Macbeth by William Shakespeare in Hindi

Macbeth By Williams Shakespeare

Macbeth ( Hindi drama)  By Williams Shakespeare (Act 2) दूसरा अंक

(Scene 1) दृश्य 1

[इनवर्नेस; मैकबेथ के महल का आँगन]

[बैंको और फ्लीन्स का मशालें लिए हुए प्रवेश]

बैंको : फ्लीन्स ! क्या बज रहा होगा इस समय ?

पलीन्स : चाँद तो छिप गया है । घण्टे की आवाज़ अभी तक मैंने नहीं सुनी है, पिताजी ।

बैंको : चाँद तो बारह बजे छिप जाता है ।

फ्लीन्स : पर मेरे विचार से तो इस समय बारह से अधिक ही बज रहा होगा ।

बैंको : अच्छा, तो यह लो मेरी तलवार और यहाँ खड़े रही । अंधेरा हो गया । मालूम होता है आसमान भी चाँद को छिपाकर इसके लिए सतर्क है कि इस संसार में अधिक प्रकाश न आ पाए । उनकी सभी मशालें बुझ चुकी हैं, इसे भी ले जाओ । मेरी आँखें तो गहरी नींद के कारण इस तरह झुकी पड़ रही हैं मानो कोई शीशे का-सा बोझ इन पर पड़ा हो, लेकिन फिर भी मैं सोना नहीं चाहता । ओ दयालु स्वर्ग के देवताओ ! सोते समय मेरे मन में जो कभी-कभी पाप भरे हुए काले विचार उठते हैं, उन्हें रोक दी ।

कौन आ रहा है यहाँ ? मेरी तलवार दी ।

[मैकबेथ का प्रवेश; साथ में एक सेवक मशाल लिए]

मैकबेथ : कोई अन्य नहीं, एक मित्र !

बैंको : ओ, क्या श्रीमान् अभी तक सोए नहीं ? सम्राट् सो गए हैं । बड़े ही प्रसन्न थे आज वे । तुम्हारे सेवकों को बड़े-बड़े पुरस्कार भेजे हैं उन्होंने । तुम्हारी पत्नी ने उनका हार्दिक स्वागत किया है, इसीलिए यह हीरा उन्होंने उसको उपहारस्वरूप भेजा है । अब पूर्ण सुख और सन्तोष के साथ वे सो गए हैं ।

मैकबेथ : वैसे तो पूरी तरह स्वागत की तैयारी के लिए हमें पर्याप्त समय नहीं मिल सका । अत: स्वागत में कुछ त्रुटियाँ अवश्य रह गईं, जो अधिक समय मिलने पर न रहतीं ।

बैंको : जैसा भी हुआ बहुत सुन्दर है ! छोड़ो इसे ।…हाँ सुनो, कल रात को सपने में फिर मैंने उन तीनों डायन बहिनों को देखा था । तुम्हें तो उनकी बात कुछ सच्ची भी पड़ी है ।

मैकबेथ : मैं उनके बारे में अब कुछ नहीं सोचना चाहता पर फिर भी यदि तुम अपना कोई समय निकाल सको, तो कुछ समय बैठकर हम इसके बारे में बातें करें ।

बैंको : जब तुम्हें सुविधा हो, मैं तो हर समय तुम्हारी सेवा में उपस्थित हूँ ।

मैकबेथ : ठीक है, समय आने दो, यदि उस समय तुमने मेरी बात मानी तो इससे तुम्हें उच्च सम्मान मिलेगा, बैंको !

बैंको : अवश्य मानूँगा, पर इस नये सम्मान को पाने के लिए मैं लोगों के तथा सम्राट् के हृदय में जो कुछ भी मेरा सम्मान है, उसे नहीं खोना चाहता । मेरी आत्मा पहले की तरह ही पवित्र रहे और किसी प्रकार का विश्वासघात सम्राट् के प्रति मुझे न करना पड़े, तो अवश्य मैं तुम्हारी बात मानूँगा ।

मैकबेथ : अच्छा, जाओ, इस बीच में जाकर तुम कुछ आराम कर लो ।

बैंको : धन्यवाद ! तुम भी इस समय आराम कर लो ।

[बैंको और फ्लीन्स का प्रस्थान]

मैकबेथ : (सेवक से) जाओ और अपनी स्वामिनी से जाकर कह दो कि मेरी शराब की व्यवस्था हो जाए तो घंटी बजाकर मुझे बुला लें । तुम उसके बाद जाकर सो सकते हो ।

[सेवक जाता है]

मेरे सामने रखी हुई क्या यही वह कटार है जिसकी मूठ मेरी तरह मुड़ी हुई है । आ, ओ प्यारी कटार ! मेरे हाथों को आकर चूम ले । …लेकिन हैं ! यह क्या ? मैं तुझे अपनी आँखों के सामने देख रहा हूँ और फिर भी अपने हाथ में नहीं ले पा रहा हूँ । ओ मौत की-सी डरावनी कल्पना पैदा करने वाली शक्ति ! तुझे क्या मैं केवल देख ही सकता हूँ, हाथ से छू नहीं सकता ? या बता, तू मेरे मस्तिष्क की कल्पना-मात्र तो नहीं है, जो मनुष्य के ऐसे भावावेश में निश्चित ही धोखा देने के लिए आती है ? अब भी मैं देख रहा हूँ, तू उतनी ही वास्तविक दीख रही है जैसे मेरी यह तलवार जिसे मैं म्यान में से खींचता हूँ । 

तू मुझे ठीक उसी तरफ ले जा रही है, जहाँ मैं जाना चाहता था । तब क्या तू उस मन्त्र की तरह नहीं है जिसे मुझे इस अवसर के लिए प्रयोग में लाना चाहिए ? अवश्य ! तब या तो मेरी आँखें मुझे धोखा दे रही हैं या शरीर की अन्य इंद्रियों को छोड़कर ये आँखें ही विश्वास करने के योग्य हैं । अभी तक भी मैं तुझे अपनी आँखों के सामने देख रहा हूँ और…यह क्या ? जहाँ पहले कुछ नहीं था, वहाँ तेरी इस मूठ और धार पर खून की बूँदें…नहीं ! नहीं !! ऐसी कोई चीज़ नहीं है । यह मेरा खूनी षड्यन्त्र है, जो मुझे यह सब कुछ दिखा रहा है । आधी से ज्यादा दुनिया के आदमी मुर्दों की तरह रात की छाया में सोए हुए हैं । न जाने कितने डरावने और बुरे-बुरे सपने इस समय उनके मस्तिष्क में कोलाहल मचा रहे होंगे ।

अरे, यह क्या ? ये तो डायनें हैं । मालूम होता है अपनी देवी हिकेट को बलि चढ़ाने के लिए ही ये यहाँ इक्टूठी हुई हैं । यह भेड़िया भी पुकार-पुकारकर बता रहा है कि अभी रात है, और इसी भरोसे, मन में घबराया हत्यारा, हत्या करने के लिए चुपके से एक दैत्य की तरह ऐसे जा रहा है, जैसे तारकिन ल्यूसिरस के साथ व्यभिचार करने के लिए गया था ।

ओ पृथ्वी ! जिधर भी मेरे ये कदम जाएँ, उनकी आवाज़ को मत सुनना । मुझे डर है कि ये बेजान पत्थर भी कहीं न बोल उठें और मेरे बारे में बातें न

करने लग जाएँ । इस समय जो सन्नाटा है, जिसमें भय की काली छायाएँ चुपचाप खड़ी हुई हैं, बस यही अवसर के लिए ठीक है ।…

ओ, मैं अभी तक ये डर की बातें ही कर रहा हूँ और वह डंकन अभी तक जीवित सोया हुआ है ।…नहीं…

ओ ! ठीक ही है, इस तरह कोरी भावुकता और कल्पना की उड़ान किसी कार्य के आवेश को ठण्डा कर ही देती है ।

[घण्टी बजती है]

पर क्या है, मैं गया और यह काम पूरा हुआ । ओ, वह घण्टी मुझे बुला रही है । मत सुन डंकन इसे ! यह वह आखिरी घण्टी है जो तेरी मौत को बुला रही है । [जिाता है]

Macbeth ki kahani in hindi.

(Scene 2) दृश्य 2.


[वही स्थान; लेडी मैकबेथ का प्रवेश]

लेडी मैकबेथ : उसी शराब ने. जिससे वे नशे में चूर पड़े हुए हैं. मेरे खून में वीरता का एक जोश भर दिया है । जिसने उन्हें पागल बना दिया है और वे बेहोश पड़े हैं. उसी से मेरे अन्दर एक आग-सी जल उठी है ।

वह सुनो. शान्त!

वह उल्लू पुकार-पुकारकर उस अभागे को मौत की सूचना दे रहा है । बस, अब यम के दूत उनकी आँखों के सामने आ गए होंगे ।

...दरवाज़े खुले हुए हैं और शयनागार में सभी अधिकारी शराब के नशे में धुत्त इस तरह खर्राटे ले रहे हैं, मानो वे अपने कर्तव्य की हँसी-सी उड़ा रहे हों । पर, हाँ, मैंने उनकी शराब में ज़हर मिला दिया है, इसलिए अब ज़िन्दगी और मौत का संघर्ष है । देखती हूँ । वे जीवित रहते हैं या नागिन मौत उन्हें डस जाती है ।

मैकबेथ : (अन्दर से घबराकर) कौन ? कौन है वहाँ ? क्या है ?

लेडी मैकबेथ : हाय मुझे डर है कि उनकी नींद खुल गई है और अभी तक तुमने काम पूरा नहीं किया । इस तरह काम शुरू करके अ्रधूरा छोड़ देने से तो हमारा सर्वनाश हो जाएगा । सुनो ! मैंने उनकी कटारों को तैयार कर दिया है और उनसे वह नहीं बच सकता । सच कहती हूँ, यदि सोती अवस्था में उसका चेहरा मेरे पिता के चेहरे से मिलता हुआ न होता तो स्वयं मैं इस काम को कर डालती, मेरे पति !

[मैकबेथ का प्रवेश]

मैकबेथ : कर डाला है मैंने यह काम ! क्या तुमने कोई आवाज़ नहीं
सुनी ?

लेडी मैकबेथ : सिर्फ उल्लू और झींगुरों को सन्नाटे में पुकारते हुए सुना था । क्या तुम कुछ नहीं बोलते थे ?

मैकबेथ: कब?

लेडी मैकबेथ: अभी-अभी ।

मैकबेथ : जिस समय मैं उतरा था उस समय की बात कर रही हो ?

लेडी मैकबेथ : हाँ, हाँ उसी समय ।

मैकबेथ : सुनो, उस दूसरे शयनागार में कौन सो रहा है ?

लेडी मैकबेथ: डोनलबेन ।

मैकबेथ : [अपने हाथों की ओर देखता हुआ] ओ, कैसा दुखदायी है यह हाथों का खून ! ओह ! …कितना बुरा ।

लेडी मैकबेथ : दुखदायी, बुरा ? अब यह कहना तो मूर्खता है ।

मैकबेथ : ओह, वहाँ एक तो अपनी नींद में ही खिल-खिलाकर हँस पड़ा था और दूसरे ने ज़ोर से पुकारा था-'हत्या ! हत्या !’ इस तरह उन दोनों पहरेदारों ने एक-दूसरे को जगा दिया । मैं खड़ा रह गया और मैंने उनकी बातें सुननी चाहीं, लेकिन उन्होंने तो उठ कर ईश्वर से प्रार्थना ही की और फिर बिना कुछ बोले एक-दूसरे की तरफ इशारा करके वे सी गए ।

लेडी मैकबेथ : वहाँ तो दो आदमी साथ-साथ सो रहे हैं ।

मैकबेथ : एक पुकार उठा था-‘‘हे ईश्वर ! बचाओ !' और दूसरा सिर्फ ‘आमीन’ कहकर ऐसे कहता-कहता रुक गया, मानो उन्होंने मुझे मेरे इन खून से रंगे हाथों के साथ देख लिया हो । उनके मुँह से निकलते शब्द भय से काँप रहे थे । उन्हें सुनकर मैं 'आमीन' तक भी न कह सका, जबकि उन्होंने कहा-‘हे ईश्वर ! बचाओ हमें ।'

लेडी मैकबेथ : इतनी गहराई से इस बात को न सोचो । यह सब कुछ भी नहीं है ।

मैकबेथ : लेकिन, फिर मेरे मुँह से 'आमीन' तक भी उस समय क्यों नहीं निकल पाया, जबकि ईश्वर की सहायता की मुझे आवश्यकता थी और ‘आमीन’ यह शब्द मेरे गले में ही अटक रहा था ।

लेडी मैकबेथ : ऐसे कार्यों में इस तरह सोचते हुए नहीं उलझना चाहिए । नहीं ! इस तरह सोचते हुए तो हम पागल हो जाएँगे ।

मैकबेथ : मुझे याद आ रहा है, उसी समय मैंने किसी को पुकारते हुए सुना था-‘बस, अब अधिक मत सोओ । मैकबेथ नींद की हत्या कर रहा है ।'

वह नींद, जिसकी गोद में सोया हुआ प्रत्येक प्राणी अबोध-सा मालूम होता है, वह नींद, जिसमें मनुष्य के जीवन की चिन्ताएँ इस तरह मिट जाती हैं, मानो कोई रेशम के उलझे हुए गुच्छे को सुलझा दे, वह नींद, जिसके आँचल में मुँह ढक के दिन-भर का थका प्राणी सोता है, तो उसके दु:ख और चिन्ता से बिंधे हृदय को शान्ति देती है । वह नींद, जो मनुष्य में एक नई स्फूर्ति भरती है !

लेडी मैकबेथ : क्या कहना चाहते हो तुम ? इस सबसे क्या मतलब है तुम्हारा ?

मैकबेथ : अभी तक भी पूरे महल में वही आवाज़ चीखती हुई फिर रही है- अब और अधिक मत सोओ । ग्लेमिस ने नींद की हत्या कर दी है और इसलिए काउडोर अब और अधिक नहीं सो पाएगा । मैकबेथ अब कभी नहीं सो सकेगा ।

लेडी मैकबेथ : कौन था वह जो कि ऐसे चिल्लाया था, श्रेष्ठ थेन ? क्यों तुम इस तरह पागलों की-सी बात बनाकर अपने पौरुष पर धब्बा लगाना चाहते हो । जाओ, और पानी लेकर अपने हाथों में लगे इन खून के दागों को धो डालो ।…पर हैं । यह क्या ? इन कटारों को तुम उस जगह से क्यों उठा लाए ? इन्हें तो वहीं छोड़ देना चाहिए था । जाओ, जाओ, इन्हें वहीं ले जाकर रख दो और उन सोए हुए पहरेदारों को खून के दागों से पूरी तरह सानकर आ जाओ ।

मैकबेथ : नहीं, नहीं, अब मैं वहाँ नहीं जा सकता । ओह ! क्या किया मैंने यह ! सोचकर मेरा हृदय डर से काँप रहा है । मेरा उस तरफ देखने तक का अब साहस नहीं होता ।

लेडी मैकबेथ : क्या ? ओ अपने इरादे में इस तरह काँपने वाले आदमी ! दो मुझे इन कटारों को । नींद और मौत की छाया में सोए पड़े हुए ये सभी आदमी मुर्दा तस्वीरों की तरह हैं ? क्या ये किसी तरह का रोड़ा बनकर नुकसान पहुँचा सकते हैं । शैतान की तस्वीर देखकर तो घुटनों के बल चलने वाला एक बच्चा भी डरता है । मैं जाती हूँ । अगर उस डंकन के शरीर से अभी तक भी गरम खून निकल रहा होगा तो उसी से मैं उन सोए हुए पहरेदारों के चेहरे को रंग दूँगी । इस हत्या का शक-शुबहा उन्हीं पर होना चाहिए । [जाती है]

[अन्दर खटखट की आवाज़]

मैकबेथ : यह खटखट की आवाज़ कहाँ से आ रही है ? ओह ! यह क्या हो गया है मुझे ? हर आवाज़ मुझे डरा रही है ।

[अपने खून से रंगे हाथों की ओर देखकर] क्या ? ओह ! कैसे हाथ दिखाई दे रहे हैं ये मेरी आँखों के सामने ? देखो, मेरी आँखों को नोच-नोचकर निकाल रहे हैं ये । क्या हुआ यह ! मेरे हाथों से इन दागों को तो समुद्र का सारा पानी भी नहीं मिटा सकेगा । नहीं ! इनसे तो उसका नीला पानी भी एक बार लाल हो जाएगा ।

[लेडी मैकबेथ का पुनः प्रवेश]


लेडी मैकबेथ : देखो, मेरे हाथ अब तुम्हारे हाथों की तरह ही लाल हैं, लेकिन तुम्हारा-सा कायर हृदय हो तो धिक्कार है मुझे ।
[अन्दर खटखट की आवाज़]

दक्षिण द्वार पर कुछ खटखट सुनाई दे रही है । बस अब हमें अपने कमरों में चलना चाहिए । थोड़ा-सा पानी ही हमारे हत्या के सारे अपराध को धो देगा । थोड़ा-सा पानी ही… फिर क्या प्रमाण रहेगा । कितना आसान है तब यह ! तुम्हारे स्वभाव में जो दृढ़ता और साहस था वह तो पूरी तरह मर चुका है ।

[अन्दर खटखट की आवाज़]

वह सुनो, कोई बराबर दरवाज़ा खटखटाए जा रहा है । अपने कपड़े पहन लो । हो सकता है हमें वहाँ जाना पड़ जाए, तो उस समय यही मालूम होगा कि हम सम्राट् की रक्षा के लिए ही जाग रहे हैं । ठीक है न ? अब ऐसे पागलों की तरह कहीं खोए-खोए न रहो ।

मैकबेथ : मुझे याद आ रहा है । अब भी वह खून मेरी आँखों के सामने दीख रहा है । ओह ! कितना अच्छा हो मैं पागल हो जाऊँ ।

[अन्दर फिर खटखट की आवाज़]

जाग जा, ओ डंकन ! आवाज़ से आँखें खोल ले । ओह ! मैं कितना चाहता हूँ कि अब तू फिर जाग जा । [जाता है]

Macbeth ki kahani in Hindi.
(Scene 3) दृश्य 3


[वही स्थान; एक द्वारपाल का प्रवेश]

[अन्दर वही खटखट की आवाज़]

द्वारपाल : सचमुच कोई दरवाज़ा खटखटा रहा है । ओ, चाहे कोई यमपुरी के द्वार का द्वारपाल ही क्यों न हो, उसे बार-बार दरवाज़ा खोलने में कितना काम करना पड़ता है ।

[ से फिर खटखट की आवाज़]

खटखट, खटखट, क्या है यह खटखट ? यमराज के नाम पर मैं पूछता

हूँ कौन हो तुम ? बताओ । अच्छा, तो यह वही किसान है जिसने यह देखकर कि फसल खूब हो रही है और अब उसका इकट्ठा किया हुआ अनाज बहुत सस्ता बिकेगा, अपने गले में फन्दा पहनकर अपने-आपको फाँसी दे ली थी ? ओ, ठीक, इस नरक में घुसने के लिए ठीक समय पर आए हो तुम । ठीक है, ठीक है, पर हाँ, यह तो बताओ, तुम्हारे पास रूमाल तो काफी होंगे ही, क्योंकि यहाँ इस नरक में इतना पसीना तुम्हारे शरीर से निकलेगा कि पूरी तरह बहने लग जाएगा ।

[अन्दर फिर खटखट]

फिर खटखट, खटखट । मैं दूसरे शैतान के नाम पर पूछता हूँ, कौन हो तुम ? बोलो । ओ, ठीक, ठीक, समझ गया, दुरंगा आदमी, एक ही समय में दो-दो बातें कहने वाला आदमी । ओ, सच और झूठ दोनों बातों में सौगन्ध खाकर ईमान उठा जाने वाला आदमी । वही जो भगवान की आड़ में खुलकर अनाचार और अत्याचार करता था ? फिर भी इस झूठ और सच से स्वर्ग नहीं जा सका न ? ठीक है, ठीक है, आ जाओ, ओ दुरंगे आदमी, यहाँ तुम्हारे लिए जगह है ।

[अन्दर फिर खटखट की आवाज़]

खटखट, खटखट, समझ में नहीं आता फिर यह क्या खटखट है ? कौन हो तुम ! ओ दर्जी ! ठीक है, वही दर्जी हो न तुम, जो उस सीने को दिए गए बिरजिस के कपड़े में से कुछ चुरा रहे थे ! अन्दर आ जाओ, दर्जी ? आओ । यहाँ इस नरक में तुम्हारे लोहे के लिए खूब आग मिलेगी । आ जाओ ।

[अन्दर फिर खटखट]

फिर खटखट, अब भी चैन नहीं । ओह ! आखिर तुम कौन हो ? बोलो !

पर हाँ, अरे यहाँ तो इतनी ठण्ड है, फिर नरक कैसे हो सकता है यह ? मैं भूल रहा हूँ । नहीं अब और अधिक इस यमपुरी का द्वारपाल मैं नहीं बनूँगा । मैंने सोचा था कि सभी तरह के पेशेवरों को, जो आसानी से पाप करते रहते हैं, आसानी से ही नरक की उस जलती हुई आग के पास चला जाने दूँ ।

[अन्दर फिर खटखट की आवाज़]

हाँ, हाँ, पर मेरी यह प्रार्थना है कि बेचारे इस द्वारपाल की ओर से नज़र फेर जाना ।

[द्वार खोलता है]

[मैकडफ और लैनोक्स का प्रवेश]

मैकडफ : क्यों ? क्या रात बहुत देर से सोए थे जो अभी तक भी बिस्तरे

में पड़े हुए हो?

द्वारपाल : नहीं, सच मानिए, स्वामी । मुर्गे की दूसरी बाँग तक हम जागते रहे थे ।

मैकडफ : क्या तुम्हारे स्वामी यहीं हैं ?

[मैकबेथ का प्रवेश]

अरे, वे तो आ रहे हैं । मालूम होता है हमारे इस तरह बार-बार खटखटाने से उनकी नींद टूट गई है ।

लैनोक्स : अभिवादन करता हूँ, श्रेष्ठ !

मैकबेथ : आप दोनों को भी मेरी ओर से अभिवादन है ।

मैकडफ : श्रेष्ठ थेन ! क्या सम्राट् जाग गए हैं ?

मैकबेथ : अभी तक तो नहीं जागे मालूम होते हैं ।

मैकडफ : उन्होंने तो मुझसे इससे पहले ही आने की कह दी थी, पर मुझे कुछ देर हो गई ।

मैकबेथ : चलो, मैं तुम्हें वहाँ ले चलता हूँ ।

मैकडफ : श्रेष्ठ थेन ! मैं जानता हूँ कि तुम यह सब कुछ खुशी से ही कर रहे हो, पर इसमें तुम्हें तकलीफ तो अवश्य होगी ।

मैकबेथ : जिस काम को करने में हृदय की खुशी हो, उसमें तकलीफ कैसी ? देखो, वही दरवाज़ा है ।

मैकडफ : वहाँ से मुझे उनको पुकारना चाहिए । क्यों नहीं ? हमें तो इतना अधिकार मिला ही हुआ है । (मैकडफ जाता है)

लैनोक्स : क्या सम्राट् यहाँ से आज ही वापस जाएँगे ?

मैकबेथ : हाँ, इरादा तो उनका यही है ।

लैनोक्स : आज रात कैसी डरावनी थी । मालूम है, जहाँ हम सो रहे थे, वहाँ जलती हुई चिमनियाँ टूट-टूटकर हवा के झोंकों के साथ नीचे गिर पड़ीं और कुछ तो कहते हैं कि हवा की साँय-साँय में कुछ मौत की-सी बड़ी डरावनी चीख सुनाई देती थी । ऐसा लगता था, मानो कि वे चीखें और भी ज़ोर से पुकारकर रही थीं-‘सावधान, बुरा समय आ रहा है ।' उल्लू भी रात-भर अपनी बुरी भयावनी बोली में बोलता रहा । कुछ तो यहाँ तक कहते हैं कि सबसे डरकर, एक बार तो पृथ्वी भी थर-थर काँप उठी थी ।

मैकबेथ : हाँ, यह रात तो इतनी ही डरावनी थी ।

लैनोक्स : अपनी छोटी-सी याद में तो मैंने ऐसी रात कभी नहीं देखी ।

[मैकडफ का पुनः प्रवेश]

मैकडफ : ओ, गजब ! गजब हो गया !! गजब हो गया !!! न तो कुछ मुँह से कहते ही बनता है और न हृदय कभी भी इसकी कल्पना ही कर सकता था

मैकडफ : मौत की काली छाया नाच रही है । ओ ! किसी घृणित हत्यारे ने सम्राट् का खून कर दिया !

मैकबेथ : क्या ? क्या कह रहे हो तुम ? खून ? यहाँ ?

लैनोक्स : सम्राट् का खून ?

मैकडफ : हाँ, जाओ, विश्वास न हो तो उस कमरे में जाकर उस भयानक दृश्य को देख लो और अपनी आँखें फोड़ लो । मत कहो मुझसे कुछ कहने के लिए । स्वयं जाकर तुम देखो और समझो ।

[मैकबेथ और लैनोक्स जाते हैं]

उठो! उठो !!

खतरे की घण्टी बजा दो । खून ! षड्यन्त्र ! बैंको ! डोनलबेन ! मैलकॉम ! कहाँ हो ? उठो ! मौत की-सी गहरी नींद को दूर करो । देखो, यह खून ! हत्या ! उठो ! उठो !! यह देखो प्रलय का अन्तिम दिन आ गया ! मैलकॉम ! बैंको ! छोड़ दो अपनी नींद और मौत के इस भयानक दृश्य को देखने के लिए उसी तरह उठे चले आओ, जैसे भूत-प्रेत अपनी-अपनी कब्रों से उठकर चले आते हैं ! बजा दो खतरे की घण्टी ।

[घण्टी बजती है]

लेडी मैकबेथ : क्या हुआ यह ? सभी सोए हुए लोगों को उठाने के लिए यह खतरे की घण्टी कैसे बजाई जा रही है ! बोलो, बताओ क्या हुआ ?

मैकडफ : ओ, देवी ! मत पूछो मुझसे । जो कुछ मैं बताऊँगा वह तुम्हारे सुनने लायक नहीं है । तुम स्त्री हो और स्त्री को ऐसी बात बताना उसकी हत्या करने के बराबर है देवी !

[बैंको का प्रवेश]

ओ बैंको! ओ बैंको !!

हमारे स्वामी का किसी नीच हत्यारे ने खून कर डाला है ।

लेडी मैकबेथ : हैं ! क्या कहा ? खून ? हमारे घर में खून ?

बैंको : कहीं भी होता उतना ही बुरा होता, देवी ! पर नहीं ! मत कहो यह । मेरे प्यारे, डफ ! कह दो कि यह सब कुछ झूठ है । नहीं… ।

[मैकबेथ तथा लैनोक्स का पुनः प्रवेश]

मैकबेथ : ओह, क्या अच्छा होता कि ऐसे अभागे समय से एक घण्टा पहले ही में मर जाता, तो मैं अपनी अन्तिम श्वासें तो सन्तोष के साथ ले सकता । पर क्या है अब ? इसी क्षण से मुझे लगता है कि कोई सत्य नहीं है मनुष्य के इस क्षुद्र जीवन में । उसका यह सब अहंकार मिट्टी के खिलौनों का-सा खेल है ? क्या यश और गौरव अभी भी जीवित है ? नहीं ! ज़िन्दगी की शराब लुट चुकी है और इस आसमान के नीचे खोखली दुनिया में अब सिर्फ गन्दगी और कीचड़ बच रही है ।

[मैलकॉम तथा डोनलबेन का प्रवेश]

डोनलबेन : क्या हुआ है यह ?

मैकबेथ : तुम यहाँ हो और तुम्हें अभी कुछ पता ही नहीं ? ओ डोनलबेन ! वही सोता जो तुम्हारी जीवन-लता को पानी देकर सींचा करता था, आज हमेशा-हमेशा के लिए सूख गया है । तुम्हारे जीवन का आधार मिट गया है ।

मैकडफ : किसी हत्यारे ने तुम्हारे पिता सम्राट् का खून कर डाला है ।

मैलकॉम : हैं, क्या कहा ? किसने किया है यह सब ?

लैनोक्स : मालूम तो यही होता है कि उनके शयनागार के पहरेदारों ने ही यह काम किया है । उनके हाथ और चेहरे सब खून से रंगे हुए थे और इसी तरह उनकी कटारें भी मानो खून में डूबी हुई थीं । जब हमने उनके तकियों की तरफ देखा तब हमें खून से लथड़ी वहाँ पड़ी हुई मिलीं । हमारे वहाँ पहुँचते ही उन्होंने एक बार हमारी तरफ देखा और देखकर वे एक साथ कुछ घबरा-से गए । मुझे तो उन्हें देखकर ऐसा लगता था कि उनके बीच में तो हर किसी की जान को खतरा हो सकता था ।

मैकबेथ : पर ओह ! मैं अपने उस भावावेश के लिए कितना पछताता हूँ जिसने मुझसे उनका यह खून करवा दिया ।

मैकडफ : तुमने ? पर ऐसा किया क्यों तुमने ?

मैकबेथ : किया क्यों ? तो फिर तुम्हीं बताओ कि इस संसार में कौन ऐसा है जो ऐसे समय में शान्ति, धैर्य और बुद्धिमानी से काम ले सकता है, जब क्रोध की आग उसके हृदय में जल रही हो ? क्या एक वफादार आदमी इस तरह अपने स्वामी की हत्या का यह दृश्य देखकर अपने-आपको बस में रख

सकता था ? नहीं, कोई नहीं । सम्राट् के प्रति मेरे असीम प्रेम ने मेरी सारी बुद्धि पर परदा डाल दिया । मैंने देखा कि एक तरफ चाँदी की-सी देह वाला यह डंकन पड़ा हुआ था और उस देह पर हुए घावों को देखकर तो मुझे लगा कि यम के दूतों के घुसने के लिए किसी ने ये द्वार बना दिए थे । फिर ठीक दूसरी ओर मैंने देखा कि खून से भीगे हुए ये हत्यारे थे । उनकी कटारें पूरी तरह खून से सनी हुई थीं । फिर तुम्हीं बताओ कि जिसके हृदय में सम्राट् के प्रति निर्भीक प्रेम है वह कैसे अपने-आपको ऐसे अवसर पर बस में रख सकता था ।

लेडी मैकबेथ : ओह ! नहीं ! नहीं ! ले चलो मुझे यहाँ से । मुझे दूर ले चलो ।

मैकडफ : (सेवक से) इस देवी के पास रहो ।

मैलकॉम : हमारे मुँह क्यों बन्द हैं, डोनलबेन ! जबकि हमारे पिता का जीवन हमसे ही सबसे अधिक सम्बन्धित है ?

डोनलबेन : (मैलकॉम से) क्या बोलें हम यहाँ भाई ! जहाँ इसका डर है कि किसी कोने में छिपा हमारा दुर्भाग्य निकलकर कहीं हमें ग्रस न ले । चलो, यहाँ से कहीं दूर भाग चलें । अभी हमारा आँसू बहाने का समय यहाँ नहीं है ।

मैलकॉम : (डोनलबेन से) और न अभी कोई ऐसा कार्य करने का समय है, जिससे हम अपने गहरे दु:ख को प्रकट कर सकें ।

बैंको : इस देवी की देखभाल करना ।

[लेडी मैकबेथ बाहर लाई जाती है]

अब ठण्डी हवा से बचने के लिए सभी अपने-अपने कपड़े पहन लो और आओ । फिर मिलकर इस षड्यन्त्र का आगे तक कुछ पता लगाएँ । हमारे हृदय का डर और सन्देह हमारे कदमों को आगे बढ़ने से रोकता है । मैं उस परमात्मा की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि उन घृणित हत्यारों के छिपे हुए सारे षड्यन्त्र को खोज निकालूँगा ।

मैकडफ: यही में करूँगा ।

सभी : हम सब भी ऐसा ही करेंगे ।

मैकडफ : तो बस अब शीघ्रता से अपने-अपने कपड़े पहन लो और चलो सब लोग उस बड़े कमरे में इकट्ठे होकर कुछ योजना बनाएँ ।

सभी : स्वीकार है ।

[मैलकॉम और डोनलबेन को छोड़कर सभी चले जाते हैं]

मैलकॉम : क्या करोगे अब तुम, बताओ । मैं सोचता हूँ हमें अब उनके बीच में नहीं रहना चाहिए । बनावटी आँसू तो अपनी आँखों से वही आदमी आसानी से गिरा सकता है जो झूठा होता है । मैं तो अब इंगलैड चला जाऊँगा ।

डोनलबेन : तो मैं आयरलैण्ड चला जाऊँगा । हमारी सुरक्षा के लिए यही अच्छा है कि हम एक-दूसरे के पास न रहें और अपने दोनों के भाग्य को अलग-अलग राहों से चलने दें । इसी जगह जहाँ अब हम हैं, मुझे लगता है कि मनुष्य की मुस्कराहट में कटारें छिपी हुई हैं । यहाँ जिससे जितना निकट खून का सम्बन्ध है वह उतना ही खून का प्यासा है ।

मैलकॉम : और फिर हत्या के लिए छोड़ा हुआ तीर अभी अपने ठीक निशाने पर जाकर नहीं लगा है । हमारे लिए सबसे अच्छा इसी में है, डोनलबेन ! कि इस तीर के निशान से बचें । इसलिए चलो, अपना-अपना घोड़ा लें और शीघ्र यहाँ से भाग चलें । बस अब एक-दूसरे से संकोच करने में समय न बिताएँ । जानते हो, जहाँ से दया का नामोनिशान पूरी तरह उठ गया हो और चारों ओर खतरा ही खतरा दिखाई दे, वहाँ से चुपचाप भाग जाना ही अच्छा है ।

[जाते हैं]

Macbeth by William Shakespeare
(Scene 4) दृश्य 4

[मैकबेथ के महल के बाहर]

[रौस तथा एक वृद्ध पुरुष का प्रवेश]

वृद्ध : अपने जीवन के सत्तर बरस मैंने गुजारे हैं और इस बीच न जाने कितनी अजीब भयानक से भयानक घटनाएँ देखीं, पर इस डरावनी रात को देखकर तो मुझे अपना वह सारा अनुभव कुछ फीका-सा लगता है ।

रौस : ओह ! मेरे अच्छे पिता ! क्या आप नहीं देखते कि जहाँ मनुष्य ऐसे पाप करने लग जाते हैं वहाँ आकाश भी मन में क्रुद्ध होकर खून से सनी इस पृथ्वी को डराने लगता है । घड़ी में देखिए, दिन निकल आया है पर रात का वह अन्धकार सूर्य की किरणों को आकाश में ही रोके हुए है । क्या है यह ? इस समय जब सूर्य की उन जीवनदायिनी किरणों को आकर पृथ्वी को चूमना चाहिए था, उस समय चारों ओर यह रात का अन्धकार कैसा ? मुझे तो लगता है कि मनुष्य के इन घृणित पापों को शर्म के मारे सूर्य देखने का साहस नहीं कर रहा है ।

वृद्ध : जैसी घटना आज घटी है, वैसी कभी न तो सुनी और न देखी ।

मालूम है, पिछले मंगलवार को ही एक बाज गर्व में भरकर आकाश में उड़ रहा था तो छोटी-छोटी चुहिया मारने वाले एक उल्लू ने उसका पीछा किया और उसे मार गिराया ।

रौस : और डंकन के घोड़े कितने सुन्दर और विश्वास के साथ दौड़ने वाले हैं । सभी अच्छी नस्ल के हैं पर सच मानिए, कैसी विचित्र-सी बात है, वे सभी पागल हो गए हैं । उन्होंने अपनी लगाम आदि सभी बन्धन तोड़ डाले हैं । ऐसा मालूम होता है कि पूरी मनुष्य जाति के विरुद्ध विद्रोह करने पर वे तुल पड़े हैं । कितनी भी रोकने की कोशिश करने पर रुकते ही नहीं ।

वृद्ध : कोई कह रहा था कि वे एक-दूसरे का माँस नोच-नोचकर ही आपस में इस तरह एक-दूसरे को खा गए ।

रौस : ठीक यही बात है । जब मैंने देखा तो मुझे भी आश्चर्य होने लगा । लो श्रेष्ठ मैकडफ आ रहे हैं ।

क्यों अब क्या स्थिति है, श्रीमान् ?

[मैकडफ का प्रवेश]

मैकडफ : क्या तुम्हें कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा ?

रौस : हाँ, पर क्या कुछ पता लगा कि किस कमीने ने यह घोर पाप किया है ?

मैकडफ : उन्हीं द्वारपालों ने जिन्हें मैकबेथ ने मार डाला है ।

रौस : हाय ! अभागे दिन ! ऐसा करने में उन द्वारपालों को क्या मिलता ?

मैकडफ : उन्हें तो किसी ने इस काम के लिए किराये पर रखा मालूम होता है । कुछ सुना ? सम्राट् के दोनों पुत्र मैलकॉम और डोनलबेन न जाने छिपकर कहाँ भाग गए हैं, इसी से इस हत्या का शुबहा उन्हीं पर जाता है ।

रौस : यह भी कैसी अजीब-सी बात है । ओ, उनकी वह अन्धी और मतवाली महत्वाकाँक्षा उन माँ-बाप को भी खा गई जिन्होंने उन्हें इस संसार में जन्म दिया और पाल-पोसकर बड़ा किया है । तब तो अधिक सम्भव यही है कि मैकबेथ ही अब सम्राट् बनेंगे ।

मैकडफ : हाँ, हाँ, उन्हीं का नाम तो सबसे पहले लिया गया था । अब राज्याभिषेक के लिए ही वे ‘स्कोन' गए हुए हैं ।

रौस : डंकन का मृत शरीर कहाँ दफनाया गया है ?

मैकडफ : वहीं 'कॉमेलिक' में, जो उनके पूर्वजों के समय से ही राज्य-परिवार का पवित्र शमशान है । वहीं उनकी अस्थियाँ सुरक्षित रखी

जाती हैं ।

रौस : क्या तुम ‘स्कोन' जाओगे ?

मैकडफ : नहीं भाई ? मैं तो ‘फाइफ' जाऊँगा ।

रौस : अच्छा, तो मैं ‘स्कोन' जाता हूँ ।

मैकडफ : मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है, सब काम अमन-चैन से वहाँ पूरा हो जाए जिससे मैकबेथ का राज्याभिषेक डंकन के राज्याभिषेक की तरह शान्तिपूर्ण ढंग से हो जाए । अच्छा, अलविदा !

रौस : अलविदा ! अलविदा, पिताजी ।

वृद्ध : परमात्मा सदा तुम्हारे ऊपर दयालु रहे, और उन सब पर भी उसकी कृपा रहे जो बुराई को भी भलाई के रूप में बदल लेते हैं, और अपने शत्रु को भी मित्र बनकर गले लगा लेते हैं ।

(प्रस्थान)

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