परिधान रचना के विभिन्न चरण या सिलाई सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
परिधान जीवन की सभी वस्तुओं से अधिक प्रभावित करते हैं। इनके उचित चयन और उपयोग से व्यक्ति का स्वरूप बदल जाता है। शारीरिक अवगुणों को दबा दबाकर व्यक्तित्व को सुन्दर बनाने में वस्त्रों का योगदान सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
शरीर के अतिरिक्त वस्तुओं का सौन्दर्य भी इनके उचित प्रयोग से द्विगुणित हो जाता है। गृह सज्जा हो, मोटर गाड़ी हो या कोई क्रय- विक्रय केन्द्र या दुकान-बाजार हो, सभी का रूप रंग-बिरंगे वस्त्रों से खिल उठता है। आन्तरिक एवं बाह्य सज्जा सभी में वस्त्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। तात्पर्य यह है कि वस्त्रों का मानव जीवन से अटूट सम्बन्ध है। व्यक्ति जो वस्त्र को परिधान का रूप देकर ग्रहण करते हैं उनका तो स्वयं जीवन से सम्बन्ध जुड़ जाता है।
किसी भी वस्त्र को परिधान का रूप देने के लिए विभिन्न चरणों से होकर गुजरना पड़ता है तब ही उचित फिटिंग का परिधान व्यक्ति के समक्ष आता है। परिधान रचना के लिए अच्छी सिलाई की जानकारी प्राप्त करने के लिए शरीर शास्त्र का भी थोड़ा ज्ञान जरूरी है। शरीर रचना का ज्ञान होने पर ही परिधान रचना के लिए कितने कपड़े की आवश्यकता पड़ेगी इसका अनुमान लगा लेना जिससे कपड़ा ठीक मात्रा में आता है।
परिधान तैयार करने से पूर्व वस्त्र में कितना कपड़ा लगेगा इस बात का अनुमान लगा लेने से न तो कपड़ा लेने में पैसा नष्ट होता है व न ही उचित नाप न आने का भय रहता है। किस परिधान में कितना कपड़ा लगेगा, इसका अनुमान लगाने में बुद्धिमानी की आवश्यकता होती है।
इसलिए वस्त्र खरीदते समय उतना ही कपड़ा खरीदें, जिससे वह निर्दिष्ट परिधान बन जाय व कपड़ा न बचे क्योंकि बचा कपड़ा किसी कार्य में नहीं आता। अतः परिधान का निर्माण उसके लिए वस्त्र की खरीददारी आदि अनेक बातें अचानक उत्पन्न नहीं होती बल्कि इसके लिए भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण व पूर्व निर्धारित योजनाओं का होना अनिवार्य होता है। परिधान रचना के विभिन्न चरण इस प्रकार है।
(1) व्यक्ति के शरीर की नाप लेना
जिस व्यक्ति के लिए परिधान बनाया जा रहा है उस व्यक्ति के शरीर की नाप प्रत्यक्ष पद्धति से लें। उस व्यक्ति को अपने सामने सीधा खड़ा करके ध्यान पूर्वक नाप लिया जाय। जिस व्यक्ति की नाप लेनी हो उसको अपने दाहिनी ओर खड़ा करना चाहिए।
नापों को लिखने के लिए एक कापी अथवा रजिस्टर अपने पास रखें व उसमें क्रय से नापों को नोट करें। अगर नाप लेने व लिखने में तनिक भी असावधानी हुई और अशुद्ध नाप ली गई तो वस्त्र और उसको तैयार करने वाले का साहार परिश्रम व्यर्थ हो जाता है। अशुद्ध नाप से, कटा वस्त्र कदापि ठीक नहीं हो सकता या तो छोटा हो जायगा अथवा बड़ा। अतः व्यक्ति के शरीर की नाप सावधानी से लेनी चाहिए।
(2) नाप के अनुसार वस्त्र के लिए कपड़ा
नाप लेने के पश्चात् वस्त्र की निश्चित नाप के अनुसार कितने कपड़े की आवश्यकता पड़ेगी? उसका हिसाब लगाते समय कपड़े के अर्ज पर ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है। कपड़े के अर्ज पर ही कपड़े का कम या अधिक लगना निर्भर करता है। साधारणतया बाजार में कपड़ा कई अजौँ में मिलता है। लिंगल अर्ज अथवा 4 तहें वाले कपड़े 27 इंच से 36 इंच तक होते हैं। डबल अर्ज वाले वस्त्र 42 से 60 इंच तक के होते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ वस्त्र विशेष रूप से बड़े अर्ज के बनाये जाते हैं। परिधान के लिए वस्त्र प्रायः सिंगल, मीडियम या डबल अर्ज में मिलते हैं।
(3) कपड़े की सिकुड़न दूर करना
जो कपड़े प्री-प्रिंक (Pre- Shrink) करके ही मिल से निकलते हैं, उन्हें दोबारा कटाई-सिलाई के पहले श्रिक करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। जिन कपड़ों में ऐसी आशंका हो कि वे श्रिक करेंगे उनको घर पर यथाविधि भिगोकर उनके सिकुड़ने के सन्देह को अवश्य दूर कर लेना चाहिए।
वस्त्रों की कटाई सिलाई से पूर्व श्रिक करना इसलिए नितान्त आवश्यक होता है क्योंकि बहुधा देखा गया है कि बिना पूर्व श्रिक होकर छोटे हो जाने से उनकी शोभा नष्ट हो जाती है तथा वस्त्र की फिटिंग खराब हो जाती है। इस प्रकार वह वस्त्र पहनने योग्य नहीं रहता और व्यक्ति का कपड़े पर खर्च किया हुआ धन व्यर्थ हो जाता है। अतः वस्त्रों को श्रिक करके ही सिलना चाहिए।
(4) कपड़े के धागे का रुख
कपड़ा बुनते समय, उसमें दो तरफ के सूत लगाये जाते हैं। इन्हें ताना और बाना कहते हैं। जो सूत लम्बाई के बल डाले जाते हैं, वे "ताना" कहलाते हैं और चौड़ाई के बल डाले जाने वाले सूतों को "बाना" कहते हैं। ताने बाने से कपड़े का लम्बबद्ध तथा आढ़ा रुख निश्चित किया जाता है। शरीर पर ऊपर से नीचे की ओर लटकने वाले कपड़ों में खड़ा रुख रहना अनिवार्य है तभी परिधान उचित ढंग से लटकता है।
उचित लटकन या गिराव न रहने पर वस्त्र की शोभा में कमी आ जाती है। कोट, कमीज, कुर्ता आदि सभी वस्त्रों को ताना रुख रखकर ही काटना चाहिए। आस्तीन में भी ताने सूतों को कन्धे से कलाई तक लम्बद्ध रुख में रखना चाहिए। कपड़े के अन्य गुण-दोषों को पहचानने के लिए एक छोटे टुकड़े को भिगोकर, सुखाकर इस्त्री करके, उस पर टाँके मारकर उसके धागे के रुख को जाँच लेने से कपड़े पर आगे के काम करने में सुविधा होती है।
(5) नमूना या पैटर्न
परिधान के विभिन्न कपड़ों को काटने के पहले नापों के अनुसार अखबार के कागज पर या ब्राउन पेपर पर नमूना काट लेना पड़ता है। वस्त्र का नमूना बनाकर उसके आकार तथा शक्ल के अनुरूप कागज काटकर उसकी सहायता से कपड़े काटना ही सिलाई कला में पैटर्न कटिंग कहलाता है।
परिधान रचना में वस्त्र की नाप के अनुसार कागज पर वस्त्र का रेखाचित्र बनाकर काटा जाता है। वस्त्र में रखे जाने वाले दबाव के लिए अधिक कपड़ा पैटर्न में नहीं दर्शाया जाता। पैटर्न की सहायता से वस्त्र काटने पर वस्त्र की बचत होती है। पोशाक के लिए आवश्यक कपड़ा लेने के पश्चात् शेष कपड़े को अनावश्यक बर्बाद न करके बचाया जा सकता है।
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