शिक्षण की अर्थ और परिभाषा देते हुए इसकी प्रकृति की विवेचना कीजिए
शिक्षण की अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Teaching)
शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है। अधिगम की अपेक्षा शिक्षण का प्रत्यय जटिल होता है। क्योंकि सामाजिक दर्शन, शासन का स्वरूप, सामाजिक मान्यताएँ आदि शिक्षण के स्वरूप को प्रभावित करती हैं। शिक्षण शब्द संस्कृत भाषा के ' शिक्ष ' धातु से बना है। जिसका अर्थ सिखाना या सीख देना होता है । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि शिक्षा में शिक्षण का विशेष महत्व है।
शिक्षण एक ऐसी त्रियात्मक ( शिक्षक, छात्र तथा विषय - वस्तु ) क्रिया प्रणाली है । जिसकी व्यवस्था एवं परिचालन विषय वस्तु के सन्दर्भ में अधिगम को अभिप्रेरित करने के लिए निर्दिष्ट है । शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों के ज्ञान में वृद्धि होती है और उनके व्यवहार में परिवर्तन आता है । चूंकि शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है इसलिए शिक्षण की कोई एक सर्वमान्य तथा व्यापक परिभाषा नहीं दी जा सकती है।
सामाजिक तथ्य शिक्षण को प्रभावित करते हैं । इसलिए शिक्षण की सार्वभौमिक परिभाषा देना कठिन है । क्योंकि इस पर प्रत्येक देश की शासन प्रणाली या सामाजिक परिस्थितियों मूल्यों आदि का प्रभाव पड़ता है ।
एकतंत्र शासन में शिक्षण का अर्थ ( Meaning of Teaching in Autocratic Government )
एकतंत्रीय शासन में नौकरशाही की इच्छा प्रमुख होती है । इस प्रकार के शासन में शिक्षण प्रक्रिया के अन्तर्गत शिक्षक का स्थान मुख्य तथा छात्र का स्थान गौण होता है । इसमें छात्र, शिक्षक को आदर्श मानते हैं और शिक्षक छात्रों को अपने व्यक्तित्व को प्रभावित करता है । छात्रों की सभी क्रियाओं को शिक्षक दिशा प्रदान करता है कि वह क्या सोचे, क्या करे तथा कैसे करे? शिक्षण के समय शिक्षक अधिक क्रियाशील रता है और छात्र स्रोता का कार्य करता है ।
दूसरे शब्दों में कहा जाय तो एकतंत्र शासन में शिक्षक अपने को आदर्शवादी मानते हुए छात्रों पर अपना रौब - दाब रखता है और उन पर अपने आदर्शों तथा विचारों को बलपूर्वक ढूंसता रहता है । शिक्षक की प्रत्येक बात को बिना शर्त , बिना किसी तर्क के छात्र को स्वीकार करना पड़ता है । शिक्षक की प्रत्येक बात को बिना शर्त , बिना किसी तर्क के छात्र को स्वीकार करना पड़ता है ।
इस प्रकार के शासन की शिक्षण व्यवस्था ' परम्परागत सिद्धान्त ', कार्य केन्द्रित का अनुसरण करती है । इसकी धारणा यह है कि शासन का ढांचा शिक्षण की क्रियाओं एवं उसके स्वरूप को प्रभावित करती है ।
लोकतंत्रात्मक शासन में शिक्षण का अर्थ ( Meaning of Teaching in Democarcy )
लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली मानवीय सम्बन्धों पर आधारित होती है । इसमें सामान्य जनता की इच्छा ही सर्वोत्तम मानी जाती है । लोकतंत्र में शिक्षण को अन्तः प्रक्रिया माना जाता है। इसमें शिक्षक तथा शिक्षार्थी के मध्य शाब्दिक तथा अशाब्दिक अन्तःक्रिया होती है । इस शिक्षण में शिक्षक और छात्र दोनों को क्रियाशील रहना पड़ता है ।
इसमें शिक्षक और छात्र दोनों ही एक दूसरे के व्यक्तित्व को प्रभावित करने का कार्य करते हैं । बालक को शिक्षक से पाठ्यवस्तु के सम्बन्ध में तर्क - वितर्क करने, वार्तालाप करने तथा अशाब्दिक अन्तःक्रिया करने की छूट होती है । एन ० एल ० गेज ने शिक्षक और छात्र के पारस्परिक सम्बन्ध के प्रभाव को शिक्षा में विशेष महत्व दिया है।
उनका कहना है कि शिक्षक एवं छात्र दोनों ही एक दूसरे के व्यवहार क्षमताओं को विकसित करते हैं । लोकतंत्रात्मक शासन में स्वतंत्र अनुशासन पर अधिक बल दिया जाता है । इसमें शिक्षक का स्थान पथ - प्रदर्शक अपवा निर्देशक के रूप में माना जाता है । यह व्यवस्था मानवीय सम्बन्ध अथवा सम्बन्ध केन्द्रित सिद्धान्त पर आधारित होती है ।
इस सिद्धान्त की धारणा है कि व्यवस्था के सदस्यगण अपनी-अपनी अभिवृत्तियों, अभिरुचियों तथा मूल्यों के लेकर आते हैं । इसलिए शासन उनके व्यवहारों को प्रेरित तथा प्रोत्साहित करता है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में स्वतंत्रता , समानता तथा अभिव्यक्ति प्रदर्शनों के मूल्यों का पूर्ण सम्मान लोकतंत्रीय शिक्षण में किया जाता है । इसमें स्वतंत्रता एवं समानता के मौलिक सिद्धान्त प्रत्यक्ष रूप से शिक्षण को प्रभावित करते हैं ।
हस्तक्षेपरहित शासन में शिक्षण का अर्थ ( Meaning of Teaching in Laissez Faire )
यह शिक्षण पद्धति आधुनिक धारणाओं पर आधारित है जिसमें छात्र किसी दबाव या बाधा से मुक्त होकर सीखता है । इसमें शिक्षक की अपेक्षा छात्र अधिक क्रियाशील रहता है । शिक्षक छात्र के लिए कुछ ऐसी परिस्थितियां प्रस्तुत करता है जो अपूर्ण होती है या उनमें कुछ बाधाएँ होती हैं ।
छात्र उनको पूरा कर बाधाओं को दूर करने का प्रयास करता है । शिक्षक, छात्र को मुक्त एवं भयरहित वातावरण में सिखाने का प्रयास करता है । शिक्षक छात्र की रचनात्मक प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है । छात्र अपने चिन्तन , सोच व क्षमता के अनुसार सीखता है । इस सन्दर्भ में जॉन बेकर की परिभाषा अधिक उपयुक्त मानी जा सकती है ।
जॉन बूबेकर के अनुसार " शिक्षण में ऐसी परिस्थितियों की व्यवस्था की जाती है जिनमें कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए जाते हैं । तथा कठिनाईयां उत्पन्न हो जाती हैं छात्र उन कठिनाइयों पर विजय पाने का प्रयास करता है तथा रिक्त स्थानों की पूर्ति करने का प्रयास करता है । छात्र की इस प्रकार की क्रियायें सीखने में सहायक होती हैं । "
इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षण वह प्रक्रिया है जो सीखने को प्रभावित करती है । इसका मुख्य लक्ष्य छात्रों को सिखाना होता है । छात्रों का सिखाने से सम्बन्धित शिक्षण की क्रियायें भिन्न - भिन्न परिस्थितियों में भिन्न - भिन्न हो सकती है । लेकिन शिक्षण की सभी क्रियार्यो का उद्देश्य छात्रों को सिखाना ही होता है ।
शिक्षण की परिभाषाएँ ( Difinitions of Teaching )
शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन आता है तथा उनके ज्ञान में वृद्धि होती है । शिक्षण द्वारा छात्रों में ज्ञान - वृद्धि के लिए प्रेरणा का विकास होता है । वे स्वयं ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखते है । शिक्षण के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए उसकी कुछ परिभाषाएँ दी जा रही हैं -
1. बूबेकर के अनुसार " शिक्षण उन स्थितियों की व्यवस्था एवं निर्माण है , जिनमें कुछ अन्तराल और बाधाएँ हैं , जिनका किसी व्यक्ति को सामना करना पड़ता है । उसके करने से वह कुछ सीखेगा। "
2. क्लार्क के अनुसार- " शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके प्रारूप तथा संचालन की व्यवस्था इसलिए की जाती है जिससे छात्रों के व्यवहारों में परिवर्तन लाया जा सके । "
3. एन0 एल0 गेज के अनुसार शिक्षण एक प्रकार का पारस्परिक प्रभाव है जिसका उद्देश्य दूसरे व्यक्ति के व्यवहारों में वांछित परिवर्तन लाना है । "
4. एडमंड एमीडान के अनुसार " शिक्षण एक अन्तः प्रक्रिया है जिसमें मुख्यतः कक्षा वार्ता " होती है , जो शिक्षक व छात्रों के मध्य कुछ परिभाषित की जा सकने वाली क्रियाओं के माध्यम से घटित होती है । "
5. रायबर्न के अनुसार " शिक्षण एक सम्बन्ध हैं, जो छात्र को उसके विकास में सहायता देता है। "
6. रायन्स के अनुसार " दूसरों को सीखने के लिए दिशा निर्देश देने तथा अन्य प्रकार से उन्हें प्रदर्शित करने की प्रक्रिया को शिक्षण कहा जाता है । "
7. द वर्ल्ड बुक आफ इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार " शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को ज्ञान, कौशल तथा अभिरुचियों को सीखने या प्राप्त करने में सहायता करता है। "
शिक्षण की प्रकृति ( Nature of Teaching )
मानव सभ्यता के विकास के साथ ही शिक्षण ने एक व्यवसाय के रूप में जन्म लिया। जैसे -2 मानव अपना विकास करता गया वैसे -2 शिक्षण की प्रक्रिया भी जटिल होती गई । जिसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे शिक्षण के स्वरूप में भी परिवर्तन होता गया। मैक्डॉनाल्ड ने शिक्षण के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए प्रणाली उपागंग का प्रयोग किया । उन्होंने समस्त प्रक्रिया को चार भाग-पाठ्यक्रम, अनुदेशन, शिक्षण तथा अधिगम में विभाजित किया।
इसी तरह से ग्रीन ने शिक्षण की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए टीचिंग टोपॉलाजी ( Teaching Topology ) का निर्माण कर शिक्षण के चार विशिष्ट स्तर - अनुकूलन, प्रशिक्षण, अनुदेशन, तथा मतारोपण बताएं । विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों के विचारों के आधार पर शिक्षण की निम्नलिखित प्रकृति बताई जा सकती है-
1. शिक्षण एक साउद्देश्य प्रक्रिया है शिक्षण एक साउद्देश्य प्रक्रिया है। शिक्षण की क्रियायें किन्हीं विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है।
2. शिक्षण एक सामाजिक तथा व्यवसायिक प्रक्रिया है शिक्षण की प्रक्रिया शिक्षण तथा छात्र समूह में ही सम्पादित की जाती है । शिक्षा के माध्यम से ही जीविकोपार्जन संबंधी उद्देश्य को पूरा कर पाते हैं। अतः कहा जा सकता है कि शिक्षण एक व्यवसायिक प्रक्रिया है । इसलिए शिक्षक एवं छात्र दोनों के लिए यह नितान्त आवश्यक होता है।
3. शिक्षण एक विकासात्मक प्रक्रिया है- शिक्षण प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य बालकों का विकास करना होता है । शिक्षण के माध्यम से ही बालकों के विकास में अपेक्षित परिवर्तन लाया जाता है । शिक्षण के द्वारा बालकों का ज्ञानत्मक , भावात्मक क्रियात्मक का प्रयोगात्मक विकास किया जाता है ।
4. शिक्षण एक त्रिभुवीय प्रक्रिया है- अधिकांश शिक्षा शास्त्रियों ने शिक्षण को त्रिध्रुवीय प्रक्रिया माना है । ब्लूम ने शिक्षण के तीन पक्ष को स्वीकार किया है शिक्षण उद्देश्य सीखने का अनुभाव और व्यवहार परिवर्तन। इन्हीं तीन पक्षों से शिक्षक शिक्षण को प्रभावशाली बनाते हुए छत्र के ज्ञान का विकास कर सकता है।
5. शिक्षण कला और विज्ञान दोनों है- शिक्षण कला और विज्ञान दोनों है। शिक्षण कला के रूप में भावनाओं, अभिवृत्तियों, मूल्यों एवं अनुभूतियों का उपयोग होता है। इनका उपयोग शिक्षण की परिस्थितियों एवं प्रस्तुतीकरण में अनायास ही किया जाता है । इसी प्रकार शिक्षण की क्रियाओं तथा शिक्षक व्यवहार का विश्लेषण वस्तुनिष्ठ रूप से करने के लिए निरीक्षण प्रविधियों का विकास किया जा चुका है । शिक्षण प्रतिमान भी विकसित हो चुके हैं। यह शिक्षण में विज्ञान की देन है।
6. शिक्षण एक औपचारिक अनौपचारिक और निरौपचारिक प्रक्रिया है शिक्षण प्रक्रिया औपचारिक, अनौपचारिक और निरौपचारिक प्रक्रिया है क्योंकि इसमें शिक्षा निश्चित उद्देश्यों और आदर्शों के संगठित होती है तथा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है । यह विद्यालय के अन्दर और बाहर दोनों जगहों पर संचालित होती है।
7. शिक्षण एक उपचारात्मक प्रक्रिया है- शिक्षण एक उपचारात्मक प्रक्रिया है । इससे शिक्ष अपने छात्रों की कमियों का पता लगाकर उनका उपचार और सुधार करता है अर्थात शिक्षक छात्रों पिछड़ेपन का पता लगाकर अपने शिक्षण के माध्यम से उसका उपचार करता है ।
8. शिक्षण एक अन्तः प्रक्रिया है - शिक्षण की अन्तः प्रक्रिया में शिक्षक द्वारा कक्षा के अन्दा किए जाने वाली समस्त क्रियायें आती हैं । इसमें शिक्षक तथा छात्रों के मध्य विशेष कार्य के लिए संचालित होते हैं, जैसे-उपलब्धि तथा निष्पत्ति कार्य, पृष्ठ पोषण तथा पुर्नबलन , शिक्षण युक्तियों क विस्तार आदि ।
9. शिक्षण का मापन किया जाता है- शिक्षण का मापन शिक्षक के व्यवहार के रूप में किया जाता है। शिक्षक के व्यवहारों का मापन और व्यवहारों के स्वरूप का विश्लेषण निरीक्षण विधियों के द्वारा किया जाता है ।
10. शिक्षण एक तार्किक किया है शिक्षण तर्कों पर आधारित होती है क्योंकि शिक्षण का नियोजन शिक्षक की तर्क शक्ति पर ही आधारित होती है शिक्षक पाठ्य - वस्तु का संश्लेषण एवं विश्लेषण अपनी तर्क शक्ति के द्वारा ही करता है ।
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