राष्ट्रीय जीवन के लिए शिक्षा के कार्यों का वर्णन कीजिए।
राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के कार्य (Function of Education In National Life): राष्ट्र तथा उसके नागरिकों का एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति केवल उसी समय हो सकता है जब उसके नागरिक उत्तम, सच्चरित्र तथा उत्तरदायित्वपूर्ण हों। यदि नागरिक अयोग्य, चरित्रहीन तथा निर्बल होंगे तो राष्ट्र निश्चित रूप में रसातल को चला जायेगा।
इस दृष्टि से राष्ट्र की उन्नति के लिए श्रेष्ठ नागरिकों का होना परम आवश्यक हैं ऐसे नागरिकों का निर्माण करना ही राष्ट्रीय जीवन का शिक्षा का कार्य है। भारतीय समाज में जनतन्त्रीय समाजवादी आदर्शों की दृष्टि में रखते हुए शिक्षा नागरिकों को निम्नलिखित बातों में प्रशिक्षित करके इस महान् कार्य को पूरा कर सकती है -
1. नेतृत्व के लिए प्रशिक्षण (Training for Leadership) :-
जनतन्त्र और नेतृत्व का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। इस दृष्टि से जनतन्त्र में योग्य, अनुभवी तथा कुशल नेताओं का होना परम आवश्यक है। दूसरे शब्दों में, जनतन्त्र की सफलता के राजनीतिक, सामाजिक, औद्योगिक, तथा सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों के लिए प्राइमरी, माध्यमिक तथा उच्च तीनों स्तरों का उत्तरदायित्वपूर्ण नेताओं की आवश्कयता होती है।
प्रत्येक क्षेत्र में उच्चस्तरीय नेता नीति का निर्माण करते हैं। इस नीतिक के माध्यमिक तथा प्राइमरी स्तरों के नेता कार्य रूप में परिणत करते है। अतः जनतन्त्रीय समाज के प्रत्येक क्षेत्र में विभिन्न स्तरों के लिए अधिक से अधिक नेतृत्व का प्रशिक्षण आवश्यक हैं भारत की एक सर्वसत्ता सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य है। इसके राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सभी स्तरों के लिए योग्य, अनुभवी तथा कुशल नेताओं की आवश्यकता है। शिक्षा इस महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करे।
2. राष्ट्रीय विकास (National Development) :-
शिक्षा राष्ट्रीय विकास की आधारशिला होती है। अतः शिक्षा का वहाँ प्रत्येक नागरिक को एक निश्चित स्तर तक अनिवार्य रूप में शिक्षित करना है यदि शिक्षा इस महान् कार्य को पूरा करने में सफल हो गई तो राष्ट्र के सभी नागरिक मतदान द्वार योग्य, सच्चरितत्र तथा कुशल नेताओं का चुनाव करके ऐसी सुव्यवस्थित आधार का निर्माण कर सकेंगें जिसके द्वारा राष्ट्र का विकास होना निश्चित है। अतः भारतीय शिक्षा इस ओर विशेष दें।
3. राष्ट्रीय एकता (National Integration) :-
राष्ट्रीय विकास के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है। अतः राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा का कार्य राष्ट्रीय एकता की स्थापना करना है। खेद का विषय है कि भारत जैसे महान् राष्ट्र में शिक्षा इस कार्य के प्रति अभी तक उदासीन है। परिणामस्वरूप हमारे अन्दर विचारों की संकीर्णता, स्वार्थता तथा कटुता आदि दोष उत्पन्न हो गया है।
इन दोषों के कारण हम जातीयता, प्रान्तीयता साम्प्रदायिकता तथा क्षेत्रीयता में विश्वास करके कभी भाषा के प्रश्न पर पड़ते हैं तो कभी जनसंख्या के आधार पर राष्ट्रका बंटवारा करना चाहते हैं। वास्तविकता यह है कि इन दोषों ने अपनी बात को इतना बढ़ा दिया है कि राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ गई है। यदि राष्ट्र को खतरे से बचाना है तो व्यक्ति से इन दोषों को दूर हटाना होगा।
ऐसी दशा में केवल शिक्षा ही ऐसा साधन है जिसके द्वारा संकीर्णता को दूर करके विशाल भावना को विकसित करके शत्रुता के स्थान पर प्रेम का पाठ पढ़ाया जा सकता है। स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू का विचार है "राष्ट्रीय एकता के प्रश्न में जोवन को प्रत्येक वस्तु आ जाती है। शिक्षा का स्थान इन सबमें ऊपर है और यही आधार है।'
4. भावात्मक एकता (Emotional Integration):-
जिस प्रकार राष्ट्रीय विकास के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है, उसकी प्रकार राष्ट्रीय एकता के लिए भावात्मक एकता की भी आवश्यकता है। भारत विभिन्नताओं का देश है। यहाँ पर विभिन्न भाषायें, परम्परायें, धर्म तथा रहन-सहन पाये जाते हैं। हम में से प्रायः प्रत्येक व्यक्ति दूसरों को तुलना में केवल अपनी भाषा और रोति-रिवाज एवं धर्म को सबसे अच्छा समझता है।
इस संकीर्ण दृष्टिकोण के कारण हम सब में इतना मनमुटाव हो जाता है कि कभी-कभी लड़ाई-झगड़े भी हो जाते हैं। ऐसे समय पर शिक्षा हमें उस राष्ट्रीय-सम्पत्ति का ध्यान दिलाती है जिसके विषय में हम सब एक मत है तथा जो हम सब को एकता के सूत्र में बाँधती है। यही राष्ट्रीय सम्पत्ति का आदर्श राष्ट्रमें भावात्मक एकता को विकसित करने में सहायता देता है। स्पष्ट है भावात्मक एकता को केवल शिक्षा के द्वारा ही विकसित किया जा सकता है। अतः शिक्षा का कार्य राष्ट्रीय जीवन में भावात्मक एकता को विकसित करना है।
5. राष्ट्रीय अनुशासन (National Discipline):
किसी भी राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधकर उसे पूर्णरूपेण विकसित करने के लिए राष्ट्रीय अनुशासन परम आवश्यक है। अतः शिक्षा का कार्य राष्ट्रीय अनुशासन को विकसित करना है। भारत अब स्वतन्त्र है। इस महान राष्ट्र की स्वतन्त्रता को बनाये रखने के लिए परिश्रम तथा सतर्कता के साथ-साथ संगठन, कुशलता एवं बलिदान आदि गुणों को भी आवश्यकता हैं इसका एकमात्र कारण यह है कि उक्त गुणों के विकसित होने से हो राष्ट्रीय अनुशासन का जन्म होता है।
अतः भारतीय शिक्षा को राष्ट्रीय अनुशासन के कार्य में सहयोग देना चाहिए। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने इसी तथ्य की पृष्टि करते हुए लिखा है "जनतन्त्र सफलतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता जब तक सभी आदमी, केवल एक विशेष वर्ग के ही नहीं, अपने-अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए प्रशिक्षित नहीं किये जाते और इसके लिए अनुशासन प्रशिक्षण की आवश्यकता है।"
6. नागरिक तथा सामाजिक कर्तव्यों की भावना का समावेश (Inculcation) of Civil and Social Duties):
भारत एक धर्म-निरपेक्ष गणराज्य है। इसको सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति नागरिक के रूप में राष्ट्र के प्रति तथा व्यक्ति के रूप में समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करता रहे। जिससे आज का बालक कल के नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों की भावनाओं को विकसित करना है जिससे आज का बालक कल के नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करके राष्ट्रीय विकास में यथाशक्ति योगदान दे सकें।
7. नैतिकता का प्रशिक्षण (Training in Morality):
नैतिकता प्रत्येक राष्ट्र की बहुमूल्य सहमति है। अतः शिक्षा का कार्य बालक को नैतिकता का प्रशिक्षण देना है। प्रसन्नता की बात है कि हमारा देश नैतिकता की दौड़ में विश्व के सभी देशों से सदैव आगे हो रहा है, परन्तु खेद की बात है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् अब राष्ट्रीय जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अनैतिबकता का साम्राजय दिखाई पड़ रहा है।
ऐसी दशा में राष्ट्र के विकास की दृष्टि में रखते हुए भारत के नागरिकों के लिए नैतिक प्रशिक्षण और भी आवश्यक हो जाता है। शिक्षा बालक के अन्दर सत्य, प्रेम तथा त्याग आदि अनेक वांछनीय गुणों को विकसित करके नैतिक विकास करती है। अतः भारतीय शिक्षा को चाहिये कि वह राष्ट्र को विकसित करने के लिए पहले सबका नैतिक विकास करे।
8. कुशल श्रमिकों की पूति:
आज के भौतिकवादी युग में प्रत्येक राष्ट्र को श्रेष्ठता का मूल्यांकन उसकी राष्ट्रीय सम्पत्ति से किया जाता है यदि राष्ट्रीय सम्पत्ति सन्तोषजनक है तो वहाँ के नागरिकों का रहन-सहन भी सन्तोष जनक होगा, अन्यथा नहीं। इसीलिए प्रत्येक राष्ट्र अपनी राष्ट्रीय सम्पत्ति बढ़ाने के लिए अपने व्यापारों तथा उद्योगों को बढ़ाने का प्रयास करता है। इस महान् कार्य को पूरा करने के लिए कुशल श्रमिकों का होना परमआवश्यक है। अतः हमारी शिक्षा का आठवाँ कार्य, कुशल श्रमिकों की पूर्ति करना है जिससे राष्ट्रीय सम्पत्ति में वृद्धि होती रहे तथा राष्ट्र समृद्धिशाली वन जाये।
9. राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता (Priority to National Interest):
प्रत्येक राष्ट्र को जीवित रहने के लिए यह आवश्यक है कि वहाँ के नागरिक अपने हितों की अपेक्षा राष्ट्रहित को प्राथमिकता दें। अतः राष्ट्रीय जीवन में' शिक्षा का कार्य नागरिकों को इस प्रकार से प्रशिक्षित करना है कि वे अपने निजी हितों को अपेक्षा राष्ट्रहित को प्राथमिकता देते रहें।
अन्य राष्ट्रों की अपेखा भारत में शिक्षा को इस ओर विशेष ध्यान देना है इसका कारण यह है कि भारतीय समाज ऐसे अनेक वर्गों तथा राजनीतिक दलों में बँटा हुआ है जो राष्ट्रहित की आड़ में सदैव अपने-अपने हितों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे से टकराते रहते हैं। केवल शिक्षा हो एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा इन सभी वर्गों तथा दलों को राष्ट्र कल्याण के लिए तैयार किया जा सकता ।
10. सामाजिकता कुशलता की उन्नति :
प्रत्येक राष्ट्र का कल्याण इस बात में है कि वहाँ के नागरिक सामाजिक दृष्टि से कुशल एवं उन्नतिशील हों। अमरीका के प्रोफेसर बागले के अनुसार सामाजिक दृष्टि से कुशल वह व्यक्ति होता है जो राष्ट्र के लिए भार न हो, दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप न करके तथा जो समाज को उन्नति में यथाशक्ति योग देता रहे।
इस दृष्टि से भारत के राष्ट्रीय में शिक्षा का कार्य बालकों में सामाजिक कुशलता की उन्नति करना है इस माहन कार्य को शिक्षा उन व्यापारों तथा उद्योगों में बालक को प्रशिक्षित करके पूरा कर सकती है जो समाज अथवा राष्ट्र के लिए उपयोगी हो।