संस्कृतिकरण और पश्चिमीकरण में भेद कीजिए ।
श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण व पश्चिमीकरण के सम्बन्ध में पाए जाने वाले भेद का उल्लेख किया है । वर्तमान में संस्कृतिकरण के प्रसार के पश्चिमी प्रौद्योगिकी जैसे रेल, डाक, तार रेडियो, टेलीविजन, प्रेस, अखबार एवं पश्चिमी शिक्षा महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करने की है। नगरों में हरिकथा, भजन एवं धार्मिक प्रवचनों का प्रसार-प्रसार करने में माइक्रोफोन तथा प्रेस आदि का उपयोग किया जाता है।
धार्मिक सन्तों, पराक्रमी तथा पतिव्रता स्त्रियों की कथाएँ एवं जीवनियाँ, पुस्तकों व चलचित्रों द्वारा सामान्य जनता तक पहुँचायी जाती हैं। स्वयं सरकार ने भी स्कूलों के पाठ्यक्रम में धार्मिक कथाओं, सन्तों एवं महापुरुषों के उपदेशों को सम्मिलित किया है। भारत में प्रचलित प्रजातन्त्र भी पश्चिमी आदर्शों पर आधारित है जिसने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बढ़ा दिया है ।
उदाहरणार्थ, राजस्थान, गुजरात एवं कुछ अन्य राज्यों ने मद्यनिषेध की नीति को लागू किया है जो परम्परात्मक सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप हैं । इस प्रकार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन देने में पश्चिमीकरण ने योग दिया है । श्रीनिवास का मत है कि, " भारतीय समाज का कोई भी विश्लेषण , पश्चिमीकरण और संस्कृतिकरण की अन्तःक्रिया के बिना पूर्ण नहीं होगा । ” फिर भी इन दोनों अवधारणाओं में निम्नांकित अन्तर पाये जाते हैं
1. संस्कृतिकरण में मांस - मदिरा के सेवन पर रोक लगायी जाती है जबकि पश्चिमीकरण में मांस - मदिरा के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाता है ।
2. विवाह और तलाक के आधार पर भी दोनों प्रक्रियाओं में अन्तर है । निम्न जातियों में विधवा पुनर्विवाह और तलाक की मनाही नहीं है । उनमें पति परमेश्वर की अवधारणा भी प्रचलित नहीं है । ये सभी बातें पश्चिमीकरण के अनुरूप हैं । किन्तु ब्राह्मणों में विधवा पुनर्विवाह और तलाक की मनाही है । संस्कृतिकरण करने वाली जाति विाह सम्बन्धी ब्राह्मणों के प्रतिमानों को अपनाती है ।
3. संस्कृतिकरण में धार्मिक दृष्टिकोण ( Sacred outlook ) का प्रोत्साहन दिया जाता है । अर्थात् हर चीज की व्याख्या धर्म के आधार पर की जाती है जबकि पश्चिमीकरण लौकिक दृष्टिकोण ( Secular outlook ) को प्रोत्साहन देता है ।
4. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारतीय इतिहास में निरन्तर चलती रही है और आज भी चल रही है । दूसरी ओर पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का प्रारम्भ अंग्रेजों के शासनकाल से हुआ और कुछ क्षेत्रों में अधिक वेग़ के साथ स्वाधीन भारत में भी हो रहा है ।
5. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारतीय समाज में एक विशिष्ट अंग अर्थात् जनजातियों व निम्न जातियों तक ही सीमित हैं । वे ही ब्राह्मणों , क्षत्रियों और प्रभु - जातियों या अपने से ऊँची जातियों की जीवन - शैली को अपनाने में लगे हुए है जबकि पश्चिमीकरण का सम्बन्ध भारतीय समाज के सभी अंगों व जातियों से है । वर्तमान में पश्चिमीकरण के प्रभाव , उससे प्रभावित होने वाली संख्या और प्रभावित होने वाले प्रकार सभी में वृद्धि हो रही है ।
6. पश्चिमीकरण की प्रक्रिया विदेशी और बाह्य है । जबकि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया आन्तरिक व स्वदेशी है ।
7. संस्कृतिकरण का आदर्श सभी जगह एक-सा नहीं है । भारत के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न भिन्न जातियाँ संस्कृतिकरण का आदर्श रही हैं । इसके विपरीत सारे भारत में पश्चिमीकरण का एक ही आदर्श पाया जाता है ।
8. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया रूढ़िवादी है जबकि पश्चिमीकरण की प्रकृति तार्किक है।
9. संस्कृतिकरण करने वाली जाति ऊपर की ओर गतिशील होती है और इसकी पदमूलक स्थिति में परिवर्तन आ जाते हैं जबकि पश्चिमीकरण करने वाली जाति की गतिशीलता में कोई परिवर्तन नहीं आता है।