उपनिवेशवाद और नव उपनिवेशवाद | Colonialism and neo-colonialism
उपनिवेशवाद वर्तमान आर्थिक साम्राज्यवाद का ही एक रूप है। प्रारम्भ में साम्राज्यवादी शक्तियों ने अपने साम्राज्य स्थापित किए, बाद में अधीनस्थ प्रदेशों का शोषण किया। आर्थिक सत्ता स्थापित करने के बाद उन्होंने वहाँ पर अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित कर ली ।
इसी को उपनिवेशवाद का नाम दिया जाता है । भारत में ब्रिटिश राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों का नाम है जिनके आधार पर कोई भी साम्राज्यवादी शक्ति साम्राज्य की स्थापना इसी प्रकार हुई थी। इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है, "उपनिवेशवाद उन दूसरे देशों पर अपना प्रभुत्व बनाए रखना अथवा इसका विस्तार करना चाहती है । " नव उपनिवेशवाद का जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद तब हुआ, जबकि राष्ट्रीय चेतना के विकास के फलस्वरूप अनेक उपनिवेशों ने स्वयं को साम्राज्यवादी देशों के पंजे से स्वतन्त्र कर लिया ।
इस स्थिति में साम्राज्यवादी शक्तियों को अपनी ओपनिवेशिक नीति में परिवर्तन करना पड़ा। अब उन्होंने छोटे-छोटे स्वतन्त्र एवं अविकसित देशों को आर्थिक सहायता देकर अपने प्रभाव के अन्तर्गत ले लिया है अर्थात् उन्हें अपना प्रभाव-क्षेत्र बना लिया है। जब कोई साम्राज्यवादी देश किसी अन्य राष्ट्र अथवा उसके किसी क्षेत्र पर परोक्ष रूप से आर्थिक अथवा राजनीतिक नियन्त्रण स्थापित कर लेता है , तो वह साम्राज्यवादी राष्ट्र का ' प्रभाव क्षेत्र ' कहलाता है ।
प्राचीन उपनिवेशवाद तथा नव - उपनिवेशवाद में अन्तर प्राचीन उपनिवेशवाद तथा नव-उपनिवेशवाद में काफी अन्तर है । इस अन्तर का विवेचन निम्नानुसार किया जा सकता है-
प्रथम- प्राचीन उपनिवेशवाद की उत्पत्ति के प्रमुख कारण राजनीतिक थे , किन्तु नव उपनिवेशवाद की उत्पत्ति आर्थिक कारणों से हुई है ।
द्वितीय - प्राचीन उपनिवेशों पर शक्तिशाली राष्ट्रों का प्रभुत्व था । उन्हें राजनीतिक अथवा आर्थिक किसी प्रकार की स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं थी, जबकि नवीन उपनिवेशों को कम या अधिक राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतन्त्रता अवश्य प्राप्त है ।
तृतीय- प्राचीन उपनिवेशों की स्थापना का उद्देश्य सम्मान और गौरव में वृद्धि करना था, जबकि नवीन उपनिवेशों की स्थापना का लक्ष्य अपनी राजनीतिक विचारधारा का प्रसार और अपने राष्ट्रीय हितों की वृद्धि करना है ।
साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद में अन्तर
साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद में मामूली अन्तर है। उपनिवेशवाद वास्तव में साम्राज्यवाद का ही बदला हुआ रूप है। वर्तमान में साम्राज्यवाद का पतन हो चुका है और राजनीतिक उपनिवेशवाद भी प्रायः लुप्त हो गया है । आज इन दोनों का मिश्रित व विकसित रूप नव-उपनिवेशवाद छाया हुआ है, जिसके मूल में आर्थिक और सांस्कृतिक कारण निहित है।
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