प्राथमिक शिक्षा में अपव्यय और अवरोधन के कारण

प्राथमिक शिक्षा में अपव्यय और अवरोधन के कारणों की विवेचना कीजिए।

अपच्यय तथा अवरोधन के कारण प्राथमिक स्तर पर अपव्यय तथा अवरोधन के प्रमुख कारण निम्न हो सकते है-
प्राथमिक शिक्षा में अपव्यय और अवरोधन के कारणों की विवेचना कीजिए।

1. शैक्षिक कारण

एक अध्ययन के आधार पर 30 प्रतिशत अपव्यय तथा अवरोधन शैक्षिक कारण में होता है, जिसमें विद्यालयों में पढ़ाई न होना, विद्यालय का नीरस वातावरण, शिक्षा तथा कस्तविक जीवन में सहसम्बन्ध का अभाव, अमनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियां, विद्यालयों में भोजन तथा स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, विद्यालयों में शारीरिक दण्ड का होना, शिक्षा में परोक्षाओं की बाहुल्यता तथा एकल शिक्षक वाले विद्यालय का होना आदिघटक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते

2. सामाजिक कारण

आज भी भारतीय समाज में व्याप्त अन्धविश्वास, रूढ़िवादिना तथा साम्प्रदायिकता जैसी बुराइयों के कारण समाज की प्रगति सुचारु रूप से नहीं हो पा रहीं है। इसके अन्तर्गत जाति-प्रथा, बाल-विवाह, पर्दा प्रथा आदि बुराइयां ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक व्याप्त है। 

वे अपनी लड़कियों को पढ़ने के लिए विद्यालय नहीं भेजते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को अलग से पढ़ने के लिए प्राथमिक विद्यालयों की नितान्त कमी है। बाल विवाह को प्रथा प्रचलित होने के कारण विवाहोपरान्त प्रायः लड़‌कियों को शिक्षा अवरुद्ध हो जाती है। देश में निरक्षरता को अधिकता के कारण अशिक्षित माता-पिता अपने बच्चों को विद्यालय भेजने से बचते हैं। जिसके कारण अने कसामाजिक बुराईयों उत्पन्न होती है और प्राथमिक शिक्षा का अपव्यय और अवरोधन अधिक होता है।

3. आर्थिक कारण

अध्ययनों से स्पष्ट है कि लगभग 65 प्रतिशत अवरोधन गरीबों के कारण होता है। निर्धन परिवार के अभिभावक शिक्षा को महत्ता को न समझने के कारण अपने 9-10 वर्ष की आयु के बच्चों को विद्यालयी शिक्षा से अलग कर देते हैं तथा उन्हें जीविकोपार्जन से सम्बन्धित धन्धी में लगा देते हैं, ताकि वे आर्थोपार्जन में उनकी सहायता कर सकें। यदि बालक विद्यालय जाने भी लगता है तो एक दो साल के बाद उन्हें विद्यालय से अलग कर लिया जाता है। ऐसे बच्चे घरेलू कार्यों की अधिकता से नियमित रूप से विद्यालय नहीं जाते हैं तथा परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने लगते हैं। 

4. शारीरिक कारण

शारीरिक अस्वस्थता तथा अपंगता के कारण अधिकांश बालकों की शिक्षा बाधित हो जाती है। गूंगे, बहरे, अन्ये, मंन्दितमना तथा विकलांग बालक प्रायः सामान्य विद्यालयों में सामान्य बालकों के साथ अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाते हैं। ऐसे विकलांग बालकों के लिए विशेष विद्यालयों को नितान्त कमी है। इस प्रकार विकलांग बालक एक ही कक्षा में बार-बार अनुत्तीर्ण हो जाने के फलस्वरूप बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं।

5. बढ़ते बस्ते का बोझ

प्राथमिक विद्यालयों में छोटे बच्चों को पाठ्य-सामग्रियां इतनी अधिक हो जाती है कि मानसिक रूप से अपरिपक्व बालक सभी पाठ्यसामग्रियर्थी का अध्ययन सुचारु रूप से सम्मादित नहीं कर पाते हैं। विशेषकर, ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित लिटिलफ्लॉवर, सेन्ट एन्बनी तथा कान्वेन्ट आदि विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के बस्ते का वजन उनकी क्षमता से अधिक वजन हो जाता है। 

पने बजनी बस्ती को प्रतिदिन विद्यालय ले जाते हैं, जिससे वे शारीरिक तथा मानसिक रूप से कष्ट का अनुभव करते हैं। उनकी क्षमता अधिक उन्हें गृहकार्य को भी मां-बाप को पूरा करना पड़ता है। अधिकांशत: बच्चे बार-बार अनुत्तीर्ण होने के कारण अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं। प्रत्यक्ष अवलोकन के आधार पर ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में इस प्रकार की स्थिति अपव्यय तथा अवरोधन की चपेट में आ जाते हैं।

6. प्रशासकीय कारण

भारत शिथिल है कि प्रायः ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक नियमित रूप से प्रतिदिन विद्यालय नहीं जाते हैं। जब इस प्रकार को स्थितिः शिक्षकों में व्याप्त है तो विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की स्थिति और निम्नतर हो सकती है। 

प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों की विद्यालयी उपस्थिति अनियमित होने के कारण विद्यार्थियों की पढ़ाई तथा उपस्थिति अनियमित हो जाती है तथा उनका मन पढ़ाई में नहीं लग पाता है। फलत: उनको शैक्षिक प्रगति अवरूद्ध हो जाती है तथा वे अपव्यय तथा अवरोधन के शिकार हो जाते हैं।

7. बेरोजगारी की समस्या

अधिकांश ग्रामीण अभिभावक बढ़ती बेरोजगारी की समस्या को दृष्टिगत रखते हुए यह सोचने लगे हैं कि पढ़ने के बाद भी अधिकांश विद्यार्थी नौकरी से वंचित होते जा रहे है। अशिक्षित ग्रामीण अभिभावक बीच में अपने बच्चों की पढ़ाई बन्द कराकर उन्हें जीविकोपार्जन से सम्बन्धित धन्थों में लगा देते हैं। इस प्रकार की स्थिति शहरों की मलिन बस्तियों में रहने वाले अभिभावकों में भी पाई जाने लगी है। 

सही भी है कि शिक्षा प्राप्त बालकों को उनको मानसिक क्षमता के अनुसार प्रोत्साहन एवं पुरस्कार की प्राप्ति नहीं हो पाती है तो वे अपने बच्चों को नियमित रूप से विद्यालयों में नहीं भेजते। इसलिए बेरोजगारी की समस्या अपव्यय और अवरोधन का प्रमुख कारण बनी हुई है।

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