भारत की परम्परागत कढ़ाईयों में फुलकारी - Questionpurs

भारत की परम्परागत कढ़ाईयों में फुलकारी का वर्णन कीजिए।

भारत की परम्परागत कढ़ाईयाँ- भारत प्राचीनकाल से ही अपनी आकर्षक अलोकिक, सुन्दर एवं विशिष्ट कढ़ाई के लिये प्रसिद्ध रहा है। यहाँ के कढ़े हुए सुन्दर एवं आकर्षक वस्त्र विश्व के अनुकों देशों में प्रसिद्ध थे। कढ़ाई भारत की विशेषता रही है। पुराणों और वेदों में भी कढ़ाई कला का उल्लेख मिलता है।


भारत की कढ़ाई कला विश्वविख्यात थी। वस्त्रों एवं परिधानों पर बहुमूल्य रत्नों, जैसे-हीरे, जवाहरात, सोने, पन्ने आदि के कढ़ाई कला द्वारा जड़ जाता था। ऐसे वस्त्र अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक लगते थे और ऐसे आभास होता था कि सूर्य-चन्द्रमा, तथा तारेगण के साथ पूरा आकाश ही वस्त्र पर उत्तर आये हों। इन बहुमूल्य रत्नजड़ित कढ़े वस्त्रों की माँग विश्व के कोने-कोने में थी।


कढ़ाई कार्य अधिकतर सिल्क के वस्त्रों पर किये जाते थे। नमूने के रूप में प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण, पशु, पक्षी नृत्य करती मानव आकृतियां देवी-देवताओं के चित्र, पौराणिक गाथाओं पर आधारित चित्रों को काढ़े जाते थे। रंग बिरंगे रेशमी एवं सूती धागों से वस्त्र को काढ़ा जाता था। कढ़े वस्त्रों का उपयोग शादी-विवाह, तीज-त्यौहार विशेष उत्सवों एवं नाटक खेलने में किया जाता था।


भारत की कुछ प्रसिद्ध कढ़ाईयाँ


1. पंजाब की फुलवारी-

पंजाब के जाट लोगों द्वारा यह कार्य विशेष रूप से किया जाता था। यह पंजाबियों की एक महत्वपूर्ण परम्परागत कढ़ाई हैं। पंजाब की फुलकारी देश-विदेशों में प्रसिद्ध है। रोहतक, गुड़गांव, करनाल, हिंसार और दिल्ली फुलकारी के कम के लिए काफी प्रसिद्ध हैं पश्चिमी पंजाब में फूलकारी के 'बाग' कहा जाता है। बाग फुलकारी का ही एक विस्तृत रूप है। इसमें पूरे वस्त्र पर "फूलकारी" की जाती है जिससे सम्पूर्ण वस्त्र एं "बाग" की तरह प्रतीत होने लगता है।


फुलकारी का काम पंजाबी लड़कियों एवं स्त्रियों द्वारा बउत्रे ही उल्लास एवं उत्साह से किया जाता है। यह उनका उद्यमी, परिश्रमी एवं कठिन, मेहनती होने का संकेत देता है। फूलकारी को सुख, समृद्धि ऐश्वर्य एवं सुहाग का प्रतीक माना जाता है। इसलिए फूलकारी से कड़े परिधानों को वहां की विवाहित स्त्रियाँ बड़े ही उल्लास एवं उत्साह के साथ शादी विवाह एवं तीज-त्यौहारों के अवसर पर पहनती है।


फुलकारी का काम साधारण खद्दर के वस्त्र पर किय जाता हैं सिल्क के धागों से इस पर जयामितीय नमूने बनाये जाते हैं। इसमें सीधी, तिरछी, आड़ी चौकोर एवं त्रिकोण रेखाओं का उपयोग किया जाता है। इनमें लाल, पीला, नारंगी एवं सफेद रंगों का प्रयोग किया जाता है। फुलकारी अत्यन्त सौन्दर्यमय एवं आकर्षक लगता है। इसे मां अपनी पुत्री को शादी के शुभ अवसर पर उपहार स्वरूप देती है।


फुलकारी के प्रकार (Types of Phulkari)

फुलकारी कई प्रकार की होती है। कुछ अत्यन्त लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण फुलकारी निम्नलिखित हैं--


1. चोप (Chope)-

चोल लाल रंग के चद्दर पर बना होता है। जिसे नारी अपने नातिन की शादी के अवसर पर उपहार स्वरूप देती है। यह सुनहरे पीले रंग के रेशमी धागों से दोहरी टकाई के टांके (Double Running Stitch) से बनाये जाते हैं। कढ़ाई वख के दोनों ओर से दिखाती है।


2. सुधर (Subhar)-

यह शॉल भी चोप की तरह लाल रंग के शॉल पर बना होता है। इसे मां पुत्री के शादी के शुभ अवसर पर उपहार स्वरूप देती है। इसे 'फेरा' के समय पहना जाता है।


3. तिलपत्रा (Tilpatra)-

ये सस्ते एवं झिरझिरे खद्दर के के वस्त्रों पर बनाये जाते हैं। इसमें छोटे-छोटे फूलों के नमूने बने होते हैं। इसे गृह स्वामी अपनी दासियों को शादी के शुभ अवसर पर उपहार स्वरूप देती है।


4. शीशेदार फुलकारी (Shishedar Phulkari)-

इस फुलकारी के नमूनों के बीच-बीच में शीशे या अभ्रक के टुकड़ों को काज वाले टांके से लगाया जाता है। यह फुलकारी साटन तथा रेशमी वस्त्रों पर किया जाता है।


5. कच्छ की फुलकारी (Kuchh Phulkari)-

कच्छ की फुलकारी काफी लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध है। कच्छ प्रदेश में किये जाने के कारण इसका नाम भी कच्छ फुलकारी पड़ा है इसमें वस्त्र के चारों ओर उत्कृष्ट नमूने से बार्डर बनाया जाता था। बीच में रिक्त स्थानों में पशु-पक्षी, फल-फूल, पत्तियाँ, हाथी, मोर, तोते, हंस, कबूतर, आदि के नमूने बनाये जाते थे। नमूने प्रायः चैन एवं हेरिंग बोन टांके से बनाये जाते थे।


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