राज्य का अर्थ एवं परिभाषा देते हुए शिक्षा संस्था के रूप में राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिए।
राज्य (State): शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अभिकरण राज्य है। राज्य एक सामाजिक समूह है जिसकी अपनी सरकार प्रभुसत्ता और भौगोलिक सीमा होती है।
मैकाइवर एवं पेज के अनुसार "राज्य एक संगठन है जो किसी निश्चित भू-भाग पर सर्वशक्तिमान सरकार के माध्यम से शासन करता है। यह सामान्य नियमों द्वारा व्यवस्था कायम रखता है।"
"A State is an Organization which rules through supreme government over a territory. It maintains order through common law." - Maciver and Page
गार्नर के अनुसार :- "राज्य व्यक्तियों के इस न्यून संख्यक या बहुतसंख्यक समुदाय को कहते हैं जो एक निश्चित भूभाग में रहता है, जो बाह्य नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त रहता है और जिसकी एक ऐसी संगठित सरकार होती है जिसकी आज्ञा का पालन अधिकांश जनता स्वाभाविक रूप से करती है।"
"State is Community of persons more or less numerous, Permanently occupying a definite portion of territory independent and so of the foreign control and possessing an organised government to which the inhabitants render a Rabitual of Public importance."- Gamer
राज्य का मुख्य उद्देश्य अपने नागरिकों के व्यक्तित्व का विकास करना और व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा अनिवार्य है। राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के विकास के लिए शिक्षा की व्यवस्था करे। नागरिक को शिक्षा रूपी विकास के लिए राज्य को योजना बनाना, शिक्षा योजना को क्रियान्वित करना, शिक्षा व्यवस्था को नियंत्रित करना शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक सुधार के कार्य करने चाहिए।
शिक्षा संस्था के रूप में राज्य के कार्य एकतंत्र में शिक्षा केवल राज्य हित पर बल देतो है। इससे सम्पूर्ण शिक्षा केवल राज्य के हाथ का खिलौना बन जाती है। इसके विपरीत जनतंत्र में जनहित पर बल दिया जाता है। इससे व्यक्ति तथा राज्य दोनों का अधिक से अधिक विकास होता है।
चूंकि वर्तमान युग जनतंत्र का युग है, इसलिए जनहित के लिए शिक्षा को केन्द्रित न करके विकेन्द्रित करना ही उचित समझा जाता है। निम्नलिखित पंक्तियों में हम जनतांत्रिक व्यवस्था में राज्य के शिक्षा सम्बन्धी प्रमुख कार्यों पर प्रकाश डाल रहे हैं।
1. राष्ट्रीय शिक्षा की योजना का निर्माण
जनतांत्रिक व्यवस्था में शिक्षा राज्य को आत्मा होती है। प्रत्येक राज्य उच्च-कोटि के शिक्षाशास्त्रियों, दार्शनिकों एवं शिक्षा-मंत्रियों के परामर्श से अपनी तथा अपने निर्माणकर्ताओं की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए सर्वप्रथम राष्ट्रीय शिक्षा की योजना तैयार करता है।
यह योजना राज्य की संस्कृति का प्रतीक होती है। इसमें सांस्कृतिक, सामाजिक तथा दार्शनिक तत्वों की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। राष्ट्रीय शिक्षा की योजना के तैयार हो जाने पर उसे इस प्रकार से संचालित किया जाता है कि जाती-पाती, रंग रूप, लिंग एवं आर्थिक स्थिति से ऊपर उठकर प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा ग्रहण करने के समान अवसर प्राप्त हो जायें।
2. नागरिकता का प्रशिक्षण
राज्य को प्रगति सुयोग्य, सचरित्र, एवं सुशिक्षित नागरिकों पर निर्भर करती है। अतः प्रत्येक राज्य का मुख्य कार्य अपनी जनता को नागरिकता के प्रशिक्षण को व्यवस्था करना है। नागरिकता का यह प्रशिक्षण अग्रलिखित चार प्रकार का होता है।
3. राजनैतिक प्रशिक्षण
प्रत्येक राज्य को अपनी निजी राजनीतिक विचारधारा होती है। इस विचारधारा का ज्ञान होना प्रत्येक नागरिक के लिए परमावश्यक है। यही कारण है कि आधुनिक युग में प्रत्येक राज्य निःशुल्क फिल्म शो, सेना का प्रदर्शन तथा रेडियों प्रसारण की सहायता से अपनी जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करता है।
4. सामाजिक प्रशिक्षण
राज्य के मानसिक स्तर का मूल्यांकन केवल उसके विचारों से नहीं किया जाता अपितु उसकी जनता के सामाजिक स्तरों एक सामाजिक परम्पराओं से किया जाता है। इस दृष्टि से प्रत्येक राज्य अपनी जनता के विकास हेतु न्यूनतम सामाजिक स्तर को निश्चित करता है तथा बालक एवं बालिकाओं के सामने इस प्रकार के सामाजिक वातावरण को प्रस्तुत करता है जिसमें रहते हुए उन्हें सामाजिक सम्पर्क तथा समाज सेवा अधिक से अधिक अवसर मिलते रहे।
5. सांस्कृतिक प्रशिक्षण
अपनी सांस्कृतिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखना प्रत्येक राज्य का प्रमुख काकर्य है। इस दृष्टि से प्रत्येक राज्य चित्रशालाओं, संग्रहालयों, प्रदर्शनियों, मनोरंजन हालों तथा क्लबों एवं सांस्कृक्तियों समुदायों आदि को स्थापित करता है तथा सामुदायिक केन्द्रों, सांस्कृतिक मण्डलों एवं सांस्कृतिक भ्रमणों को आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करता है। वर्तमान युग में लगभग सभी जनतांत्रिक राज्य अपनी-अपनी जनता में सांस्कृक्तिक जागरूकता विकसित करने के लिए अधिक से अधिक प्रयास कर रहे हैं।
6. आर्थिक प्रशिक्षण
राज्य की प्रगति नागरिकों के वैज्ञानिक एवं आर्थिक प्रशिक्षण पर निर्भर करती है। इस दृष्टि से प्रत्येक राज्य विज्ञान तथा उद्योगों से सम्बन्ध में प्रशिक्षण देने की यथाशक्ति व्यवस्था करता है।
7. प्रौढ़ शिक्षा
जनतंत्र को सफलता शिक्षा के ऊपर निर्भर करती है। अतः प्रत्येक राज्य जहाँ एक ओर बालक तथा चालिकाओं को शिक्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार के स्कूलों को स्थापित करता है, वहाँ दूसरी ओर अशिक्षित प्रौढ़ नागरिकों को शिक्षित करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा का भी उचित प्रबन्ध करता है। हमारे राज्य में यद्यपि इस ओर प्रयास तो अवश्य किये जा रहे है, परन्तु वे जनसंख्या को देखते हुए बहुत कम है। आशा है कि भविष्य में राज्य इस कार्य को भी सफलतापूर्वक पूरा करेगा।
8. स्कूलों के लिए धन की व्यवस्था
विभिन्न स्तरों तक के स्कूलों को खोलने के लिए धन की आवश्यकता होती है। राज्य अपनी ओर से यथाशक्ति धन की व्यवस्था करता है। सरकारी स्कूलों के व्यय का भार तो राज्य अपने ऊपर उठाता है, वहीं संघठनों द्वारा खोले गये स्कूलों के अधिकतम भार को भी स्वयं उठाने का प्रयास करता है। इसलिए इन स्कूलों को भवन निर्माण, फर्नीचर, तथा अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक आर्थिक अनुदान दिया जाता है।
9. सार्वभौमिक अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा
जनतंत्र की सफलता ऐसे नागरिकों पर निर्भर करती है जो अपने कर्तव्यों तथा अधि कारों को भली प्रकार से समझ सके। परन्तु कर्तव्यों तथा अधिकारों का ज्ञान उसी समय हो सकता है जब नागरिकों के बौद्धिक एवं मानसिक विकास की उचित व्यवस्था हो।
अतः प्रत्येक राज्य अपने यहीं निश्चित स्तर तक की सार्वभौमिक अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध करता है। इंग्लैंड अमरीका आदि राज्यों को इस सम्बन्ध में उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कि जा सकता है। वहाँ पर माध्यमिक स्तर तक सार्वभौमिक, अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को प्राथमिकता दी जाति है।
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