Clothing design: परिधान रचना करते समय नाप के नियम

परिधान रचना करते समय नाप के नियम बताइए।

परिधान रचना करते समय नाप के नियम: नाप लेते समय कुछ सामान्य नियमों का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है। ये नियम निम्न प्रकार के हैं-


Clothing design: परिधान रचना करते समय नाप के नियम

1. शरीर में गोलाकार नाप लेते समय टेप को कसकर खींचकर अंक पढ़ना त्रुटियुक्त है। अतः यह स्पष्ट है कि अंक पढ़ने पर फीते (टेप) के अन्दर तीन अंगुली डालना आवश्यक है। इसके साथ दर्जी को यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि टेप पूरी तरह से सीधा रहे है।


2. नाप लेते समय व्यक्ति विशेष की शारीरिक गठन सम्बन्धी विशेषताओं का निरीक्षण कर लेना चाहिए शारीरिक रचना सम्बन्धी अवधारणा को शीघ्र ही नोट कर लेना चाहिए।


3. अगली बात है कि नाप लेते समय यह ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है कि किस कपड़े के लिए नाप ली जा रही है और उसके लिए किन स्थानों की नाप लेने से काम चलेगा।


4. दर्जी को चाहिए कि यदि व्यक्ति के शरीर में कोई मोटी वस्तु पहने हुए है तो उस वस्त्र को उतरवाकर ही नाप लेना चाहिए।


5. नाप लेते समय यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि व्यक्ति बिल्कुल सीधा खड़ा रहे।


6. नाप लेते समय व्यक्ति को हमेशा जिसकी नाप लेनी हो उसके वाहिनी ओर खड़ा रहना आवश्यक है। साथ ही वह दूसरे व्यक्ति से कुछ फासला लेकर खड़ा हो।


7. पीठ की लम्बाई लेते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इस नाप को गले के पीछे भाग के ठीक मध्य बिन्दु से जहाँ पर गले की गांठ होती है वहाँ से कमर तक ला जाती है।


8. इस तरह से वक्ष के केवल सामने वाले भाग की नाप का किन्हीं वस्यथो के निर्माण में काम पड़ जाता है। यह सामने की तरफ एक मोढ़े से दूसरे मोढ़े तक लिया जाता है।


9. कमर की नाप कमर वाले स्थान से की जाती है। इसमें भी फीते को पकड़ने उसे पीछे की ओर घुमाने, बाई बगल से घुमाकर आगे लाने तथाफिर तीन अंगुली भीतर डालकर अंक नोट करने का काम ठीक वैसा ही करना चाहिए जैसा कि वक्ष की नाप लेने में किया जाता है।


10. कन्धे से नितम्ब की नाप लेते समय कुछ वस्त्रों की आवश्यकता पड़ती है। कमीज, बुशर्ट में इस नाप की जरूरत पड़ती है, परन्तु इनकी लम्बाई बहुत कुछ फैशन पर निर्भर करता है। इसके लिए भी फीते के सिरे को कन्धे एवं ग्रीवा से सन्धिस्थल पर रखना चाहिए। वक्ष के उभार पर से लेते हुए उस भाग तक लाना चाहिए जहाँ तक की लम्बाई का वस्त्र पहनना हो।


11. फुट की नाप लेते समय ग्रीवा के पीछे मध्य बिन्दु से, कन्धे बाहें की सन्धिस्थल तक की नाप को कन्धे की नाप कहते हैं। शरीर के ऊपरी भाग से पहने जाने वाले सभी वस्त्रों के लिए इस नाप की आवश्यकता होती है क्योंकि यदि कन्धों की फिटिंग उचित ढंग से की गयी है तो वस्त्र की सुन्दरता झलकने लगती है। इस नाप को लेते समय व्यक्ति के हाथ आगे करके लेनी चाहिए।


परिधान रचना की वे शैलियाँ है जो आकृति के सौन्दर्य को उभारली हैं शीघ्र ही लोकप्रिय होकर फैशन बन जाती हैं। परिधान रचना के त्रुटिपूर्ण तरीके के कारण वह व्यक्ति जिनका व्यक्तित्व भद्दा एवं विलक्षण लगता है, कुछ ही दिनों में सबकी निगाहों में गिर जाते हैं।


परिधान की रचना एवं संयोजन ऐसा होना चाहिए जो शरीर के ढाँचों के प्राकृतिक सौन्दर्य को बढ़ाकर दिखायें। ऐसे परिधान जो प्राकृतिक समानुपात को सुन्दरता से दिखाने में सहायक होते हैं। सदैव पसन्द किये जाते हैं और सदैव सुन्दर भी माने जाते हैं। परिधान रचना की रेखायें ऐसी होनी चाहिए जिससे बना आकार सुन्दर भी हो और कीमत की आवृत्ति के अनुरूप हो।


प्रत्येक प्रकार की कला के कुछ आधारभूत सिद्धान्त होते हैं। वस्त्र निर्माण भी एक कला है। तथा इसके सिद्धान्त भी अन्य प्रकार की कला के सिद्धान्तों से मिलते-जुलते हैं। इन सिद्धान्तों का अनुकरण इन्हें आधारभूत मानकर ही करना चाहिए।


इनका रूपान्तरण प्रचलित फैशन की अनुरूपता को देखते हुए करना उचित है। इन सिद्धान्तों को अनन्य नहीं मानन चाहिए ये सिद्धान्त बड़े ही नम्ब तथा लचीले हैं तथा इनका वही रूप स्वीकार करना चाहिए जो प्रचलित फैशन तथा विशिष्ट शरीर की आकृति के अनुरूप रूपान्तरित हो सके। परिधान रचना के आधारभूत कला सिद्धान्त मापक पूरा का काम करते हैं। परिधान की रचना विभिन्न व्यक्तियों की रचनाओं से भिन्न-भिन्न होती है।


चालू फैशन की हू-ब-हू नकल कभी-कभी अनुचित भी हो सकती है। अतः फैशन के साथ-साथ वस्त्र की रचना में शरीरकार से अनुरूपता लाने का प्रयास करना चाहिए। इन सब बातों को ध्यान में रखकर फैशन का निर्वाह हो सकता है तथा शरीर के अनुकूल परिधान भी बन सकता है।


परिधान के अलंकरण से सह उपकरण के मापांक के अनुपात रखने से परिधान एवं पहनावे वाले सुन्दर सामंजस्य बना रहता है। सन्तुलन से परिधान में विश्रामदायक भाव आता है। सन्तुलन प्रायः वस्त्र की मध्य रेख से देखा जाता है। दोनों हिस्सों में समान सन्तुलन बचाने से दोनों तरफ आकर्षण बढ़ता है। जब परिधान के दोनों भागों में आकर्षण रचना तथा अलंकरण लगभग समान रहते हैं। तो ऐसा सन्तुलन औपचारिक कहलाता है।


कभी-कभी दोनों भागों की रचना अलंकरण और आकर्षण में भिन्नता होती है। ऐसी विभिन्नता से जो सन्तुलन उत्पन्न किया जाता है। इसे अनौपचारिक कहते हैं। परिधान जहाँ तक सम्भव हो सके सादे सुविधाजनक और अच्छे नमूने वाले होने चाहिए। परिधान रचना में केन्द्र बिन्दु को दिया जाना परिधान के बटन गोट या पाइपिंग, झालर आदि में किसी को भी आकर्षण का केन्द्र बनाया जा सकता है।


केन्द्र बिन्दु चेहरे के जितना पास रखा जाता है उतना ही अच्छा होता है। आकर्षण का केन्द्र बिन्दु ऐसा होना चाहिए जो व्यक्ति की शोभा बढ़ाये और साथ ही वस्त्र के विभिन्न भागों के अनुरूप तथा समयानुकूल भी हो। परिधान की रचना में सादगी सौन्दर्य परिष्कृत रुचि आदि से बचाव का सदैव ध्यान रखना चाहिए केन्द्र बिन्दु तथा उसकी पोशाक की शोभा बढ़ाने वाला होना चाहिए उसे बिगाड़ने वाला नहीं है।


परिधान की रचना में एकरूपता एवं अनुरूपता उतनी ही जरूरी है जितनी उसकी आवश्यकता संगीत अथवा सजावट में रहती है। परिधान की रचना में रंग आकृति व्यत्था आका ध्येय तथा साथ ही व्यक्तित्व तथा व्यक्ति की निजी शारीरिक विशेषताओं से अनुरूपता होना अनिवार्य है। परिधान की संरचना एवं अलंकरण एक दूसरे के अनुरूप होना चाहिए। अलंकरण ऐसा किया जाये कि संस्थान के अनुरूप नहीं हुए तो देखने में यह लगे कि इसमें जबरदस्ती की गयी है।


इस प्रकार हमें परिधानों की रचना करते समय उपर्युक्त बातों को सदैव ध्यान में रखकर वस्व बनाने चाहिए।


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