माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का समाधान

माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का समाधान ( Solution to the problems of secondary education )

माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का समाधान: माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का समाधान विन्दुकर निम्नलिखित प्रकार से किया जाना श्रेयस्कर है-


माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का समाधान ( Solution to the problems of secondary education )

1. शिक्षा को निश्चित उद्देश्यों की समस्या का समाधान


इसके लिए माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य निश्चित होने चाहिए, अर्थात इस शिक्षा को उपयोगी, उपकारी, गुणकारी बनाने के लिए उद्देस्यों की सतर्कता के साथ निश्चित किया जाना आवश्यक है, चारित्रिक तथा नैतिक विकास पर बल देते हुए सर्वागीण विकास पर बल देना अत्यावश्यक है।


रोजगारपरक शिक्षा पर बल देते हुए सर्वांगीण विचकास पर बल देना अत्यावश्यक है। रोजगारपरक शिक्षा पर बाल अवश्य देना चाहिए। माध्यमिक शिक्षा आयोग द्वारा निधर्धारित माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्यों का कार्यान्वयन किया जाना आवश्यक है।


इस सन्दर्भ में एम०एन० मुकर्जी का सुझाव है "माध्यमिक शिक्षा स्वयं में पूर्ण होनी चाहिए और उसे छात्रों की उच्व शिक्षा के लिए तैयार करना चाहिए। उसे कुछ अत्रों को जीवन में प्रवेश करने के लिए और दूसरों की विश्वविद्यालय में प्रवेश करने के लिए तैयार करना चाहिए।"


2. जनसंख्या विस्फोट की समस्या का समाधान


इसके समाधान के लिए प्रजनन दर में कमी, परिवार नियोजन के कार्यक्रमों-लूप लगाना, कॉपर टी का प्रयोग, माला डी का प्रयोग, निरोध का उपयोग आदि को अपनाया जाना आवश्यक है, ताकि शिक्षक-अत्र का अनुपात आदर्श हो सके।


3. दोषयुक्त पाठ्यक्रम की समस्या का समाधान


इसके लिए माध्यमिक शिक्षा आयोग के सुझाव के अनुसार माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम कार्यानुभव पर केन्द्रित होना चाहिए, न कि पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर।


पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को योग्यताओं, आवश्यकताओं तथा अभिरुचियों के अनुरूप होना चाहिए, इस प्रकार कोठारी कमीशन ने व्यावसायिक पाठ्यक्रमों पर बल दिया है तो मुदालियर कमीशन ने विविध पाठ्यक्रमों को महत्ता को स्वीकार है, यथा-कृषि विज्ञान, गृह विज्ञान, मानव विज्ञान, ललित कलायें प्राविधिक एवं वाणिज्यिक विषय। कोठारी कमीशन ने व्यावसायीकरण के लिए जीव विज्ञान, गृहविज्ञान, भूगर्भशास्त्र, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, समाज-सेवा तथा कार्यानुभव पर बल दिया है।


सन् 1968 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद ने "प्रारम्भिक तथा माध्यमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम-एक ढांचा" के अन्तर्गत-


(1) भाषा (मातृभाषा, हिन्दी, अंग्रेजी), 

(2) गणित, 

(3) विज्ञान 

(4) सामाजिक विज्ञान (इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र) 

(5) कार्यानुभव, 

(6) कला शिक्षा, 

(7) स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा, 

(8) मूल्य-आधारित शिक्षा, 

(9) जनसंया शिक्षा तथा 

(10) पर्यावरण-उन्मुख शिक्षा को शामिल किया है। अतः इसय प्रकार का पाठ्यक्रम आज की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायक हो सकेगा। 


4. दोषपूर्ण परीक्षा-प्रणाली की समस्या का समाधान


इसके लिए मुदालियर कमीशन ने सम्पूर्ण पाठ्यक्रम की समाप्ति पर मात्र एक बार सार्वजनिक परीक्षा का आयोजन, निबन्धात्मक परीक्षाओं के स्थान पर वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का समावेश, बाह्य परीक्षाओं की संख्या कम, विद्यार्थियों की उपलब्धियों का मूल्यांकन अंकों में न कर प्रतीकों में करना, रहने की प्रवृत्ति को समाप्त करने वाले प्रश्न-पत्रों का स्वरूप तथा आन्तरिक परीक्षा, नियतकालिक परीक्षा तथा विद्यालयी अभिलेख के अनुसार विद्यार्थियों की उपलब्धियों का मूल्यांकन करने का सुझाव दिया है।


5. योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी की समस्या का समाधान


इसके लिए शिक्षकों के वेतन में वृद्धि विद्यालय से सम्बन्धित क्षेत्र में रहने वाले शिक्षकों की नियुक्तिधामीण क्षेत्र के अध्यापकों को शहरी


6. निम्न शिक्षण-स्तर की समस्या का समाधान


शिक्षण-स्तर की समस्या के समाधान के लिए शिक्षण विधियों तथा शिक्षकों की स्थिति में सुधार किया जाना आवश्यक है। माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार शिक्षण विधियों में क्रिया विधि तथा योजना विधि का प्रमुख स्थान विद्यार्थियों के व्यक्तिगत प्रयास से ज्ञानार्जन तथा उसे प्रयोग करने का सुअवसर वैकिक भिन्ना के आधार पर छात्र की प्रगति करने हेतु उपयुक्त शिक्षण विधियों को प्रयोग, शिक्षण विधियों में अर्जे को प्रेम, कुशलता, सच्याई तथा कार्यकरने को शक्तिशाली इच्चा उत्पन्न करने का सुअवसर प्रदान किया जाना चाहिए।


7. तीन-तीन भाषाओं की समस्या का समाधान


विद्यार्थियो आयु एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए दो भाषाओं का अध्ययन उपयुक्त है, अर्थात् हिन्दी-भाषी राज्यों में हिन्दी तथाए‌क आधुनिक भारतीय भाषा तथा अहिन्दी-भाषी राज्यों में मातृभाषा तथा हिन्दी कोस्थानदिया जाना चाहिए। अंग्रेजी को अनिवार्य न बनाकर वैकल्पिक रूप में स्थान दिया जाना चाहिए।


रूस, जर्मनी तथा जापान में अंग्रेजी भाषा अनिवार्य विषय के रूप न रखकर वैकल्पिक विषय के रूप में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत रखी गयी है। इस सन्दर्भ में महात्मा गांधी के विचार स्लापनीय है, यथा- "आज अंग्रेजी निःसन्देह रूप से विश्व को भाषा है। अतः मैं इसे विद्यालय के पाठ्यक्रम में नहीं वरन् विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में द्वितीय वैकल्पिक भाषा का स्थान दूंगा ।"


8. गैर-सरकारी विद्यालयों की स्थापना की समस्या का समाधान


इस समस्या के समाधान के लिए शिक्षा का राष्ट्रीयकरण किया जाना आवश्यक है। इस समय राजकीय माध्यमिक विद्यालय की संख्या 18.8 प्रतिशत है। गैर-माध्यमिक विद्यालय विद्यार्थियों की वैयक्तिक समस्याओं का समाधान सुचारू रूप से नहीं कर पाते हैं। अतः गैर-सरकारीविद्यालयों को राजकीय प्रबन्ध-तंत्र के अन्तर्गत शामिल किया जाना चाहिए, अर्थात् शिक्षा का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए।


9. निर्देशन तथा परामर्श की समस्या का समाधान


इसके लिए प्रशिक्षित मार्गदर्शन अधिकारियों तथा परामर्शदाताओं की नियुक्ति तथा केन्द्र द्वारा उनके प्रशिक्षण को व्यवस्था, परामर्शदाताओं सम्मेलन का आयोजन, प्रत्येक बालक का विभिन्नस्तरों पर शैक्षिक तथा व्यावसायिक मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।


माध्यमिक शिक्षा आयोग अनुसार सभी माध्यमिक विद्यालयों में मार्गदर्शन की सुविधायें, दस विद्यालयों के लिए एक परामर्शदाता की व्यवस्था, शिक्षकों द्वारा मार्गदर्शन की व्यवस्था, प्रत्येक जिला स्तर पर कम से कम एक विद्यालय में मार्गदर्शन के विस्तृत कार्यक्रम का संचालन, राज्य ब्यूरो तथा प्रशिक्षण महाविद्यालयों पर मार्गदर्शन के प्रशिक्षण की व्यवस्था।


10. लड़‌कियों की शिक्षा की समस्या का समाधान


भारतीय संविधान में स्त्री तथा पुरुष दोनों को समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। अतः तन्हें अपनी रुचि आवश्यकता योग्यता तथा क्षमता के अनुसार विषय चयनित करने को सुविधा उपलब्ध को जानी चाहिए। हमा मेहता समिति के सुझावों के अनुसार लड़के तथा लड़कियों के लिए पृथक पृथक पाठ्यक्रमों का निर्धारण नहीं किया अना चाहिए।


गृहविज्ञान की शिक्षा लड़कियों के लिए अनिवार्य नहीं की जानी चाहिए। आदिवासियों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पहाड़ी क्षेत्रों से सम्बन्धित लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सुदूर क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा के लिए विद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए। विशेषकर, ग्रामीण क्षेत्रों की लड़‌कियों को शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।


ग्रामीण क्षेत्रों में विशेश रूप से लड़कियों को शिक्षा के लिए अतिरिक्त विद्यालय स्थापित किये जाने चाहिए। अभिभावकों की रूढ़िवादिता अन्धविश्वास को यथासम्भव दूर करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि पिछड़े वर्ग को लड़कियां भी बिना किसी बाधा के शिक्षा ग्रहण कर सकें।


11. पाठ्यपुस्तकों की समस्या का समाधान


माध्यमिक स्तर पर अच्छी पुस्तकों को व्यवस्था की जानी चाहिए। पाठ्यक्रमों के अन्तर्गत रूचिकर पुस्तकों को मान्यता दी जानी चाहिए। मनोवैज्ञानिक पाठ्यसामग्रियों का विकास किया जाना चाहिए। कक्षाजन्य परिस्थितियों के अनुसार पुस्तकें मान्य होनी चाहिए। ऐसे पुस्तकों की व्यवस्था आवश्यक रूप से की जानी चाहिए, जिनमें भारतीयता, सद्‌भावना, नैतिकता, चरित्र-निर्माण तथा जीवन-मूल्यों से सम्बन्धित तथ्यों का समावेश हो। अच्छी, उत्तम तथा जीवनोपयोगी पुस्तकों को उपलब्धि से हो शिक्षण-प्रक्रिया के वांछित उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है।


12. शैक्षिक अवसरों की समानता की समस्या का समाधान


नई शिक्षा नीति (1986) के अनुसार शैक्षिक असमानता दूर करने के लिए विद्यालयों में महिला विकास के सक्रिय कार्यक्रमों का प्रारम्भ, महिलाओं में साक्षरता का प्रसार, विभिन्न स्तरों पर तकनीकी तथा व्यवसायिक शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी, पहली कक्षा से ही अनुसूचित जाति के बालकों के लिए छात्रवृत्ति की सुविधा तथा जिला स्तर पर उनके लिए छात्रावास की सुविधाएँ, आदिवासी क्षेमें में प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना, प्रतिभाशाली आदिवासी युवकों को उनके ही क्षेत्रों में शिक्षण-कार्य करने की सुविधा, आश्रम विद्यालयों तथा आवासीय विद्यालयों की स्थापना, पिछड़े क्षेत्रों में अधिकाधिक मात्रा में विद्यालयों की स्थापना, विकलांगों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यापक सुविधा तथा गम्भीर रूप से विकलांग बालकों के लिए जिला मुख्यालयों पर आवासीय विद्यालयों की स्थापना आदि का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।


13. एकरूपता की समस्या का समाधान 


प्रायः माध्यमिक विद्यालयों के संगठन, पाठ्यक्रम तथा प्रबन्ध एवं प्रशासन में एकरूपता का अभाव है। अतः माध्यमिक विद्यालयों के संगठन तथा पाठ्यक्रम में एकरूपता स्थापित करने के लिए केन्द्रीय प्रत्येक प्रशिक्षणार्थी को मार्गदर्शन की अवधारणाओं तथा साधारण तकनीकों के बारे में ज्ञान-प्राप्ति तथा भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल मार्गदर्शन पर शोध कार्य की व्यवस्था की जानी चाहिए।


14. अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान


माध्यमिक विद्यालयों में अनुशासनहीनता के कोड़ के समाप्त करने के लिए जनता, सरकार अभिभावकों तथा शिक्षकको कमिक शिक्षा का उद्देश्यपूर्ण बनाना परोक्षा प्रणाली में अपेक्षित सुधावर करना किशोरों की समस्याओं के निराकरण तथा देना विद्यालय में सप्ताह के एक दिन फिल्म प्रोजेक्टमध्यमफ दिखाया जाना, विद्यार्थियों को राजनीति में अलग रखना भी बाई को विकास के समान अवसर प्रदान करना, शिक्षक चम्बन्ध स्थापित करने के लिए कक्षा में कम सारी को प्रवेशित करना योग्य एवं निष्ठावार शिक्षकों की नियुक्ति करना, पाठ्यक्रम सुरुचिपूर्ण एवं उपयोगी होना, रोचक शिक्षण-विधियों का प्रयोग करना व्यावसायिक शिक्षा का प्रसार करना तथा विद्यार्थियों में जोवन-दर्शन तथा नैतिक मूल्यों को विकसित करना आदि क्रियाओं को सम्पादित किया जाना आवश्यक है।


15. धन की कमी की समस्या का समाधान


धन के अभाव की समस्या का समाधान करने के लिए कंन्द्रीय तथा राज्य सरकारों को निश्चित आर्थिक नीति का प्रयोग किया जाना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय टीम तथा माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार माध्यमिक शिक्षा का पुनर्गठन केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों के माध्यम से किया जाना चाहिए तथा उसका संचालन भी उन्हें स्वयं करना चाहिए। माध्यमिक विद्यालयों के गुणात्मक विकास के लिए सरकार द्वारा समय समय पर अतिरिक्त सहायता अनुदान दिया जाना चाहिए। 


16. औद्योगिक तथा व्यावसायिक शिक्षा के अभाव की समस्या का समाधान


माध्यमिक विद्यालयों में सामान्य शिक्षा प्रदान करने की प्राथमिकता समाप्त की जानी चाहिए तथा औद्योगिक तथा व्यावसायिक शिक्षा को पाठ्यक्रमों में प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए। अतः राष्ट्रीय आवश्यकताओं तथा सामाजिक जीवन से सम्बद्ध पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए, जिन्हें विद्यार्थी अपनी योग्यताओं, क्षमताओं तथा अभिरुचियों के अनुसार विषयों का चयन कर सकें। औद्योगिक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसलिए मुदालियर कमीशन ने विविध पाठ्यक्रमों तथा कोठारी आयोग ने व्यवसायिक पाठ्यक्रमों के लिए सुझाव दिया।


17. प्रसार की समस्या का समाधान


जनसंख्या के घनत्व के अनुसार माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों की स्पष्ट नीति के अभाव के कारण मार यमिक विद्यालयों का प्रसार देश को आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हो सकता है पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यमिक विद्यालयों के प्रसार की स्पष्ट नीति निधर्धारित की जानी चाहिए तथा तदनुसार सभी प्रकार को सुविधाएँ उपलब्ध कराकर माध्यमिक शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिए। ताकि शिक्षा से वाचत व्यक्ति को शिक्षा को प्राप्ति कर सर्क। जनसंख्या के घनत्व के अनुसार विद्यालयों के प्रसचार पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके लिए सभी का सहयोग अपेक्षित है। 


18. बहुउद्देशीय विद्यालयों की समस्या का समाधान


बहुउद्देश्यीय विद्यालयों को स्थापना की गई है, लेकिन उनमें अनेक समस्यायें उपस्थित हो गई हैं। अतः इन समस्याओं का समाधान विद्यालयी प्रबन्धतंत्र प्रधानाचार्य, शिक्षकों, अभिभावकों, समाजसेवियर्ण शिक्षाविदों आदि के पारस्परिक सहयोग से किया जाना चाहिए।


19. अपाध्यय तथा अवरोधन की समस्या का समाधान


विधियों में सुधार तथा परिवर्तनकों की तथा आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षण विधियों का प्रयोग परीक्षा प्रणाली में अपेक्षित सुधार एवं परिवर्तन, विद्यालयों की कार, मनोरंजक तथा सांस्कृतिक क्रियाओं का आयोजन चयनित विद्यार्थियों का प्रवेश निर्धनता के कारण पढ़ाई छोड़ देने आले के लिए व्यावसायिक तथा अंशकालिक पाठ्यक्रम का संचालन आदिको कार्याव्बर से अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या को दूर किया जा सकता है।


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