सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए
सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त
प्रस्तावना
सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध में प्रारम्भ में दार्शनिकों ने अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किये और बाद में समाजशास्त्रियों के द्वारा भी सिद्धान्त प्रस्तुत किये। सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्तों के अन्तर्गत सामाजिक परिवर्तन की दिशा एवं कारणों की विवेचना की जाती है। सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्तों का वर्गीकरण तीन श्रेणियों में किया जाता है ।
( 1 ) सामाजिक परिवर्तन के चक्रिय सिद्धान्त
( 2 ) रेखीय सिद्धान्त एवं
( 3 ) निर्णायकवादी सिद्धान्त।
इन सिद्धान्तों की विवेचना संक्षेप में निम्नवत् की जा सकती है।
सामाजिक परिवर्तन का चक्रिय सिद्धान्त ( Cyclical theory of Social change )
अनेक समाज शास्त्रियों और विद्वानों ने सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध में विचार करते समय यह मत प्रगट किया है कि परिवर्तनों की प्रकृति चक्रिय होती है । इन विद्वानों के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचारों को ही ' सामाजिक परिवर्तन का चक्रिय सिद्धान्त ' कहकर सम्बोधित किया जाता है ।
इस सिद्धान्त के अनुसार घटनाएँ एक निश्चित क्रम से होती है और उसी क्रम से उनमें पुनरावृत्ति होती है । प्रकृति में भी यह चक्र चलता है । पहले गर्मी, फिर बरसात, फिर सर्दी, फिर बसन्त और पुनः गर्मी। प्रतिवर्ष परिवर्तन का यह क्रम चलता है । परिवर्तन का यह क्रम प्रकृति में सदैव गतिशील रहता है । विद्वानों का विचार है कि सामाजिक घटनाओं और संस्कृति को भी परिवर्तन के चक्रिय क्रम से गुजरना पड़ता है ।
चक्रिय परिवर्तन के स्वरूप
चक्रिय परिवर्तन के दो प्रमुख स्वरूप हैं -
( क ) पूर्ण चक्र,
( ख ) अर्द्ध चक्र।
( क ) पूर्ण चक्र
पूर्ण चक्र का आशय यह है कि एक बिन्दु से चलकर पुनः खसी बिन्दु पर आ जाना । जैसे प्रातः के बाद दोपहर , फिर सायं , फिर रात और फिर प्रातः । प्रतिदिन परिवर्तन का यह चक्र देखते हैं ।
( ख ) अर्द्ध चक्र
इसकी प्रकृति घड़ी में पेण्डुलम के समान होती है । एक
स्थान से दूसरे स्थान पर, फिर दूसरे से पहले पर और पहले से फिर दूसरे स्थान पर । जिस पर घड़ी का पेण्डुलम गतिशील रहता है , परिवर्तन की गति भी उस प्रकार रहती है।
चक्रिय परिवर्तन के प्रमुख सिद्धान्त
चक्रिय परिवर्तन के सिद्धान्त से सम्बन्धित प्रमुख विद्वानों के विचार निम्न प्रकार से हैं-
( 1 ) स्पेंगलर का चक्रिय सिद्धान्त
स्पेंगलर ने अपने चक्रिय सिद्धान्त का प्रतिपादन अपनी प्रसिद्ध रचना " पश्चिम का पतन " ( Decline of the west ) में किया है । आपके अनुसार ऋतुओं के समान संस्कृतियों में भी समान रूप से परिवर्तन का प्रवाह चलता रहता है । स्पेंगलर ने विश्व की आठ सभ्यताओं का अध्ययन किया और निष्कर्ष निकालकर कहा कि प्रत्येक सभ्यता का जन्म उत्थान और पतन से होता है ।
आपने समाज के जन्म की अवस्था को संस्कृति कहा है और पतन को सभ्यता आपके अनुसार पाश्चात्य समाज पूर्ण उत्थान की अवस्था पर पहुँच गया है । अतः उसका पतन निश्चित है । स्पेंगलर के सिद्धान्त को पहले तो खूब मान्यता मिली , लेकिन बाद में उसकी कटु आलोचना की गई । सारोकिन ने इसके सिद्धान्त की आलोचना करते हुये इसे कल्पनाशील बताया है ।
( 2 ) टायनबी का सिद्धान्त ( Theory of A. J. Toynbee )
प्रसिद्ध इतिहासकार टायनबी ने अपनी रचना ' इतिहास का अध्ययन में विश्व की 21 सभ्यताओं का गहन अध्ययन किया और सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित घुमावदार सीढ़ी का सिद्धान्त प्रतिपादित किया । आपका विचार है कि सभ्यता को नष्ट होने से बचाया जा सकता है ।
टायनबी के अनुसार सामाजिक परिवर्तन को क्रियाशील दशाएँ एक चुनौती ( challenge ) होती है और उसके प्रति उत्तर में प्रतिक्रिया ( Response ) होती है । समाज के कुछ अल्पसंख्यक बुद्धिमान लोग सभ्यता नष्ट होने से बचा लेते हैं । और उसे उन्नति की ओर ले जाते हैं । इस प्रकार टायनबी का सिद्धान्त आशावादी है । आपके अनुसार चुनौती ( challenge ) और प्रतिक्रिया ( Response ) का क्रम सदैव समाज में चलता रहता है ।
( 3 ) चेपिन का चक्रिय सिद्धान्त ( Theory of chapin )
चेपिन ने अपना सामाजिक परिवर्तन का चक्रिय सिद्धान्त अपनी पुस्तक ' सांस्कृतिक परिवर्तन ( cultural chahnge ) में स्पष्ट किया है ।
आपका कहना जिस प्रकार जन्म विकास और मृत्यु का क्रम मानव - जीवन पर लागू होता है उसी प्रकार यह सांस्कृतिक स्वरूपों पर भी लागू होता है । आपके अनुसार जब समाज में संस्थाएँ और संस्कृति उत्कर्ष की स्थिति में होती हैं तो समाज संगठित रहता है और जब उत्कर्ष पर नहीं होती तो सामाजिक विघटन की स्थिति होती है ।
पैरटो का सिद्धान्त ( Theory of Parcto )
सामाजिक परिवर्तन के चक्रिय सिद्धान्तों के सन्दर्भ में समाजशास्त्री पैरेंटो के सिद्धान्त का विशेष महत्त्व है । आपने अपने सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को अभिजात वर्ग ( Elite class ) और निम्न वर्ग ( Lower class ) की धारणा द्वारा स्पष्ट किया है ।
आपका कहना है कि यह दोनों वर्ग स्थिर नहीं है, वरन् इनमें सदैव परिवर्तन होते रहते हैं । अभिजात वर्ग अपनी मूर्खता से निम्न वर्ग में चला जाता है लोग अपने परिश्रम, मेहनत , योग्यता के बल पर अभिजात वर्ग में प्रवेश कर जाता है ।
पैरेटो के अनुसार परिवर्तन की चक्रिय गति सामाजिक संरचना में दिखाई देती है । उसने अपने सिद्धान्त को अभिजात वर्ग का परिभ्रमण ( Circulation of Elite ) कहा है और अभिजात वर्ग में ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर क चक्र सदैव चलता रहता है । परिवर्तन का यह चक्र वैचारिक , राजनैतिक और आर्थिक इन तीनों क्षेत्रों में चलता रहता है ।
आलोचना ( Criticism )
सामाजिक परिवर्तन के चक्रिय सिद्धान्तों की आलोचना करते हुये कहा जाता है कि -
( 1 ) सभी विद्वानों ने ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर सामाजिक परिवर्तन की घटनाओं को स्पष्ट किया है , अतः इन्हें वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता ।
( 2 ) यह सिद्धान्त काल्पनिक और दार्शनिक अधिक है , इन्हें समाजशास्त्रीय नहीं कहा जा सकता।
( 3 ) सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा को समझने में इन सिद्धान्तों में हमें कुछ भी मदद नहीं मिलती ।
( 4 ) यह कोई आवश्यक नहीं कि हर चीज की पुनरावृत्ति अवश्य ही हो।
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