राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन | भारत में राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन
राष्ट्रीय चेतना की वृद्धि तथा राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन अपने चरम बिन्दु पर पहुँच गया। इसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे-
( 1 ) कर्जन की नीति
कर्जन की प्रक्रियावादी नीति से भारतीय पहले से ही रुष्ट थे, अतः शिक्षा पर कड़ा सरकारी नियन्त्रण लग जाने से उनकी क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो गयी और साथ-साथ शिक्षा के राष्ट्रीयकरण का आन्दोलन जोर पकड़ गया ।
( 2 ) अन्तर्राष्ट्रीय घटनाएँ
इस समय भारत के समीपवर्ती देशों में कुछ ऐसी घटनाएँ जैसे अवसेनियाँ में हब्शियों द्वारा इटली का और जापानियों द्वारा रूस का पराजित होना, ईरान में स्वेच्छानुचारी शासन का अन्त कर संवैधानिक राज्य शासन चालू करना , टर्की में प्रतिनिधि शासन ' स्थापित होना आदि घटीं जिन्होंने पूर्व पर पश्चिम की श्रेष्ठता के विचार को नष्ट कर एशियाई जातियों में नवजीवन का संचार किया।
( 3 ) बंगाल का विभाजन
20 जुलाई , 1905 ई ० में लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा की जिसे सुन कर सम्पूर्ण बंगाल उत्तेजित हो उठा । 7 अगस्त , सन् 1905 ' कलकत्ता अधिवेशन ' में कांग्रेस ने बंगाल-विभाजन का विरोध करने के लिए ' राष्ट्रीय आन्दोलन ' प्रारम्भ करने का निश्चय किया जिसे ' स्वदेशी आन्दोलन ' कहते हैं । इस आन्दोलन के चार प्रमुख अंग थे
( i ) स्वराज्य की प्राप्ति
( ii ) विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार
( iii ) स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग
( iv ) राष्ट्रीय शिक्षा की माँग
यहाँ हमारा सम्बन्ध केवल राष्ट्रीय शिक्षा की माँग से है। अंग - भंग के शीघ्र बाद राष्ट्रीय आन्दोलन ने जोर पकड़ा और राष्ट्रीय नेताओं ने ' राष्ट्रीय शिक्षा ' की माँग प्रस्तुत की । 1905 ई ० में कांग्रेस ने अपने कलकत्ता अधिवेशन में इस आशय का प्रस्ताव की पूर्ति कर सके । " समस्त देश में राष्ट्रीय शिक्षा का आयोजन किया जाय जो भारत के राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति तथा देश की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।"
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