शिक्षा के क्षेत्र में दर्शन की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्व ( The need, utility and importance of philosophy in the field of education )
दर्शन की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्व :
दर्शन की आवश्यकता: शिक्षा सम्बन्धी समस्यायों का समाधान दर्शन करता है । शिक्षा के सभी अंग दर्शन के द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं । चूंकि शिक्षा दर्शन में दर्शन मनुष्य के जीवन की व्याख्या कर उसके अंतिम उद्देश्य और उसकी प्राप्ति के लिए साधन निश्चित करता है और शिक्षा में इन उद्देश्यों एवं साधनों की व्याख्या होती है । अतः कहा जा सकता है कि शिक्षा और दर्शन एक दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं ।इसलिए इसके अध्ययन की आवश्कयता नितान्त रूप से आवश्यक है । शिक्षा दर्शन शिक्षा की समस्यायों का हल निकालता है । दर्शन शिक्षा की समस्याओं का दार्शनिक दृष्टिकोण से अध्ययन करता है । शिक्षा दर्शन , शिक्षा के स्वरूप को समझने और शिक्षा की विभिन्न समस्याओं का समाधान ढूँढता है । यही शिक्षा दर्शन की आवश्यकता , उपयोगिता और महत्व है । जिसे निम्नलिखित रूपों में क्रमबद्ध किया जा सकता है -
ब्रह्माण्ड और मानव जीवन के लक्ष्य का ज्ञान : -
ब्रह्माण्ड का ज्ञान शिक्षा दर्शन के अध्ययन से शिक्षक प्राप्त करता है । शिक्षा दर्शन इस ब्रह्माण्ड को समझने के लिए मनुष्य को अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है । शिक्षा दर्शन में विभिन्न दर्शनों के अध्ययन से वह अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है । जीवन के लक्ष्य को निर्धारित करके यह शिक्षा के लक्ष्य को भी निर्धारित कर सकता है ।- केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड - Central Advisory Board of Education
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शिक्षा के स्वरूप और उद्देश्य का ज्ञान :-
इस दर्शन के अन्तर्गत बालक विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का अध्ययन करता है । प्रत्येक दर्शन अपनी विचारधारा के अनुकूल शिक्षा कस स्वरूप और उद्देश्य निर्धारित करता है । मनुष्य अपने जीवन के उद्देश्यों को शिक्षा के माध्यम से प्राप्त करता है । इसलिए शिक्षा के वही उद्देश्य होते हैं जो मानव के होते हैं । शिक्षा के उद्देश्यों के अनुसार ही शिक्षा का महत्व होता है । अतः शिक्षा दर्शन के अध्ययन से हमें शिक्षा के स्वरूप और उद्देश्यों का ज्ञान प्राप्त होता है ।शिक्षा के पाठ्यक्रम का ज्ञान : -
शिक्षा के उद्देश्यों के अनुसार ही शिक्षा का पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाता है । विभिन्न दर्शनों के द्वारा शिक्षा के उद्देश्य भिन्न - भिन्न निर्धारित किए गए हैं । इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अनुकूल पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है । शिक्षा दर्शन के अध्ययन के माध्यम से शिक्षक को पाठ्यक्रम के निर्धारण के सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त होता है । शिक्षक पाठ्यक्रम का ज्ञान प्राप्त करके शिक्षा प्रक्रिया को सही ढंग से आगे बढा सकता है ।शिक्षण विधियों का ज्ञान : -
इसके अध्ययन से शिक्षक के विभिन्न शिक्षण विधियों का ज्ञान प्राप्त होता है । ये शिक्षण विधियां विभिन्न शिक्षा शास्त्रियों एवं दार्शनिकों द्वारा प्रतिपादित होती हैं । विभिन्न शिक्षा दार्शनिकों ने कब , किसको और किस प्रकार पढ़ाना चाहिए के लिए विभिन्न शिक्षण विधियों का निर्माण किया है । इन शिक्षण विधियों का ज्ञान शिक्षक को शिक्षा दर्शन के अध्ययन से ही प्राप्त होता है , उन्हें उसका ज्ञन भी हो जाता है कि कब , कौन सी शिक्षण विधियों का प्रयोग की जाए ।शिक्षा में अनुशासन सम्बंधी दृष्टीकोण का ज्ञान : -
शिक्षा दर्शन में विभिन्न दर्शनों के अन्तर्गत शिक्षा में अनुशासन के स्वरूप के सम्बंध में विचार व्यक्त किए जाते हैं । इन विचारों का अध्ययन करके शिक्षक अनुशासन के वास्तविक स्वरूप को समझ सकता है । वह अनुशासन स्थापित करने के लिए सही उपयों को प्रयोग में लाता है ।शिक्षक ओर शिक्षार्थी के स्थान का ज्ञान : -
शिक्षा दर्शन का अध्ययन करके शिक्षक , शिक्षा में शिक्षक और छात्र के स्थान को समझता है । वह शिक्षण प्रक्रिया में अपना और बालक का स्थान निश्चित करने के लिए विभिन्न दर्शनों की सहायता लेता है । शिक्षा दर्शन में विभिन्न दर्शन अपनी विचारधारा के अनुसार शिक्षक व छात्र का स्थान निर्धारित करते हैं । शिक्षा दर्शन का अध्ययन करके ही कोई बालक ओर अपना स्थान निर्धारित कर सकता है ।विद्यालय के स्वरूप और कार्यों का ज्ञान : -
दर्शन में विभिन्न दार्शनिकों तथा शिक्षा शास्त्रियों के विद्यालय सम्बन्धी विचारों का भी अध्ययन कियाक जाता है । अलग - अलग दर्शनों को मानने वाले विद्यालय के सम्बन्ध में भिन्न - भिन्न विचार व्यक्त करते हैं । शिक्षक इन विचारों का अध्ययन कर इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि उसे अपने शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विद्यालय के कौन से स्वरूप और कार्यों को निर्धारित करना चाहिए । अतः शिक्षक को शिक्षा दर्शन का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक है । शिक्षाशिक्षा की समस्यायों का दार्शनिक हल निकालना :
दर्शन के अध्ययन के अभाव में शिक्षक शिक्षा की समस्यायों का हल नहीं निकाल पाता है । शिक्षा दर्शन का अध्ययन करके शिक्षक विभिन्न दार्शनिकों शिक्षा शास्त्रियों द्वारा शिक्षा की समस्यायों का समाधान समझने में सफल होता है । वह शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम शिक्षण विधि , अनुशासन आदि के समस्यायों का समाधन करके उनसे जुड़ी हुई समस्यायों का समाधन करने में सफल होता है ।You May Also Like This
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