Infancy: शैशवावस्था में पोषण की आवश्यकता क्यों होती है ?

शैशवावस्था में पोषण आवश्यकता ( Nutritional needs in infancy )

बालक के जन्म लेने के पश्चात ही शिशु अवस्था प्रारम्भ हो जाती है। जब बालक बाह्य जगत में प्रवेश करता है, उस समय बालक बिल्कुल निष्क्रिय तथा बलहीन होता है। उसे जहां पर लिटा दिया जाता है, वहीं लेटा रहता है।


धीमे-धीमे उसमें शक्ति आनी शुरू हो जाती है तथा मांसपेशियों का विकास होना शुरू हो जाता है जिससे बच्चा हिलना-डुलना शुरू कर देता है। तथा करवट लेने लगता है।


बच्चे में यह विकास बड़ी तेजी से होता है। तीन माह की अवस्था में उसकी मांसपेशियाँ अधिक क्रियाशील हो जाती हैं। यदि उसे पेट के बल लिटा दिया जाये तो यह अपना सिर जमीन से ऊपर उठाकर इधर उधर देखना शुरू कर देता है। शिशु में अस्थियों का विकास भी बड़ी तीव्र गति से होता है।


जन्म के समय शिशु की अधिकांश अस्थियाँ नर्म तथा लचीली होती हैं तथा शरीर के कुछ भागों में अस्थियाँ होती ही नहीं हैं जिनका कि विकास बाद में होता है। मस्तिष्क का विकास भी इस अवस्था में काफी तेज गति से होता है तथा तीन साल की अवस्था पर मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो जाता है।


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