लार्ड मैकाले का विवरण पत्र - Questionpurs

लार्ड मैकाले का विवरण पत्र सन् 1813 के आज्ञापत्र ने जिस दीर्घकालिक विवाद को जन्म दिया था उससे कम्पनी में दो विचार - धाराओं से सम्बन्धित व्यक्ति आमने-सामने आ गए एक प्राच्यवादी व दूसरे पाश्चात्यवादी। यह सम्पूर्ण विवाद लगभग 20 वर्षों तक चलता रहा तथा सन् 1833 का आज्ञापत्र भी इस विवाद की सुलझा नहीं पाया।

अन्ततः तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक की सहायता हेतु लार्ड मैकाले 13 जून, सन् 1834 को गवर्नर जनरल की काउन्सिल के कानूनी सलाहकार के रूप में भारत आया। बैंटिक ने उसे जन शिक्षा समिति (Public Instructions Committee) का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया।

मैकाले ने सन् 1813 के आज्ञापत्र की धारा 43 का गम्भीरता से अध्ययन किया तथा अन्ततः 7 मार्च, सन् 1835 को अपना विवरण पत्र उसने गवर्नर जनरल के समक्ष पेश किया। जो विवाद 20 वर्षों तक सुलझाया नहीं जा सका उसे मैकाले ने 9 माह की अल्प अवधि में ही सुलझा दिया।


मैकाले के भारत आने के निम्नलिखित तीन प्रमुख उद्देश्य थे-


1. सन् 1813 के राजपत्र की धारा-43 की व्याख्या करना।

2. उस राजपत्र से सम्बन्धित । लाख रुपये के व्यय से सम्बद्ध विवाद को सुलझाया।

3. मैकाले प्राच्य शिक्षा व संस्कृति का कड़ा आलोचक था, अत: उसने अंग्रेजी के पक्ष में विवाद का निपटारा कर दिया। उसका कहना था कि भारत व अरब देशों का समस्त शिक्षा साहित्य यूरोपीय साहित्य को एक अल्मारी के बराबर है।"


मैकाले में अंग्रेजी शिक्षा तथा सभ्यता का प्रभाव अत्यधिक था तथा उसे इस बात पर अत्यन्त गर्व था। उसका कहना था- "इंग्लैण्ड की सरकार का यह कर्त्तव्य है कि वह भारतीयों के लिये ऐसी शिक्षा व्यवस्था का प्रबन्ध करे, जो सभी प्रकार से उनके स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद हो। इसमें हमें उनकी रुचि के अनुसार नहीं चलना है।"


अत: अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये उसने इस प्रकार के व्यक्तियों के निर्माण पर बल दिया, जो सरकार तथा जनता के लिये मध्यस्थ अथवा दुभाषिये का कार्य कर सकें। "वे शक्त और रंग से तो भारतीय हों किन्तु रुचि, विचारधारा तथा नीति व शिक्षा में पूर्णतया अंग्रेज हों।”


मैकाले का विवरण पत्र (MACAULAY'S MINUTE)


आंग्ल प्राच्य विवाद को सुलझाने के लिए मैकाले ने अत्यन्त गम्भीरता पूर्वक सन् 1813 के आज्ञापत्र का विस्तार से अध्ययन किया तथा कुछ प्रमुख विवादास्पद बिन्दुओं पर उसने अपनी स्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत की।


1. 'साहित्य' शब्द की व्याख्या

मैकाले ने स्पष्ट रूप से साहित्य शब्द की व्याख्या ' अंग्रेजी साहित्य' के रूप में की। उसका कहना था कि प्राचीन भाषाओं जैसे-संस्कृत, अरबी, फारसी के साहित्य को बनाये रखने से नवीन ज्ञान में बाधा उत्पन्न होगी। 


2. भारतीय विद्वान की व्याख्या

उसने भारतीय विद्वान में उन व्यक्तियों को शामिल किया, जो अंग्रेजी साहित्य, जैसे-मिल्टन व शेक्सपियर, पाश्चात्य दर्शन, जैसे-लॉक का दर्शन व विज्ञान, जैसे-न्यूटन की खोज इत्यादि का ज्ञाता हो।


3. धनराशि के व्यय की व्याख्या

1 लाख रुपये के व्यय पर उसने कम्पनी की इच्छा को सर्वोपरि माना। कम्पनी जिस पद पर जितना भी धन व्यय करना चाहे कर सकती है।


4. शिक्षा का माध्यम

उसने कड़े शब्दों में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की वकालत की।


5. विज्ञान विषय की व्याख्या

विज्ञान के अन्तर्गत, पाश्चात्य शिक्षा पद्धति के अन्तर्गत पढ़ाए जाने वाले विज्ञान को सम्मिलित किया गया।


6. अंग्रेजी का पक्ष

मैकाले अंग्रेजी शिक्षा का घोर प्रशंसक था तथा प्राच्य शिक्षा व संस्कृति का उपहास उड़ाता था। उसने अंग्रेजी के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए-


1. उसके अनुसार अंग्रेजी आधुनिक ज्ञान की कुंजी है व पश्चिमी भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ है।

2. यह भाषा ज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जीवन की स्थापना करेगी, जैसे-ग्रीक व लैटिन भाषा ने इंग्लैण्ड की शिक्षा में किया।

3. भारतीय स्वयं भी प्राच्य भाषाओं के स्थान पर अंग्रेजी को पढ़ने के इच्छुक हैं।

4. अंग्रेजी भाषा सम्भ्रान्त व्यक्तियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है।

5. अंग्रेजी द्वारा भारत में भी 'अंग्रेज भारतीयों' का निर्माण किया जा सकता है।

6. अंग्रेजी के ज्ञान द्वारा ब्रिटिश सरकार को अच्छे व सस्ते दुभाषिये प्राप्त हो जाते हैं।


उपर्युक्त तर्कों के आधार पर मैकाले भारतीयों में एक ऐसा वर्ग स्थापित करना चाहता था, जो कि सामान्य जनता से कोई सहानुभूति न रखे तथा पृथक् रहे ताकि समाज में वर्ग संघर्ष जन्म ले ले। वह सरकारी कार्य हेतु कुशल क्लर्क का कार्य कर सके तथा अंग्रेजी शासन को दृढ़ता प्रदान करने में सहायता प्रदान करे। उसका यह मत था कि भारतीयों में अंग्रेजियत फैला कर कम्पनी को व्यापक तथा शासन के क्षेत्र में व्यापक सफलता प्राप्त होगी। यही कारण है कि अंग्रेजी शिक्षा की प्रगति में मैकाले एक 'मार्ग दर्शक' (Torch Bearer) कहलाता है।


मैकाले के विवरण पत्र का मूल्यांकन (EVALUATION OF MACAULAY'S MINUTE)


मैकाले के विवरण पत्र का मूल्यांकन तीन आधारों पर किया जा सकता है- पहला उसका इरादा क्या था दूसरा यह कि उसने जो सुझाव दिये थे वे भारतीयों के कितने हित में थे और तीसरा यह कि उनके परिणाम भारतीयों के कितने हित में रहे। यदि हम इस विवरण पत्र के परिप्रेक्ष्य में मैकाले के इरादे की बात करें, तो हमें ज्ञात हो है कि मैकाले की यह मान्यता थी कि प्राच्य साहित्य और ज्ञान विज्ञान बहुत निम्न कोटि का है।


अत: भारतीयों की दशा सुधारने के लिये उन्हें अंग्रेजी साहित्य और ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देन आवश्यक है और यह शिक्षा अंग्रेजी भाषा के माध्यम से ही दी जा सकती है, परन्तु वास्तविकत यह थी कि वह हमारे देश में एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना चाहता था जो जन्म से तो भारतीय है परन्तु आचार विचार से अंग्रेज हो। उसके अपने शब्दों में, "हमें भारत में एक ऐसा वर्ग विकसित करना चाहिए जो हमारे और उनके बीच जिन पर हम राज्य करते हैं, सन्देश वाहक का कार्य करे। एक ऐसा वर्ग जो रक्त और रंग में भारतीय हो, परन्तु विचार, आदर्श और बुद्धि में अंग्रेज हो।"


"We at present do our best to form a class who may be interpreters between and the millions which we govern a class of people which are Indian in blood and colour but English in opinion, in morals and in intellect"


इतना ही नहीं वह भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति को जड़ से नष्ट करना चाहता था। अत: स्पष्ट है कि भारतीयों की दृष्टि से मैकाले का इरादा नेक नहीं था, वह भारतीय धर्म दर्शन और संस्कृति को नष्ट कर उसके स्थान पर पाश्चात्य धर्म, दर्शन और संस्कृति का विकास करना चाहता था।


मैकाले के विवरण पत्र की दो विपरीत प्रतिक्रियायें हुई, कुछ लोगों ने मैकाले की अत्यधिक प्रशंसा की तो कुछ ने अत्यधिक विरोध। मैकाले के प्रशंसक उसे भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रवर्तक और भारतीय प्रगति का मार्गदर्शक मानते हैं, तो उसके निंदक उस पर प्रचलित भारतीय भाषाओं की अवहेलना, प्राचीन भारतीय साहित्य का अपमान, भारत पर अंग्रेजी शिक्षा लादने और पाश्चात्य संस्कृति के प्रचार द्वारा भारत को स्थायी रूप से परतंत्र बनाने का षड्यन्त्र रचने का दोष लगाते हैं। यहाँ तक कि कुछ अंग्रेजों ने उसे भारतीय राजनैतिक चेतना के लिए भी उत्तरदायी बताया है।


मैकाले के विवरण पत्र के गुण (Merits of Macaulay's Minute)


1. यद्यपि मैकाले ने पाश्चात्यवादियों का समर्थन बहुत पक्षपातपूर्ण भावना से व चतुराई से किया था परन्तु इस चतुराई द्वारा प्राच्य पाश्चात्य विवाद के विषय में तर्कपूर्ण निर्णय लिये जाने के कारण यह उसकी विशेषता ही कही जा सकती है।


2. मैकाले द्वारा प्रतिपादित शिक्षा नीति द्वारा हमारा विदेशों के साथ सम्पर्क हुआ और देश में नवचेतना आई। इस प्रकार उसने भारत में व्याप्त रूढ़िवादी शिक्षा के स्थान पर प्रगतिशील शिक्षा को शुरुआत की।


3. मैकाले के आने से भारत में चली आ रही अस्थिर शिक्षा नीति को एक निश्चित दिशा मिली जिससे शिक्षा का विकास हुआ जो प्राय: अवरुद्ध सा हो गया था, विकसित दिशा में अग्रसर होने लगा।


4. मैकाले ने पाश्चात्य भाषा, साहित्य और ज्ञान विज्ञान की वकालत करके, भारत के लिए इसके द्वार खोल दिए और भारतीय भी ज्ञान प्राप्ति हेतु इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी आदि देशों में जाने लगे।


5. कुछ विद्वानों के अनुसार, अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव के कारण ही भारतीयों में राजनैतिक चेतना जाग्रत हो जाने से देशवासी समानता स्वतन्त्रता तथा बन्धुत्व के सिद्धान्तों से परिचित हुये। मैकाले के समय हिन्दू पाठशालाओं में हिन्दू, मुस्लिम, मकतब व मदरसों में इस्लाम धर्म और ईसाई मिशनरियों के स्कूलों में ईसाई धर्म की शिक्षा अनिवार्य थी, परन्तु मैकाले ने सरकार द्वारा अनुदानित स्कूलों में किसी भी धर्म की शिक्षा न देने की सिफारिशें की जिसका भारतीय संदर्भ में अच्छा प्रभाव पड़ा।


6. मैकाले द्वारा प्रतिपादित व समर्थित शिक्षा की नींव पर ही आधुनिक शिक्षा का ढाँचा खड़ा हुआ।


मैकाले के विवरण पत्र की कमियाँ या दोष (Demerits or Shortcomings in Macaulay's Minute)


मैकाले की शिक्षा योजना में निम्नलिखित कमियाँ या दोष थे-


1. मैकाले ने सन् 1813 के आज्ञापत्र की धारा 43 की व्याख्या करने में पक्षपातपूर्ण रवैया दिखाया, जब उन्होंने शिक्षा के लिए स्वीकृत धनराशि को व्यय किए जाने के सम्बन्ध में कहा कि भारतीय विद्वान से अर्थ भारतीय साहित्य के विद्वानों के साथ-साथ लॉक के दर्शन और मिल्टन (Milton) की कविता को जानने वाले विद्वानों से भी है। 


2. मैकाले ने प्राच्य साहित्य को अति निम्नकोटि का बताकर इसका उपहास उड़ाया, जो उसकी द्वेषपूर्ण अभिव्यक्ति को दर्शाता है।


3. मैकाले द्वारा अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने का सुझाव भी अनुचित था, क्योंकि किसी भी देश के शिक्षा का माध्यम उस देश के नागरिकों की मातृभाषा होती है। अत: उसके इस सुझाव से जन शिक्षा को बड़ा धक्का लगा।


4. मैकाले द्वारा केवल उच्च वर्ग के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था का सुझाव भी मानवीय अधिकारों का हनन कहा जा सकता है, क्योंकि शिक्षा सबका जन्मसिद्ध अधिकार है, अतः उसे किसी विशेष वर्ग तक सीमित नहीं किया जा सकता।


5. मैकाले द्वारा सुझाये गये निस्यन्दन सिद्धान्त की भी कटु आलोचना की गई, क्योंकि इसमें कम्पनी पर केवल उच्च वर्ग के लोगों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था करने की बात को बड़े तर्कपूर्ण ढंग से बताया गया था।


6. मैकाले भारत की उन्नति नहीं चाहता था बल्कि भारतीय जनता को क्लर्क, अफसर, चपरासी आदि बनाकर ब्रिटिश शासन का गुलाम अथवा नौकर बनाना चाहता था।


7. मैकाले की शिक्षा योजना लागू हो जाने से भारत का मौलिक ज्ञान-विज्ञान, यहाँ की भाषाएँ और साहित्य तथा यहाँ की शिक्षा प्रणाली का भी बहुत नुकसान हुआ था।


इस प्रकार हम, देखते हैं कि भारतीय दृष्टिकोण से उसके विवरण पत्र में अच्छाइयाँ कम और कमियाँ अधिक थीं। अतः उसके विवरण पत्र की सामान्यत: आलोचना की जाती रही।


मैकाले के विवरण पत्र का प्रभाव (Impact of Macaulay's Minute)


मैकाले के विवरण पत्र का प्रभाव जानने हेतु हमें इसके तत्कालीन प्रभाव व दीर्घकालीन प्रभाव पर विचार करना होगा। तत्कालीन प्रभाव की अभिव्यक्ति निम्न घटनाओं में प्रदर्शित हुई-


1. मैकाले ने सन् 1813 के आज्ञापत्र की धारा 43 की व्याख्या बड़ी चतुराई व तर्कपूर्ण ढंग से की जिसका परिणाम यह हुआ कि तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक इससे सहमत हो गया व उसने अंग्रेजी माध्यम के यूरोपीय ज्ञान विज्ञान प्रधान शिक्षा नीति की घोषणा कर दी जो अग्र शिक्षा नीतियों का आधार बनी।


2. इस नीति के घोषित होते ही अंग्रेजी माध्यम के उच्च शिक्षा के स्कूल और कॉलेज खुल जाने से हमारे देश की शिक्षा प्रणाली का विकास द्रुतगति से होने लगा।


3. मैकाले के ही अंग्रेजी के पक्ष में दिए गए तकों के परिणाम स्वरूप सन् 1837 तत्कालौन गवर्नर जनरल लार्ड ऑकलैण्ड ने फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को राजकाज की भाषा घोषित किया।


4. सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समय अग्रेजो जानने वाले अभ्यर्थियों को वरीयता दी जार लगी, जिसका आदेश तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्टिंग ने दिया। मैकाले के विवरण पत्र का दीर्घकालीन प्रभाव भी भारतीयों के हित में था। मैकाले द्वारा सुझायी गयी यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान प्रधान शिक्षा व्यवस्था द्वारा ही भारतीयों को भी पाश्चात्य साहित्य और ज्ञार विज्ञान की जानकारी हुई, जिससे भारतीयों की भौतिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हुआ।



भारतीयों में सामाजिक जागरूकता का उदय होने से लोग सामाजिक बुराइयों को दूर करने हेतु प्रयत्नशील होने लगे व मानव अधिकारों के ज्ञान द्वारा स्वतन्त्रता समानता व भ्रातृत्व की भावना पनपने से उनमें राजनैतिक चेतना भी जाग्रत हुई।


उपर्युक्त अच्छाइयों के साथ-साथ इसके कुछ कुप्रभाव भी देखने को मिले, जिनमें सबसे मुख्य विदेशी भाषा अंग्रेजी का बढ़ता हुआ वर्चस्व था। वैसे तो किसी सभ्यता व संस्कृति के अच्छे तत्वों को स्वीकार कर अपनी सभ्यता व संस्कृति को हेय समझकर दूसरी सभ्यता व संस्कृति को स्वीकार का अपनी पहचान को समाप्त करना अपनी अस्मिता को समाप्त कर देता है। मैकाले के विवरण पत्र में प्रस्तावित अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का कुछ ऐसा ही कुप्रभाव हमें भी देखने को मिलता है।


अधोगामी निस्यन्दन सिद्धान्त (DOWNWARD FILTRATION THEORY)


अधोगामी निस्यन्दन सिद्धान्त से तात्पर्य था कि शिक्षा का ऐसा प्रारूप निर्धारित किया जाए कि वह ऊपर से छनकर नीचे अर्थात् सर्वसाधारण तक पहुँच जाए। पहले कुछ उच्च वर्ग विशेष के व्यक्तियों को शिक्षा दी जाएगी तदुपरान्त समय के साथ-साथ निम्न वर्ग की जनता उच्च वर्ग की नकल अथवा अनुसरण करते स्वयं ही शिक्षित हो जाएगी। इस प्रकार स्पष्ट है कि अंग्रेजी हुकूमत एक बड़ा वर्ग, जो कि निर्धन वर्ग की जनता थी को अनपढ़ व पिछड़ा तथा समाज में नगण्य रूप में स्थान देना चाहती थी। उनका विचार था कि इस कूटनीति द्वारा वह भारत में अधिक समय तक अपना परचम फहरा सकेंगे।


शाब्दिक अर्थ में निस्यन्दन या छनाई का अभिप्रायः किसी द्रव का छन छन कर नीचे की ओर आना है, किन्तु शिक्षा में इसका अर्थ है कि समाज के उच्च वर्ग को शिक्षित कर देने से शिक्षा का प्रकाश स्वाभाविक रूप से सर्वसाधारण तक पहुँच जाये। इस प्रकार मानव समाज में व्यवहार, विश्वास, संस्कृति, सभ्यता, मूल्य, रीति रिवाज, शिक्षा और अन्य सामाजिक गतिविधियों का उच्च वर्ग से निम्नवर्ग की ओर आना ही शिक्षा में निस्यन्दन सिद्धान्त (Filtration Theory) के नाम से जाना जाता है।


ब्रिटिश शासकों ने इस सिद्धान्त का प्रयोग भारत में अपने ईसाई धर्म, अंग्रेजी भाषा व साहित्य, पाश्चात्य संस्कृति और विज्ञान की शिक्षा आदि के प्रचार व प्रसार के लिए किया था। इस प्रकार के प्रचार द्वारा भारतीय समाज के बहुत-से सम्पन्न व्यक्ति ईसाई धर्म अपनाकर उनके अन्ध भक्त बन गये थे व उनकी भाषा व सभ्यता को अपनाने लगे थे। इस प्रकार ब्रिटिश शासन ने एक बहुत बड़ी धनराशि जो कि जनसाधारण की शिक्षा पर व्यय की जानी थी, बचा ली थी।


वास्तव में यह अंग्रेजों की 'फूट डालो व राज्य करो' (Divide and rule policy) को ही एक कड़ी थी। इस सिद्धान्त द्वारा वे समाज में वर्ग विभेद द्वारा वर्ग संघर्ष, ऊँच नीच, पढे लिखे व अनपढ़, धनी निर्धन आदि अनेक विवादों द्वारा अपना कार्य सिद्ध करना चाहते थे।


आर्थर ह्यूम ने अपनी पुस्तक 'भारत में शिक्षा' में लिखा है कि "शिक्षा जनता में ऊपर से फैलेगी। बूंद-बूंद करके भारतीय जीवन में हिमालय से आवश्यक ज्ञान नीचे की ओर बहेगा और समय के साथ-साथ उसका रूप उससे अधिक अच्छे व विस्तृत झरने की भाँति होगा जो कि प्यासे मैदानों की सिंचाई करेगा।" इस सिद्धान्त को सरकारी नीति का रूप दिये जाने के निम्न परिणाम सामने आये -


1. इस सिद्धान्त ने भारतीय शिक्षा नीति को एक निश्चित दिशा दी। राजकीय सेवाओं में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को वरीयता दी जाने लगी।

2. अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य सरकारी नौकरी प्राप्त करना हो गया।

3. उच्च शिक्षा की प्रगति तेज हुई परन्तु सरकार ने जिस विचार से इस सिद्धान्त को अपनाया था, उसमें उसे सफलता नहीं मिली क्योंकि शिक्षा उच्च वर्ग से छन छन कर जनसाधारण तक नहीं पहुँची।


निस्यन्दन सिद्धान्त के लाभ


1. ब्रिटिश सरकार का जनसाधारण पर व्यय किया जाने वाला धन बच गया।

2. ब्रिटिश सरकार ने भारी मात्रा में अपने इशारे पर चलने वाले भारतीय क्लर्क तैयार कर लिये।

3. अंग्रेजी, भाषा व साहित्य का प्रसार तीव्र गति से होने लगा।

4. अंग्रेजी भाषा का भारत में प्रभुत्व स्थापित हो गया।

5. भारतीय शिक्षा को एक नवीन दिशा प्राप्त हो गई।

6. शिक्षा से रोजगार प्राप्त हुए।

7. अंग्रेजी शिक्षा सरकारी नौकरी की आवश्यक योग्यता बन गई।


निस्यन्दन सिद्धान्त के दोष


1. नैतिक मानकों के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था में कई दोष विद्यमान थे।

2. यह शिक्षा अमनोवैज्ञानिक थी।

3. भारतीयों को अंग्रेज बनाने में सक्रिय योगदान देना।

4. इस सिद्धान्त द्वारा भारतीय समाज में वर्ग संघर्ष को जन्म देने का प्रबल प्रयास किया गया।


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