भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया किस प्रकार लोक संस्कृति को प्रभावित करती है ?

भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया किस प्रकार लोक संस्कृति को प्रभावित करती है? विवेचना कीजिए ।

भारतीय ग्रामीण समुदाय में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में लोक संस्कृति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। वास्तव में लोक संस्कृति सम्पूर्ण ग्रामीण समुदाय के जीवन की ओर संकेत करता है। लोक संस्कृति पर आधुनिकीकरण का प्रभाव ब्रिटिश काल से ही आन्तरिक अभिव्यक्ति है तथा इसमें होने वाला कोई भी परिवर्तन सम्पूर्ण प्रामीण जीवन के परिवर्तन हो गया था।


भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया किस प्रकार लोक संस्कृति को प्रभावित करती है

इस समय आधुनिक ढंग से शिक्षण संस्थाओं की स्थापना होने से शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ जिसके फलस्वरूप ग्रामीण समुदाय के उन परम्परागत व्यवहारों में परिवर्तन आरम्भ हो गया जो लोक संस्कृति के आवश्यक अंग थे । परम्परागत लोक संस्कृति के अति लिखित कानूनों का अभाव था तथा परम्पराओं की अवहेलना अथवा आलोचना करना एक सामाजिक अपराध के रूप में देखा जाता था ।


आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के रूप में न केवल से वह ऐसे परम्परागत कानूनों का निर्माण हुआ बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया कि व्यवहारों की खुलकर आलोचना कर सकता है जो रूढ़िवादी हैं तथा समाज की प्रगति में बाधक है । इसके पश्चात् भी यह सच है कि भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में वो तीव्रता उत्पन्न हुई है उससे गाँवों की लोक संस्कृति कही अधिक आन्तरिक रूप से प्रभावित होने लगी है ।


यह आधुनिकीकरण का ही प्रभाव है कि आज गाँवों में धार्मिक विश्वासों का प्रभाव कम होने लगा है और उनके स्थान पर लौकिकीकरण तथा धर्म निरपेक्षता में वृद्धि हुई है । परम्परागत लोक संस्कृति के अन्तर्गत ग्रामीण अर्थव्यवस्था संगठित बाजारों पर आधारित नहीं थी तथा व्यक्ति अपने उपभोग के लिए ही उत्पादन करता था ।


आधुनिकीकरण के फलस्वरूप कृषि का व्यापारीकरण होने लगा । इस समय विशेषीकरण के आधार पर उत्पादित फसलें बाजार में नकद रूप में बेची जाने लग तथा उत्पादन के प्रति ग्रामीणों की प्रवृत्ति लाभ और हानि से सम्बन्धित हो गयी । इस नवीन स्थिति में नगरों के साथ ग्रामीणों के सम्पर्क में वृद्धि की जिसका लोक संस्कृति की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा ।


लोक संस्कृति व्यावहारिक रूप से एक मौखिक सांस्कृतिक परम्परा है जिसका हस्तान्तरण आगामी पीढ़ियों को मौखिक रूप से होता है । आधुनिकीकरण के अन्तर्गत प्रेस और लिखित विचारों का महत्व बढ़ जाने के कारण लोक संस्कृति के भी अब उसी भाग को अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है जो लिखित परम्परा के रूप में विकसित होते हैं ।


गाँवों में पढ़े - लिखे व्यक्ति अपनी लोक संस्कृति को जीवित रखने तथा उसका प्रसार करने के लिए इसे लिखित परम्प के रूप में विकसित करने का प्रयत्न करने लगे हैं । समकालीन ग्रामीण समाज में लोक संस्कृति का कुछ अंशों में व्यवसायीकरण भी हो गया है ।


लोक संस्कृति से सम्बन्धित नृत्य , संगीत एवं नाटक आदि का प्रचार और प्रसार करने के लिए गाँवों में प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाने लगी है तथा बहुत से ग्रामीण अपने क्षेत्र की संस्कृति का अन्य क्षेत्रों में भी इसलिए प्रसार करते हैं जिससे वे इसके द्वारा अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकें अनेक ग्रामीण नृत्य , संगीत और नाटक के क्षेत्र में कुशलता प्राप्त कर लेने के पश्चात् इसे अपनी आजीविका का माध्यम भी बना लेते हैं ।


उदाहरण के लिए , उन ग्रामीणों को विशेष प्रतिनिधि समझा जाता है जिन्हें लोक संस्कृति के कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए रेडियो ,दूरदर्शन अथवा नागरिक समारोहों में नकद भुगतान के आधार पर आमन्त्रित किया जाता है । लोक संस्कृति की एक मुख्य विशेषता इसके अन्तर्गत स्थानीय देवी - देवताओं की पूजा - उपासना को महत्व देना है ।


आज शिक्षा के प्रसार, वैज्ञानिक मनोवृत्तियों तथा तार्किकता जैसी आधुनिक विशेषताओं के कारण ऐसे देवी - देवताओं की पूजा- उपासना में अधिक रुचि ली जाने लगी है जिनका सम्बन्ध लघु परम्पराओं से न होकर वृहत् परम्पराओं से है। यही कारण है कि आज गाँव के संरक्षक देवता को वह मान्यता प्राप्त नहीं है जो आज से कुछ समय पहले तक थी।


उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने आज लोक संस्कृति सहित सम्पूर्ण ग्रामीण जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है । कुछ विद्वानों की यह धारणा है कि आधुनिकीकरण की दिशा में परिवर्तन की यह प्रक्रिया यदि इसी गति से चलती रही तो भविष्य में लोक संस्कृति का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा ।


इस कथन में आंशिक सत्यता होते हुए भी यह पूर्णतया उपयुक्त नहीं है । वास्तविकता यह है कि परिवर्तन की विभिन्न प्रक्रियाओं के पश्चात् भी ग्रामीण जीवन में लोक संस्कृति का अस्तित्व अपने संशोधित रूप में विद्यमान है । अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी व्यक्ति की पहचान ( identity ) उसकी लोक संस्कृति के आधार पर ही होती है ।


ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपनी क्षेत्रीय अनुरूपता को बनाये रखने तथा एक विशेष सांस्कृतिक पर्यावरण में अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लोक संस्कृति को पूर्णतया समाप्त कर देने के लिए तैयार नहीं हो सकता । सच तो यह है कि आज स्वयं नगरों की आधुनिकता ग्रामों के लोक जीवन की विशेषताओं से प्रभावित हो रही है । इस स्थिति में यह सम्भावना नहीं की जा सकती कि आधुनिकीकरण द्वारा लोक संस्कृति को कभी पूर्णतया समाप्त किया जा सकता है ।


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