के विभिन्न भागों और विश्व की विभिन्न संस्कृतियों की शिक्षा दी जा सके।
2. भारतीय और विश्व इतिहास का विशेष रूप से अध्ययन किया जाये।
3. भारतीय विश्वविद्यालयों द्वारा सांस्कृतिक गोष्ठियों का आयोजन किया जाये।
4. विभिन्न भारतीय राज्यों और देशों के विश्वविद्यालयों के शिक्षकों में परस्पर ज्ञान को आदार प्रदान के लिये अवसर प्रदान किये जायें।
5. सामाजिक विज्ञानों में 'भ्रमणकारी अध्यापक संस्था' (Institution of Roving Professorship) की स्थापना की जाये।
6. इसके प्राध्यापक भारतीय राज्यों और अन्य देशों में विश्वविद्यालयों में समय-समय पर जाकर अपने भाषणों द्वारा वहाँ के व्यक्तियों को भारतीय संस्कृति को ज्ञान से अवगत करायें।
7. सांस्कृतिक मण्डलों, गायकों, नृत्यकारों, कलाकारों और लेखकों का आदान-प्रदान किया जाये।
लोकतंत्र व पाठ्यक्रम (DEMOCRACY AND CURRICULUM)
पाठ्यक्रम में उन विषयों एवं क्रियाओं को स्थान दिया जाये, जो लोकतंत्रीय आदर्शों एवं मूल्यों को प्राप्त करने में सहायता दे। लोकतान्त्रिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को निर्धारित करते समय हमें निम्नलिखित सिद्धान्तों पर ध्यान देना आवश्यक है-
(i) लचीलेपन का सिद्धान्त।
(ii) सामाजिक आवश्यकताओं एवं आदर्शों की पूर्ति का सिद्धान्त।
(iii) व्यक्ति की अभिरुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं तथा आवश्यकताओं की सन्तुष्टि का सिद्धान्त।
(iv) व्यावहारिकता का सिद्धान्त।
उपर्युक्त सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर, लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम में उन विषयों एवं क्रियाओं को स्थान दिया जाये, जिनसे व्यक्ति अपने वैयक्तिक भेदों के अनुसार, विषयों एवं क्रियाओं का चयन कर सके तथा वह अपना सर्वोत्तम विकास कर सके।
लोकतंत्र व शिक्षण विधि (DEMOCRACY AND TEACHING METHODS)
लोकतन्त्र की भावना का विकास शिक्षण विधियों पर आधारित है। अतः लोकतांत्रिक उद्देश्यों की प्राप्ति तथा जनतंत्रीय भावना के विकास हेतु क्रियाशील विधियों को अपनाना बहुत लाभप्रद है। इस परम्परागत, स्थिर एवं रूढ़िवादी विधियों को अपनाना बहुत लाभप्रद है। इसमें परम्परागत, स्थिर एवं रूढ़िवादी पद्धति का प्रयोग अनुपयुक्त है, क्योंकि लोकतन्त्र मानव व्यक्तित्व के अनन्त मूल्य को स्वीकार करता है तथा इस बात में आस्था रखता है कि मनुष्य स्वयं अपने कार्यभार को स्वयं सँभाल सकता है।
अतः मनुष्य के इस गुण का उपयोग सक्रिय विधियों द्वारा किया जा सकता है अर्थात् वह विभिन्न क्रियाओं में सक्रिय भाग लेकर विभिन्न विषयों का ज्ञान तथा विभिन्न कुशलताओं, आदतों एवं दृष्टिकोणों का विकास कर सकता है। अतः लोकतंत्रीय शिक्षा में क्रियात्मक विधियों- बाद-विवाद विधि, समाजीकृत अभिव्यक्ति (Social Recitation), समस्या विधि, अभिव्यक्ति विधि, योजना विधि, कार्य-निर्धारण पद्धति आदि का प्रयोग किया जाये।
लोकतंत्र व विद्यालय (DEMOCRACY AND SCHOOL)
आधुनिक समाज विभिन्न समाजों का एक समाज तथा विभिन्न समुदायों का एक समुदाय है। औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप उत्पादकों, श्रमिकों तथा उपभोक्ताओं के बहुत से समुदाय निर्मित हो गये हैं। अब समाज में विभिन्न समुदायों का एक जाल बिछा हुआ है। उदाहरणार्थ- परिवार, चर्च, स्कूल, यूनीवर्सिटी, ट्रेड यूनियन आदि। ये समस्त समुदाय, मनुष्य के व्यक्तित्व को सामाजिक एकता एवं संगठन तथा प्रबन्ध करने की योग्यता प्रदान करते हैं।
अतः यह विश्वास किया जाता है कि यदि लोकतन्त्र को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफल बनाना है, तो विभिन्न समुदायों के प्रशासकीय, सामाजिक आदि । मामलों में लोकतन्त्रीय भावना तथा व्यवहार को प्रयोग में लाया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि इन समुदायों के संगठन एवं प्रशासन में लोकतन्त्रीय आदशों को क्रियान्वित किया जाये।
विद्यालय, समाज द्वारा स्थापित किये जाते हैं। यदि हमारा समाज लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित है, तो उसकी सफलता हेतु हमें अपने विद्यालयों का संगठन एवं प्रशासन लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार करना पड़ेगा। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे, तो समाज में लोकतन्त्रीय आदर्शों, मूल्यों एवं सिद्धान्तों को प्रसारित नहीं किया जा सकेगा। अतः लोकतन्त्र में विद्यालयों में पूर्ण रूप से लोकतन्त्रीय वातावरण निर्मित किया जाना चाहिए। इस वातावरण में प्रेम, सहयोग, सहानुभूति, परोपकार आदि गुणों पर बल दिया जाये।
लोकतन्त्र व शिक्षक (DEMOCRACY AND TEACHER)
लोकतन्त्रीय समाज के विद्यालयों में शिक्षक का स्थान एक मित्र, पथ-प्रदर्शक, समाज-सुधारक न तथा नेता के रूप में होता है, जिससे वह अपने छात्रों तथा समाज का समुचित रूप से पथ-प्रदर्शन कर सके। शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह समाज में उचित परिवर्तन लाकर उसे प्रगति की ओर अग्रसर करे। उसके लिए इसमें तीन मुख्य गुणों की अपेक्षा की जाती है।
पहला, वह एक योग्य नागरिक हो तथा लोकतन्त्रीय आदर्शों, मूल्यों एवं सिद्धान्तों में पूर्ण निष्ठा रखता हो।
दूसरा, उसमें अपने छात्रों को समझने तथा उनको पथ-प्रदर्शित करने की क्षमता हो, जिससे वह उनको एक योग्य नागरिक बनाने में सफल हो सके।
तीसरा, वह लोकतन्त्रीय आदर्शों के अनुसार प्रशिक्षित किया गया हो। अन्त में, हम कह सकते हैं कि वह ऐसे उच्च चरित्र का व्यकित होना चाहिए, जिससे वह समाज तथा छात्रों का सम्मान प्राप्त कर सके और अपने उदाहरण एवं सिद्धान्तों द्वारा उनका नेतृत्व करने में सफल हो सके।
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- हण्टर आयोग के गुण एंव दोष - Merits and Demerits of the Hunter Commission in Hindi
- National Policy on Education 1986: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में क्या-क्या संकल्प लिये गये?
- Vayask Shiksha - वयस्क शिक्षा के सन्दर्भ में सार्जेण्ट के क्या सुझाव
इन्हे भी पढ़ना मत भूलियेगा -
- भारतीय शिक्षा आयोग 1964-66
- राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति, 1958 द्वारा नारी शिक्षा के लिए सुझाव
- मध्यकालीन भारत के प्रमुख शिक्षण केन्द्र
- विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के गुण एवं दोष
- निस्यंदन सिद्धांत क्या है?
- मध्यकालीन शिक्षा के उद्देश्य
- विद्यालय संकुल - School Complex
- लार्ड कर्जन की शिक्षा नीति
- आत्मानुभूति शिक्षा का सर्वोत्कृष्ट उद्देश्य है। क्यों ?
- मैकाले का विवरण पत्र क्या है?
- शैक्षिक अवसरों की समानता - equality of educational opportunities
- सामाजिक शिक्षा के उद्देश्य - Objectives of social education
- राधाकृष्णन आयोग के सुझाव - Suggestions of Radhakrishnan Commission
- भारतीय शिक्षा आयोग 1882 - Indian Education Commission
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग - University Grants Commission
- ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड क्या है? | Operation Blackboard Yojana In Hindi
- Wood's Manifesto: वुड के घोषणा पत्र का महत्व तथा भारतीय शिक्षा पर प्रभाव
- शिक्षा में अपव्यय - Wastage in Education
- Acharya Ramamurthy - आचार्य राममूर्ति समिति की सिफारिशें
- Vocational Education - व्यावसायिक शिक्षा के उद्देश्य और लक्ष्य