प्राचीन काल में नारी शिक्षा पर टिप्पणी लिखिए ।
1. वैदिक काल -
वैदिककालीन भारत में स्त्रियों को पुरुषों के समान ही शिक्षा दी जाती थी इसके पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं । वैदिक वाङ्मय में इसके अनेक उदाहरण बिखरे पड़े हैं । लड़कियों के वेदाध्ययन करने सम्बन्धी उल्लेख अथर्ववेद में भी मिलते हैं । शतपथ ब्राह्मण के अन्तिम भाग में एक स्थान पर आया है कि प्राचीन ऋषि जहाँ लड़कों को विद्वान् बनाने के लिए यत्न करते थे वहाँ लड़कियों को भी विदुषी बनाते थे ।
मनुस्मृति में कहा है कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं । इससे उस समय के लोगों की स्त्रियों के प्रति क्या भावना थी इस पर प्रकाश पड़ता है । मनुस्मृति में ही एक अन्य स्थान पर कहा है कि राजा का कर्त्तव्य है कि सब लड़कियों और लड़कों के लिए नियत समय तक ब्रह्मचर्य आश्रम में रहने ( यानी विद्याध्ययन करने की व्यवस्था करे ।
2. उत्तर वैदिक काल -
पर यह वैदिक युग की बात है। कालान्तर में इस दृष्टिकोण में अंतर ओ गया स्त्रियों का समाज में स्थान पुरुषों के बराबर नहीं रहा , निम्न हो गया । उनकी शिक्षा भी उपेक्षित हो गयी । गार्गी , मैत्रेयी , घोवा , लोपामुद्रा , विश्ववारा , अपाला आदि की परम्परा टूट गयी और तब मूर्खतापूर्ण ' सूक्तियाँ ' या ( कूक्तियाँ ) चली पड़ी कि स्त्री और शुद्ध को नहीं पढ़ाना चाहिए ।
शंकराचार्य का लिखा एक ग्रन्थ है - प्रश्नोत्तरी उसमें शंकराचार्य ने कई स्थानों पर नारी की भरपूर निन्दा की है। नरक का एकमात्र द्वार कौन-सा है? - नारी मदिरा की भाँति कौन - सी वस्तु सम्मोहित कर देती है ? - नारी । वह कौन - सा विषय है जो अमृत जैसा प्रतीत होता है ? - नारी स्त्रियों के सम्बन्ध में गौतम बुद्ध के विचार वैदिक धारणा के अनुकूल तो नहीं थे, पर कुछ बहके हुए लोगों की तुलना में कहीं अधिक सन्तुलित थे । उन्होंने स्त्रियों को अध्ययन का भी अधिकार दिया और संन्यास का भी पर बौद्ध धर्म को भारत से निष्कासित करने वाले शंकराचार्य स्त्रियों के प्रवल विरोधी थे और इसे देश के दुर्भाग्य के सिवा क्या कहें कि धार्मिक स्तर पर उन्हें सफलता मिली जो स्त्रियों के लिए अभिशाप बन गयी ।
वैदिक परम्परा का सर्वथा लोप किसी युग में नहीं हुआ , इसके भी प्रमाण मिलते हैं । जनश्रुति है कि कवि कालिदास की पत्नी विद्योत्तमा विदुषी महिला थीं , उसने अनेक पंडितों को शास्त्रार्थ में हराया । बाणभट्ट ने कादम्बरी की नायिका महाश्वेता को यज्ञोपवीत धारण करने से पवित्र शरीर वाली बताया है । कादम्बरी की कथा भले ही कल्पित हो पर इससे इतना पता तो चलता है कि 7 वीं शती में उत्पन्न बाणभट्ट ब्रह्मचारिणी स्त्रियों का यज्ञोपवीत धारण करना ( जो विद्याध्ययन का प्रतीक है ) आवश्यक मानते थे।
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