आधुनिक भारतीय समाज के लिए प्राचीन शिक्षा की क्या उपयोगिता है ? | The usefulness of ancient education for modern society
आधुनिक भारतीय समाज के लिए प्राचीन शिक्षा की उपयोगिता
1. आदर्श मानवता
प्राचीन काल की शिक्षा मानव को आदर्श मानव बनाने वाली थी । तत्कालीन शिक्षा नम्रता, परोपकार, सत्य वचन , आध्यात्मिकता, पारस्परिक स्नेह आदि मानवीय गुणों पर बल देती थी। इन गुणों की वर्तमान युग की शिक्षा में भी परम आवश्यकता है ।
2. आध्यात्मिकता के प्रति आस्था
वर्तमान युग की शिक्षा विज्ञान, तकनीकी, उद्योग, व्यवसाय आदि क्षेत्रों में मानव को आगे बढ़ाती है। इस प्रकार की शिक्षा ने मानव को भौतिकवादी अधिक बना दिया है। प्राचीनकाल की शिक्षा आध्यात्मिकता के प्रति आस्था उत्पन्न करने वाली थी । धर्म, कर्म, ईश्वर, नैतिकता, अहिंसा आदि को समझने में प्राचीन शिक्षा सहायक बनती थी। आधुनिक युग में भी आध्यात्मिकता पर बल दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है ।
3. आदर्श एवं मधुर गुरु-शिष्य सम्बन्ध
आधुनिक युग में गुरुओं के प्रति शिष्यजन ईर्ष्या, वैमनस्य तथा कटुतापूर्ण व्यवहार करते हैं । आज तो गुरुओं का घेराव भी किया जाता है । कभी - कभी हिंसा का वातावरण भी बन जाता है । यह तनावपूर्ण एवं दोषपूर्ण वातावरण गुरु - शिष्य सम्बन्धों की कटुता तथा अनुपयुक्तता का ही परिणाम है । वर्तमान काल की शिक्षा में गुरु एवं शिष्य के पारस्परिक सम्बन्ध को अधिकाधिक मधुर बनाने पर बल दिया जाना चाहिए और प्राचीन आदर्श को स्थापित करना चाहिए ।
4. प्रकृति का सुखद वातावरण
गुरुकुल या अन्य शिक्षण संस्थाएँ ऐसे वातावरण में स्थित होते थे जहाँ नगरीय कोलाहल नहीं होता था । इस प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव छात्रों के व्यक्तित्व पर भी पड़ता था । उस समय के छात्र नम्र, शान्त स्वभाव, उदार प्रकृति प्रेमी होते थे । वर्तमान युग विद्यालयों में यदि प्राकृतिक सौन्दर्य को लाने का प्रयास किया जाये और विद्यालयों को नगर के कोलाहल से दूर शान्त वातावरण में अवस्थित किया जाये तो विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों के व्यक्तित्व में भी महान अंतर आ सकेगा।
5. छात्रों का सादा जीवन तथा उच्च विचार
प्राचीन काल के छात्र सादा जीवन व्यतीत करने वाले तथा संयम से रहने वाले आदर्श मानव होते थे । उनका चरित्र एवं व्यवहार सचमुच ही अनुकरणीय होता था । आधुनिक युग के शिक्षार्थियों में भी सादा जीवन, उच्च विचार, संयम , ब्रह्मचर्य व्रत आदि श्रेष्ठ बातों को सीखने की स्पर्धा होनी चाहिए। प्राचीन काल के शिक्षार्थी अर्धनग्न, यज्ञोपवीतधारी, नंगे पैर , सिर मुड़े तथा मस्तक पर तिलक लगाये हुए आजकल के फैशनपरस्त, व्यसनी तथा संयमहीन छात्रों की अपेक्षा कहीं अधिक चरित्रवान तथा विद्वान होते थे। आधुनिक युग उन गुणों की पुनर्प्राप्ति की अत्यन्त आवश्यकता है ।
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