वस्त्रों के काटने तथा सिलाई करने की विधियों का वर्णन कीजिये।

वस्त्रों के काटने तथा सिलाई करने की विधियाँ

वस्त्रों की कटिंग के बारे में तो हम पहले भी कुछ ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं। किन्तु वस्त्रों के सिलाई के सम्बन्ध में कुछ बातों का जानना आवश्यक है। वस्त्रों की सम्पूर्ण सिलाई टाँकों के ही द्वारा की जाती है। टाँके भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं।


वस्त्रों के काटने तथा सिलाई करने की विधियों का वर्णन कीजिये।

टाँके के आकार तथा बनावट की भिन्नता के आधार पर सिलाई के पृथक- पृथक् नाम रखे गये हैं। प्रत्येक वस्त्र को सिलने के लिए किसी-न-किसी टाँक का प्रयोग किया जाता है। मुख्य रूप से वस्त्र की सिलाई मशीन द्वारा की जाती है। वस्त्रों की सिलाई चाहे हाथ से की जाये या मशीन द्वारा टाँकों पर निर्भर करती है।


दूसरे शब्दों में इसे यूँ भी कहा जा सकता है कि नन्हें-नन्हें सुन्दर, समान तथा मजबूत टाँकों से ही वस्त्रों की सिलाई उतनी ही मजबूत और सुन्दर होगी। यदि टाँकों का आकार तथा दूरी समान होगी तो वह सिलाई देखने में सुन्दर लगेगी और यदि सिलाई के टाँकों में असमानता होगी तो वस्त्र देखने में भद्दा और खराब दिखाई देगा अतः सिलाई का कार्य चाहे मशीन द्वारा किया जाय या हाथ द्वारा बड़ी सावधानी के साथ करना चाहिए। इन सावधानियों के विषय में आगे प्रकाश डाला जा रहा है। 


1. कपड़े के अनुसार सुई का होना

वस्त्र चाहे मशीन से सिला जाय या हाथ से सर्वप्रथम वस्त्र की मोटाई के अनुसार सुई का सही चयन कर लेना बहुत आवश्यक है। महीन तथा बारीक वस्त्र पर सिलाई करने के लिए महीन तथा मोटे वस्त्रों के लिए मोटी सुई होनी चाहिए। हाथ तथा मशीन दोनों ही के लिए भित्र- भिन्न नम्बर की सुइयाँ बाजार में मिलती हैं।


अद्धो, मलमल, तनजेब आदि बारीक वस्त्रों को सिलने के लिए मशीन की 14 नं. की सुई का प्रयोग करना चाहिए तथा हाथ की 7 नं. की। पापलीन लॉन क्लाथ आदि वस्त्रों को सिलने के लिए मशीन की 16 नं. की तथा हाथ की सिलाई के लिए 7 नं. की सुई प्रयोग करनी चाहिए। तथा मोटे वस्त्रों की सिलाई के समय मशीन की 18 नं. की हाथ की सिलाई 7 नं. की काज बनाने के लिए 6 नं. की पैडिंग करने के लिए 5 नं. या 4 नं. की मोटी सुई का प्रयोग करना चाहिए। 


2. सुई तथा कपड़े के अनुसार धागे का होना

सुई के चयन के पश्चात् धागे के चयन का नम्बर आता है। धागे भी विभिन्न प्रकार के मोटे तथा बारीक होते हैं। इन धागों के सूत के नम्बर भी होते हैं जैसे-40, 60, 80 आदि साधारण जीन पापलीन, लॉग क्लोथ आदि वस्त्रों से सिलने के लिए 40 नं. का धागा प्रयो किया जाता है और महीन तथा बारीक वस्त्रों की सिलाई के लिए 60 तथा 80 = के धागों का प्रयोग किया जाता है।


यह महीन धागे भी दो प्रकार के होते हैं ए साधारण तथा दूसरे मर्सराइज्ड। मर्सराइज्ड धागा चिकना होता है अतः इसके द्वा सिलाई सुन्दर होती है। रासायनिक पदार्थ से बने वस्त्रों के लिए तथा मिश्रित वर जैसे-टेरीकाट, टेरीसिल्क, टेरीबूल इत्यादि वरखों की सिलाई के लिए 60 नं. मर्सराइज्ड धागे ही इस्तेमाल करने चाहिए। धागे का रंग वस्त्र के रंग का ही होग चाहिए बल्कि वस्त्र के रंग से थोड़ा अधिक गहरा हो तो अच्छा रहेगा।


3. सिलाई कार्य में प्रयोग होने वाली सामग्री की व्यवस्था

वस्त्रों व सिलाई आरम्भ करने से पूर्व ही सिलाई कार्य के दौरान होने वाले सभी उपकरण की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। उपकरणों के पास रहने से कार्य विधिवत तथा सरलतापूर्वक होता है तथा समय की भी बचत होती है। सिलाई के समय प्रयोग होने वाले उपकरण निम्न है-सिलाई मशीन, बड़ी कैंची, दाँतेदार कैंची तथा छो कैंची, हाथ की सुइयाँ नं. 5, 6, 7 कच्चा करने के लिए सफेद धागे की रील अक्सी पहिया, मिल्टन चाक, इंचीटेप, एक स्क्वायर, 12 इंच लम्बी पटर सिलाई के समय प्रेस करने हेतु लोहा, जलपात्र, जल तथा स्पंज, प्रेस करने गद्दी इत्यादि।


4. सिलाई मशीन की सफाई

सिलाई मशीन से सिलाई आरम्भ करने पूर्व सफाई कर लेना बहुत आवश्यक है। मशीन की सफाई के लिए शटल, नाल, फेसप्लेट, बेड प्लेट आदि पुर्जों को खोलकर साफ कर लेने के पश्चात् निर्देशित स्थानों पर तेल भी डाल देना चाहिए। तेल सिलाई मशीन का ही होना चाहिए।


5. बेकार वस्त्र पर सिलकर सिलाई की जाँच करना

मशीन में तेल डालने के बाद ही वस्त्र की सिलाई नहीं आरम्भ करनी चाहिए अन्यथा वस्व में तेल का मैल जम जायेगा जिससे वस्त्र गन्दा हो जायगा। अतः वस्त्र पर सिलाई आरम्भ करने से पहले एक बेकार वस्त्र के टुकड़े पर मशीन चलाकर देख लेना चाहिए।


6. वस्त्रों में दबाव रखना

प्रत्येक वस्त्र में थोड़ा बहुत दबाव अवश्य रखना चाहिए ताकि आवशयकता पड़ने पर बढ़ाया जा सके। बालकों के वस्त्र में तो अवश्य ही रखना चाहिए क्योंकि उनका शरीर तेजी से बढ़ता है। प्रत्येक सीमा में भी पर्याप्त मात्रा से अधिक दबाव लेना चाहिए किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि निर्धारित मात्रा से अधिक दबाव लिया जाय।


7. हाथ की सिलाइयों का सुन्दर होना

हाथ की सिलाई करते समय सफाई तथा सुन्दरता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। तुरपाई करते समय टाँका इस प्रकार निकालना चाहिए कि वस्त्र के सीधी ओर दिखाई न दे। यदि वस्त्र बहुत बारीक हो तो भी सिलाई के टाँके बहुत हल्के ही दिखाई दें। तुरपाई के टाँके महीन तथा आपस में प्रत्येक टाँके की दूरी समान होनी चाहिए।


8. बुकरम तथा अस्तर को प्रिंक करके लगाना

वस्त्रों में बुकरम तथा अस्तर को प्रिंक करने के पश्चात् ही लगाना चाहिए। श्रिक किया बुकरम, स्तर की धुलाई के समय श्रिक नहीं होता है। जिन वस्त्रों के धुलने पर बुकरम तथा अस्तर बिना श्रिक किये लगा लिया जाता है, उन वस्त्रों के धुलने पर बुकरम तथा अस्तर छोटे हो जाते हैं जिनके फलस्वरूप वस्त्र की शोभा ही नष्ट हो जाती है।


9. बटन का रंग वस्त्र के समान होना

वस्त्र के बटनों का रंग भी वस्त्र के रंग के समान होना चाहिए। इतना ही नही अपितु बटन भी उस वस्त्र के ही होने चाहिए जिसमें लगाये जायें। ऐसा न हो कि कोट के बटन पैन्ट में और पैन्ट के बटन कमीज में लगादिये जाये।


10. वस्त्र को बाँधकर सिलाई करना

कुछ वस्व विशेषकर रेशमी वस्त्र, ऐसे होते हैं जिनके कटे हुए भाग से फूथरे बहुत अधिक निकलते हैं। ऐसे वस्त्रों की सिलाई आरम्भ करने में पूर्व "बाँध" दिया जाता है। बाँधने का अर्थ है "उन कटे हुए भागों पर ओरया की सिलाई हाथ से इस प्रकार करना कि फूथरे व रेशे और धागे निकलने बन्द हो जायें।”


11. सिलाई के दौरान वस्त्रों पर लोहा करना

ऊनी, पालिस्टर, पालिस्टर मिश्रित वस्त्रों की पूरी सिलाई लोहे की सहायता से की जाती है। बिना लोहे के इनकी सिलाई करना सम्भव नहीं है। वस्त्र के प्रत्येक भाग एवं टुकड़े को प्रेस कर-करके ही सिला जाता है। इस विधि से सिलाई करने से वस्त्र साफ तथा सुन्दर तैयार होता है। अतः रेशों के अनुकूल प्रेस गर्म करके प्रेस करनी चाहिए।


12. वस्त्र की फिटिंग पर विशेष ध्यान देना

वस्त्र की सिलाई के समय यदि वस्त्र की फिटिंग पर विशेष ध्यान दिया तो सौन्दर्य नष्ट हो जायेगा। वस्त्र को कच्चा करके एक ट्रायल लेने के पश्चात ही पक्की सिलाई करनी चाहिए तथा इस बीच में आवश्यकतानुसार ट्रायल लेकर सिलाई करनी चाहिए।


उपर्युक्त बातों पर ध्यान देकर सिलाई करने से वस्त्र की सिलाई सुन्दर साफ व आकर्षक होगी तथा फिटिंग भी अच्छी आयेगी। सिलाई में सफलता प्राप्त करने के लिए इन बातों की ओर विशेष ध्यान रखना बहुत आवश्यक है।


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