एकल नागरिकता क्या है ? - Questiopurs

एकल नागरिकता क्या है (WHAT IS SINGLE CITIZENSHIP)

यद्यपि भारतीय संविधान संघीय है और इसने दोहरी राजपद्धति (केन्द्र एवं राज्यों में) अपनाया है. लेकिन इसमें केवल एकल नागरिकता की व्यवस्था की गई है अर्थात् भारतीय नागरिकता। यहाँ राज्यों के लिए कोई पृथक् नागरिकता की व्यवस्था नहीं है। अन्य संघीय राज्यों, जैसे- अमेरिका एवं स्विट्जरलैंड में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया गया है।


अमेरिका में प्रत्येक व्यक्ति न केवल अमेरिका का नागरिक है, वरन् उस राज्य विशेष का भी नागरिक है जहाँ वह रहता है। इस तरह उसे दोहरी नागरिकता प्राप्त है और इसी संदर्भ में उसे राष्ट्रीय सरकार एवं राज्य सरकार के दोहरे अधिकार प्राप्त हैं।


एकल नागरिकता क्या है (WHAT IS SINGLE CITIZENSHIP)

यह व्यवस्था भेदभाव की समस्या पैदा कर सकती है। जैसा कि राज्य अपने नागरिकों के प्रति भेदभाव बरत सकता है। यह भेदभाव मताधिकार सार्वजनिक पदों, व्यवसाय आदि को लेकर हो सकता है। ऐसी व्यवस्था को दूर करने के लिए ही भारत में एकल नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया गया।


भारत में सभी नागरिकों को, चाहे उनका जन्म कहीं और निवास कहीं और हो; पूरे देश में समान नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं। उनके बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता।


यद्यपि भेदभाव रहित इस व्यवस्था में कुछ अपवाद भी हैं-


1. संसद् (संविधान के तहत्) ऐसी व्यवस्था कर सकती है कि किसी राज्य विशेष में रहने वाले लोगों को कुछ नौकरियों या नियुक्तियों में अलग सुविधा मिले। यह सुविधा उस राज्य या केन्द्र शासित क्षेत्र के तहत स्थानीय या अन्य प्रशासन के तहत हो सकती है। संसद् ने इसी से संबंधित सार्वजनिक रोजगार (निवासी के रूप में जरूरत) अधिनियम, 1957 को प्रभावी बनाया।


भारत सरकार को यह अधिकार दिया गया कि गैर-राजपत्रित पदों पर नियुक्ति के लिए आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा के लिए निवास की अनिवार्यता करे। जैसा कि यह अधिनियम, 1974 में समाप्त हो गया। उसके बाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को छोड़कर किसी भी राज्य में ऐसी व्यवस्था नहीं है।


2. संविधान किसी भी नागरिक के खिलाफ धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या निवास के आधार पर भेदभाव करने पर प्रतिबंध लगाता है। इसका अभिप्राय है कि निवास के आधार पर राज्य किसी को विशेष सुविधा दे सकता है, जो कि संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के सीमा क्षेत्र में आने वाला मामला न हो। उदाहरण के लिए एक राज्य अपने निवासियों के लिए शैक्षणिक शुल्क में छूट दे सकता है।


3. निवास एवं घूमने की स्वतंत्रता अनुसूचित जनजातियों के हित में सुरक्षा का विषय है। दूसरे शब्दों में जनजातिय क्षेत्रों में प्रवेश एवं निवास प्रतिबंधित है। निश्चित रूप से ऐसी व्यवस्था उनकी विशेष संस्कृति, भाषा, रिवाज आदि को बचाने के लिए की गई है। यही नहीं यह व्यवस्था उनकी संपत्ति एवं परम्परा को बचाने एवं उनके शोषण के विरुद्ध एक सुरक्षा कवच भी है।


4. 2019 तक जम्मू एवं कश्मीर की विधायिका निम्नलिखित के लिए अधिकृत थी-


1. उन व्यक्तियों को परिभाषित करना जो जम्मू एवं कश्मीर राज्य के स्थाई निवासी हैं. 

2. ऐसे स्थाई निवासियों को निम्न मामलों में विशेष अधिकार एवं सुविधाएँ प्रदान करना-


(i) राज्य सरकार की सेवा में रोजगार,

(ii) राज्य में अचल सम्पत्ति अर्जित करना,

(iii) राज्य द्वारा छात्रवृत्ति या अन्य प्रकार की सहायता प्राप्त करने का अधिकार लिए मजबर होना पड़ा था। 


उपरोक्त प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 35 ए (35A) पर आधारित थे। यह अनुच्छेद 'संविधान (जम्मू एवं कश्मीर पर लागू) आदेश' द्वारा संविधान में जोड़ा गया था। यह संवैधानिक आदेश राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत पारित किया गया था; जिसने जम्मू एवं कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दे रखा था।


2019 एक नये आदेश के तहत - 'संविधान (जम्मू एवं कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019' द्वारा राष्ट्रपति ने इस विशेष दर्जा को वापस ले लिया। इस नये आदेश ने पूर्व के आदेश को अधिक्रमित कर दिया।


भारत का संविधान कनाडा की तरह एकल नागरिकता का उपबंध करता है और एकीकृत अधिकार (कुछ मामलों को छोड़कर) प्रदान करता है। यह व्यवस्था भाई-चारे और लोगों के बीच एकता बनाए रखने के लिए की गई, ताकि एक शक्तिशाली भारतीय राष्ट्र की स्थापना हो सके।


इसके बावजूद भारत में सांप्रदायिक दंगे, वर्ग संघर्ष, जातीय युद्ध, भाषायी विवाद आदि होते रहे हैं। इस तरह संविधान निर्माताओं का एक एकीकृत भारतीय राष्ट्र निर्माण का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका है।


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