Darshan and Philosophy: दर्शन और फिलॉसफी में अंतर
दर्शन और फिलॉसफी में अंतर (Difference between Darshan and Philosophy): दर्शन एवं फिलासिफो एक ही विषय के लिए हिन्दी और अंग्रेजी भाषा के अलग-अलग शब्द है। इनमें बही अंतर है जो मानव और हथुमन शब्दों में हैं। दर्शन के संदर्भ में भारतीय दृष्टिकोण और पाश्चात्य दृष्टियण में थोड़ा अंतर है। भारतीय दर्शनों में आज भी सृष्टि-सृष्टी, आत्मा-परमात्मा, जीव-जगर ज्ञान अज्ञान एवं मनुष्य के जीवन के अंतिम उद्देश्यों और उन्हें पार करने के उपायों पर विचार किया जाता है।
जब कि फिलॉसफी में सृष्टि-सृष्टा, आत्मा-परमात्मा, जीव-जगत, ज्ञान-अज्ञान आदि पा विचार किए बिना ही विचार दे दिए जाते हैं। इस सम्बंध में एल.के औड का कथन है कि "भारतीय व्याख्या अधिक गहराई तक पैठती है. क्योंकि भारतीय अवधारणा के अनुसार दर्शन का क्षेत्र केवान जार तक सीमित न रहकर समाप्त व्यक्तित्व को अपने आप में समा लेता है। दर्शन केवल चिंतन का विषय न होकर अनुभूति का विषय माना जाता है।
फिलासँफी में फिलॉसफर बिना किसी विषय समस्या, उपयोगिता के हो विचाद देता है। फिलामेंफो के शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान में प्रेम का अनुराग' व्यक्ति को केवल भावात्मक अभिव्यक्ति को प्रकट करता है जबकि दर्शन में मस्तिष्क की प्रक्रिया के भाव, कर्म और ज्ञान तीनों पक्षों का समावेश होता है। संक्षेप में दर्शन और फिलॉसफी में निम्नलिखित अंतर हैं-
दर्शन ( Darshan )
1. दर्शन का विकास स्वतंत्र रूप से
2. दर्शन की उत्पत्ति दुःख के निवारण हुई है।
3. संपूर्ण सत्य के प्रति अन्तदृष्टि को दर्शन कहा जाता है।
4. दर्शन का सम्बंध जीवन तथा जीवन मूल्यों से अधिक है।
5. दर्शन को उद्देश्य अतिम मंजिल तक पहुँचना है और उसकी अनुभूति करना है।
6. दर्शन में आध्यात्मिक चिंतन के द्वारा आत्मा तथा ईश्वर को अनुभूति की जाती है।
7. दर्शन भी किसी भी ज्ञान-विज्ञान तथा क्रिया की व्याख्या सामान्यतः तत्व मीमांसा के आधार पर की जाती है।
8 दर्शन में जाता और ज्ञेय के मध्य की प्रक्रिया का ज्ञान स्वरूप होता है। इसमें ज्ञानेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों से परे अमूर्त चिंतन, अनुभूति को महत्व दिया जाता है।
9. दर्शन में लक्ष्य को स्पष्ट कर चिंतन किया जाता है।
10. दर्शन में शारीकि, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक पक्षों का समन्वय होता है।
फिलॉसफी ( Philosophy )
- फिलॉसफी का विकास अन्य विषयों के आधार पर हुआ है।
- फिलॉसफो को उत्पत्ति जिज्ञासा एवं आश्चर्य से हुई है।
- ज्ञान के प्रति या अनुराग को फिलॉसफी कहते हैं।
- फिलॉसफी वास्तव में शिक्षा सिद्धान्त है।
- फिलॉसफी का उद्देश्य ज्ञान की खोज में लगे रहना उसके परिणामों से कोई सम्बंध न होना है।
- फिलॉसफी में मानसिक खोज द्वारा सत्य की प्रतिष्ठा खोजी जाती है।
- फिलॉसफी में किसी भी ज्ञान-विज्ञान या क्रिया की व्याख्या सामान्यतः सोधे मानव जीवन के आधार पर की जाती है।
- फिलॉसफी में ज्ञान का स्रोत, अनुभव तथा ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्षीकरण पर बल दिया जाता है। इसमें अनुभव जन्य ज्ञान को महत्व दिया जाता है।
- फिलॉसफी में बिना किसी लक्ष्य को निश्चित किए ही चिंतन प्रारम्भ हो जाता है।
- फिलॉसफी में शारीरिक, मानसिक बौद्धिक पक्षों पर बल दिया जाता है।
आचार्य बलदेव उपाध्याय ने भारतीय दर्शन और पाश्चात्य दर्शन में मुख्य पांच अंतर बताए हैं-
1. भारतीय दर्शनों का विकास मनुष्य को दुखत्रयों (अधिदैविक, अधिभौतिक और आध्यात्मिक) से छुटकारा दिलाने हेतु हुआ है। जब कि पाश्चात्य दशनों (फिलॉसफो) का विकास आश्चर्यजनक वस्तुओं एवं क्रियार्यों को देखने से उत्पन्न कौतुहल को शांत करने के लिए हुआ है।
2. भारतीय दर्शनों का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ है, जबकि पाश्चात्य दर्शनों की सामग्रो अग्य अनुशासनों (मानवशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति शास्व) के आधार पर विकसित की गई है।
3. भारतीय दर्शन वास्तविक ज्ञान के स्वरूप की व्याख्या करने की और प्रवृत्त है, जबकि पाश्चात्य दर्शन समस्त ज्ञान-विज्ञान को व्याख्या करने की ओर प्रवृत्त है।
4. भारतीय दर्शन अनुभूत ज्ञान पर आधारित है और तर्क द्व पोषित है, जबकि पाश्चात्य दर्शन केवल तर्क पर आधारित है।
5. भारतीय दर्शन का धर्म से गहरा सम्बंध है, जबकि पाश्चान दर्शन का धर्म से कोई सम्बंध नहीं है।
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