परिधान के सिद्धान्त - Principles of Dress

परिधान के सिद्धान्त Principles of Dress

परिधान की रचना एवं संयोजन ऐसा होना चाहिये जो कि शारीरिक सौन्दर्य में वृद्धि कर सके। परिधान के सिद्धान्त के अन्तर्गत अनुपात, सन्तुलन, लय, आकर्षण एवं अनुरूपता आते हैं। परिधान में बेल्ट, योक, लम्बाई, घेर आदि की रचना एक दूसरे के अनुपात में होनी चाहिये ।


उचित एवं अच्छे अनुपात से ही परिधान का रूप रंग और आकार खिलता है। रेखायें, दूरी एवं माप आदि सभी दृष्टियों से परिधान रचना में अनुपात का ध्यान रखना चाहिये। परिधान में औपचारिक सन्तुलन आवश्यक है। परिधान में लय के द्वारा वस्त्रों को सुन्दर बनाया जाता है।


लय को उत्पन्न करने के लिये परिधान की रचना में रंग, रचना, रेखा, आकृति तथा अलंकार में पुरावृत्ति, स्तरीकरण तथा विकिरण का प्रयोग करना चाहिये। आकर्षण का केन्द्र बिन्दु परिधान में ऐसा होना चाहिये जो व्यक्ति की शोभा बढ़ाये और साथ ही वस्त्र के विभिन्न भागों के अनुरूप हो । परिधान रचना में अनुरूपता आवश्यक होती है ।


इसके अभाव में अन्य वस्तुओं का सौन्दर्य व्यर्थ लगता है। कुल मिलाकर परिधान का रंग, रचना, आकृति, आकार आदि सभी शरीर रचना से आकर्षक ढंग से एक रुपाकार होने चाहिये।


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